Monday, December 29, 2014

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ …


बस, … इस साल के
एक-दो सुट्टे … बचे हैं दोस्त
दम लगा के …
खैंच लो,
फिर ? … फिर क्या … !!
नया साल सुलगने लगेगा…?

Saturday, December 20, 2014

औघड़-फक्कड़ ...

चलो निपट गया
एक……… और कुंभ
कुछेक स्वयम्भुओं …
को पुण्य मिल गया ?

आज, तमाम अपराधी संदेही हैं, या फरार हैं
अब और, ………… हम क्या कहें 'उदय' ?
सच ! न टोपी, न टीका, न माला, न टोटके
हम कैसे मान लें 'उदय', कि तुम ज्ञानी हो ?
....
क़ुबूल हों तुम्हें …
तमगे, दुशाले औ समारोहों की चका-चौंध
हम ! …… हम तो ठहरे औघड़-फक्कड़ ?


Tuesday, December 16, 2014

कुचल दें ...

कोमल पंखुड़ियाँ मसल दी हैं
कल …
कुछ जालिमों ने,


तब से अब तक
रोम तक कंप-कंपा रहे हैं मेरे,

करूँ तो क्या करूँ …
मैं अकेला हूँ,

चलो मिलकर …
कुचल दें
हुकूमत जालिमों-जल्लादों की ?

Monday, December 8, 2014

हौले हौले

उनके, रंज-औ-गम दोनों फर्जी हैं
सच ! वो बहुत बड़े नकलची हैं ?
… 
सच ! चित्त भी उनकी है, औ पट्ट भी उनकी
बस, खड़े सिक्के पे उनका जोर नहीं चलता ?
.... 
गर जिंदगी शराब है, तो तू मैकदा है
बता, छक कर पियें, या हौले हौले ?

हाईकू
--
जो तू कहे …
ओढ़ लूँ, 
या बिछा लूँ ?

Tuesday, December 2, 2014

माजरा ...

'खुदा' की कसम, वो बड़े जल्लाद हैं
रहम पाकर भी, ..... मस्ता रहे हैं ?
… 

कुछ इस तरह का माजरा है 'उदय'
शक्ल भेड़िये-सी है, पर उसे बाघ बता रहे हैं लोग ?
.... 
मुफलिसी के किस्से भी बड़े अजीब हैं
वो कहते हैं, कि हम तुमसे अमीर हैं ?
… 

सच ! तूने, होंठों से छूकर मुझे डायमंड बना दिया 
वर्ना जिंदगी किसी पत्थर से कम नहीं थी अपनी ? 
हम तो तुम्हें चाहते ही रहेंगे
बस तुम, …
जी को मचलने मत देना ?? 


Tuesday, November 25, 2014

वादा ...

किस शहर की
किस गली के नुक्कड़ पे
पूछूँ मैं नाम तेरा,
क्योंकि -
थक गया हूँ मैं ढूंढते-ढूंढते तुझको
कहीं ऐसा न हो
सांस रूठ जाए - वादा टूट जाए ?

Wednesday, November 19, 2014

दो उचक्के …

दो उचक्के …
और चार चक्के, 

चल रही है गाड़ी, बढ़ रही है गाड़ी
दौड़ रही है गाड़ी,
सरपट भाग रही है गाड़ी,  


थोड़े कच्चे, पर धुन के पक्के, 

दो उचक्के …
और चार चक्के ???

Thursday, November 13, 2014

किरदार ...

वो आज मुझसे ही मेरा पता पूंछ रहे थे
कैसे, औ किस किस को बताऊँ
कि -
मैं खुद ही गुमनाम फिरा करता हूँ ???
… 
जोकरों के सिवाय कोई और किरदार फबता नहीं है हम पे
मगर… फिर भी… वो जिद किये बैठे हैं 'खुदा' बनने की ?
जुनून-ए-इश्क में, चिंदी-चिंदी हो गए
कल तक जो शेरवानी हुआ करते थे ?

Wednesday, November 5, 2014

कश्मकश ...

उफ़ ! वो मिले भी तो कुछ इस तरह
कि मिलते ही, फिर से बिछड़ गए ?
गर हम इसी तरह बहते रहे, तो तय है 'उदय'
इक दिन, ……… हम भी सागर हो जाएंगे ?
आज हम जल्दी उठ गए हैं 'उदय'
अब देखते हैं, तलाशते हैं फायदे ?
सच ! कभी कभी तो हम भी उनके जैसे हो जाते हैं
पर, इक वो हैं, जो सदियों से जैसे के तैसे ही हैं ??
तुम भी अजनबी - हम भी अजनबी
फिर, कैसी औ क्यूँ है ये कश्मकश ?
… 

Sunday, November 2, 2014

पतवार ...

चलो पकड़ लें,
राह पकड़ लें, डोर पकड़ लें,
जीवन की …
पतवार पकड़ लें,
फिर …
चले चलें, बढे चलें …
मंजिल की ओर …
सपनों की ओर … … … !

Sunday, October 26, 2014

लजीज ...

कुछ इस कदर, कुछ इस तरह का, गुमाँ है उन्हें 'उदय'
शाम, शमा, दीप, रौशनी, सब खुद को समझते हैं वो ?
सच ! तेरे इल्जामों से, हमें कोई परहेज नहीं है
हम जानते हैं, तू आज भी मौक़ा न चूकेगी ??
न ठीक से वफ़ा - न ठीक से बेवफाई
उनकी इस अदा पर भी मर मिटने को जी करता है ?
… 
अब तुम, मजबूरियों को, वफ़ा का नाम न दो 
सच क्या है, ये तुम जानते हो, हम जानते हैं ? 
… 
सिर्फ एक तुझसे अब तक मिजाज नहीं मिल पाये हैं अपने 
वर्ना किसी से भी तू पूंछ कर देख कितने लजीज हैं हम ??

Friday, October 24, 2014

कच्ची बुनियाद ...

वक्त के साथ बदलने को वो तैयार नहीं थे 'उदय' 
उफ़ …सच …लो, अब वक्त बदल रहा है उन्हें ?
… 
न रंज…न गम…न गिला…न शिकवा  
मुहब्बत अपनी कुछ ऐसी ही है 'उदय' ? 
… 
अक्सर …
रूठ जाते हैं - टूट जाते हैं 
रिश्ते, घरौंदे, दिल, 
कच्ची बुनियाद के ?
… 
तू इक बार रूठ के तो देख 
गर न मना लूँ तो कहना ? 
… 
सच ! आज यहां, कल वहां, तो परसों कहीं और होंगे 
हम मुसाफिर हैं 'उदय', सफर ही अपनी जिंदगी है ? 
 

Saturday, October 18, 2014

हुनर / वफ़ा / जाल / कर्म ...

01 -

गर कोई हुनर सीखना है 
तो 
तुम हमसे सीखो 
क्या रंग, 
क्या गुलाटी, 
औ क्या मौक़ा परस्ती ?
… 
02 - 

यकीनन यकीन है तुम पर 
तुम ... 
वफ़ा करो न करो, 
पर...... बेवफाई न करोगे ? 
… 
03 -

काश ! हम भी होते, तुम जैसे 
तो … 
जरूर 
एक बार 
कोशिश करते 
जमीं से आसमां तक 
एक, अनोखा जाल बुनने की ? 
… 
04 - 
मौज भी अपनी है, औ मस्ती भी है अपनी 
कर्म भी अपने हैं 
औ भूमि भी है अपनी, 
 
आओ … चलें … बढ़ें … ढूंढें … 

हीरे-मोती … हम, अपनी ही जमीं में 
और, करें साकार … कर्म … अपने-अपने !

Tuesday, October 14, 2014

आस्तीन का सांप ...

न ठीक से दाना - न ठीक से पानी 
बस इत्ती ही है उनकी मेहरवानी ?  
… 
आओ, 
लिपट जाएँ - सिमट जाएँ 
हम, एक दूजे में, 
लोग, फिर … 
ढूंढते रहें हमें, एक दूजे में ?  
… 
कल एक चाँद को दूजे चाँद का इंतज़ार था 
और हमें, … … … … …  दोनों का था ? 
… 
अब जब उन्ने हमें आस्तीन का सांप कह ही दिया है
तो फिर, अब, उन्हें, डसने में हर्ज ही क्या है 'उदय' ?
… 
अब तो, 'खुदा' ही जाने कब छोड़ेंगे वो आवारगी अपनी 
जबकि कब्र के इर्द-गिर्द ही भटक रही है जिंदगी उनकी ? 
… 

Monday, October 13, 2014

हुदहुद ...

हुदहुद ने,  
कल, खूब हुद्हुदाया है 'उदय' 
रिमझिम, 
बौछार, 
झड़ी, 
हवा, 
तूफां, 
धुंध औ बिजली गुल 
सब ने 
मिलके खूब गुदगुदाया है हमें ?

Saturday, October 11, 2014

दुआ-सलाम ...

तिनके तिनके में बंटी है जिंदगी 
फिर भी कहते हैं समेटो जिंदगी ?
… 
रंज-औ-गम को छोडो 
चलो चलें - बढ़े चलें ? 
… 
सुबह की, … दुआ-सलाम क़ुबूल करें 
आज से, हम भी आशिक हैं तुम्हारे ?
… 
तू अपनी खुबसूरती पे इतराना बंद कर 
होंगे कोई और, हम तो तेरी अदाओं के दीवाने हैं ?
… 
तुझे, तेरी गली की दूधिया चाँदनी मुबारक 
हमें तो … 
टूटते तारों की रौशनी ही बहुत काफी है ?? 
… 

Monday, September 29, 2014

नई शुरुवात ...

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है 'उदय' 
'काल' को भजें या 'काली' को हम ? 
… 
भजो, जपो, तपो 
माल पुआ गपो ? 
… 
कहाँ, किस ओर बढ़ें … 
'नो इंट्री' में, चालान से डर लगता है 'उदय' ?
… 
सच ! काल को भज लो या काली को 
वर्ना, कभी भी गटक लिए जाओगे ?
… 
पुराने मामले सब रफा-दफा करें 
चलो, … इक नई शुरुवात करें ? 
… 

Wednesday, September 24, 2014

ख्याल ...

'खुदा' जाने, किस राह पर, किस मोड़ पर हैं 
मंजिलों से अब कोई वास्ता नहीं है हमारा ? 
… 
कभी कभी ही सही, मिल लिया करो यारो 
कुछ ख्याल अच्छे-बुरे तो होते हैं सभी के ?
… 
चाहतों के दिये उधर भी जलते हैं इधर भी जलते हैं 
पर, कुछ भी कहने से दोनों डरते हैं 
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ??
… 
आज, रंज करें भी तो हम किस बात का करें 
उन्ने पहले ही कह दिया था हमपे यकीन मत करना ?
… 
अब उसे दुनाली कहो या ट्वेल्व-बोर कहो 
वो जब भी चलेगी तो जान लेके ही रहेगी ? 
… 

Sunday, September 21, 2014

गिल्ली-डंडा ...

इसको देखा, उसको देखा, जिसको देखा… लड़ते देखा 
छोटी-छोटी बातों पे, 
हमनें, 
लोगों को, 
गिल्ली-डंडा बनते देखा ? 
झूमा-झटकी, पटका-पटकी, झपटा-झपटी करते देखा 
लड़ते देखा, 
भिड़ते देखा, 
गिरते देखा, 
उठते देखा, 
छोटी-छोटी बातों पे…… गिल्ली-डंडा बनते देखा ???

Wednesday, September 17, 2014

हुस्न औ जिस्म …

सच ! जब तक मिले नहीं थे उनके औ मेरे मिजाज 
कुछ वो भी अजनबी थे, कुछ हम भी थे अजनबी ?
… 
'उदय' क्या बताएगा ये तुम हम से पूछों यारो 
इश्क में, बड़े बड़े 'शेर' भी 'चूहे' नजर आते हैं ? 
… 
डगमग डगमग हैं हम, औ डगमग डगमग है दिल हमारा 
वो पास से गुजरे हैं ……… या भूचाल आया था 'उदय' ?
… 
उनसे मिलना भी इक बहाना था 
औ  
बिछड़ना भी …… इक बहाना है 
हुस्न औ जिस्म … 
बगैर करतब के कब मिलते हैं 'उदय' ?
… 
वो भी डरते हैं हम भी डरते हैं 
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ? 

Wednesday, September 10, 2014

ख्याल ...

दिल भी तुम्हारा है औ हम भी तुम्हारे हैं
जी चाहे जितना चाहे तोड लो मरोड़ लो ?

या तो, अभी-अभी
या फिर, … वर्ना, … कोई बात नहीं !!!

बड़े इत्मिनान से 'रब' ने तराशा है उसे 
सिर से पाँव तक क़यामत सी लगे है ?

वो भी डरते हैं हम भी डरते हैं
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ?

हुस्न औ जिस्म दोनों की अपनी अपनी कहानी है
कभी सोना, कभी पीतल, तो कभी माटी लगे हैं ?

इसे हम धुँआ कहें, या धुंध कहें हम 'उदय'
वो सामने होके भी दिख नहीं रहे हैं आज ? 

Tuesday, September 2, 2014

मिजाज ...

गर, खुबसूरती का, कोई पैमाना होता तो हम बताते
कि इन आँखों में तुम किस कदर बस गए हो आज ?
कच्ची मिट्टी का घरौंदा है अपना
सच ! आगे जैसी तुम्हारी मर्जी ?

न ठीक से वफ़ा, न बेवफाई
कुछ ऐसे हैं मिजाज उनके ?

सच ! चुकता किया है उन्ने कोई पुराना हिसाब-किताब
वर्ना, मंहगाई के इस दौर में कोई दिल तोड़ता है आज ?
तेरी खुबसूरती पे, एतबार नहीं है हमें
ये आँखों का भ्रम भी तो हो सकता है ?

Friday, August 29, 2014

सिसकियाँ ...

न कोई हिसाब, और न कोई किताब
मर्जी के मालिक हैं, हम सरकार हैं ?

न जख्म, औ न ही हैं कहीं लहू के निशाँ
चोट दिल पे है सिसकियाँ कर रही बयाँ ?
तुझे देखूं, या डूब जाऊं तुझमें
है तेरा ये हुस्न शबाव पे आज ?

Monday, August 4, 2014

छोटी-सी कहानी ...

हम जानते हैं, ये टेड़े-मेड़े लोगों की बस्ती है 'उदय'
यहां सीधे-सच्चे, फिसल-फिसल के गिर पड़ते हैं ?

पता नहीं आज कौन किसके साथ है 
विकास का मुद्दा, एक अलग बात है ?
कुछ इस तरह का नाता है उनका हमसे
दोस्ती, वफ़ा, फरेब, सब साथ-साथ हैं ?
अपुन ने तो 'उदय', गुरुओं का गुरु बनने की ठानी है
क्योंकि - चेले-चपाटों की, होती छोटी-सी कहानी है ?
खुद को खुद ही तराश लो यारा
कहीं ऐसा न हो वक्त तराशने पे अड़ जाए ?

Friday, August 1, 2014

पनाह ...

आओ, गुरु-गुरु खेलें, तुम मुझे, औ मैं तुम्हें
गुरु-गुरु… गुरु-गुरु … कहें, बोलें, और सुनें ?
… 
यूँ तो हर मसले का हल है तेरे पास
पर, हम तेरा क्या करें,
तू ही तो असली मसला है आज ??
वो, ... .…….. खड़े हैं शान से देखो, ... ….…..  पर 
शान-औ-शौकत दिखाबी है, कर्ज में डूबी कहानी है ?
"पल-पल … किल-किल बहती नदिया …
बिलकुल वैसे … जैसे मन बहता है … ?"

जब तक, बारिश का, दुआओं का, औ 'रब' का भरोसा है
हमें, तुम्हें, सबको, तूफानों में भी पनाह मिल जाएगी ?
...

Tuesday, July 29, 2014

ये दिल्ली है ...

कुछ इस तरह का है नाता हमारा
वो यादों में हैं औ हम साये में हैं ?
गर कोई दीवार है बीच हमारे, तो उसे गिरा दो
हम हिन्दोस्तानी हैं, हिन्दू-मुसलमान नहीं हैं ?
फिर वही जख्म, फिर वही मल्हम
क्यूँ इक बार खंजर उतार नहीं देते ?

भटक रहे हैं, कुछ देर और भटकेंगे
फिर हम भी, ठिये पे मिल जाएंगे ?
ये दिल्ली है, दिल्ली की दुकानें हैं 'उदय'
यहाँ कुछ सस्ता, तो कुछ मंहगा है ??
...

Sunday, July 27, 2014

आशिकी ...

अब हम इतने भी बेखबर नहीं हैं 'उदय'
जानते हैं,
आशिकी में …
अक्सर,
कभी-कभी,
हवा के झौंके भी झटके दे देते हैं ?
पर क्या करें,
मजबूर हैं,
लाचार हैं,
आशिकी जो कर बैठे हैं हम उनसे ???

Friday, July 25, 2014

ठेका ...

कीमत तय करो, हमें हर कीमत पे सौदा मंजूर है
आखिर तुम,… ईमान का सौदा कर रहे हो यार ?
बात को, अब तुम, इतनी भी, बेबाकी से मत कहो यारा
जज्बात पत्थर के सही पर दिल तो शीशे के ही हैं उनके ?

अब कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता
पूरे पांच साल का ठेका है हमारा ?
खूब तरसा तरसा के बरस रहे हैं हुजूर
'रब' जाने, वो इत्ते नाराज किस्से हैं ?
 …
इसे 'रब' की मेहरवानी कहें, या 'खुदा' के रहम
जलजलों के दौर में भी हम सलामत हैं यारो ?

Sunday, July 20, 2014

आलोचनाओं व सरकारों का चोली-दामन सा साथ !


आलोचनाएँ अपने आप में हमारी व्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं अगर आलोचनाएँ नहीं होंगी तो समाज को अच्छाइयों व बुराइयों तथा सकारात्मकता व नकारात्मकता का बोध कैसे होगा, इसलिए सरकारों को आलोचनाओं से चिंतित नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि जो सरकार अभी सत्ता में आई है सिर्फ उसकी आलोचना हो रही है, आलोचना तो हर सरकार की हुई है, होती रही है, और तो और भविष्य में भी होते रहेगी।

आलोचनाओं का अभिप्राय यह भी नहीं है कि सरकारें काम करना बंद कर दें, या दुबक के कमरे में बैठ जाएँ। जहां तक मेरा मानना है कि प्रत्येक सरकार को आलोचनाओं का सामना करना चाहिए तथा अपने सकारात्मक व रचनात्मक कार्यों से आलोचकों व आलोचनाओं का प्रतिउत्तर देना चाहिए, सरकारों में कम से कम इतना माद्दा तो अवश्य होना चाहिए कि आलोचनाओं का सामना करें, न की उनकी ओर पीठ कर के बैठ जाएँ । 

यह एक स्वाभाविक सत्य है कि काम होगा तो आलोचनाएँ भी होंगी अन्यथा हाथ पे हाथ धर कर बैठे हुए लोगों पर कौन टीका-टिप्पणी करता है ! काम करिये और करते रहिये, प्रत्येक सरकार का यही मंत्र होना चाहिए, यही कर्तव्य होना चाहिए, तथा अपने कर्तव्यों व दायित्वों के निर्वहन में उन्हें निरंतर मग्न रहना चाहिए, लेकिन इस बात का ख्याल रखना भी हर सरकार का कर्तव्य है कि उनके कार्यों व योजनाओं से जनभावनाएँ आहत न हों। 

वर्ना, जनभावनाओं की उपेक्षा करने वाली मजबूत से मजबूत सरकारों को भी जनता धूल चटा देती है, जनता चुनावों के दौरान जब धोबी-पछाड़ रूपी दाँव चलती है तो अच्छे से अच्छे राजनैतिक पहलवान जमीन पर औंधे मुंह गिरे नजर आ जाते हैं। खैर, सरकारों का बनना व बिगड़ना तो एक स्वाभाविक क्रिया है तथा यह क्रिया निरंतर चलते रहेगी, लेकिन महत्वपूर्ण पहलु यह है कि किसी भी सरकार को सरकार गठन के पूर्व ली गई शपथ को नहीं भूलना चाहिए।

आज के दौर में, मंहगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले, ह्त्या, बलात्कार, आतंकी व नक्सली घटनाएँ ऐसे मुद्दे अर्थात विषय हैं जो समय समय पर सरकारों को आलोचनाओं के कटघरे में खड़ा कर देते हैं, ऐसा भी नहीं है कि सरकारों के पास इस तरह की आकस्मिक आलोचनाओं से बचने के कोई उपाय नहीं हैं, उपाय हैं जरूर हैं, यहां मेरा अभिप्राय यह है कि सरकारें इन उपरोक्त संवेदनशील मुद्दों पर अपनी नीतियां व योजनाएं निष्पक्ष व पारदर्शी रखकर स्वमेव आलोचनाओं से बच सकती हैं।

यह सर्वविदित सत्य है कि मंहगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले, ह्त्या, बलात्कार, आतंकी व नक्सली घटनाएँ ऐसे ज्वलनशील मुद्दे हैं जो आयेदिन समाज को गर्माते रहते हैं अर्थात उद्देलित व झकझोरते रहते हैं इसलिए इन मुद्दों पर सरकार व सरकारों को सर्वाधिक सजग व पारदर्शी रहकर कार्य करना चाहिए, इन संवेदनशील मुद्दों पर जो भी सरकारें  असंवेदनशीलतापूर्ण रवैय्या रखेंगी उन्हें आलोचनाओं के दौर से गुजरना ही पडेगा, यहाँ यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आलोचनाओं व सरकारों का चोली-दामन सा  साथ होता है !

Friday, July 18, 2014

गुरु-घंटाल ...

गर इसे ही मुहब्बत कहते हैं, तो ये कैसी मुहब्बत है 'उदय'
वो मिलकर भी, मिलते नहीं हैं ???
ताज्जुब मत कर उनकी मुलाक़ात पे
दिल उनके… … … … एक जैसे हैं ?
हम घंटाल हैं, गुरु-घंटाल हैं 'उदय'
जब तक चाहेंगे, तब तक बजेंगे ?
...
घुप्प अंधेरों में भी आस रखो
देखें, उजाले छिपेंगे कब तक ?

सच ! इतनी बेरुखी की कुछ न कुछ तो वजह जरूर होगी
वर्ना, साथ जीने-मरने के वादे भी कोई भूलता है 'उदय' ?

Sunday, July 13, 2014

अच्छे दिनों की चाह में तिल तिल जीता-मरता लोकतंत्र !

आज मुझे यह लिखते हुए ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है कि अच्छे दिनों की चाह में तिल तिल जी व मर रहा है लोकतंत्र, … कहने को तो हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा माना व जाने जाना वाला लोकतंत्र है लेकिन, … फिर भी, … स्थिति तिल तिल के जीने व मरने जैसी ही है, अभिप्राय यह है कि देश की संसद से गाँव की पंचायत तक अनिश्चितता व अविश्वास का माहौल है, चँहू ओर विगत कुछ सालों से भ्रष्टाचार व घोटालों की चर्चा आम रही है, आम है, और शायद आगे भी आम रहे।

आज यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था में भ्रष्टाचार व घोटालों का जो बोलबाला है वह अपने आप में अदभुत है तथा देश को एक नई पहचान दे रहा है। अगर आज गली-मोहल्लों में भ्रष्टाचार व घोटालों की चर्चा हो रही है तो वह बेमतलब की नहीं हो रही है, वो कहते भी हैं कि बिना आग के धुआँ उठता कहाँ है। भ्रष्टाचार व घोटाले होते रहे हैं, हो रहे हैं, और संभवत: आगे भी होते रहें, इसलिए चर्चा होना जायज है, अन्यथा लोग इतने भी फुर्सत में नहीं हैं कि बेफिझूल की चर्चा में अपना कीमती समय बर्बाद करें।

खैर, दशकों से चले आ रहे अनिश्चितता व अविश्वास के माहौल के बीच विगत दिनों संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में "अच्छे दिन आने वाले हैं … " नारेरुपी दावे व वादे के साथ चुनाव संपन्न हुए हैं तथा उक्त नारे के दम पर ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्त्तमान भाजपा सुप्रीमो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ है, नरेंद्र मोदी देश के नए प्रधानमंत्री हैं इसलिये अच्छे दिनों की आस में सबकी निगाहें उन पर जा टिकी हैं, ज्यादा नहीं तो कम से कम आगामी पांच साल तक तो नरेंद्र मोदी के हाथ में अच्छे दिनों की बागडोर है।   

जिस दावे व वादे रूपी नारे "अच्छे दिन आने वाले हैं … " के दम पर नई सरकार ने पदभार संभाला है उस दावे व वादे पर वह कितना खरा उतरेगी यह सवाल सबके जेहन में बिजली की तरह कौंध रहा है ! क्या सचमुच अनिश्चितता व अविश्वास के माहौल में जी व मर रहे लोगों के अच्छे दिन आएंगे, क्या सचमुच भ्रष्टाचार व घोटाले रूपी राक्षसों का अंत होगा, क्या सचमुच मिलावटखोरी, जमाखोरी व मंहगाई से छुटकारा मिल पायेगा, क्या सचमुच विकास व खुशहाली से हम समस्त देशवासी रु-ब-रु हो पाएंगे ? इस तरह के तमाम सवाल सवाल बने रहेंगे या उनके जवाब मिल जाएंगे ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, तब तक जय हिन्द - जय भारत ! 

Friday, July 11, 2014

आफत की पुड़िया ...

मुफलिसी सा तम्बू है, और बादशाही ठाठ हैं
कर्ज औ मौज, दोनों … दोनों साथ साथ हैं ?
अब तक, किसी ने हमें गुरु नहीं पुकारा है 'उदय'
देखते हैं, अभी… शाम-रात तक का वक्त है ??

कभी कुछ - कभी कुछ
वो, बड़ी आफत की पुड़िया है 'उदय' ?
...
किस ओर है नजर, किस ओर हैं ख़्वाब
तनिक अहसास करो, कोई साथ साथ है ?

ये और बात है, किसी की उधारी चुकता नहीं की हमने
पर, ले के भागने की, …… फितरत नहीं है हमारी ??
...

Sunday, July 6, 2014

आस ...

रौंपे जा रहे हैं पौधे
खेतों में, छोटी-छोटी बाड़ियों में
इस उम्मीद से
कि -
बादल बरसेंगे, जरूर बरसेंगे,

क्यों ? क्योंकि -
उनकी …
यही तो, एक उम्मीद है, आस है,

गर, नहीं बरसे, तो …
उनके घरों में …
चूल्हों में …
सूखा … अकाल … तय है ???

Saturday, July 5, 2014

अच्छे दिन ...

हमने तो सिर्फ
अपने लोगों से अच्छे दिन आने की बात कही थी 'उदय'
गर, कुछ मूर्खों औ धूर्तों ने भी
गलतफहमी पाल ली, तो इसमें हमारा क्या कुसूर ???

हम जानते हैं 'उदय', कि वो झूठ के पुलिंदे हैं
फिर भी, वो………………हमारे शहंशाह हैं ?

दर्द और दवा, दोनों ही दुकानें अपनी हैं
बस, कुछ इस तरह …
चित्त भी अपनी है औ पट्ट भी अपनी ?

Monday, June 30, 2014

सितम ...

क्यूँ मियाँ, क्यूँ तुम … आज इतने ठप्प बैठे हो
हमने तो सुना था गप्प से तुम बाज नहीं आते ?

सच ! तेरे इस नूर पे, सिर्फ हक़ हमारा है कहाँ
जिसे देखो उसी की नजरें तुझपे जाके हैं टिकीं ?

खुद से खुद की शिकायत
इतना सितम क्यूँ यारा ?
अब तुम जुदा होके भी खफा हो यारा
भला अब इसमें गल्ती कहाँ है मेरी ?
कैसे किस्से, औ कैसी कहानी 'उदय'
चोरों की बस्ती है, चोरों का राज है ?

Wednesday, June 18, 2014

आशिक़ी ...

सन्न है, सन्नाटा है
चँहू ओर भन्नाटा है ?

रोज ……… वही अफ़साने, वही तराने
बस, समझ लो, मुहब्बत है हमें उनसे ?
तेरी आशिक़ी की सौं,
ज़िंदा रहेंगे हम, मिलते रहेंगे हम ?

Friday, May 30, 2014

बेसुध ...

कहीं थक न जाऊं खुद अपनी तकदीर लिखते लिखते
'उदय' तुम, … यूँ ही, … मेरा हौसला बनाये रखना ?
उनके झूठ पे, सौ लोगों ने सच होने की मुहर लगा दी है 'उदय'
और सच, सच हो के भी,… उसे,… बेसुध निहार रहा है आज ?

जरुरत तो नहीं थी बेफिजूल तमाशे की
खैर, कोई बात नहीं, आदत है उनकी ?
… 
उफ़ ! चोट और जख्म कुछ ऐसे हैं हमारे
किये भी हमने हैं, औ सहे भी हैं हमने ?

न इधर … न उधर …
आओ खेलें इधर-उधर ?

Tuesday, May 27, 2014

चरित्र ...

जीत आसां थी पर चुनौतियां कठिन हैं
अब देखते हैं 'उदय', कितने टंच हैं वो ?
… 
न हैरां हैं, न परेशां हैं
बस, वक्त गुजर रहा है 'उदय' ?
चरित्र उनका भी लाजवाब है 'उदय'
चित्त उनकी, पट्ट उनकी, औ है अंटा भी उनके बाप का ?
खुली जब पोल उनकी तो सकपका गए
जो खुद को 'खुदा' कह रहे थे कल तक ?

कहीं थक न जाऊं खुद अपनी तकदीर लिखते लिखते
'उदय' तुम, … यूँ ही, … मेरा हौसला बनाये रखना ?

Sunday, May 25, 2014

सियासत ...

न तो तुम 'खुदा' हो, और न ही हैं हम
फिजूल के मुगालते अच्छे नहीं यारा ?
ये तू, फिर किधर को ले चल पड़ा है मुझे
कुछ घड़ी… चैन की सांस तो ले लेने दे ?
सच ! अब जब जिस्म की कीमत है करोड़ों में 'उदय'
फिर जिन्ने ईमान बेचा है वो तो धन्ना सेठ होंगे ??

तू,………… पागल है, मूर्ख है, धूर्त है
कितना समझाऊँ तुझे, ये राजनीति है ?

ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?
… 

Monday, May 19, 2014

छले गए हैं लोग ...

ईमानदारी से जीतते तो कोई बात होती
छल औ बेईमानी तो हम भी जानते हैं ?
सन्नाटा और शोरगुल दोनों एक साथ हैं 'उदय'
ऐसे हालात जियादा देर तक अच्छे नहीं होते ?
वो कहते हैं कि अब तुम, हमें ही 'खुदा' समझ लो
क्या रख्खा है, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में ?
हम बुत हैं, हमें किसी का भय नहीं है
कोई हमसे झूठ की उम्मीद न रक्खे ?
ये जीत, ये हार, हजम हो तो हो कैसे 'उदय'
यकीं नहीं होता,… कि… छले गए हैं लोग ?

Saturday, May 17, 2014

गोलमाल ...

भले चाहे, छल औ बल जीत के आधार हों
लेकिन, फिर भी, जीत तो जीत है 'उदय' ?

कहीं ख़ुशी, तो है कहीं मातम सा आलम
ये कैसी राजनीति है, ये कैसा लोकतंत्र है ?

सुनते हैं, सब्र का फल कभी खट्टा नहीं होता
पर ये बात बेसब्रों को कौन समझाये 'उदय' ?

कहीं सन्नाटा, तो कहीं धमाल है
'उदय बाबा' ये कैसा गोलमाल है ?

शब्दों की, छुट-पुट कारीगरी तो हमसे भी हो जाती है 'उदय'
इस नाते मजदूर कहलाने का हक, क्या हमारा नहीं बनता ?

Thursday, May 15, 2014

एग्जिट बनाम एग्जेक्ट ...

कल …
ढंकी ढंकी सी शाम थी,
और आज …
है खुली खुली सुबह … ?

उफ़ ! वो कैसे ज्योतिषी हैं, कैसे पंडित हैं 'उदय'
जिन्हें, अच्छे-औ-बुरे दिनों की समझ नहीं है ?
'खुदा' जाने वो मिट्टी के बने हैं
हार के भी हार मानते नहीं हैं ?
गर, 'एग्जिट पोल', 'एग्जेक्ट' न निकले 'उदय' तो
तो, तो क्या ! डूब मरेंगे बहुत चुल्लु भर पानी में ?
झूठ औ लफ्फाजियों की बुनियाद पे सरकारें
उफ़ ! … कब तक 'उदय' … कब तक ????

Tuesday, May 13, 2014

सच्ची-झूठी ...

इस दफे, उन्ने, मुस्कुराया है जरा हट के
कहीं ये कयामत की आहट तो नहीं ???

सरकार तो बननी ही है 'उदय'
अब,… सच्ची बने या झूठी ?

कौन हारेगा - कौन जीतेगा, अब ये तो वक्त ही बतायेगा 'उदय'
पर, बता दिया है उसने कि भले 'आम' सही पर 'आदमी' तो है ?
हमें बागी कहो, या इंकलाबी, तुम्हारी मर्जी
पर …… हमारे इरादे बदलने वाले नहीं हैं ?
अभी तक उन्ने गंगा को प्रणाम नहीं किया है 'उदय'
जो कल तक, …… पूजा-औ-आरती को बेताब थे ?

Sunday, May 11, 2014

अंतिम विकल्प ...

आखिरी दौर है, आखिरी वार है,
करो प्रहार …

उठो, जागो … पहलवानो

वोट ही … अंतिम विकल्प है 
चोट ही …
अंतिम विकल्प है  
 
अंध में, अंधकार में … 
आज पूरा … हमारा तंत्र है ???

Friday, May 9, 2014

नौटंकी ...

सवाल नहीं है अब कच्चे-पक्के का
जब खुद है दिल उनका बच्चे का ?

अच्छे दिन, आने वाले हैं, या… जाने वाले हैं
बड़े कन्फ्यूज हैं हम, कहें तो क्या कहें 'उदय' ?
… 
कुरेद कुरेद के उन्ने जख्म हरे कर दिए 
और अब कहते हैं कि हमें माफी दे दो ? 
… 
बेरहमों पर रहम
क्यों, किसलिये ?
लो 'उदय', नटों को भी ………… मात दे रहे हैं वो
फर्जी प्रचार औ दुष्प्रचार के बाद, अब फर्जी नौटंकी ?

Monday, May 5, 2014

आस ...

यकीं कर, यकीं रख  
रंज-औ-गम के बादल छट जायेंगे 
इक दिन … तुझे भी … 
खुद ब खुद 'खुदा' मिल जायेंगे ??
… 
सच ! लम्हें लम्हें में,… उन्ने,… झूठ के दांव चले हैं
ब्लाइंड गेम है, हार भी सकते हैं…जीत भी सकते हैं ?
… 
सिर्फ प्रचारों और दुष्प्रचारों से सरकारें बनती होतीं 'उदय' 
तो शायद, अब तक, कइयों की सरकारें बन गईं होतीं ??
…  
जबकि …
दिल में, इक आस लगाये बैठे हैं
फिर भी …
न जाने क्यूँ, दूर वो हमसे बैठे हैं ?

Saturday, May 3, 2014

झल्लाहट ...

वे दांतों को बार-बार मीस रहे हैं 
और 
आँखों को …
चकरघन्नी की तरह इधर-उधर घुमा रहे हैं, 

उनकी मुट्ठियाँ में भी बेचैनी तिलमिला रही है 
और तो और 
उनका दिमाग भी झल्लाया हुआ है,

वे आग बबुला हैं
उनसे दूर रहो, बहुत दूर ...

गर वो चुनाव हार गए … तो …
जो … उनके सामने होगा, पास में होगा 
उसे वे …
कच्चा भी चबा सकते हैं ???

Friday, May 2, 2014

हल्ला-गुल्ला ...

कोई आये - कोई जाये, देश वहीं धरा रह जाये 
जिसको देखो शोर मचाये 
हल्ला-गुल्ला रोज कराये 
पर 
भ्रष्टाचार वहीं रह जाये ?

चाहे जिसके हाथों में -
तुम सौंप दो चाबी सत्ता की 
पर … !!
कोई आये - कोई जाये, देश वहीं धरा रह जाये ?

Thursday, May 1, 2014

दीवानगी ...

उफ़ ! लो 'उदय', अब 'फ़ायदा' भी,.... 'आम' और 'ख़ास' हो गया है 
उनका कहना है कि, उन्ने, उनका, कोई खास फ़ायदा नहीं उठाया ?
… 
फर्जी प्रचार औ फर्जी दुष्प्रचार 
सिर्फ, दो ही एजेंडे हैं उनके ??
… 
थोपे गये, और थोपे जा रहे, दोनोँ ही घातक हैं 'उदय' 
उफ़ ! लगता है इस देश का कोई माई-बाप नहीं है ??
… 
हम तो कायल हैं तेरी दीवानगी के 
तू कुछ कह तो सही, उसे ही हम गजल समझ लेंगे ? 
… 
सच ! उन्हें भी खबर है, और उन्हें भी खबर है 
कि हम, … सिर्फ और सिर्फ … इंकलाबी हैँ ? 

Wednesday, April 30, 2014

शायद …

'आम आदमी' तो 'आम आदमी' है 
न तो पहले कभी मरा है 
और न ही 
आगे … कभी मरेगा !
 
क्यों ?
क्योंकि - 
 
जब तक 'आम आदमी' है … 
ठीक तब तक ही 'ख़ास आदमी' है 
पर, 
अब, शायद … 
'आम आदमी' की बारी है ?????

Sunday, April 27, 2014

सवारी ...

सच ! मैं हंसु या रोऊं, तुझे क्या 
तुझे तो सिर्फ सत्ता की पडी है ?
… 
पीएम-इन-वेटिंग होने का मतलब 
पीएम-मटेरियल हो जाना नहीं है 'उदय' 
यह बात,… 
हम जानते हैं …… सब जानते हैं ???
…  
मीडिया पार्टी से भी उनका गठबंधन हो गया है 'उदय' 
अब सच को, और झूठ को, कौन आईना दिखायेगा ?
दो-दो नावों की सवारी 
उफ़ ! कहीं, उन्हें, भारी न पड जाये 'उदय' ?
… 
बस, दोनों में मामूली सा फर्क नजर आ रहा है 'उदय' 
एक थोपा गया था, और दूसरा…… थोपा जा रहा है ?
… 

Thursday, April 24, 2014

कंत्री ...

वो, बार बार सरहद की ही बातें उछाल रहे हैं 
क्या हम जंग के लिए तैयार हो जाएँ 'उदय' ?
… 
सच ! उनकी भडवाई चरम पर है 'उदय' 
सुबह, दोपहर, शाम, सिर्फ उनकी जय ?
… 
सत्ता सस्ती हो गई है भईय्या 
जब से, मंहगाई मंहगी हुई है ?
… 
क्या मंत्री, क्या संत्री 
सब के सब हैं कंत्री ?
… 
उफ़ ! रहम और बेरहम दोनों उसी के नाम हैं 
मुहब्बत करने से पहले हमें ये जांचना था ? 
… 

Tuesday, April 22, 2014

फर्क ...

सच ! ऐसा लग रहा है कि - 
अभी भी, 
कुछ लोग, कुछ लोगों को, 
बहुत ही … 
हल्के में ले रहे हैं 
उफ़ ! बस … 
यही तो फर्क है 'उदय' 
'आम' और 'ख़ास' में ???

Saturday, April 19, 2014

वहम ...

सच ! पहले वो अपनी कीमत तो तय करें 
फिर हम बताएँगे असली कीमत उनकी ?
… 
किताबों में उनका पूरा हिसाब-किताब है 'उदय' 
बस, हमें तुम्हें और सब को जोड़ना-घटाना है ?
…  
वे बिना पेंदी के होके भी लुढ़के नहीं हैं अब तक 
सच ! कमाल है !! गजब का बैलेंस है उनका !!!
… 
छल, झूठ, फरेब, और चालाकी 
बस, है तेरी पहचान इत्ती-सी ?
… 
गर्जनाएं वहम पैदा कर रही हैं 'उदय' 
और खामोशियाँ ? … सिर्फ चोटें ??
… 

Wednesday, April 16, 2014

अंतिम विकल्प ...

वोट ही … अंतिम विकल्प है 
चोट ही … 
अंतिम विकल्प है 
उठो, जागो … पहलवानो 
अंध में, अंधकार में … 
आज पूरा … हमारा तंत्र है ?

Thursday, April 10, 2014

गलतफहमी ...

तमाम तरह की तिकड़मों व तीन-पांच के बाद भी 
गर, वो हार गए, धूल चांट गए, ……....… तब ?
… 
अपना तो, सत्य-अहिंसा को समर्थन है 'उदय' 
बाकी, आगे, हर कोई मर्जी का मालिक है ??
… 
सच ! बहुत ही जल्द, मीडिया की गलतफहमी दूर होने वाली है 
क्योंकि, न तो कहीं हवा है, न लहर और न ही कहीं सुनामी है ?
… 
कोई तो उनके दिमाग का इलाज कराये 'उदय' 
ज्यादा देर, ख़्वाबों में रहना भी इक बीमारी है ?
… 
अरे भाई, कोई हमारा भी तो फतवा सुन ले 
आज से, कोई, … 
किसी भी भ्रष्टाचारी को वोट नहीं देगा ???
…  

Tuesday, April 8, 2014

हुडदंग ...

जिनकी, खुद के ही घर में अनसुनी हो जाती है 
भला उनकी 'उदय', हम………… क्यों सुनें ?
… 
वे, बे-वजह ही राजनैतिक मैदां में हुडदंग मचा लगा रहे हैं 
किसी दिन, बाबा की तरह वे भी औंधे मुंह नजर आयेंगे ? 
… 
उनकी, खुद की नईया है, वे खुद ही डूबा रहे हैं 
अब इसमें, इस बारे में, हम क्या कहें 'उदय' ? 
… 
किस जगह रखूँ तेरी मुस्कान मैं यारा 
सिर से पाँव तक कब का भरा पड़ा हूँ ?
… 
कम से कम आज तो सच कह दो यार 
भले चाहे बाद में एप्रिल फूल कह देना ? 

Wednesday, April 2, 2014

तबज्जो ...

जब जी-हुजूरी और चमचागिरी ही मकसद था 'उदय' 
तो जरुरत क्या थी उन्हें, कवि या लेखक बनने की ? 
… 
उन्ने प्रचार की जगह दुस्प्रचार को तबज्जो दी है 
अब 'खुदा' ही जाने, कैसे हो पक्की जीत उनकी ?
… 
लो 'उदय', सोशल साइट्स सोशल न हुईं घर का आँगन हुई हैं 
पति पत्नियों को, और पत्नियां पतियों को प्रमोट कर रही हैं ? 
… 
वैसे, इस बार तो सत्ता पे उनका हक़ था 'उदय' 
मगर अफसोस, उनका तरीका गलत निकला ?
उन्ने, उन्ने, उन्ने, उन्ने,…… सिर्फ दल ही तो बदली है 'उदय' 
कोई गुनह थोड़ी न किया है, जो वे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हों ?

Monday, March 31, 2014

मट्टी पलीत ...

जुबां को नर्म रख, लहू को गर्म रख 
मंजिलें हैं सामने, पग मजबूत रख !
… 
न तो वो उत्तम हैं 'उदय', और न ही हैं सर्वोत्तम 
बस, उनकी … 
खुद की, अपनी डफली है और अपना राग है ???
… 
कुछ ज्यादा ही गड्ड-मड्ड हो गई है उनसे 
वर्ना, खिचड़ी भी स्वादिष्ट बनती है 'उदय' ?
कोई बात नहीं, कोई अफसोस नहीं 
जंग जारी है, अबकि उनकी बारी है !
वे खुद ही खुद की मट्टी पलीत करवा रहे हैं 
इसमें 
कहीं भी, किसी भी … 
'आम आदमी' का दोष नहीं है 'उदय' ???? 
… 

Thursday, March 27, 2014

फर्क ...

सच ! हम तो सिर्फ इतना जानते हैं 'उदय' 
दिल जो कह दे, लिख दे, वही कविता है ? 
… 
वक्त की शाख पे,… जो सबसे ऊपर बैठा है 
'उदय', वह 'खुदा' न होकर भी 'खुदा' जैसा है ?
… 
दलबदलुओं ने दल को दलदल बना दिया 
छप्प … छप्प … छप्प … छप्पाक … ?
… 
बस, … थोड़ा, … तनिक, … मामूली-सा … फर्क है दोनों में 'उदय' 
एक कांग्रेस मुक्त भारत चाहता है तो दूसरा भ्रष्टाचार मुक्त भारत ? 
… 
जब वो मेरे नाम की सुपाड़ी ले रहा था 'उदय' 
ठीक तभी, 
अपुन ने भी … 
पूरा पान चबा लिया था उसके नाम का ??? 
.... 

Monday, March 24, 2014

तोड़-मरोड़ ...

इत्मिनान रख, हम आयेंगे जरुर 
हिसाब तेरा, हम चुकायेंगे जरुर ?
… 
सच ! मेरी वाइफ ही मेरी लाइफ है 
अब, इससे ज्यादा और क्या कहें ?
… 
वो, किस से वफ़ा करेंगे औ किस से दगा 'उदय' 
दो-दो चुनाव क्षेत्र से, …… जो लड़ रहे हैं आज ?
… 
सच ! उनकी मौकापरस्ती, … चरम पे है 'उदय' 
गटर के पानी को, वो गंगाजल कह रहे हैं आज ?
… 
अभी भी वो मानेंगे नहीं 'उदय' 
शब्दों को तोड़-मरोड़ के, फिर से उन्हें 'खुदा' कह देंगे ? 
… 

Sunday, March 23, 2014

संशय ...

खुद को मुकद्दर का सिकंदर मत समझ 
हवाओं का रुख भी तो तनिक देख ले ? 
… 
'उदय' ये कैसी लहर है, कैसी हवा है उनके नाम की 
न सिर्फ वे, वरन उनके हमकदम भी हैं संशय में ? 
… 
जबकि, पूरा ध्यान उनका लिपस्टिक-पॉवडर पे था 
फिर भी उन्ने 'उदय', है लिक्खी क्या खूब कविता ? 
… 
काश ! हमारे पास भी होते करोड़ रुपये 'उदय' 
तो आज, हम भी, उनकी पार्टी के नेता होते ?
… 
जब मानना ही था, तो रूठे क्यूँ थे 
उन्ने, हठ को तमाशा बना दिया ?
… 

Saturday, March 22, 2014

समय और कुल्हाड़ी ...

समय, सिर्फ इतना बदला है 'उदय' 
कि -
पहले लोग … 
पाँव पे कुल्हाड़ी मारते थे, 
और अब … 
पाँव कुल्हाड़ी पे मारने लगे हैं ????

Thursday, March 20, 2014

मुहब्बत ...

जब से, उनकी तारीफ़ का जिम्मा, उन्ने लिया है 
ठीक तब से, उनमें उन्हें, भगवान नजर आते हैं ? 
… 
पत्थरों को कोई पत्थर कह के न पुकारे 'उदय' 
वे खुद कह रहे हैं, … उनके लोग कह रहे हैं ? 
… 
'आम आदमी' न तो कभी मरा है, और न ही कभी मरेगा 
चिंता तो, आज हमें भी है 'उदय', कुछेक 'ख़ास' लोगों की ? 
… 
उन्हीं से मुहब्बत, और उन्हीं से तकरार 
ए दिल, बता आखिर तू चाहता क्या है ?
…  
उफ़ ! उनकी ढलती उम्र पे तो कोई तरस खाये
बस, उन्हें एक आख़िरी मौक़ा और मिल जाये ?
… 
झूठी पत्तलों को भी, चाटने से, वो बाज नहीं आ रहे हैं 
सत्ता में बने रहने के लिए दर दर भटक रहे हैं आज ? 

Tuesday, March 18, 2014

जुर्म ...

हम तो थक गए 'उदय', उन्हें अपनी बुराइयां बता-बता के 
फिर भी, न जाने क्यूँ उन्हें, हम पे एतबार अब भी है ???
… 
सबूत दो, गवाही दो, … 
वर्ना, चोर को चोर कहना भी जुर्म है 'उदय' ? 
… 
खौफ, दहशत, जिन्दगी, मौत, सन्नाटा, सुरक्षा, आश्वासन  
नक्सल … … … … … बनाम … … … … … सरकारें ?
… 
सच ! राजनीति का जो हाल है, वो है तो है 'उदय'
मगर अफसोस, पत्रकारिता की भी वही चाल है ? 
उनकी उचक्काई के किस्से सरेआम हैं 'उदय' 
फिर भी, वो कहते हैं, कि, वो चौथे चक्के हैं ?

Saturday, March 15, 2014

सर्कस ...

ये कैसा सर्कस है 'उदय', 
जहां -
गधे, 
घोड़े, 
खच्चर, 
चूहे, 
बिल्ली, 
गिरगिट, 
कबरबिज्जू, 
सियार, 
लोमड़ी … 
सब मिलजुल कर 
एक साथ 
करतब दिखाने की फिराक में हैं ?
और तो और 
उनके ही चेले-चपाटे 
पहले से ही 
दर्शकदीर्घा से 
वाह-वाह … वाह-वाह … 
बहुत खूब … बहुत खूब … 
के नारे … ... ... लगा रहे हैं ??

Thursday, March 13, 2014

चमचागिरी ...

पटरियां कमजोर हैं, या हैं ड्राइवर कामचोर 
तरक्की की रेलगाड़ियां बहुत धीमी हुईं हैं ?
… 
'खुदा' जाने 'उदय', वो किस मिट्टी के बने हैं 
खुद की तारीफ़ में खुद ही कसीदे पढ़ रहे हैं ? 
… 
वैसे तो, अक्सर, वो दुम दबा कर ही चलते हैं मगर 
गीदड़ भभकियाँ देते हुये भी, वो जम रहे थे आज ? 
… 
खासम-ख़ास लोगों की राजनीति, और कब तक 'उदय' 
क्या, कभी, कोई, 'आम आदमी' को भी गले लगाएगा ? 
… 
चमचागिरी, इक कला है 'उदय' 
हर किसी के बस की बात नहीं ? 

Wednesday, March 12, 2014

बुनियाद ...

जब उनके चेले-चपाटों ने 
उन्हें 
भगवान मान ही लिया है 'उदय' 
तो फिर 
उनके -
आका … 
चेले-चपाटे … 
समर्थक-प्रचारक … 
मिलकर 
मिलजुल कर 
मंदिर की बुनियाद 
क्यों रख नहीं देते ???

Sunday, March 9, 2014

ठीकरा ...

एक बार, एकाद बार तुम हमें भी आजमा लो 
फिर, शायद, तुम्हारा… टेस्ट ही बदल जाए ?  
… 
बात उनकी नहीं है, और न ही उनकी बात है 
हमें तो लगता है सिक्के दोनों ही खोटे हैं ??
… 
जब सब अपनी-अपनी-अपनी पे हैं 
तो फिर 'उदय', वे भी अपनी पे हैं ? 
… 
सवाल ये नहीं है कि वो शेर हैं या नहीं 
सवाल ये है कि उनकी पूंछ कहाँ है ??
… 
गर, तमाम तरह के हथकंडों के बाद भी, वे नाकामयाब रहे तो 
'खुदा' ही जाने किसके सिर फूटेगा उनकी नाकामी का ठीकरा ?
… 

Wednesday, March 5, 2014

सरकार ...

इक दिन, उन्हें भी दुःख होगा और वो बहुत पछतायेंगे 
मुहब्बत को,… जुबां पे न लाकर गुनह किया है उन्ने ?
… 
हमें, कांव-कांव से परहेज नहीं है 'उदय' 
पर कौन समझाये उन्हें कि न चलें हंस की चाल ? 
… 
दूध का दूध औ पानी का पानी सब अलग हो जाएगा 
गर हिम्मत है, जज्बा है, लड़ लो एक ही मैदान से ? 
… 
अरे भाई, कोई तो उन्हें ख़्वाबों से बाहर निकाले 
कहीं कोई हवा नहीं चल रही है उनके नाम की ? 
… 
सरकार तो बनेगी ही, पर उनकी नहीं जो 
खुद ही खुद से खुद की बनाना चाहते हैं ? 
… 

Saturday, March 1, 2014

हाय-तौबा ...

लो, आज हम भी उनकी बातों में आ गए 
यह जानते हुए भी, कि - वे दगाबाज हैं ? 
… 
जिनकी खुद की, अकल नहीं है ठिकाने पे 
चेले उतारू हैं उन्हीं को गुरु बनाने पे ???
… 
इतनी हाय-तौबा वो भी सत्ता के लिये 
उफ़ ! उफ़ !! उफ़ !!! पहले नहीं देखी ??
… 
मैं शेर नहीं हूँ … 
कम से कम … बब्बर शेर तो नहीं हूँ 
फिर भी, 
अगर, 
उनको लगता है … 
कि - 
उनका नेता 
गीदड़ … 
होकर भी शेर है … उनकी मर्जी ???
… 
सुनो यारो तुम मुझपे यकीं मत करना 
दिल जो कहता है तुम वही करना ???
… 

Wednesday, February 26, 2014

मुगालते ...

गर, पांवों के नीचे कम्पन हुई है 'उदय' 
तो कहीं-न-कहीं तो भूकंप आया होगा ? 
… 
कभी-कभी हम सुलझते-सुलझते भी उलझ जाते हैं 
वहाँ गणित,…………… कुदरत का होता है 'उदय' ? 
…  
सच ! गर, वो हमें, अपनी पार्टी में शामिल कराने में सफल हो गए 
तो हम मान लेंगे 'उदय', कि उनके नाम का … कोई जादू जरुर है ?
… 
कूड़ा-करकट एक जगह इकट्ठा हो रहा है 'उदय' 
सड़न, गन्दगी, बदबू, हैजा,
महामारी, ……… के लिए लोग तैयार रहें ? 
…  
हम जानते हैं 'उदय', बिकने वालों की कोई औकात नहीं होती 
फिर भी, अगर, वो मुगालते में हैं …… तो कोई क्या करे ??
… 

Tuesday, February 25, 2014

जोखिम ...

हर कीमत पर वो बिकने को तैयार हैं 
यारो, कोई कीमत लगाओ तो सही ?
… 
जिन्हें, आज… जेल में होना था 'उदय' 
वो भी, प्रधानमंत्री बन्ने की दौड़ में हैं ?
… 
खरीद-फरोख्त का दौर है 
खुद को सम्भालो यारो ?
… 
सच ! चलो माना, कि उनके नाम की हवा है 
पर 'उदय', सब जानते हैं… वह कृत्तिम है ? 
तुम तनिक जोखिम उठाओ तो सही 
हमें देख के 
एक बार मुस्कुराओ तो सही 
कसम खाते हैं … 
"बाई गॉड" … 
तुम्हें…… हम कभी सतायेंगे नहीं ?
… 

Sunday, February 23, 2014

खरौंचें ...

गर, वो लेखक हैं, कवि हैं, साहित्यकार हैं 
तो, हम भी तो पाठक हैं, विश्लेषक हैं ?? 
प्रधानमंत्री बन्ने की इतनी जल्दी है तो मियाँ 
पहले … 
पार्टी की -
नीतियां, सोच, विचारधारा … 
क्यों नहीं बदल लेते ? 
… 
देखो, संभलो, अभी भी वक्त है मियाँ 
कहीं, मंसूबों पे झाड़ू न फिर जाए ???
… 
तुम अपने नाम के आगे-पीछे कहीं 'नेता' लिख लो 
यह भी, एक अच्छा ढंग है …… प्रसिद्धि पाने का ? 
…  
हमने सोचा था कि वो चट्टानों से भी भिड़ जायेंगे 
जिनसे आज, …… चंद खरौंचें भी सही न गईं ? 
… 

Saturday, February 22, 2014

गुलामी ...

सच ! यह भी उनका, एक और आत्मघाती कदम है 
सत्ता छिन जाने के बाद, फिर से उसे दबोच लेना ?
… 
व्यक्तिगत स्वार्थों को, छोड़ने को कोई तैयार नहीं है
जबकि, सब जानते हैं, दोनों चोर हैं,… महाचोर हैं ?
… 
कहीं खुशी, तो है कहीं मातम सा आलम 
ये कैसा बंटवारा है, ये कैसी सियासत है ?
… 
कैद तो होनी ही थी इसलिये हमने 'उदय' 
उनकी गुलामी क़ुबूल ली ?
… 
'आम आदमी' का माखौल उड़ाने वालों को पुरुस्कृत किया जाए 
क्योंकि - 
उन्हें  … 
'चाय-औ-दूध' की प्रसंशा के ऐबज में कुछ मिलने वाला नहीं है ?
… 

Thursday, February 20, 2014

स्वयंभू ...

गर, कुंवारे रहने का मुद्दा, आज हिट है 'उदय' 
तो, हम भी तो …… अब तक … कुंवारे हैं ?
… 
नेतागिरी के लफड़ों से, 
हमने, 
खुद को दूर कर लिया है 'उदय'  
डर इस बात का था, 
कि -
कहीं कोई 
पकड़ के 
हमें, … चुनाव न लड़ा दे ??? 
… 
स्वयंभू लेखकों और प्रकाशकों को नमस्कार 
गर, किताबें न बिकें तो हमें याद कर लेना ?
… 
उन्ने, खूब चीख-चीख के सत्य को झूठा कहा था 
मगर अफसोस 'उदय', उनकी … दाल न गली ?
… 

Wednesday, February 19, 2014

मारा-मारी …

सदनों में … आयेदिन 
हो रही, चल रही 
धक्का-मुक्की, झूमा-झटकी, फाड़ा-फाड़ी 
पटका-पटकी, मारा-मारी … 
के लिए भी 
कुछ सख्त क़ानून बनाये जाएँ 'उदय' 
कहीं ऐसा न हो 
किसी दिन,  
किसी दिन से … वहाँ 
हत्या, हत्या के प्रयास … शुरू हो जाएँ ?

खरबूजा और खंजर ...

खरबूजे पे खंजर गिरे 
या 
खंजर पे खरबूजा 
कटना तो खरबूजे को ही है 

ठीक वैसे ही 
हाल और भाग्य … 
देश के हैं 

देश खरबूजा हुआ है 
और 
तीनों गठबंधन … 
खंजर…खंजर…खंजर…?

Monday, February 17, 2014

हालात ...

ये दांव, बहुत भारी पड़ सकता है 'उदय' 
कोई भी स्वयं-भू, इसे हलके में न ले ?
… 
अब ये तो वक्त ही बतायेगा 'उदय' 
कि कुल्हाड़ी पे पाँव मारा किसने है ? 
... 
अब देखते हैं 'उदय', कौन किसपे भारी पड़ता है 
हार कर जीतने वाला या जीत कर हारने वाला ?
…  
तंग हालात में भी शान न टूटने पाये 
'उदय' कुछ राहें ऐंसी दिखाते रहना ?
… 
'खुदा' की मर्जी के आगे यहाँ चलती किसकी है 'उदय' 
फिर भी, लोग हैं जो खुद को स्वयं-भू समझते हैं ??
… 

Saturday, February 15, 2014

सत्ता ...

जरूरतों-और-मजबूरियों के, दाम नहीं होते  
बाजार तय करता है 'उदय', कीमतें उनकी ? 
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सच ! 'आम आदमी' अभी मरा नहीं है 'उदय' 
फिर भी, विशेषज्ञ, पोस्ट मार्टम पे उतारू हैं ? 
… 
वक्त वक्त की बात है 'उदय' 
आज, … उनका वक्त है ?? 
… 
पहले वो सत्ता के लालची थे, और अब वो भगोड़े हैं 
उफ़ ! क्या खूब तर्क दिए हैं, सत्ता के… दलालों ने ?
… 
सब जानते हैं, सत्ता अदरक नहीं है और वो बन्दर नहीं हैं 
बस, ये बात सत्ता के सौदागरों को कौन समझाये 'उदय' ? 
… 

Friday, February 14, 2014

सत्ता के सौदागर ...

जनाब, अक्सर ऐसे ही होते हैं हमारी संसद के नज़ारे 
साल में बहुत ही कम दिन होते हैं जो काले नहीं होते ?
… 
भोले-भाले लोगों को, वो, अब भी मूर्ख समझ रहे हैं 'उदय' 
जबकि, देश का 'आम आदमी' जाग रहा है, जाग गया है ? 
… 
कितना समझाया था, 'आम आदमी' को हल्के में मत लो 
लो, अब, सब पे,...................... पड़ रहा है न भारी ??
… 
वो जो, 'आम आदमी' को संवैधानिकता का पाठ पढ़ा रहे थे 'उदय' 
आज उन्ने ही, क्या खूब पेश की है असंवैधानिकता की मिसाल ?
… 
सब जानते हैं, सत्ता अदरक नहीं है और वो बन्दर नहीं हैं 
बस, ये बात सत्ता के सौदागरों को कौन समझाये 'उदय' ? 
… 

Wednesday, February 12, 2014

असंवैधानिक ...

बिल फाड़ दो, धक्का-मुक्की करो, सदन मत चलने दो 
सब संवैधानिक है 'उदय' 

गर, 
कुछ असंवैधानिक है तो -

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना असंवैधानिक है, 
सख्त क़ानून बनाना असंवैधानिक है ??

Monday, February 10, 2014

ठीकरा ...

कुसूर उनका कतई नहीं है 'उदय' 
उनपे यकीं तो हमें ही हुआ था ? 
आज मैं बहुत हैरान हूँ 'उदय' 
किसी ने अब तक 
'आम आदमी' पर 
संसद न चलने देने का 
ठीकरा क्यूँ नहीं है फोड़ा ???
… 
उन्ने,…………………… खूब लूटा है 
कम से कम एक मौक़ा हमें भी तो दो ? 
…  
सिर्फ भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार चिल्लाने से कुछ न होगा 
गर जज्बा है,…… तो ठोस क़ानून को समर्थन दो ?
… 

Sunday, February 9, 2014

हिमायती ...

वे ... कभी अराजकता की, 
तो कभी … 
असंवैधानिकता की दुहाई देते हैं 
सीधे तौर पे 
सब 
क्यूँ कह नहीं देते 
कि -
हम भ्रष्टाचार के हिमायती हैं ?

Saturday, February 8, 2014

स्वयं-भू ...

चलो आज से, चित तुम्हारी और पट हमारी 
जनता तो मूर्ख है, सिक्का तो उछालेगी ही ? 
… 
उनको भी हक़ है, और उनको भी हक़ है 
सम्मान लेने, और देने का 
आखिर दोनों … स्वयं-भू जो हैं ?????
… 
अब जब, वो एजेंट हैं तो हैं, इसमें संशय कैसा  
बस, कोई उनसे, मालिकों सी उम्मीद न करे ? 
… 
चोरी-औ-उचक्काई में, उनका कोई सानी नहीं है 
मगर अफसोस, वो आज, एक कद्दावर नेता हैं ?
… 

Thursday, February 6, 2014

मंजिल ...

राह कठिन है, चाह कठिन है 
जीवन का संग्राम कठिन है 

थोड़ा तुम हो जाओ आसां 
और थोड़ा हो जाऊं मैं 

फिर … धीरे धीरे … 
बढ़े चलें … 
हम दोनों… मंजिल की ओर !

Wednesday, February 5, 2014

कोर्ट मार्शल ...

बे-वजह, क्यूँ तड़फ रहे हो खामोशियों में 
आँखों से ही सही, कुछ कह के तो देखो ?
भईय्या आज से अपुन भी समाजसेवी हो गए हैं 
खुद अपुन ने ही, 
अपने नाम के नीचे समाजसेवी लिख लिया है ? 
… 
सच ! हम भ्रष्ट सरकारों के आदि हो गए हैं 'उदय' 
गिरने दो, इकलौती……एक ईमानदार सरकार ? 
… 
सच ! न कोई खता, 
और न कोई कुसूर है हमारा 
फिर भी, 
मुहब्बत की कचहरी में 
है आज हमारा कोर्ट मार्शल ? 
…