Monday, January 31, 2011

सच ! ब्लॉगर साथियों से, मेरा रिश्ता दिलों का है !!

दिल्ली में लोकतंत्र कहीं नजर नहीं आता 'उदय'
उफ़ ! चहूँ ओर घोटालेबाजों की दुकानें सजी हैं !
...
गांधी ! ताउम्र लड़ते रहे, जीत गए, आजाद हुए
उफ़ ! कोई नाराज था, उससे हम हार गए !
...
गर्म सांसें सिहरती रहीं तूफां बनके
उफ़ ! बेचैनी थी, थोड़ी इधर, थोड़ी उधर !
...
बहुत देख ली दुनियादारी 'उदय'
क्यूं खुद को आजमाया जाए !
...
किसी ने खोल ली है, तजुर्बे की दुकां
उफ़ ! क्या माजरा है, भीड़ ही भीड़ है !
...
टूट कर बिखर गए पन्नों पे, जज्बात मेरे
उफ़ ! कोई बेबस है, उसे पढ़ना नहीं आता !
...
शहर में भीड़ हुई, फूलों की दुकां की 'उदय'
सच ! खुशी-गम, हर पहर नजर आते हैं !
...
किसे बेईमान, किसे सरीफ समझें 'उदय'
लोग समझदार हुए, नफ़ा-नुक्शान में अटके हैं !
...
महफिलें हों या तन्हा आलम हो 'उदय'
कोई चाहता है हमें, दूर होकर भी खुशी देता है !
...
राह तन्हा थी, एक हादसा गुजर गया
जाने कौन था, जो मुझे छू कर चला गया !
...
बंद दीवारों से, कोई मुझे पुकारता रहा
उफ़ ! हसरतें किसी की, अभी तक ज़िंदा हैं !
...
तेज बारिश हो, नदियाँ डबडबा जाएं
एक अर्सा हुआ, ठीक से तैरा नहीं हूँ !
...
चलो लम्हे लम्हे को जिन्दगी कर लें
सच ! मिल बांट कर बसर कर लें !
...
बेचैन था, मैं इधर उधर कुछ ढूंढता फिरा
सच ! कोई जहन में, टटोल रहा था मुझे !
...
अफसोस, थोड़ा उलझनों में, उलझा हुआ हूँ मैं 'उदय'
सच ! ब्लॉगर साथियों से, मेरा रिश्ता दिलों का है !!

दुपट्टा ...

तुम्हारा दुपट्टा
हवा
के झौंके संग
सरकने
लगा !

नीचे, और नीचे
मेरी
निगाह
थम
सी गई !

मैं देखता रहा
कुछ
ललक थी
तुम्हें
देखने की !

सच ! मैं देखता रहा
सीने से, सरकता

तुम्हारा
दुपट्टा ... !!

Sunday, January 30, 2011

लोग लगते हैं गले, दिलों में फासला रख कर !!

और क्या, जो था, लुटा के लुट गए
उफ़ ! पछतावा है, खाने के लाले हुए !
...
कोई मुझे, दूर से सराहता रहा, शुक्रिया उसका
सच ! वो होता, तो मैं जीतता कैसे !
...
कोई गम अपने, छिपा-छिपा के, मुझे हंसाता रहा
सच ! फ़रिश्ता था, आज मुझे रुला के चला गया !
...
क़ानून, वकील, जज, अदालत, फैसला
उफ़ ! कोई जीत गया, कोई हार गया !
...
गर तुम भी मनाते, तो हम मान जाते
सच ! ये हम जानते हैं, तुम हो जीवन हमारे !
...
प्यार हुआ-शादी हुई, तकरार हुई-तलाक हो गया
उफ़ ! क्या करें, खुदगर्ज हैं फिर साथ साथ हैं !
...
एक नजरिया आपका है, और एक है किसी और का
फर्क दोनों में है, फर्क है, तो है नजर का !
...
वादे
-झूठे, यादें-भूले, मिले-बिछड़े, खुशी-गम
सच ! जोर नहीं, जीवन के दस्तूर निराले !
...
क्या खूब, मान-सम्मान का दौर है 'उदय'
उफ़ ! कोई खुश, तो कहीं कोई मायूस हुआ है !
...
अफ़सोस तो है, हम खुद को असहाय समझते हैं 'उदय'
चाहते नहीं, नहीं तो, ये भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारी कहाँ लगते हैं !
...
कुत्ते, बिल्ली, चूहे, गिरगिट, उल्लू, गधे, गिद्ध, लोमड़ी
सच ! इन्हीं का बोलबाला है 'उदय', ये मिलकर शेर हुए हैं !
...
तुम्हारी जुल्फें, सच ! कितनी सुहानी हुई हैं
चिलचिलाती धूप है, फिर भी लगे शाम हुई है !
...
कब, कैसे, हम तुम में, सिमटते रहे
उफ़ ! फासला रहा, फना हो गए !
...
इश्क ने तेरे, हौसला दिया है मुझे
अब तो हर आरजू, पूरी अपनी है !
...
सच ! शहर बदला, मिजाज बदल गए
लोग लगते हैं गले, दिलों में फासला रख कर !

Saturday, January 29, 2011

सावधान ! वहां आम आदमी का आना-जाना मना है !!

किसी ने चमकती सूरत पे, फरेबी सीरत छिपा रखी थी 'उदय'
उफ़ ! आँखों पे यकीं रहा, दिल और दिमाग ने धोखा खा लिया !
...
जो जज्बात सालों में, हम समझने पाए
सच ! एहसान नहीं, फर्ज ही था मेरा !
...
हदें मिट चुकी हैं, इंसानियत कीं 'उदय'
चहूँ ओर शैतानियत का बसेरा है !
...
जिन्दगी की राहें, धूप-छांव में गुजरती रहीं
सच ! यादें समेट के रख लीं हैं हमने !
...
नारी ! दीप बन कर जब जले, रौशन हो जाए है घर
लक्ष्मी जब मान लें हम, मंदिर हो जाए है घर !
...
नारी ! मोम बन पिघले जब, क्यूं सहेजा जाए
नई शक्ल देकर, क्यूं घर को सजाया जाए !
...
कोई धृतराष्ट्र, तो कोई गांधारी को समझाये 'उदय'
ये लोकतंत्र है, कोई दुर्योधन नहीं है !
...
भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र, खामोश हैं
अरे भाई ये लोकतंत्र है, कोई विधुर की भी तो सुन ले !
...
नसीब, इबादत, दुआएं, खुद्दारी, जन्नतें
सच ! सब में तेरा बसेरा है !
...
सर्कस, जादू, चिड़ियाघर, सरकार, लोकतंत्र
कहीं कुछ फर्क दिखता नहीं 'उदय', तमाशे ही तमाशे हैं !
...
आंधियाँ उजाड़ दें, घरौंदों को
मिटा के भेद, चलो डं के खड़े रहें !
...
ये सच है आजादी झूठी नहीं है 'उदय'
उफ़ ! कहीं मीठी, तो कहीं भूखी है !
...
पता नहीं कब से, हम अपने रहे 'उदय'
कोई तो है, जिसने हमें अपना बनाया है !
...
जिंदगानी, नौजवानी, मौज में कटती रहे
आज यहाँ, तो कल वहाँ की सैर होते रहे !
...
स्वीस बैंक, काला धन, एक अलग दुनिया है 'उदय'
सावधान ! वहां आम आदमी का आना-जाना मना है !

हाईप्रोफाइल लाईफ ...

राहुल, तुम क्यूट हो, सुन्दर हो
हाँ, जानती हूँ, तुम मुझसे प्यार ...
अनजाने में, प्यार, करने लगे हो !

पर तुम, शायद, मुझे, मेरे बारे में ...
अनजान हो, पता नहीं है तुमको
मैं कौन हूँ, कैसा जीवन है मेरा !

शायद, कुछ भी नहीं जानते ...
जानते हो, तो सिर्फ, मेरा रंग-रूप
शान-शौकत, हाईप्रोफाइल लाईफ !

सच ! तुम, कुछ भी नहीं जानते
या फिर, चाहत के अंधेपन में
कुछ जानना ही नहीं चाहते !

मैं देख रही हूँ, तुम कई महीनों से
मेरे इर्द-गिर्द हो, उत्सुक हो ... !

मुझे आभास है, तुम्हें, मेरे जिस्म -
की भूख, भी नहीं है, तुम्हारा प्यार ... !

उफ़ ! आओ, मेरे पास बैठो, सुनो
इस शहर में, जीवन नहीं है
भावनाएं, जज्बात, इच्छाएं ...
यहाँ, एक अलग ही दस्तूर है !

हैं तो सब, पर नहीं भी हैं ...
मेरी सैलरी, बीस हजार, और खर्च
शायद, पचास हजार से भी ज्यादा हो !

कैसे जीती हूँ, क्या करती हूँ
तुम्हें कुछ पता नहीं है, फिर भी तुम !

ये गाडी, जिसका खर्च - पंद्रह हजार
ये फ़्लैट, खर्च - बीस हजार
मोबाइल, कपडे, होटलिंग, बगैरह
ये सब आसान, सरल नहीं है !

एक सौदा है जिन्दगी, समझौता है
गाडी के एबज में, बॉस के साथ
महीने में तीन-चार रातें, टूर पर !

फ़्लैट के एबज में, एक व्यापारी मित्र
महीने-दो महीने में, दो-तीन दिन
आता, साथ रहता, फिर चला जाता !

इन सब में, उनका कोई जोर नहीं
मेरी मजबूरी भी नहीं, मात्र समझौता है !

जिन्दगी की रेस में, दौड़ है मेरी
कम्प्रोमाइस, एडजस्टमेंट, तालमेल
यही हाईप्रोफाइल लाईफ है !

ये सब जानकर भी, तुम, मुझसे, प्यार
सुनो, सोच-समझकर, पंद्रह दिन बाद ... !

यदि, तुम, फिर भी चाहोगे, मुझे
तो मेरी, हाँ, होगी, जैसा तुम चाहोगे
तुम्हारे अनुरूप ढल जाऊंगी !

लेकिन, मुझे, तुम्हारे, प्यार, उत्तर, हाँ -
का जवाब, आज नहीं, पंद्रह दिन बाद चाहिए
ताकि तुम्हें कोई, गलतफहमी रहे ... !!

Friday, January 28, 2011

उनकी निगाह में, कोई नवाब, कोई फ़कीर नहीं होते !!

सनम का दुपट्टा, है किसी बेवफा के हाथ में
लोग बेवजह ही मर रहे हैं, कफ़न की आस में !
...
जलने दो मुझे, जब तक जहन में शोले हैं
शीत बहुत है, किसी न किसी के काम आऊँगा !
...
सच बोलने की जरुरत क्या थी, क्या पता नहीं था
सच ! सच बोलना गुनाह हुआ है, अपने वतन में !
...
कातिल कह रहे हैं, 'उदय' क़त्ल गुनाह है
सच ! मंहगाई से मरा है, क़त्ल नहीं है ये !
...
कोई कह रहा था उसको, पागल हुआ है वो
पर कोई सोचता नहीं है, ऐसा वो क्यूं हुआ !
...
उफ़ ! नाकाबिलों की हुकूमत है, हम किसे ढूंढ रहे हैं 'उदय'
किसी काबिल को, शायद किसी कोने-काने में पडा होगा !
...
थका, निढाल, उदास, खामोश, दबा, कुचला
सच ! ये अपना गणतंत्र है 'उदय', भ्रष्टतंत्र हुआ है !
...
आओ चलें, ढूंढ लें, चिंतन में छिपे रहस्यों को 'उदय'
तुम्हारे, हमारे, किसी और के, कभी काम आयेंगे !
...
कब तक मौन रहें, भाव मन के मचलते हैं 'उदय'
अब तुम्हें चाहना भी, किसी इम्तिहां से कम हुआ !
...
सुना है कल बस्ती में, तूफां ने कहर बरपाया है
बहुत दुखी होंगे, चलो उजड़े घरौंदें संवारे जाएं !
...
'उदय' को है खबर, सुख-दुख के घरौंदें नहीं होते
उनकी निगाह में, कोई नवाब, कोई फ़कीर नहीं होते !
...
सच ! सर कलम क्यूं हो जाए, वतन तुझ पे
जो दरिन्दे सर उठाएंगे, उन्हें हम कलम कर देंगे !
...
कमाल है खूब रिपब्लिक डे, मन रहा है 'उदय'
ब्लॉग, आर्कुट, ट्वीटर, फेसबुक, मौजे ही मौजे हैं !
...
'तिरंगे' की शान अब संभलती नहीं 'उदय'
उफ़ ! क्या करें, मजबूर हैं, भ्रष्ट हुए हैं !

धन्ना सेठ ...

धन्ना सेठ ...
गाँव का, सबसे अमीर
जानते थे सब उसको
दौलतें पीठ पे बांध चलता
सिरहाने रख सोता था
चिलचिलाती धूप में,
सड़क पर पडा है, मर गया !

काश, कोई परिजन ...
हैं बहुत, पर कोई नहीं आया
सब तंग थे, शायद, उससे
पता नहीं, क्यों
बहुत लालची था
दौलत को ही समझता, अपना !

पर, बेचारा, आज सड़क पे
पडा है, मरा हुआ
एक गठरी में दौलतें
अभी भी, बंधी हुई हैं
पीठ पे उसके, पर कोई
छू भी नहीं रहा
शायद सब डरे हुए हैं !

हाँ, कुछेक को
दिख भी रही है उसकी रूह
वहीं, सड़क पर , किनारे
गठरी को निहारती
हाथ बढ़ाकर उठाने की
लालसा, अभी भी है !

पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ ... !!

Thursday, January 27, 2011

... ताउम्र जलता ... चिराग बुझ गया, बस्ती में अंधेरा है !!

सच ! भीड़ बड़ी, फिर बाजार छटने लगा
उफ़ ! कौड़ी के भाव, बिके, बैठे रहे !
...
कतरा कतरा खून, सींचते रहे, जमीं पर
वक्त ने चाहा अगर, किसान हम हो जायेंगे !
...
सच ! कातिल हूँ, क़त्ल करता रहा हूँ, मैं भाषा का
जब, जैसी, मर्जी हुई, तोड़-मरोड़, उधेड़बुन करता रहा !
...
ब्लॉग पोस्टें चढ़ रही हैं, टिप्पणियों के अर्द्धशतक हुए हैं
सच ! कोई मानें या मानें, हम तो टाप ब्लॉगर हैं !
...
ईमानदार ! अब क्या कहें, शायद यही दस्तूर हुए हैं
कभी कोल्हू के बैल, तो कभी सर्कस के शेर हुए हैं !
...
ताउम्र जलता रहा, कोई चिराग की तरह
चिराग बुझ गया, बस्ती में अंधेरा है !
...
झूठ, फरेब, मौकापरस्ती, इश्क के हथियार हुए हैं 'उदय'
देख के, संभल के, किसी को चाहो, तो टटोल के चाहो !
...
सच ! अब चंदन, गुलाब, हतप्रभ हुए हैं 'उदय'
समझ में नहीं आता, कोई उनसे चाहता क्या है !
...
कल, आज, कल, एक चक्र है 'उदय'
सच ! कुछ भी हो, तो भी बहुत कुछ है !
...
सच ! मैं ढूँढता फिरा, इधर उधर
खुशी, नाराज है, छिप गई है कहीं !
...
जिन्दगी गुजर गई, दर्द समेटते समेटते
सच ! शायद अब, इन आँखों में बसेरा है !
...
बुढ्डे ने एक नाबालिक से कर लिया था निकाह
सच ! बहुत खुश था, पर अब दुखी रहता है !
...
मन बेचैन हुआ मोहन का, कुछ सूझता नहीं
मंहगाई बढ़ रही है, कोई, उसे क्यों पीटता नहीं !
...
क्या करेंगे सीखकर, खेल के गुर 'उदय'
सच ! सब जानते हैं, मैच फिक्स होना है !
...
भाई बाँटते रहे जमीं और मकां, अपने अपने हिस्से में 'उदय'
मैं देखता रहा, मैंने पिता की तरह अदब करना सीखा है !
...
तिनके हैं तो क्या हुआ, बहते रहें 'उदय'
शायद किसी डूबते का सहारा बन जाएँ !
...
यह मिलन महज शिविर नहीं है 'उदय', जनयुद्ध है
मिटाना है, नेस्तनाबुत करना है भ्रष्टाचारियों को !
...
ये माना आजादी गुम हुई है 'उदय'
उफ़ ! हुक्मरान आजाद हैं !

Wednesday, January 26, 2011

... गम नहीं, गुमनाम हुए ... ईमान सलामत है !!

सच ! क्या खुशनसीबी है, कोई तो अपना है 'उदय'
वरना आज के दौर में, वफ़ा के आड़ में छिपी बेवफाई है !
...
कौन
है जिसको अब हम, अपना कहें इस भीड़ में
उफ़ ! अब सोचना कैसा, जब पत्थर उठाया हांथ में !
...
सच ! चढ़ा दो तुम हमें चाहे सूली पर, हम उफ़ बोलेंगे
करो ईमान का सौदा, नहीं तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे !
...
अदब से करते हो चर्चा, नया अंदाज है कोई
तुम्हारी लेखनी से, नए मुकाम मिलते हैं !
...
बड़ा अफसोस, उन्होंने खुद को हम से, किनारे किया है 'उदय'
जब घिरते हैं रकीबों से, ले मेरा नाम, बचके निकल जाते हैं !
...
यार मजा नहीं रहा, नींद नहीं आती, कुछ नया किया जाए
जनता खामोश है, क्यों नदियों और पहाड़ों को बेचा जाए !
...
अंधेरे मुझे डरा नहीं सकते
अब मैं अभ्यस्त हो चला हूँ !
...
शब्द मैं वो ही लिखूंगा, जो मुझे अच्छे लगेंगे
अच्छे लगें तो सहेज लो, नहीं तो दुआ-सलाम !
...
कोई
आँखों से दिल में उतर आया है 'उदय'
अब क्या करें, उसकी जरुरत इन बांहों को है !
...
नारी ! गूंगी नहीं है, अदब करती है 'उदय'
सच ! मान दो, मत छेड़ो, अदब से रहने दो !
...
कोई गम नहीं, गुमनाम हुए
सच ! ईमान सलामत है !
...
सच ! अजब रश्म--रिवाज हो चले हैं, हुकूमत के 'उदय'
फकीरों, यायावरों, खानाबदोशों, तक का जीना दुश्वार हुआ है !
...
जाने कोई, क्यों मुझे बेवजह चाहता रहा
रोज मिलता रहा, पर खामोश रहा !
...
बेईमान, धोखेबाज, गद्दार, लोकतंत्र की शान हुए हैं 'उदय'
ये लोकतंत्र के शेर हैं, इन्हें कैसे भी हो पिंजरे में रखा जाए !
...
सच ! नदी सा किल-किल बहता जीवन
चलता, बढ़ता, बहता जाए !
...
हमने वतन की डोर सौंप दी, दरिंदों के हांथों में 'उदय'
अब रौंध रहें हैं वो हंस हंस के, वतन की आबरू को !

Tuesday, January 25, 2011

.. आजादी .. दुकां खुली है, बच्चों के लिए तिरंगा खरीद लेता हूँ !!

जिस्म, आबरू, रुंध गई, लुट गई, तार तार हुई
अब नहीं बचा कुछ गांठ में, हिम्मत के सिवा !
...
कुछ फितरती लोग, इतने मतलबी हुए
सच ! आज कश्मीर जहन्नुम हुआ है !
...
भ्रष्ट, हमें गर्व है खुद पर, स्वीस बैंक कोड रखते हैं
उफ़ ! देश चला तो रहे हैं, अब क्या जान ले लोगे !
...
जात, समुदाय, धर्म, भाषा, रंग, रूप
उफ़ ! कब तक हम लड़ते रहेंगे !
...
सच ! नेता और करेला, पक गए
उफ़ ! मगर अफसोस, मीठे हुए !
...
ताउम्र खून तपाते रहे देश के लिए
उफ़ ! गुम हुए ऐसे, फिर निशां मिले !
...
रिश्तों की अहमियत अब रही
उफ़ ! दौलतें पहचान बन गईं हैं !
...
लिखते लिखते छप गईं, छपते छपते रह गईं
'उदय' ये कविताएं हैं, पढी गईं, पढी जाती रहेंगी !
...
जुबां दी, मुकरे नहीं, लोग लड़ते रहे 'उदय'
उफ़ ! आज जुबां का, कोई हिसाब नहीं !
...
प्रेम किया, निहारते रहे, छुआ तक नहीं
सच ! जीते रहे, मर गए, अमर हो गए !
...
चाकू, तलवार, कट्टे, बम, शान की बातें हुईं 'उदय'
सच ! कागज़, कलम, कलमकार, देशद्रोही हुए हैं !
...
सच ! कोई दिल्ली, तो कोई मुंबई में शान से बैठा है
बेख़ौफ़ है, विदेशों में जमीं और पैसा रख छोड़ा है !
...
सच ! उसकी मर्जी, चाहे जितना आजमा ले मुझे
गर उसे एतराज हो, तो मैं 'खुदा' बन जाऊंगा !
...
बुझ गए चिराग, 'उदय' घुप्प अन्धेरा हुआ
सच ! कोई चला गया, हवा के झोंके संग !
...
आजादी की आस, अब मिट चुकी है 'उदय'
दुकां खुली है, बच्चों के लिए तिरंगा खरीद लेता हूँ !
...
स्वतन्त्र हैं, स्वतंत्रता है, चलो एक प्रण करें 'उदय'
चलते चलें, राह में किसी रोते को हंसाते चलें !
...

Monday, January 24, 2011

सारे भ्रष्टाचारी लामबंद ... सच ! देखते हैं, अब कौन क्या ... !!

आज यहाँ, कल वहाँ, क्या जिन्दगी है
खानाबदोशी का अपना, एक अलग मजा है !
...
सच ! कल किसी ने कब्र पे मेरी आंसू बहाए हैं
जाने कौन, खामोश बनकर मुझे चाहता रहा !
...
अब किसे बांटने की कोशिश करें, उदासी अपनी
उफ़ ! अपनी उदासी ही तो है, जो उन्हें खुश रखे है !
...
हाल--वतन, सारे भ्रष्टाचारी लामबंद हुए हैं
सच ! देखते हैं, अब कौन क्या कर लेता है !
...
ये इंतज़ार के पल भी गुजर जायेंगे
कितना मुश्किल था, प्यार को पाना !
...
काश 'खुदा' ने तुझसी मूरत, एक और बनाई होती
सच ! तुम रूठ भी जाते, हमें बेचैन तो होना पड़ता !
...
सच ! फिक्र करते तो, बेचैन बैठे रहते
बेफिक्र क्या हुए, धुएं की तरह उड़ते रहे !
...
फलक से रोज कोई आवाज दे रहा था मुझे
सच ! पर जमीं मुझे बहुत सुकूं दे रही थी !
...
भीड़ में बेचैनी थी, शोर बहुत था, चला आया
सच ! यहाँ चैन बिखरा पडा है, मन प्रसन्न है !
...
उल्लू है, कह दो, क्या फर्क पड़ता है
सच ! वह खुश है, लक्ष्मी की सवारी है !
...
बचपन में बाप चिल्लाया, मेंढक से कुछ सीख ले
कभी इसके, कभी उसके पैर पे, गिर पड़ता है, सफल है !
...
चलने दो, बढ़ने दो, निकलने दो, नदी है
उसको रोकेंगे, तो हम भी ठहर जायेंगे !
...
सच ! हुस्न छिपता नहीं, छलकता है
उफ़ ! ये प्रेम है, आँखों से झलकता है !
...
मौत खुद--खुद एक अजब पहेली है 'उदय'
सच ! कोई समझा, तो कोई समझ नहीं पाया !
...
वो मर गए, खुद को संभाल पाए
उफ़ ! अब क्या कहें, अफसोस है !
...
जब बदन में तुझे गर्मी नहीं दिखी, क्यों खामोश रही
खुदी के जिस्म की गर्मी से, उसे जला दिया होता !
...
उफ़ ! देश के हालत बद से बदतर हुए हैं
सच ! नेता-अफसर स्वीसजरलैंड में हैं !
...
कब तक टाप ब्लागिंग के लफड़े में उलझे रहोगे 'उदय'
क्यों एक अच्छा लेखक और श्रेष्ठ पाठक बना जाए !

Sunday, January 23, 2011

... जमीर बेच ... बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है !!

पत्थरों को तकदीर से तोड़ रहे हैं
कोई गम नहीं, शान से जी रहे हैं !
...
बुरी नजर से कौन बचाए, अब वतन के पाक दामन को
उफ़ ! किसी से सुना है, नापाक लोगों की हुकूमत है !
...
जमीर बेच दिया, कोई गम नहीं
बहुत शान है, स्वीस बैंक में खाता है !
...
चलो आज आजमा के देख लिया जाए
सच ! दोस्ती अच्छी है, या दुश्मनी !
...
काश ! दोस्ती को जुर्म मान लिया गया होता
कम से कम किसी पे, एतवार तो हुआ होता !
...
अभी ज्यादा, कुछ बिगड़ा नहीं है
अगर चाहें, लोकतंत्र बचा लें हम !
...
चलो चलते रहें, बढ़ते रहें, मोहब्बत का सफ़र है
जन्नत सा लगे है, ये हरियाली और ये रास्ता है !
...
किसी को हो गया है गुमां चमकती सूरत पर
काश ! सीरत में, मिश्री घुली होती !
...
सच ! किसी को नजर नहीं आईं खूबियाँ, और प्यार मेरा
किसी और की बदसलूकियों पे, मैं बेवजह बदनाम होता रहा !
...
गरीब हैं तो क्या, ईश्वर ने बांटी है बादशाहत हमको
सच ! समय-वे-समय अमीरों को, चाय पिलाते रहे हैं !
...
वाह वाह ! खुदा खैर तुम नींद से जागे तो
क्या सुबह, क्या शाम, ख़्वाबों में रहते हो !
...
अफसोस ! तुम मिलकर भी मिले
उफ़ ! अब समझे, ये दिल टूटा क्यों है !
...
कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, घोटालेबाजी, जय हो
उफ़ ! सच बोलने वालों को सजा दे दो, देश थर्रा जाए !
...
ये माना देश दुकां है उनकी, क्या खूब व्यापारी हैं
सच ! मान, ईमान, स्वाभीमान, परचून हुए हैं !
...
नई संस्कृति, नई रश्में, सिर-आंखों पे हैं हुक्मरानों की
सच ! देश को बेच बेच के, विदेश में जमीं खरीद रहे हैं !
...

Saturday, January 22, 2011

... इज्जत ... सच ! अगर चाहो तो, किराए पर ले लो !!

खुशनसीबी है, कोई खुद को खुदा समझ बैठा
उफ़ ! लाचारी है हमारी, जो उसे हम पूज लेते हैं !
...
चलो, जल्दी करो, निकल लो, भ्रष्टों का शहर है
कहीं ऐसा हो, लुट जाएँ, और यहीं भटकते फिरें !
...
शर्मसार होने का अपना अलग लुत्फ़ है 'उदय'
उफ़ ! लोग हंस हंस कर मजे ले रहे हैं !
...
क्या करें, याद रख के भी, कोई सुनता कहाँ है
उफ़ ! कहने को तो सरकार हैं, पर असर कहाँ है !
...
कोई तो है जिसे देख के जी लेते हैं
वफ़ा, बेवफा, से कोई वास्ता नहीं !
...
आँखें, दिल, दिमाग, सिहर गए
सच ! कहानी, प्रेम कहानी जैसी थी !
...
सुबह, शाम, दिन, रात, चलते-चले-चलते हैं
उफ़ ! चलते चलते जिन्दगी ठहर जाती है !

तुझे
चाह कर कुर्वान कर दिया था सब कुछ
उफ़ ! जीत की चाह थी, तो कह दिया होता !
...
कर अफसोस, जिन्दगी क्यूं नहीं संवरी
सच ! अभी भी वक्त है, क्यूं संवारा जाए !
...
अब क्या करें, शीला, मुन्नी, हमें भाने लगीं हैं
अब तो दिल धड़कता है, बस उन्हीं के नाम से !
...
हिन्दू-मुस्लिम मिले, जज्बे मोहब्बत के खिलने लगे
उफ़ ! शैतानों की बस्ती है, 'खुदा' बुरी नजर से बचाए !
...
सलाह पर, ज़रा लचके थे, गधा लपक के मचक गया
उफ़ ! अब शान से कहता है, चल मेरे घोड़े, टम्मक टू !
...
जमीर बेच के, शान--शौकत से ज़िंदा हैं बहुत
सच ! खुश हैं, बहुत दौलत समेट के रख ली है !
...
अंगडाईयों को हसरतें समझना गुस्ताखी होगी 'उदय'
सच ! सुना है वो, अंगडाई शौक से लेते हैं !
...
विशेष सूचना - यहाँ इज्जत बेची नहीं जाती
सच ! अगर चाहो तो, किराए पर ले लो !!

Friday, January 21, 2011

माँ तड़फती है, टपकता लहू देख कर !!

खुदा, सनम, उलफत, राहें, जिन्दगी
सच ! चलो मिलबांट के बसर कर लें !
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शब्द, इच्छा, प्रेम, दस्तक, दहलीज
सच ! चलो आजमा लें !
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फरेब उतना नहीं अंधेरों में
शायद हो जितना, सुबह के उजालों में !
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गुंजाइशों की जगह बरकरार रखना यारो
आशिकी में तकरार और सुलह, आम बात है !
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दफ्न कर के भी, सुकूं मिला शायद
अब भी बैठे हैं, कब्र पे इठलाते हुए !
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तुम सही, तुम्हारी बेवफाई के निशां, बहुत काम आए
सच ! हम वफ़ा भूल गए, फिर कोई बेवफा निकला !
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सच ! तुम होती हो, रात गुजर जाती है
तुम्हारी याद में जलना खुशगवार नहीं !
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रात, चिराग, दिल, यादें, इंतज़ार में हैं
सच ! शायद कोई वादा भूल गया है !
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अब हमने भी, दुश्मनी के गुर सीख लिए हैं
चलो अच्छा हुआ, चहूँ ओर सन्नाटा है !
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गर चाहो मेरे फुर्सत के पलों में, सुस्ता लो ज़रा
सच ! सफ़र लंबा है, मुझे चलते जाना है !
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सब कुछ लुटाया था मैंने तुझ पर, शायद अंधा था
उफ़ ! भूत इश्क का उतर गया, अब सड़क पर हूँ !
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क्या अदब, क्या शान-शौकत है, मगर अफसोस
सच ! दौलत को ही सब कुछ समझते हैं !
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खंजर फेंक दो, गले लग जाओ यारो
माँ तड़फती है, टपकता लहू देख कर !
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उफ़ ! कब तक सहें धमकियां, कल गिराते हैं तो आज गिरा दें सरकार
क्या फर्क पड़ना है, स्वीस बैंक में जमा कालाधन कौनसा मेरा अपना है !

Thursday, January 20, 2011

भ्रष्ट था, भ्रष्टाचारी था, उसे देशभक्त न पुकारा जाए !!

गुलामी के दिनों में जो सिहर जाते थे 'उदय'
उफ़ ! वो आज खुद को आजमा रहे हैं !
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दर, दीवार, घर, दुकां, गली, मोहल्ला
ये हिन्दोस्तां है, यहाँ सब मजहबी हुए हैं !
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सियासत, राजनीति, कूटनीति, हैं बिसात शतरंजी
अपनी जीत के खातिर, खुदी के मोहरे पीट देते हैं !
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काश तेरी दुआओं में पल दो पल को हम भी होते
दो चार घड़ी सुख-चैन के, हम भी जी लिए होते !
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पता नहीं इस ख़त में किसका पैगाम आया है
शायद किसी भूले को, मुझसे कोई काम आया है !
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कल डूबते डूबते, डगमगाती नइय्या, संभल गई
सच ! शायद माँ की दुआओं का असर है !
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कोई सुबह से चिल्ला रहा था, मैं हमनवा हूँ
देख चिलचिलाती धूप, जा पेड़ नीचे बैठा था !
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सुन लोकतंत्र की बातें मन मीठा हुआ था
सच ! बसर कर के देखा, कडुवा लगा है !
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चलो थकान दूर हुई, इत्मिनान से बैठें 'उदय'
सच ! सालों का कर्ज था, आज उतर गया !
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कोई इधर, तो कोई उधर की कह रहा है 'उदय'
उफ़ ! लगता है, सब मिले हुए हैं !
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बा-अदब बेचैनी टूट गई
सच ! जब तेरा पैगाम आया !
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उसकी दुआओं से, मैं सिहर गया 'उदय'
सच ! ऐसा लगा, कोई तुझे मांग रहा है !
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नेतागिरी कारोवार हुई है 'उदय'
नफ़ा-ही-नफ़ा, हर मोड़ पे चर्चा है !
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होंठ, अमृत, आँखें, झील, गेसु, आसमां
क्या करें, कोई समझाये हमें !
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मर गया, कोई बात नहीं, अफसोस मनाया जाए
भ्रष्ट था, भ्रष्टाचारी था, उसे देशभक्त पुकारा जाए !
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शाम से, लालकिला तो संवर जाएगा यारो
चलो किसी झोपडी में, दीपक जलाया जाए !
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क्यों नज़रों को आजमा के देख लिया जाए
शायद ! ठहर जाएँ नजरें, हो जाए मोहब्बत !
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क्या खूबसूरती है, ज़रा ठहर, देख लूं तो चलूँ
जन्नत सा सुकूं है आँखों में, देख लूं तो चलूँ !
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चलो अच्छे-बुरे के जज्बे को आजमा लें
कोई तो होगा, जो तसल्ली देगा !
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क्यों लोग मस्त हैं, पत्थर तराश कर मूर्ती बनाने में 'उदय'
चलो आज किसी बच्चे को तराश कर, 'खुदा' बनाया जाए !
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Wednesday, January 19, 2011

क्या करें, कुछ समझ नहीं आता, कहीं सरकार न गिर जाए !!

कर लो प्रेम, शादी, अपने पेशे से, अफसोस नहीं
उफ़ ! लोगों ने गुनाहों को अपना पेशा बना डाला !
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चलो कोई तो खुश है इन सरकारी झांकियों से 'उदय'
उफ़ ! जाने कब, आपकी, हमारी बारी आयेगी !
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क्या खुशनसीबी थी, किसी ने मरा कहा, राम मिल गए
उफ़ ! राम नाम जप के भ्रष्ट, मरते हैं, जीने देते हैं !
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झूठ
कहते हैं लोग, शराब गम हल्का कर देती है
सच ! हमने देखा है, बहुतों को नशे में रोते हुए !
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प्यार के नाम से जीते हैं, मर जाते हैं
रायशुमारी ! क्यों आजमा लें पहले !
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एक पल में कैसे उन्हें बेवफा कह दें 'उदय'
सच ! हमने देखी है वफ़ा की इन्तेहा उनमें !
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जमीं, मकां को अपना समझो
कोई कह रहा था शैतानों का शहर है !
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सुकूं की चाह ने, दीवाना बना दिया
सच ! बेचैन हैं, जब से मोहब्बत हुई है !
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क्या करें मजबूर हुए हैं, न्याय की चौखट पे सरेआम हुए हैं
गर उठाते खंजर, 'उदय' जाने, आबरू कब तक रौंधी जाती !
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अटकते, भटकते, लटकते, झटकते, उलझते, सुलझते
हम चले जा रहे थे, खुदा खैर जो तुम हम से टकरा गए !
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हमको था यकीं, है आलम दोस्ती का !
सच ! भ्रम टूट गया, सब दुश्मन निकले !
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शब्दों का सफ़र, सच ! जिन्दगी का सफ़र है
आओ बैठकर, कुछ बातें कर लें !
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समय दर समय, लोग चेहरा बदल बदल के मिलते हैं 'उदय'
कल सड़क पे एक लाश पडी थी, अभी मालूम हुआ दोस्त था !
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मंहगाई ! क्या करें, मजबूर हैं, समय नहीं है
सच ! सारे समय, स्वीस बैंक का कोड याद आता है !
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अफसोस नहीं, बीच मझधार में छोड़ गया
खुशनसीबी है, कम से कम ज़िंदा छोड़ गया !
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पता नहीं किसकी दुआओं ने ज़िंदा रखा है
'उदय' जाने, कल तो मौत भी शर्मिन्दा थी !
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किनारे, नदी, प्यास, दरिया, तस्वीर, आईना
कब से बैठा हूँ, तिरे आँगन में गुनहगार की तरह !
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गाँव, शहर, शहादत, दहशत, तिजारत, शरारत
सच ! जीना दुश्वार हुआ, कातिलों का जूनून देखो !
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चलो अच्छा हुआ जो गिरगिट सा हुनर सीख लिया
अब रंग के साथ साथ, चेहरे भी बदल लेते हैं !
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गरीबों की बस्ती में, अब दीवाली मनती कहाँ है 'उदय'
वहां आज, जरुर कोई बम फटा होगा !
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अफसोस नहीं, जो तुमने मुझे गुनहगार मान लिया
अब तो जब भी चाहेंगे, सरे राह तुम से मिल लेंगे !
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गरीबों की बस्तियों में, चूल्हे नहीं जला करते 'उदय'
किसी ने सच ही कहा है, वहां सिलेंडर कैसे फटा होगा !
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गजल, गीत, भजन, का दौर है 'उदय'
चलो कोई बात नहीं, कुछ अपनी कह लेते हैं !
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कल खुश था, उसका तलवार का घाव जो भर गया था
सच ! आज दुखी है, अपनो की दी हुई गालियाँ जहन में हैं !
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सच ! स्वीस बैंक, काला धन, सब अपने लोगों का है 'उदय'
क्या करें, कुछ समझ नहीं आता, कहीं सरकार गिर जाए !!

Tuesday, January 18, 2011

प्रेम से नहीं, दरिंदों को लातों से कुचला जाए !!

मुफलिसी, दुश्मनी, गम, अंधेरे, सताते रहते हैं
जब भी मिलते हैं, अकड़ के मिलते हैं, जैसे कर्जदार हूँ मैं !
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बेवफाई के दौर में, वफादार कहाँ मिलते हैं 'उदय'
एक आस थी, टूट गई, जब आज वो बेवफा निकले !
...
जुनून--मोहब्बत, जाने क्या गुल खिला दे
टूटे जब दिल, खुद को हिला दे, ज़माना हिला दे !
...
कहो तो लिख दें बेवफाई पे 'उदय'
सुना है उन्हें वफ़ा रास आती नहीं है !
...
अब तो हमारी दुकां मोबाइल पर ही चलती है 'उदय'
कोई टाईम टेबल नहीं है, जब जिसकी जैसी मर्जी !
...
अब किसी पे हमें ऐतबार रहा
सच ! तन्हाई में ही गुजर करते हैं !
...
आज के दौर में, तरफदार कहाँ मिलते हैं
वक्त मिलता है तो, खुद पे फना हो लेते हैं !
...
वादों
की बस्ती, आंसुओं के सैलाब में डूब गई
दिल, दिमाग, जहन से, तेरी हस्ती उजड़ गई !
...
घर में खोल ली है आफिस हमने
अब टेंशन घटाएं तो घटाएं कैसे !
...
उतार-चढ़ाव, आयेंगे, जाते जायेंगे 'उदय'
ये इरादे हैं मेरे, जो ठहरे हैं, ठहरेंगे !
...
चलो कोई तो खुश है, इल्जाम लगा कर 'उदय'
बदनाम करने के मंसूबों ने, सुर्ख़ियों में लाया है हमें !
...
उफ़ ! परवान चढ़ गए, कुर्वान हो लिए, फना हो गए
काश मौसम का मिजाज देख के, दीपक जलाए होते !
...
थक के बैठे हैं, वक्त कैसे गुजारा जाए
सच ! आओ किसी बच्चे को तराशा जाए !
...
कब तक हम होंगे खुश, देख दूजे की हस्ती-मस्ती
चलो कुछ करें, खुदी को मस्तमौला बनाया जाए !
...
मेरी हस्ती मिटा के, कोई खुश बहुत हुआ होगा
मरा नहीं हूँ, वतन परस्तों के जहन में ज़िंदा रहूँगा !
...
धूप, छाँव, खुशी, गम, तुम, हम
भुला बिसरी बातें, चलो हमदम बनें !
...
जज्बातों को कब तक समझाएं हम 'उदय'
प्रेम से नहीं, दरिंदों को लातों से कुचला जाए !
...
रहनुमाओं की आँखें देखो, अंदाज निराले हैं
बदलता दौर है, शैतानों को पहचानें कैसे !
...
क्या खूब बरसी है इनायत देखो
हाथ कहीं, आँख कहीं ठहरी है !
...
शब्द अनमोल हैं, भाव हम समझाएं कैसे
सीधी सी लकीर है, चलना सिखाएं कैसे !
...
मोड़, फिर मोड़, जिन्दगी गुजर जायेगी
सच ! चलो हमदम बनें, राहें सरल कर लें !
...
माँ, पैर, प्रेयसी, चुंबन, नया दौर है
उफ़ ! कुछ भूल गए, कुछ सीख लिया !
...
डाक्टर बीमार हुआ, क्या हुआ
भ्रष्ट कीड़े ने काटा है, टीका तलाशा जाए !

Monday, January 17, 2011

उफ़ ! क्या करें, मौत भी इम्तिहां ले रही है !!

हमदर्दी की बातें, मौकापरस्ती का आलम है
जिधर देखो उधर, फरेब ही फरेब है 'उदय' !
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जिन्दगी, ठिकाने, दीपक, उजाले, जमीं, आसमां
सच ! गिले-शिकवे भुलाकर, चलो मिलकर संवारें !
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उफ़ ! मुहब्बत झूठी निकल गई
सच ! चाँद गवाह बना देखता रहा !
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किसे अपना, किसे बेगाना समझें 'उदय'
राजनीति है, कहाँ ईमान नजर आता है !
.....
काश आईना मेरा, मुझसा हो जाता
रक्त से सना मेरा, चेहरा छिपा जाता !
.....
गरीबी, मंहगाई, भूख, अब जीने नहीं देती
उफ़ ! क्या करें, मौत भी इम्तिहां ले रही है !
.....
आज आईने में देखा, खुद मेरा चेहरा बदला हुआ था 'उदय'
फिर पड़ोस, गाँव, शहर, विदेशी चेहरों पे यकीं कैसे करते !
.....
खुशियाँ बार बार मुझे निहार रही थीं
और मैं सहमा सा उन्हें देख रहा था !
.....
ताउम्र वह खर्चे के समय, एक एक सिक्के को रोता रहा
सुबह लाश उठाई, बिस्तर पे नोटों की चादर बिछी थी !
.....
पद और पैसे के लिए ईमान बेच रहे हैं
खुदगर्जी का आलम, सरेआम हो गया !
.....
कुछ कहते फिर रहे, फ़रिश्ते खुद को 'उदय'
हम जानते हैं, कल तक वो ईमान बेचते थे !
.....
क्या खूब, खुबसूरती समेटी गई है
सच ! तस्वीर, ख़ूबसूरत हो गई है !
.....
तेरी जुल्फों में जो उलझा हूँ
सच ! वक्त, ठहर सा गया है !
.....
तिरे आगोश में, सिमट गया हूँ मैं
ढूँढता हूँ खुद को, कहीं खो गया हूँ मैं !
.....
प्यार, मोहब्बत, जज्बे, जंग हो गए
सच ! चलो किसी को जीत लें हम !
.....
बाजार बहुत मंहगा हुआ है
चलो वहां कुछ देर घूम आएं !
.....

Sunday, January 16, 2011

न भी चाहेंगे, फिर भी किसी हाथ से जल जायेंगे !!

खटमल, काक्रोच, मच्छर, दीमक, मकडी, बिच्छू
हिस्से-बंटवारे में लगे हैं, लोकतंत्र असहाय हुआ है !
.....
छत चूह रही है, गरीब भीग रहे हैं
अमीरों ने बरसांती की दुकां खोली है !
.....
दीमक, फफूंद, जाले, बढ़ रहे हैं 'उदय'
लोकतंत्र रूपी कोठी, घूरा हुई जा रही है !
.....
उफ़ ! गजब मुफलिसी, और अजब फांकापरस्ती थी
सच ! कोई अपना, और कोई बेगाना था 'उदय' !
.....
आज का दौर है, बहुतों के हांथों में मशालें हैं 'उदय'
भी चाहेंगे, फिर भी किसी हाथ से जल जायेंगे !
.....
सरकारी मंसूबे अमीरों की कालीन पे बिखरे पड़े हैं
कोई बात नहीं, गरीब मरता है तो मर जाने दो !
.....
बहता दरिया हूँ, मत रोको मुझको
जब भी चाहोगे, मुझको छू लोगे !
.....
बेईमानों की बस्ती में, जज्बे और जज्बातों की दुकां खुल गई
मगर अफसोस, सुबह से शाम तक, कोई खरीददार नहीं आया !
.....
किसानों ने खून-पसीना सींच-सींच उगाई है फसल
क्या करें, सरकार और व्यापारियों में एका हो गया !
.....
फर्क इतना ही है, इंसा पत्थर हुए 'उदय'
जज्बात मरने को तो, कब के मर चुके हैं !
.....
जब उत्साह, जज्बातों के टूट के झरने लगें
गिरते कणों को सहेज, उत्साह बढाया जाए !
.....
सात फेरे और सात कश्में, कोई सहेज के बैठा है 'उदय'
उफ़ ! निभाने वाले, सात समुन्दर पार जा के बैठे हैं !
.....
तेरे आंसू, मेरे आँगन में ज़िंदा हैं आज भी
तू सही, अब उन्हें ही देख, जी रहा हूँ मैं !
.....
आलू, टमाटर, प्याज की दुकां शोरूम हो गईं
उफ़ ! मोल-भाव नहीं , कीमती लेबल लगे हैं !
.....

Saturday, January 15, 2011

गूंगी थी, उफ़ ! चिल्लाती भी तो चिल्लाती कैसे !!

सितम सहते रहे, खामोश रहे
कुछ कहा, गुनाह कर लिया !
.....
जमीं से आसमां तक, था धुंध अन्धेरा
खुशनसीबी हमारी, तुम चाँद बन के आए !
.....
खुशबू बिखर गई, गिरी पंखुड़ियों के संग
जब तक गुलाब था, क्या ढूँढते थे हम !
.....
सारी
रात हम दर पे, बैठे बैठे जागते रहे
और क्या करते, तेरी नींद का ख्याल था !
.....
जब से मिले हो तुम, खुशियाँ ही मिल गईं
तिनके तिनके समेट, हमने घौंसले बना लिए !
.....
आज जो खुद को निकम्मा कह रहे हैं 'उदय'
सच ! हम जानते हैं वो बहुत समझदार हैं !
.....
शुक्र है मिरे रक्त ने, कुछ असर तो दिखाया
चलते चलते राह में, अजनबी को हंसाया !
.....
पलकें सिहर गईं थीं, तिरे इंतज़ार में
जब आना नहीं था, फिर वादा ही क्यूं किया !
.....
कैंसे मिले थे तुम, और कैंसे बिछड़ गए
अब यादें समेट के, चला जा रहा हूँ मैं !
.....
वक्त ने क्यों, हमें इतना बदल दिया
शैतां लग रहे हैं, खुद आईने में हम !
.....
गूंगों के हाथ में सत्ता की डोर है
अंधों की मौज है, बहरों की मौज है !
.....
चले आना अब, दबे पाँव तुम 'उदय'
नींद सी आने लगी है, इंतज़ार में !
.....
आबरू हो रही थी तार तार, सब कान सटाए बैठे थे
गूंगी थी, उफ़ ! चिल्लाती भी तो चिल्लाती कैसे !

Friday, January 14, 2011

सच ! गुलामी में भी, ठाठ छन रही है !!

पॉलिसी, प्रीमियम, इंश्योरेंश, सब कुछ करा लिया
फिर क्लैम के लिए, मेरे सीने पे नस्तर चला दिया !
.....
छोड़ दिया कोई गम नहीं, अपना बनाया तो सही
तोड़ते फिरते हैं दिलों को, उन्हें कोई अफसोस नहीं !
.....
चलो फिर आज रेत का एक घरौंदा बना लें
कुछ देर ही सही, हम खुशियों को जगह दें !
.....
दे दे कर सलामी, खुश हो रहे हैं लोग
सच ! गुलामी में भी, ठाठ छन रही है !
.....
सच !मिट्टी, रेत के घरौंदे हम बनाते रहे
और उन्हें बारिश की बूंदों से बचाते रहे !
.....
तेरी
दुआओं ने सलामत रक्खा है मुझको
सच ! एक एक अदा का, कर्जदार हूँ मैं !
.....
चलो आज की सब इत्मिनान से सलाम कर लें
सफ़र में हमें, हर रोज दो-चार पहर मिलना है !
.....
सच ! हम तो उसी दिन हो गए थे फना
जिस रोज तुमने हमें देख मुस्काया था !
.....
तेरी आँखों ने कहा, कुछ चाव से
सोचे बिना ही हम तेरे संग हो लिए !
.....
ठीक
है, जाओ, पर याद रखना 'उदय'
घर में कोई, टकटकी लगाए बैठा है !
.....
प्रेम
, विश्वास, समर्पण, खुशियों की बुनियाद हैं 'उदय'
सच ! जिसको भी छेड़ोगे, मायूसी ही हाथ आयेगी !
.....
चाहत, कशिश, लम्हें और हम
चलो
कहीं बैठ के बातें कर लें !
.....
जब तक हमने पत्थर उछाले नहीं थे 'उदय'
कैसे कह देते आसमां में सुराख हमने किये थे !