Wednesday, December 26, 2018

अनपढ़ मंत्री

लघुकथा - अनपढ़ मंत्री !

कॉफी हाउस की टेबल पर ... दो न्यूज चैनल के पत्रकार, तीन समाचार पत्रों के पत्रकार तथा एक राजनैतिक दल के दो नेता ... आपस में इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि .. लो एक अनपढ़ आदिवासी नेता को मंत्री बना दिये, जिसे पढ़ना तक नहीं आता ....

पास की टेबल पर बैठे एक कवि का बे-फिजूल की बहस सुनकर खून खौल गया ... कवि से रहा नहीं गया .... और उठकर बुद्धिजीवी चर्चाकारों पर बेहद शांत अंदाज में पिल पड़े तथा 3-4 सवाल दाग दिए .....

पहला सवाल ... क्या आपको पता है जिसकी आप आलोचना कर रहे हैं उसका जन्म जिस गांव में हुआ था उस गांव में स्कूल नहीं था तथा आस-पास के 20-30 किमी दूर किसी गांव में भी नहीं था ?

दूसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि उसके माता-पिता उसे 100, 200, 300 किमी दूर पढ़ने हेतु भेजने में सक्षम नहीं थे अर्थात वह चाँदी की चम्मच लेके पैदा नहीं हुआ था ??

तीसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि जब उसके पास के गांव में स्कूल खुला तब तक वह 20 साल की उम्र पार कर चुका था तथा साक्षरता अभियान क्या होता है यह भी वह नहीं जानता था ???

चौथा सवाल ... क्या यह गर्व की बात नहीं है कि वह आदिवासी अंचल से 3 बार, 4 बार, 5 बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहा है ????

कवि महोदय सवाल दाग कर चले गए ... और ..... बुद्धिजीवी पत्रकार व नेतागण सवालों के जवाब ढूंढने में लग गए .... !!

~ उदय

Friday, December 14, 2018

अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो .... !

01

सब कुछ.. वक्त पे मत छोड़ 'उदय'
वक्त हर घड़ी रहमदिल नहीं होता !

02

यकीनन ये इम्तिहान उनका था
भले ही, कोई और फैल कर दिया गया है आज !

03

आईने का कुसूर तो आईना जानता है
आज तुझे अपने चेहरे को भांपना है !

( भांपना = आंकलन लगाना, अनुमान लगाना )

04

कुछ-कुछ ख्याल से हैं मिजाज तेरे
बदल जाते हैं बार-बार !

05

न आहट, और न ही कहीं कोई सरसराहट है
वक्त करवट बदल रहा है शायद ?

06

अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो
झील हैं बहता दरिया नहीं हैं हम !

07

तनिक हार का गम तो हल्का कर लेते मियाँ
सरकारें तो.... हमेशा ही कटघरे में होती हैं !

~ उदय

Friday, December 7, 2018

तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी ... !

01

यकीं नहीं था कि - वो बेवफा निकल जाएंगे
जिनसे सीखा था कभी हमने वफ़ा का पाठ !

02

फड़फड़ाते रहे ख्वाब उड़ान भरने को
इक झौंका हवा का करीब नहीं आया !

03

बात आहिस्ता-आहिस्ता ही कही गई थी लेकिन
खामोशियों से भी रहा न गया !

04

जिन्दगी में, कभी .. किसी इम्तिहान में हारे नहीं थे 
चलो, तुम्हारी खामोशियों से कुछ सबक तो मिला !

05

अब इसे, फितरत कहो, या हुनर
वो, खुद ही बंदर, खुद ही भालू, औ खुद ही मदारी हैं !

06

तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी
बददुआ ने पल में कमाल कर दिया !

07

यहाँ, कोई, एतबार के काबिल नहीं दिखता
क्यों, खामों-खां किसी को आजमाया जाए !

08

तेरे वादे पे अब क्या एतबार करते
जब तेरे दिल पे ही एतबार न रहा !

09

तमाशेबाजो अब तो बाज आ जाओ तमाशों से
लहू जो बह रहा है वो कर्ज है तुम पर !

~ उदय