Saturday, November 5, 2011

पुरुष्कृत कवि की कविताएँ ...

एक दिन
मैं
एक पुरुष्कृत कवि से टकरा गया
अरे नहीं, उनसे नहीं, उनकी कविताओं से
अब चूंकि -
एक पुरुष्कृत कवि कि -
कविताएँ थीं
इसलिए पढ़ना भी जरुरी था !

पढ़ते पढ़ते कविताएँ -
थकान सी
ऊबान सी
आने लगी थी, जी ने चाहा
कि -
बीच में ही छोड़ के निकल जाऊं
फिर सोचा, नहीं, ऐंसा उचित नहीं होगा
यह पुरुष्कृत कवि का नहीं
पुरुष्कार देने वालों का अपमान होगा !

जबरदस्ती पढ़ते रहा
पढ़ते पढ़ते नींद गई
नींद जब टूटी, तो सन्नाटा-सा पसरा था
मैं डर गया, सहम गया
इधर उधर देखने लगा, कुछ नहीं सूझा
फिर, आँखें मींड कर देखा
सामने
एक पुरुष्कृत कवि की कविताएँ रखी थीं !
और वहीं नीचे, उनके चेलों-चपाटों -
तथा
पुरुष्कृत करने वालों के द्वारा
कविताओं की तारीफ़ के पुल बांधे गए थे !!

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