Monday, December 13, 2010

यौवन की दहलीज !

कब तक मैं बैठी रहूँ द्वारे
विवाह पर्व की बाठ जुहारे
उम्र हो गई सोलह मेरी
बिहाय चली गईं सखियाँ मेरी !

अब रातन में नींद आये
करवट बदल बदल कट जाए
अब हांथन भी सम्हल पाएं
कभी इधर, कभी उधर को जाएँ !

यौवन की दहलीज पे मैं हूँ
अंग अंग मेरे फड़कत जाएँ
देह तपन में जल जल जाए
अंग अंग रस हैं छलकाएं !

कल सखिया संग लिपट गई थी
सिमट बाहों में उसके गई थी
अंग अंग सब सिहर गए थे
खिल गए थे, छलक गए थे !

पिया मिलन की आस जगी है
मन में बसे कुछ ख़्वाब जगे हैं
मन-यौवन सब सिहर रहे हैं
विवाह पर्व की बाठ जुहारे !

21 comments:

JAGDISH BALI said...

यौवन है ही ऐसा ! बहुत खूब !

मनोज कुमार said...

इस रचना में कुछ आध्यात्मिकता सी दिख रही है ... पिया मिलन की आस जगी है!
अच्छी प्रस्तुति।

प्रवीण पाण्डेय said...

पुलकित मन के उद्गार।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यह कविता कहती है कि बच्चों की शादी सही समय पर कर दो जैसा हमारे माता-पिता करते आए थे। लेकिन यहाँ तो पहले पढ़ाई कर लें, अपने पैर पर खड़े हो जांय की जमीनी सच्चाई से दो-चार होना पड़ता है।

निर्मला कपिला said...

विवाह योग्य यौवना के मन के एहसास सुन्दर रचना। बधाई।

संजय भास्‍कर said...

हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

उदय जी,
आपने उम्र के अहसास को अच्छा शब्द दिया है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यौवना के मन के उड़ाते हुए भावों को बखूबी पिरोया है ...इसे अध्यात्म से भी जोड़ा जा सकता है ..

Sushil Bakliwal said...

यौवन की दस्तक...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति....

ZEAL said...

achhi abhivyakti

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

sanyog shringaar ki sunder rachna...
kya kahne !

Arvind Jangid said...

सुन्दर रचना! साधुवाद.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

क्‍या बात, क्‍या बात, क्‍या बात।


---------
दिल्‍ली के दिलवाले ब्‍लॉगर।

शिवा said...

बहुत खूब !..सुन्दर रचना

hot girl said...

nice poem,

lovely blog.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जवानी जिन्दाबाद

संगीता पुरी said...

बढिया लिखा है .. शुभकामनाएं !!

Manas Khatri said...

"यौवन की दहलीज पे मैं हूँ
अंग अंग मेरे फड़कत जाएँ
देह तपन में जल जल जाए
अंग अंग रस हैं छलकाएं !"
शनदार पंक्तियाँ, उदय जी बेहद ही खूबसूरत रचना|
मेरी रचना '१८ में यही होता है' की चन पंक्तियाँ सुने:
"जब 'दोस्त से बढ़कर...' की Stage होती है,
जब दुनिया की नज़रों में भी Image होती है|
जब Heart के भी Figure अनेक होते हैं,
जब जीते-जागते भी Heart-Break होते हैं|
जब Feeling को Control कर पाना भी, Possible नहीं होता है,
अब आप से क्या छिपाना ये १८ है,
१८ में 'अंकल जी' यही होता है|[..]-मानस खत्री

Amit said...

जियो कर्तव्य के अधिकार में

हर डूबने वाला ये सोचता है
गर सहारा मिलता तो निकल जाता
लहरों से टकराता डूबता घबराता
सामने ही शाहिल को नही देख पाता
मन के मंदिर में छिपे आराध्य को
नहीं खोज पाता हर कोई
पत्थरो में खोजे , जिसकी आत्मा सोई
मंदिरों में खोजे , भटका वैदेही
पर घट घट में बसे भगवान को
नहीं खोज पाता है कोई
डूब कर देखो ह्रदय की वेदना में
पाओगे ह्रदय की चेतना में
जो मौत से घबरा के जीना छोड़ दोगे
दर्द मुस्करा के पीना छोड़ दोगे
फिर ना कुछ मिलेगा दिल दुखेगा
उम्मीदे इन्सान को बलवान बनती है
कर्म इन्सान की पहचान करती है
कर्तव्य मिले या अधिकार
पर सत्य है कर्तव्य का संसार
डूबने के दर को छोड़ दो
वक़्त की धार से खुद को जोड़ दो
चल पड़ोगे तुम जिंदगी के साथ योगी
मिलता नहीं कुछ दर्द के रात में
जीवन है मुस्कराहट के सौगात में
जियो कर्तव्य के अधिकार में !
यह कविता क्यों ? जीवन की नाव कर्तव्य के पाल से बहती है न की लहरों पर अधिकार से
अरविन्द योगी @COPYRIGHTRAJKAMAL

shyam said...

Jiwan jeene ka nam hai jawani ki umra me bibah kar lena.ghar banana hai to dono sath mil kar banana,Kar kharidani hai to dono mil kar kharid lena par uchcha sicha ke nam par standard mentain karane ke nam par prakriti dwara diye huye jeewan ras jo umra 18 par aa hi jati hai ushe 25 tak ek agreement me bandh kar he aage ki jindagi jeni chahiye nahi to jawani sookh kar chohara ho jayegi aur bad me to chuchuk jayegi fir makan ,gari aur flat maza nahi dega. are bhayiyon apne bahano ke bare me bhi socho aur bina dahej ke sadi karana suru kar do tum bhi sukh se jeewo aur apne bahano ko bhi sukhi bibahit jeewn jeene do.unhe yauwan ki dahaleej par bibah ke liye mat praticha karawawo.