Thursday, March 13, 2014

चमचागिरी ...

पटरियां कमजोर हैं, या हैं ड्राइवर कामचोर 
तरक्की की रेलगाड़ियां बहुत धीमी हुईं हैं ?
… 
'खुदा' जाने 'उदय', वो किस मिट्टी के बने हैं 
खुद की तारीफ़ में खुद ही कसीदे पढ़ रहे हैं ? 
… 
वैसे तो, अक्सर, वो दुम दबा कर ही चलते हैं मगर 
गीदड़ भभकियाँ देते हुये भी, वो जम रहे थे आज ? 
… 
खासम-ख़ास लोगों की राजनीति, और कब तक 'उदय' 
क्या, कभी, कोई, 'आम आदमी' को भी गले लगाएगा ? 
… 
चमचागिरी, इक कला है 'उदय' 
हर किसी के बस की बात नहीं ? 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, सबके बस का नहीं है यह।