पटरियां कमजोर हैं, या हैं ड्राइवर कामचोर
तरक्की की रेलगाड़ियां बहुत धीमी हुईं हैं ?
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'खुदा' जाने 'उदय', वो किस मिट्टी के बने हैं
खुद की तारीफ़ में खुद ही कसीदे पढ़ रहे हैं ?
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वैसे तो, अक्सर, वो दुम दबा कर ही चलते हैं मगर
गीदड़ भभकियाँ देते हुये भी, वो जम रहे थे आज ?
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खासम-ख़ास लोगों की राजनीति, और कब तक 'उदय'
क्या, कभी, कोई, 'आम आदमी' को भी गले लगाएगा ?
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चमचागिरी, इक कला है 'उदय'
हर किसी के बस की बात नहीं ?
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1 comment:
सच है, सबके बस का नहीं है यह।
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