Tuesday, February 9, 2010

मदिरा ...

वह सामने आकर,
मुझको लुभा गई
फ़िर धीरे से, मुझमें समा गई
रोज सोचता हूं,
छोड दूं उसको
शाम हुई ,
उसकी याद फ़िर से आ गई

दूर भागा, तो सामने आ गई
मैं पूछता हूं ,
क्यों छोडती नहीं मुझको
वह "बेजुबां" होकर भी,
मुझसे लड गई
क्यूं भागता है, डर कर मुझसे
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !

ये माना,
तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर "बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं।

14 comments:

Randhir Singh Suman said...

मै बेवफ़ा नहीं। nice

36solutions said...

तेरी वफ़ाई ने क्या क्या सितम किये, अच्छा ही होता ग़र तू बेवफ़ा होती.

धन्यवाद उदय जी.

vandana gupta said...

waah ........kya baat hai.

arvind said...

ये माना, तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर "बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं। ---bahut badhiya.wah-

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !

Neeraj Kumar said...

वाह-वाह-वाह...हम भी हो गए आतुर पीने के लिए...चलें-बैठे और पियें...

Parul kanani said...

so nice sir :)

नीरज गोस्वामी said...

एक शेर सुनिए...पता नहीं किसने लिखा है...आपकी रचना पढ़ते हुए याद आ गया:-

तर्के मय* का ईशारा जो करती हैं मुझे
लुत्फ़ ये है की उसी आँख में मैखाना है
तर्के मय : शराब छोड़ने का

नीरज

कविता रावत said...

तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !
Achhi prastuti...

jamos jhalla said...

इसीलिए शायर ने कहा है की
बेशक खाली बोतल तोड़ो बुल्लेशाह ये कहता |पर वो बोतल कभी ना तोड़ो जिसमे एक पेग रहता|

डॉ टी एस दराल said...

सच कहा वो बेवफा नहीं ।
बस उसकी वफ़ा ही मार जाती है।

दिगम्बर नासवा said...

वाह .......... क्या बात है ....
"नशा शराब में होता तो नाचती बोतल..."

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया रचना!!

Anand Rai said...

bahut badiya ...