Thursday, March 20, 2014

मुहब्बत ...

जब से, उनकी तारीफ़ का जिम्मा, उन्ने लिया है 
ठीक तब से, उनमें उन्हें, भगवान नजर आते हैं ? 
… 
पत्थरों को कोई पत्थर कह के न पुकारे 'उदय' 
वे खुद कह रहे हैं, … उनके लोग कह रहे हैं ? 
… 
'आम आदमी' न तो कभी मरा है, और न ही कभी मरेगा 
चिंता तो, आज हमें भी है 'उदय', कुछेक 'ख़ास' लोगों की ? 
… 
उन्हीं से मुहब्बत, और उन्हीं से तकरार 
ए दिल, बता आखिर तू चाहता क्या है ?
…  
उफ़ ! उनकी ढलती उम्र पे तो कोई तरस खाये
बस, उन्हें एक आख़िरी मौक़ा और मिल जाये ?
… 
झूठी पत्तलों को भी, चाटने से, वो बाज नहीं आ रहे हैं 
सत्ता में बने रहने के लिए दर दर भटक रहे हैं आज ? 

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