Tuesday, March 29, 2011

अंकुरित ...

सच ! तुम पिछली कई रातों से
कुछ चुम्बकीय से थे
क्यूं थे, क्या बजह थी
कभी नहीं जानना चाहा मैंने !

तुम्हारा चुम्बकीय होना
कुछ अलग नहीं था, सिर्फ
प्यार में अनोखापन था
इन दिनों, तुम पहले से नहीं थे !

मैंने महसूस किया है, तुम्हें
तुम हिमालय की तरह
सच ! तुम बर्फ की तरह
बूँद बूँद झरते रहते थे !

बजह चाहे जो भी रही हो
पर मुझे तृप्ति मिलती थी
तुम्हारे बूँद बूँद झरने से
शायद, इसलिए, कि -
मैं गर्म थी, तपती धरती सी !

मुझे तुम्हारा हिमालय-सा झरना
और मुझमें समा जाना
सुकूं, ठंडक, खुशी दे रहा था !
सुनो, तुम्हारा बूँद बूँद झरना
निष्फल नहीं था !

आज
सुबह-सुबह जाना मैंने
तुम्हारा
कतरे कतरे में झरना
और बूँद बूँद बन, मुझमें समा जाना
तुम्हारी ये धरा
सच ! अंकुरित हो गई है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बूँद बूँद प्रेम से मन अंकुरित होता है।