Monday, December 27, 2010

जिज्ञासा ...

सच ! हाँ जानती हूँ, तुम मुझे
निर्वस्त्र देखना चाहते हो, घंटों निहारना चाहते हो
सिर से पैरों तक, फिर पैरों से सिर तक !

आगे से, पीछे से, अकेले में, रौशनी में
तुम चाहते हो, देखना मुझे, निर्वस्त्र ...
अपनी मद भरी आँखों से !

सच ! तुम कितने लालायित हो
मैंने एक-दो बार भांपा है
तुम्हारी नजरें स्थिर बन, ठहर सी जाती हैं
कभी कभी, मुझ पर, कपडे बदलते समय !

और तो और, एक-दो बार, तुमने मुझे
नहाते समय, देखने का असफल प्रयास भी किया
किन्तु, तुम सहम गए !

तुम्हारी सालों की लालसा, चाहती हूँ
कर दूं पूरी, पर क्या करूं
शर्म के कारण
सच ! चाहकर भी, सहम जाती हूँ !

कल तो मैंने, मन ही बना लिया था, पर
चाहते चाहते
शर्म उतर आई, रुक गई, ठहर गई
नहीं तो कल रात, तुम्हारी जिज्ञासा, हो गई होती पूरी !

सच ! अब मुझसे भी, तुम्हारी लालसा -
व्याकुलता, देखी नहीं जाती
देखें, कब तक, शर्म रोक सकती है मुझको !

या फिर, किसी दिन, शर्माते, लजाते ही
अपनी आँखों को, मूँद कर
मैं तुमसे, चुपके से, कह दूंगी, लो, कर लो पूर्ण
चुपके से, धीरे से, अपनी जिज्ञासा पूरी !!

23 comments:

डॉ टी एस दराल said...

हमने तो आँखें बंद कर ली भाई ।

सुरेश शर्मा . कार्टूनिस्ट said...

नारी समर्पण की बेहतरीन प्रस्तुति !

Deepak Saini said...

नारी समर्पण की बेहतरीन प्रस्तुति !

संजय भास्‍कर said...

नारी समर्पण की.... प्रशंसनीय रचना - बधाई

अरुण चन्द्र रॉय said...

sensuous !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

शब्दों की चतुराई
कविता में उतर आई।

Sushil Bakliwal said...

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाए...

Kailash Sharma said...

नारी समर्पण की इन्तहा...सुन्दर प्रस्तुति.

ZEAL said...

.

तस्वीर ने इतना शर्मिन्दा किया की रचना पढ़े बगैर ही वापस जा रही हूँ। खेद सहित ।

.

आपका अख्तर खान अकेला said...

uday bhaayi sch kdvaa hota he or sch yhi he jo kaafi logon ke dimaag men aek mhila ke lliyen hota he lekin agr tsvir thodi bdl lete to mhrbaani zrur ho jaati. akhtar khan akela kota rajsthan

jamos jhalla said...

badhaai

कडुवासच said...

@ ZEAL
@ Akhtar Khan Akela
... तस्वीर में ऎसा कुछ नहीं है जिसका विरोध किया जाये यदि इस तस्वीर को आप लोग अश्लील मान कर चल रहे हैं तो यह बेहद खेद्जनक है ... यह किसी महान कलाकार की पेंटिग है जो निश्चिततौर पर किसी राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का हिस्सा जरुर रही होगी यदि नहीं भी रही है तो मैं यह आशा करता हूं बनाने वाले कलाकार को इस पेंटिंग के माध्यम से ख्याती अवश्य मिले, उस बनाने वाले कलाकार को शुभकामनायें !!!

केवल राम said...

नारी मन में चलने वाली उठापटक को शब्दों की चतुराई से बखूबी पेश किया है आपने .....

एम. अखलाक said...

शानदार तरीके से बुना गया शब्‍दों का जाल। बधाई।

राज भाटिय़ा said...

नारी मन के भावो दर्शाती एक अदभुत रचना. धन्यवाद

JAGDISH BALI said...

Very sensuous !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

sampoorn samarpan ki sapat lahje me bebaak abhivyakti..
sanyog shringaar me sani rachna.

डॉ० डंडा लखनवी said...

दार्शनिकों ने प्रकृति और पुरुष के बीच पारस्परिक संबंधों की जिस गुत्थी को सुलझाने का यत्न किया है उसे आपने बहुत ही सहज ढ़ंग से व्यक्त किया है। इसमें पुरुष मन की अकुलाहट और नारी मन की चंचलता क संगम है।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

पूनम श्रीवास्तव said...

uday ji
aapne prakriti avam purush ke antargat chalne wale bhauo par daxhta purvak apni lekhni chalai hai.
koi bhi bada kalakaar ho par naari ko hamesha hi sraddhey -drishti se dekha
jaata hai ,firbhi naari ko aise hi jyadatar kyon pratibibit kiya jaata raha hai?
ktipya aap anyatha na lijiyega jo man me vichar aaya use likh diya
aaj-kal mai isi vishay par ek lekh rahi hun ,dekhiye kab pura hota hai .
main aapki baat ka samarthan kartihun ho sakta hai jin bhi chitr-kaar ne is tasveer ko banai hogi usko banate samay vo kis baat ko aadhar banar yah chitr bana rahe the ye to vahi jante hain.
mere khayal seaapkirachna ke bhv achhe hain ,bas!tasveer pleejagar badal sakte hain to badal de ,isse aapki rachna parbhavshali banegi.
fir bhi yah baat aapke upar nirbhar karta hai.
shayad kuchh jrada hi likh gai pata nahi kis bhavna ke antargat,
xhma kijiyega.
yah baat aapne blkul sach kaha hai ki (naari ka gahana uski sharm hi hoti hai).
xhma sahit
poonam

babanpandey said...

नारी /पुरुष और अन्तः मन में उठाने वाले भावों का बेबाक चित्रण //

Atul Shrivastava said...

पुरूष की सोच को लेकर नारी मन को अच्‍छे से पेश किया गया है। मुझे इसमें कोई अश्‍लीलता नहीं दिखाई देती।

Free Thinker said...

Uday ji bahut ashha laga

shyam gupta said...

--सुन्दर रचना ....
----चित्र अश्लील तो है ही ....चाहे कला का नाम देकर कुछ भी कहा जाता रहे....
----इस उठापटक व समर्पण की इंतिहा (यह इंतिहा स्वयं की दमित/भ्रमित/स्वाभाविक इच्छा का भी प्रतिनिधित्व करती है -और अपने रूप यौवन के दर्प का भी--) का ही पुरुष खूब शोषण करता है ....