Sunday, October 30, 2011

एक ठूँसू और ठोकू कविता ...

क्या लिखूं, ये सोच रहा हूँ
कुछ सूझ गया तो ठीक
वरना
कुछ भी लिखने के नाम पे -
ठोक दूंगा !

पढ़ने वालों की भी कोई कमी नहीं है
वैसे भी
ज्यादा से ज्यादा गिने-चुने पाठक ही तो -
पढ़ने आते हैं
आएंगे तो ठीक, और नहीं आए, तब भी ठीक !

लेकिन, किन्तु, परन्तु, पर
कुछ न कुछ लिखने की -
भड़ास तो निकल ही जायेगी !

तो लो भईय्या तैयार हो जाओ
आज
जब मन नहीं हो रहा है -
तब भी ठूंस रहा हूँ
अगर नहीं ठूंसा तो, न जाने कब तक
बेचैनी बनी रहेगी !

बेचैनी दूर कैसे हो
ये तो आप भी भली-भाँती समझते ही हो
कि -

एक कवि -
जब तक दो-चार लोगों को, पकड़-पकड़ के
अपनी कविताएँ न सुना दे, तब तक !

एक नेता -
जब तक सुबह से शाम तक
दो-चार लोगों को चूना न लगा दे, तब तक !

एक नारी -
जब तक दिन में, सात-आठ बार
लिपस्टिक-पावडर न पोत ले, तब तक !

एक प्रेमी -
जब तक अपने माशूक के घर-मोहल्ले के
दो-चार चक्कर न लगा ले, तब तक !

एक फेसबुकिया -
जब तक दो-चार महिलाओं के फोटो और पोस्टों पर
आठ-दस लाईक व कमेन्ट न ठोक दे, तब तक !

खैर, यह सिलसिला तो चलते ही रहेगा
न थमेगा, बस बढ़ते रहेगा
इसलिए, फिलहाल, यहीं ब्रेक लगाते हैं
कल की कल देखेंगे -
और परसों की परसों, जय राम जी की !!

5 comments:

अनुपमा पाठक said...

सिलसिला चलता रहे!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जय राम जी की, ठोंक ठांक बढिया रही।

Gyan Darpan said...

सही ठोक दिया जी आपने भी

Gyan Darpan
RajputsParinay

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बढ़िया रही ये ठोकू कविता भी ..

रूप said...

Lage raho Munna bhai !