Sunday, July 6, 2014

आस ...

रौंपे जा रहे हैं पौधे
खेतों में, छोटी-छोटी बाड़ियों में
इस उम्मीद से
कि -
बादल बरसेंगे, जरूर बरसेंगे,

क्यों ? क्योंकि -
उनकी …
यही तो, एक उम्मीद है, आस है,

गर, नहीं बरसे, तो …
उनके घरों में …
चूल्हों में …
सूखा … अकाल … तय है ???

1 comment:

देवदत्त प्रसून said...

अच्छी प्रगतिवादी रचना!