Friday, November 18, 2016

तमाशा ... !

तू कोई सबक सिखा
उसे या मुझे
या तो वो चेत जाए, या फिर मैं

रोज रोज
उसका गुब्बारे फुलाना, और मेरा उन्हें फोड़ देना
अब दर्शकों को भी रास नहीं आ रहा है

तालियों की गूँज ... दिन-ब-दिन ..
कम होते जा रही है
अब किसी नए तमाशे की जरुरत है ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, November 13, 2016

त्राहिमाम्-त्राहिमाम्

जिंदगी को दांव पे लगा दो
पूरा गाँव अपना है
हा-हा-कार मचे, या त्राहिमाम्-त्राहिमाम्
मचने दो,

हम सरपंच हैं
गाँव के,
हम मुखिया हैं
बस्ती के,

जो चाहेंगे वो करेंगे
लोग रोयें रोते रहें, मरते हैं मरते रहें
वैसे भी ... लोगों की आदत है ...
बात-बात पे रोने की .... ???

Tuesday, November 8, 2016

मधुशाला

आ, चल, बैठें, देखें,
है कितनी .. कड़वी-मीठी .. मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला,

भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला ....

छोड़, उतार, अहं का चोला
चल, जांचें, परखें, मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला !

~ श्याम कोरी 'उदय'