वो सियाने हैं इतने
कि -
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !
यही तो होती है फितरत
मौका परस्तों में ...
कभी बाहों में होते हैं
कभी हाथों में होते हैं
कभी चरणों में होते है .... !!
~ उदय
कि -
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !
यही तो होती है फितरत
मौका परस्तों में ...
कभी बाहों में होते हैं
कभी हाथों में होते हैं
कभी चरणों में होते है .... !!
~ उदय