Wednesday, June 29, 2011

... सरकते हुए, गिर गई ... !!

कविता : सिगरेट !

धुंआ, उड़ता रहा
और हम पीते रहे
मारते रहे, कश पे कश
एक के बाद एक, कश !
ट्रैन ... आई नहीं थी
रात के ढाई बजे
हम खड़े थे
इंतज़ार ... करते भी क्या
पीते रहे, कश पे कश, मारते रहे !
तभी, अचानक ही
एक बुजुर्ग ...
सन्नाटा सा छा गया
हम, दोनों के बीच ...
हाँथ की उँगलियों से
सरकते हुए, गिर गई
जमीं पर, खुद खुद ... सिगरेट !!

2 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|

प्रवीण पाण्डेय said...

सटीक प्रक्षेप।