Friday, June 24, 2011

उफ़ ! ये जन लोकपाल बिल !!

अरे भाई ... भ्रष्टाचार और ...
ये जन
लोकपाल बिल
अपने आप में एक
खतरे की घंटी है
घंटी क्या, घंटाघर है
समर्थन करने से
राजनीति खतरे में
और विरोध करने से
सरकार खतरे में
क्या करें !
एक तरफ कुआ
तो दूजी तरफ खाई है
गिरना तो लगभग तय ही है
हपट के गिर जाएं
या धक्के से गिर जाएं
क्या करें, बताओ
हाँ भाई हाँ, सरकार खतरे में है
सिर्फ सरकार नहीं, जमी-जमाई राजनीति भी
जाओ, कोई तो समझाओ जाकर
अरे ... हाँ भई ... अन्ना को
हमारी सुन नहीं रहा है
पर, शायद, मुमकिन है
किसी किसी की, तो जरुर सुन ले
कोई तो ... मना लो ... जाकर
कहीं हमारी, चेले-चपाटियों
और हम से जुड़े पिछलग्गुओं की
दुकानें बंद हो जाए
कहीं लेने के देने ...
तो कहीं रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएं
उफ़ ! ये जन लोकपाल बिल !!

3 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

लीना मल्होत्रा said...

हपट के गिर जाएं
या धक्के से गिर जाएं....

प्रवीण पाण्डेय said...

जब आ जाये, तब ही कुछ कहा जाये।