Thursday, November 18, 2010

भभक रहा हूँ ...

मौज हुई मौजों की यारा
किसान-मजदूर हुआ बेचारा
बस्ती भी बे-जान हो गई
शैतानों की शान हो गई
देख देख कर सोच रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !

भरी सभा खामोश हो गई
दुस्शासन की मौज हो गई
अस्मत भी लाचार हो गई
लुट रही है, लूट रहे हैं
कब तक देखूं सोच रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !

एक
भयानक तूफ़ान चल रहा
कैसे जीवन गुजर रहा है
कब सुबह - कब शाम हो रही
पता नहीं, क्या बेचैनी है
और क्यों पसरा सन्नाटा है
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !

बाहर देखो सब चोर हुए हैं
मौज - मजे में चूर हुए हैं
नष्ट हो गई आन देश की
सत्ता भी अब भ्रष्ट हो गई
ये पीड़ा भी सता रही है
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !

कतरा - कतरा व्याकुल है
कब निकलूं ये सोच रहा है
कब तक मैं जज्बातों को
शब्दों के अल्फाजों से
बाहर शोले पटक रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !!!

15 comments:

संजय @ मो सम कौन... said...

जो संवेदना रखेगा, वो भभकेगा भी और धधकेगा भी। लेकिन उदय जी, आज के समय में भावनाओं का सम्मान करना, संवेदनायें पालना दुख को न्यौता देने के बराबर है। सुखी हैं वो जो ऐसी चीजों को घास नहीं डालते। लेकिन फ़िर अपने बस में हैं भी तो नहीं ये सब।
बहुत अच्छी रचना लगी आपकी।

M VERMA said...

भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !!!
हर संवेदनशील भभक और दहक रहा है
पर अन्दर अन्दर भभकने और दहकने से क्या होने वाला है
सुन्दरता से भाव व्यक्त करती रचना

Kunwar Kusumesh said...

"भरी सभा खामोश हो गई
दुस्शासन की मौज हो गई
अस्मत भी लाचार हो गई
लुट रही है, लूट रहे हैं
कब तक देखूं सोच रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ"

उदगारों की बेहतरीन अभिव्यक्ति है इस कविता में

प्रवीण पाण्डेय said...

यह धधक व्यक्त होनी ही थी।

ZEAL said...

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Great poetry !

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मनोज कुमार said...

आपने कविता में अपने समय को लेकर कई जरूरी सवाल खड़े किए हैं। विगत कुछेक दशकों में हमारा समय जितना बदला है उसकी चिंता आपकी कविता में बहुत ही प्रमुख रूप में दिखाई देती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::क्षमा

Deepak Saini said...

मन की संवेदना कविता के रूप मे
बहुत अच्छे से प्रस्तुत की है

भभक रहा हूं, दहक रहा हँू
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ,

बदतले समय के लिए आपकी चिंता

अच्छी कविता के लिए बधाई

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Shah Nawaz said...

भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !



बेहतरीन अभियक्ति, ज़बरदस्त!



प्रेमरस.कॉम

रंजना said...

सचमुच..आज देश की स्थिति देख,सबकी यही मनोवस्था है....

बहुत ही प्रभावशाली ढंग से आपने इसे अभिव्यक्ति दी है....

बहुत ही सुन्दर रचना...

राजकुमार सोनी said...

बहुत ही उम्दा रचना लिखी है आपने
पढ़कर अच्छा लगा

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

उदय भाई, आपकी शब्‍द रचना ने मंत्रमुग्‍ध सा कर दिया है। यकीन मानें, एकदम सच कह रहा हूँ।

---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्‍या आप सच्‍चे देशभक्‍त हैं?

रानीविशाल said...

बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति ...बधाई
यहाँ भी पधारे
दुआएँ भी दर्द देती है

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यह आग चारों ओर क्यों नहीं फैलती..

दिगम्बर नासवा said...

ये संवेदना सार्थक रूप से बाहर आणि चाहिए ... ये दहकना हर गलत चीज़ को जला दे ऐसी आशा है ..