Wednesday, February 29, 2012

फरेब का तजुर्वा ...

है मुमकिन करो कोशिश, तुम मुझको भूल जाने की
पर नामुमकिन ही लगता है, भुला पाना मुझे यारा !
...
काश ! हमें भी फरेब का तजुर्वा होता 'उदय'
तो बाहों में कोई, आँखों में कोई और होता !

Tuesday, February 28, 2012

... कोई खुद को मालिक नहीं कहता !

सच ! घने तूफ़ान से गुजरे, बड़े ईमान से गुजरे
तेरे साँसों के तूफाँ ने, हमें बेईमान कर डाला !!
...
कभी औरत, तो कभी पुरुष, खुद को गुलाम कहते फिरे है
उफ़ ! क्या माजरा है, कोई खुद को मालिक नहीं कहता !!
...
लो, इसे कहते हैं कुछ न कर के भी कुछ कर लेना
खामोशियों में भी, हमने तुमसे ढेरों बातें की हैं !!!
...
उफ़ ! ये तूने शर्त रखी है, या सजा दी है
क्या खामोश रहकर भी बातें होती हैं ??

कारवां ...

कौन जाने
किस घड़ी, कब ?
ये जिंदगी गुमनाम हो !
तुम अकेले
हम अकेले
आओ ...
क्यूँ न कारवां बन जाएं हम !!

Monday, February 27, 2012

क्या आज कुछ कहोगी ?

मैंने देखा है अक्सर
मैं, जब जब होता हूँ सामने तुम्हारे
तुम असहज-सी हो जाती हो !

तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं
साँसें तेज चलने लगती हैं
बात करते-करते तुम्हारे होंठ कंप-कंपाते से हैं !

और तो और
तुम्हारी आँखें ... भी स्थिर नहीं रहतीं
तुम ... पल पल में ...
कहीं, खोई-खोई-सी नजर आती हो !

मैं जानता हूँ ...
तुम प्यार करती हो मुझे
पर, तुम कुछ कहती नहीं हो !
मालुम नहीं, ऐंसा क्यूँ ?

अगर चाहो ... तो ... आज ...
बेझिझक ... कह दो ... मैं भी चाहता हूँ ...
सुनना ... तुम्हारे दिल की ... मन की ... बातें ...
कहो ... क्या आज कुछ कहोगी ??

... नहीं तो गुलामी क़ुबूल हो !

होगा वही, जो वो चाहेंगे
स्वयंभू हैं, किसी की न कभी वो बात मानेंगे !
...
चलो, कोई तो है जिसे, तुमने सरताज माना
भले चाहे वो छूकर पांव तेरे, सिर तक आया !
...
सुना है ! उसकी नजरें ढूँढती हैं राह चलते ही मुझे
देखना एक दिन, मैं उसे मिल जाऊंगा !
...
सच ! लग रहा है जीते-जी मैं कवि नहीं कहलाऊंगा
न तो कोई छापेगा मुझे, और न मैं खुद छपवाऊंगा !
...
क्या गजब फरमान जारी हुआ है 'उदय'
मान जाओ, नहीं तो गुलामी क़ुबूल हो !

Friday, February 24, 2012

चराग ...

क्या तुम जानते हो ?
है कौन ??
जिसे, तुम मुसाफिर कह रहे हो !
खुद है 'खुदा'
बन चराग, संग मेरे चल रहा है !!

Thursday, February 23, 2012

इज्जतदार ...

कह रहे थे लोग जिसको
चोर सारे
वो
मौकापरस्ती का बड़ा फनकार निकला !
नेतागिरी की
जब से उसने राह पकड़ी
वो
राजनैतिक दांव-पेंचों का
होनहार निकला !!
जिसे, एक समय
गाँव से
बेइज्जत कर निकाला गया था
वो
आज गाँव का
सबसे बड़ा इज्जतदार निकला !!!

Wednesday, February 22, 2012

आधुनिक नारी ...

वो औरत ...
जिसका लिबास जींस-टीशर्ट है
शर्ट-मिनीस्कर्ट है
क्या वही आज की आधुनिक नारी है ?
या फिर
आधुनिक नारी वह है ??
जो पुरुष के संग -
कार्यालयों में
खानों में
कारखानों में
अस्पतालों में
थानों में
ट्रेनों और हवाई जहाज़ों में
कंधे-से-कंधा
मिला कर चल रही है !
काम कर रही है !!
बढ़ रही है !!!
और तो और
जिसने पुरुषों को भी
अपनी कार्य कुशलता के दम पर
पीछे छोड़ दिया है ???

Tuesday, February 21, 2012

बलात्कार ...

उसे तुम
किसके गुनाहों की सजा दे रहे हो ?
उस गुनाह की
जो उसने किया नहीं !
या फिर
उस गुनाह की
जो खुद उसके सांथ हुआ है !!
वह पीड़ित है !!!
बलात्कार हुआ है ... उसके सांथ
उसकी आबरू लूटी गई है
सच ! गुनहगार तो कोई और है ?
बताओ ... फिर ...
उसे, उसके परिवार को
क्यों -
समाज से बेदखल किया जा रहा है ??
सिर्फ इसलिए
कि -
वह एक औरत है ???

... दो घूँट तुम भी विषपान करो !

जिस शहर में रोज साहित्यिक चका-चौंध है
मेरी बस्ती, वहां से बहुत दूर है 'उदय' !
...
न इतराओ खुद पे, और न ही तुम घमंड करो
आओ संग मेरे, दो घूँट तुम भी विषपान करो !
...
क्या गजब किरदार है उसका 'उदय'
वो हंसता है या रोता है, मालुम नहीं पड़ता !

Monday, February 20, 2012

महाप्रलय ...

हे भोले ... बम बम भोले ...
देवादि देव महादेव ...
तुम्हें प्रणाम ... कोटि कोटि प्रणाम ...
मैं आज तुम्हारी चौखट पे
कुछ लेने नहीं !
और न ही कुछ जानने आया हूँ !!
मैं तो सिर्फ
तुम्हें यह बताने आया हूँ
कि -
अब समय आ गया है
आप ... रौद्र रूप धारण कर लें, प्रभु !
और
एक बार फिर
महाप्रलय कर, नष्ट कर दें -
भ्रष्ट जनजीवन को !!
क्यों ? क्योंकि -
यह तय-सा जान पड़ रहा है
कि -
अब, हम
अपने से, खुद सुधरने वाले नहीं हैं !!!

Sunday, February 19, 2012

सम्पादक की टिप्पणी ...

कल एक तस्वीर पर
एक बड़े सम्पादक की टिप्पणी देखी
पढी
पढ़कर
हतप्रभ-सा हुआ मन !
हतप्रभ क्यों ?
सिर्फ इसलिए
कि -
एक वरिष्ठ सम्पादक !
और टिप्पणी !!
वो भी
महज, एक महिला की तस्वीर पर !!!

चमरू सिंह का बच्चा ...

ओह-हो ...
छी-छी-छी ... धर्म भ्रष्ट कर दिया !
क्या हुआ महाराज ?
अरे-रे-रे ... एक अछूत ने
सुबह सुबह
मुझे छूकर अपवित्र कर दिया ...
फिर नहाना पडेगा जाकर ... ओफ़्फ़-हो !!
क्या हुआ ? कैसे हुआ ??
वो देखो ... वो बच्चा ...
परीक्षा देने स्कूल जा रहा है
जाते जाते ...
उसने मेरे पैर छू लिए !!
तो क्या हुआ ! बच्चा ही तो है !!
और तो और
उसने पैर छूकर
आशीर्वाद ही तो लिया है ... आपसे !!!
अरे-रे-रे ... क्या तुम जानते नहीं
कि -
वह चमरू सिंह का बच्चा है ???

Saturday, February 18, 2012

तेरी आँखों की भाषा ...

तेरी आँखों की भाषा पढ़ते पढ़ते पढ़ नहीं पाए
तुझसे बिछड़ के फिर किसी से मिल नहीं पाए !

बदला कुछ भी नहीं है
सिर्फ वक्त की घड़ियाँ ही बदली हैं !
अभी भी तुम उधर से
खामोश बनकर, मुझसे कुछ कह रहे हो
और कल की तरह ही
हम इधर चुप-चाप तुमको सुन रहे हैं !

सिर्फ दो कदम का फासला था मेरे यारा
उधर से तुम, इधर से हम
जिसे, अब तक, तय कर नहीं पाए !

तेरी आँखों की भाषा पढ़ते पढ़ते पढ़ नहीं पाए
तुझसे बिछड़ के फिर किसी से मिल नहीं पाए !!

Friday, February 17, 2012

... खुद से जुदा हो गए हैं !

तेरी जुदाई का असर, सिर्फ इतना हुआ है
कि, हम खुद से जुदा हो गए हैं !
...
पंगा तो है, मगर तुझसे नहीं है
अब तो उसी से, दो-दो हाँथ आजमाना है !

Thursday, February 16, 2012

मुहब्बत ...

तू
खामो-खाँ
मुहब्बत का दम मत भर
और तो और
खुद को
दिलासा भी मत दे
कि -
तू चाहती है मुझे !
मेरा जब नाम लेना हो
तब
मैंने देखी है
तेरे होंठों की कम्पन !
और, साँसों की धड़कन !!

... मुहब्बती दस्तूर हैं 'उदय' !

खता उसकी नहीं थी, फिर भी सजा उसको मिली है
तेरे इंसाफ़ के पलड़े, बहुत हलके हुए हैं !!
...
अकेले होने के लिए, मुझे खुद से दूर होना पडा है
तब कहीं जाके, मैं तुमसे दूर हो पाया हूँ !
...
न खता, न कुसूर, न शिकवा, न शिकायत
रूठना-मनाना, मुहब्बती दस्तूर हैं 'उदय' !

मसक्कत ...

सच ! हम न चाहेंगे
अब और जानना तुझको !
तुझको पाकर
पाते पाते
जो हमने तुझे जाना है
वो तो
'रब' ही जानता है
कि -
कैसे, हमने तुझे जाना है !!

Wednesday, February 15, 2012

... अपुन गुमनाम ही अच्छे !!

बड़े हौले से गुजरे हैं, तेरे साये के बाजू से
तुझे छू भी लिया है और तू अंजान भी है !
...
रोज-डे, वेलेन्टाइन-डे, गुजर गया था यारो
जुनून सवार रहा ... आज ब्रेक-अप-डे है !!
...
यदि नाम के लिए, जी-हुजूरी शर्त है उसकी
तो फिर 'उदय', अपुन गुमनाम ही अच्छे !!

प्यार ...

सच ! किसी न किसी दिन
किसी न किसी से
प्यार तो होना ही था
यही सोचकर
सोचा, कि -
क्यूँ न, तुम से -
प्यार कर लिया जाए !
फिर, तुम, मुझे
अच्छी भी तो लगती हो !!

Tuesday, February 14, 2012

उनके जैसा ...

लाख हिदायतों के बाद भी
हुआ इतना ही है
कि वो
मेरे जैसे नहीं हो जाए
पर, हाँ
उनके कुछ कहे बगैर ही
देखो
मैं बिलकुल उनके जैसा
कठोर, निर्दयी हो गया हूँ !!

चराग-ए-मुहब्बत ...

'खुदा' जाने है, उनकी गलियों में
चराग-ए-मुहब्बत ...
कितने जलाए हैं हमने !
तब कहीं जाके ... बामुश्किल
कदम उनके, हम तक आए हैं !!

Monday, February 13, 2012

... दिल ने रस्ता बदल लिया !!

हमें उनकी भी आरजू थी, उसकी भी आरजू थी
न जाने किस घड़ी, दिल ने रस्ता बदल लिया !!
...
ये किसने कह दिया, जेहन में नहीं 'खुदा'
बेफिजूल की बातें हैं, मस्जिद औ मैकदे !

... गर्म आंच-सी क्यूँ है ??

आँखों की शर्म भूल जा, बाहों को थाम ले
तू उम्र की हिचकी न ले, साँसों में आग है !
...
सच ! उसने बड़े अदब से आशीर्वाद की कीमत चाही है
कीमत अदा कर, क्यूँ न रिश्ता दफ़्न कर दिया जाए ?
...
आज का दिन, खामोश-सा क्यूँ है ?
सर्द रातों में, गर्म आंच-सी क्यूँ है ??

Sunday, February 12, 2012

... दूर रहो मुझसे !

बड़ा सुकूं मिला है, क़त्ल कर खुद का
अब, न चाह है, न उम्मीदें हैं !!
...
न चाहकर भी तुम मेरे हुए हो
कहा था मैंने, दूर रहो मुझसे !

Saturday, February 11, 2012

... इल्जाम फूलों पे मढ़ दिए गए हैं !

मुर्दे भी वक्त-बेवक्त काम आ ही जाते हैं
फिर हम तो अभी ज़िंदा हैं !!
...
'उदय' तेरी नजर को, नजर से बचाए
जब भी उठे नजर, तो मेरी नजर से आ मिले !
...
लो, इस बार फिर तंग कपडे कसूरवार ठहराए गए हैं
खता भंवरों की थी, इल्जाम फूलों पे मढ़ दिए गए हैं !
...
कफ़न खरीदता देख मुझे, बहुत खुश हो रहा था वो
सच ! रकीब होता, तो शायद कुछ और बात होती !!

... सलीका भी सिखा दिया है यारो !

जाकर खबर कर दो उन्हें, कि मर गया हूँ मैं
भूतों में आस्था है, अब पूज लें मुझे !!
...
सच ! नहीं है रंज मुझे, तेरी जुदाई का
तेरी पनाह में, क्या कम उदास थे ??
...
ज़िंदा तो हूँ, पर ज़िंदा नहीं हूँ
जिंदगी ने, जीने का यह सलीका भी सिखा दिया है यारो !

Friday, February 10, 2012

गड्ड-मड्ड कविता ...

एक दिन, मैंने गुस्से-गुस्से में
सादा कागज़ पर
गोदा-गादी
अंड-संड
अगड़म-बगड़म
लाल-पीला, हरा-नीला
जैसा, कुछ गड्ड-मड्ड कर दिया !
अब कर दिया तो कर दिया !!
फिर, अचानक
एक दिन, एक साहब की नजर
गड्ड-मड्ड पर पडी !
पडी क्या, उन्होंने पीठ थप-थपाई !
और कहा -
क्या पैनी, धारदार कविता है !
फिर क्या था, बस उसी दिन से
अपुन ... कवि बन गया हूँ !!

उम्मीदों की तालियाँ ...

उम्मीद में तालियों की गड़गड़ाहट
क्यों ? किसलिए ??
सिर्फ इसलिए
कि -
जब मेरी बारी आयेगी
तब वह भी ताली बजाएगा !
इस तरह
तालियों की गड़गड़ाहट
जब तक, उम्मीदों के संग
बजती-बजाती रहेंगी
तब तक, क्या हम -
यह उम्मीद कर सकते हैं
कि -
सच्चे व सुनहरे दिन आएंगे ?
या फिर
हम खुद, खुद के सांथ, अंत तक
बेईमानी करते रहेंगे ??

... खुश न हुआ होता !

अच्छा हुआ जो मर गया, उनकी नजर में मैं
उनकी उदासियों से, मैं ही उदास था !
...
कफ़न खरीदता देख मुझे, वो बहुत खुश हुआ होगा
रकीब होता, तो शायद खुश न हुआ होता !

Thursday, February 9, 2012

... खुद से जुदा-जुदा सा है !

लोग कहते हैं, हूँ मैं दीवाना तेरा
कैसे कुछ कह दूं, जब तूने कुछ कहा नहीं मुझसे !
...
हर चेहरे में एक चेहरा छिपा-छिपा सा है
हकीकत में इंसा खुद से जुदा-जुदा सा है !
...
जात-पात के ढोल-नगाड़े, कितने झूठे-सच्चे नारे
आँगन-आँगन माथा टेकें, वोट खातिर नेता सारे !
...
अगर चाहो तो चाहो, न चाहो तो न चाहो
मर्जी तुम्हारी है, हमें एतराज कैसा !!
...
न तो किसी से उम्मीदें थीं, और न ही कोई आसरा बना
वक्त बदलता रहा, हम बदलते रहे !!

Wednesday, February 8, 2012

बहुत खाली थी, बंद मुट्ठी मेरी ...

नहीं मिला उसे कुछ, दिल तोड़ कर मेरा
कितना तड़फा हूँ, ये उसे आजमाना था !

रंज करता, तो करता कब तक
जाके उसे, मुझे ही मनाना था !

सच ! कहाँ था जोर, मेरा मुझ पर
वक्त के हांथों, मैं एक खिलौना था !

मेरी फ़रियाद पे भी खामोश ही रहा
वो 'खुदा' है उसे ये, मुझे बताना था !

बहुत खाली थी, बंद मुट्ठी मेरी
मगर उसको, तो आजमाना था !!

Tuesday, February 7, 2012

विरासत ...

मुझे ...
विरासत में क्या मिला !
शायद कुछ नहीं !!
शायद बहुत कुछ !!!
पर
मैं अपने बच्चों को
विरासत में
कुछ देना चाहता हूँ
पर क्या ?
भ्रष्टाचार व बेईमानी से -
अर्जित संपत्ति ?
या अच्छे संस्कार ??

रोज-डे ...

'रोज-डे' के आज हंसी मौके पर
काँटों की डगर, पांव रखना था !
मुहब्बत तो है, भले बयां न सही
गुलाब किताब में छिपा देना था !

बदकिस्मत ...

जिसने देखे नहीं, सूखे चूल्हे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

जिसने देखे नहीं, अध-नंगे तन गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

जिसने देखे नहीं, भूख में सोते बच्चे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

जिसने देखे नहीं, बगैर इलाज मरते बच्चे गरीबों के !
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

विरासतों में मिली अमीरी-गरीबी को भी देख
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

दबे, कुचलों को मिल रही सरकारी मदद को देख
न जाने क्यूँ -
वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!

Monday, February 6, 2012

खुदा हाफिज ...

उसने
एक एक हजार के
पांच नोट
लेते ही
मिनी बैग में रखे पर्स में ठूंसे
फिर, बैग से निकाल कर
सलवार-कुर्ती पहनी
चूड़ियाँ पहनीं
माथे पे बिंदिया लगाई
आँखों में काजल
होंठों पर लिपस्टिक
कान में झुमके
गुलाबी रंग का दुपट्टा निकाल कर
सादगीपूर्ण ढंग से सिर पे ओढ़ा
अंत में
बिस्तर पर पडी
अपनी सतरंगी मिनी फ्राक उठा
पर्स में ठूंस कर ... जाते हुए
बोली -
साहब, खुदा हाफिज ... !!

आँखें ...

तुम्हारी आँखें
मादक ...
जिज्ञासु ...
नशीली
हुई हैं !

क्या हुआ, क्या बात है
कुछ
बोलो
कब तक, खामोश रहोगी
बोलो कब तक !

क्या, मैं मान लूं ?
तुम्हारी
आँखों की बातें !
फिर मत कहना
मैंने, पूछा
नहीं !!

Sunday, February 5, 2012

क्यों, क्या हुआ है ?

शहर में, चहूँ ओर
गली गली में
सभी नुक्कड़ों पर
सायरन
लाल बत्तियां,
डंडे और जूतों की
सड़क पे -
खट-पट, खट-पट है !
क्यों, क्या हुआ है ?

हसीन कवि की कविताएँ ...

वह
बहुत अच्छी
कविताएँ लिख रही है
पर
थोड़ी-सी शंका है !
क्या ?

वह खुद लिख रही है
या
कोई और
उसके नाम से लिख रहा है !

क्यों, क्योंकि -
अक्सर सुनते रहे हैं
कि -
कई लोग
फास्ट पब्लिसिटी के लिए
नाम बदल कर
किसी हसीन नाम से भी लिखते हैं !!

वैसे, कोई बुराई नहीं है !
शब्द और भाव
तो पैदा करने ही होंगे !!
नहीं तो,
नाम कब तक काम आयेगा !!!

नन्हा चित्रकार ...

उसने कोरे कागज़ पे
दो लाल
तीन नीली
एक-एक
हरी, पीली, गुलाबी, जामुनी
आड़ी-तिरछी
लकीरें खींच दीं
फिर उनके बीचों-बीच
एक अंडा बना दिया
अंत में,
नीचे अपना नाम लिखकर
मुस्कुराने लगा !!

Saturday, February 4, 2012

हमकदम ...

चौथा आदमी
चौथा खम्बा
चौथा बन्दर
चौथा रास्ता
चौथा भरोसा
पहले
दूसरे
तीसरे
का हमकदम है ...
उम्मीदें ... नाउम्मीदों जैसी हैं !!

साहित्यिक गणित ...

भईय्या प्रणाम ...
आओ अनुज आओ, क्या ख़ास है ?
आपका आशीर्वाद है भईय्या !
अच्छा, कुछ ख़ास नहीं है !!
तो आओ, बैठो ...
आज तुम्हें कुछ नया सिखाते हैं !
जी भईय्या ...
लेपटॉप पर ... फेसबुक ...
अच्छा, तो ये तुम्हारी फ्रेंड लिस्ट है !
जी भईय्या ...
तो एक काम करो -
इसे माईनस, इसे प्लस, इसे प्लस
इसे माईनस, इसे माईनस, इसे माईनस
इसे लाईक, इसे कमेन्ट, इसे कमेन्ट, इसे लाईक
इसे छोडो, इसे छोडो, जाने दो, आगे बढ़ो ...
ठीक है, अब तुम इसी फारमेट में ...
ये क्या है भईय्या ... कुछ समझ नहीं आया !!
धीरे धीरे समझ जाओगे ... दो-तीन दिन में ...
ये कुछ और नहीं ... साहित्यिक गणित है !!!

वोट ...

सच ! हर बार की तरह
इस बार भी
उनकी मंशा ठीक नहीं है
बार बार
सिर्फ वोट की बात कर रहे हैं
वोट मांग रहे हैं
वोट हमें दो, कह रहे हैं
सिर्फ ... वोट ... वोट ...
कोई और बात नहीं !
उफ़ ! क्या किया जाए ??

क्या कहने ...

जन्मदिन ...
शादी की सालगिरह ...
सच ! क्या कहने !!
किसने रोका है तुझे
और कौन रोकेगा तुझे
आज का दिन ...
है तेरा, जब तलक चाहो
तुम मचलते रहो !!!

Friday, February 3, 2012

अड़ियल ...

लोग कहते हैं कि तुम
अड़ियल हो !
क्यों हो ? किसलिए हो ?
किसने कह दिया तुमसे
कि -
मैं अड़ियल हूँ !!
शायद, कहने वालों की समझ -
नासमझ है !!
क्यों, क्योंकि -
मैं अड़ियल नहीं हूँ !!!
सैद्धांतिक हूँ !
सत्यवादी हूँ !
तुम, उनकी छोडो ! मेरी छोडो !!
ये बताओ
क्या -
सैद्धांतिक, सत्यवादी होना
अड़ियल होना है ???

Thursday, February 2, 2012

चाहत ...

तुम दौड़कर, सिमट आईं
बांहों
में !

मैं खामोश, खुद को, और तुम्हें
संभालता रहा !

तुम निढाल हुईं, बिखरने लगीं
रेत
सी !

तुम्हें, सहेजना, संभालना पडा
बांहों में !

सच ! कैसे बिखरने देता, तुम्हें
चाहत जो है !!

हे राम !

गूंगे-बहरे-अंधे
मिलकर तीनों अमर हो रहे
हे राम !!

गूंगे-बहरे-अंधे
मिलकर तीनों नांच-गा रहे
हे राम !!

गूंगे-बहरे-अंधे
बंदर-बाँट में मस्त हो रहे
हे राम !!

Wednesday, February 1, 2012

... वो मेरा क्यूँ है ?

न जीवन की डोर उधर है, न जीवन की डोर इधर
सच ! जिसको देखो, वो कटपुतली-सा नाचे बस है !!
...
कौन जाने, इस जग में, क्या कीमत है उसकी ?
जो जिस दाम, बिक जाए, कीमत है उसकी !!!
...
अब कुछ बचा नहीं है, इसलिए पसरा सन्नाटा है
कहो, क्या ढूँढते हो 'तुम' अब भी इस सन्नाटे में ?
...
अब क्या करूँगा, मैं होकर खुद का
जब तेरा होकर भी, तेरा हो न सका !
...
सच ! न तो मैं उसका, औ न ही वो मेरा है
फिर भी, मैं उसका और वो मेरा क्यूँ है ?