Friday, January 25, 2019

क्या वफ़ा, क्या बेवफाई, सब सिलसिले हैं .... !

01

भक्ति क्या है ?
भक्ति एक कला है, और एक गुलामी भी है

बहुत कम लोग होते हैं जो
"भक्ति योग" में जन्म लेते हैं, और जो

एक बार "भक्ति योग" में जन्म ले लेते हैं
वो फिर,
जीवन भर भक्ति में ही रहते हैं

यह जरूरी नहीं, कि -
सिर्फ छोटे-मझौले लोग ही भक्त हो सकते हैं

बड़े, उनसे बड़े, और उनसे बड़े ... सबसे बड़े ....
भी भक्त हो सकते हैं,

हम, आज देख रहे हैं सबसे बड़े लोगों को
भक्त के रूप में .... ??

02

क्या वफ़ा, क्या बेवफाई, सब सिलसिले हैं ....

क्या इतना काफी नहीं है
कि -
वो हमें भूले नहीं हैं !

03

ऐसा भी क्या कुसूर था जो भुला दिया हमें
किसी न किसी काम तो आ ही रहे थे हम !

04

वक्त भी साथ है, और हवाएँ भी
जलाओ बस्तियाँ, देखें तो जरा बुझाने कौन आता है !

~ उदय

Friday, January 11, 2019

10% आरक्षण .... इसमें संशय कैसा ?

जो लोग यह सोच रहे हैं कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% है इसलिए जो 10% सीमा बढ़ाई गई है वह सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाएगी ... उनका यह सोचना मात्र भ्रम है।

क्योंकि इस बार संविधान में संशोधन के साथ आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई है / बढ़ाई जा रही है, इसलिए खारिज होने की संभावना नहीं के बराबर है।

यदि सरकार द्वारा कोई महत्वपूर्ण कानूनी चूक की गई होगी या की जा रही होगी, तब ही खारिज होने की संभावना है अन्यथा बिल्कुल नहीं .... लोग अपने अपने भ्रम दूर रख दें।

चिंता का विषय सिर्फ इतना है कि आर्थिक रूप से पिछड़े होने का जो आधार आठ लाख रुपये सालाना आय व पांच एकड़ जमीन का पैमाना रखा गया है या रखा जा रहा है, वह है ... क्योंकि .....

उक्त पैमाने पर .. जो वास्तविक रूप से आर्थिक गरीब हैं उन्हें न्याय मिल पायेगा अथवा नहीं, इसमें संशय है ?

उक्त संदर्भ में मेरा मानना तो यह है कि जिनकी सालाना आय तीन लाख से कम है तथा जमीन दो एकड़ से कम है उन्हें रखा जाना चाहिए .... ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Tuesday, January 1, 2019

बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे .... !

01

जरा पत्तों की मजबूरियाँ भी तो तुम समझो 'उदय'
हवा का झौंका जिधर चाहेगा उधर उड़ना पड़ेगा !

02

अभी बिजूका तक तो लगा नहीं है खेत में
विपक्षी.. बेवजह ही चैं-चैं चैं-चैं कर रहे हैं ?

03

किसी की किसी से कोई साहूकारी नहीं
हार भी तेरी है और जीत भी तेरी ?

04

उन्हें चैन न मिलेगा तक तक
जब तक वो खुद को उस्तरे से छील नहीं लेंगे
वो बंदर हैं,
यही तो पहचान है उनकी ?

05

न कर गुमां.. सिर्फ अपनी कौम पर
तेरी बस्ती में कई कौमों का डेरा है !

06

ठंड से कुछ तो सबक ले लो हुजूर
कहीं.. मई की गर्मी जान न ले ले ?

07

सादगी भी बे-फिजूल रही, औ कमीनापन भी
उन्हें.... झूठ ही कुछ ज्यादा पसंद था !

08

आईना तो आईना ही रहेगा 'उदय'
भले चाहे तुम मुँह फेर लो उससे !

09

क्या खूब जुगलबंदी है भक्त औ भगवान की
झूठ का हवन है औ झूठ का ही स्वाहा है ?

10

बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे
वो पत्थर ... जो वक्त के हाथों में हैं ?

अगर चाहो
तो छटपटा कर निकल जाओ, जैसे-तैसे

रच लो खुद को .... अपनी शर्तों पर

कौन जाने, कौन-सा पत्थर
कब 'खुदा' हो जाये !

~ उदय