Tuesday, January 31, 2012

मंशा ...

ताउम्र, जो दौलतें समेटते रहे थे 'उदय'
मौत के वक्त, उनके भी हाँथ खाली थे !

फिर भी न जाने क्यूँ, होड़ मची है आज
कोई तो समझाए, उसकी मंशा क्या है ?

... क्यूँ न आँखें ठहरें ?

वजह जो भी रही हो, चाहतों में नफरतों की
पर, खामोशियों में क्या छिपा रक्खा है तूने ?
...
सच ! क्या करूँगा, अब मैं 'खुदा' होकर
जब दोस्त होकर भी, दोस्त हो न सका !!
...
न जाने किस घड़ी, तूफ़ान बस्ती में चला आए
किसी न किसी हाँथ को, तुम थाम के चलो !!!
...
तेरी खामोशियाँ में भी तूफानों सी सरसराहट है
कहो, गर कुछ नहीं, तो इतना सन्नाटा क्यूँ है ?
...
सच ! ख़्वाब है, या हकीकत है जमीं पे
कहो, इस नूर पे, क्यूँ न आँखें ठहरें ?

थैंक-यू ...

एक छोटे साब
बड़े साब के आफिस में
नॉक करते हुए -
मे आई कम-इन सर
कहते हुए
जैसे ही घुसे -
ठीक वैसे ही, बड़े साब -
यू ... यू आर ...
इडियट
नानसेंस
केयरलेस ...
यू आर ... सस्पेंडेड !!
वट व्हाय सर ?
नो ... नो ... नो ... गेट आऊट ...
थैंक-यू सर !!!

Monday, January 30, 2012

... खुद नहीं शर्मिन्दा है !

रूठ कर तुमने अच्छा न किया
सच ! मैं बुरा था, तो कह देते !!
...
दिल तो कहता है, कि मैं तेरा हो जाऊं
सच ! अब मन की, कैसे मैं न कह दूं !!
...
'खुदा' होना था, तो हो जाते, किसने रोका था ?
कम से कम, दोस्ती का हुनर तो ज़िंदा रखते !!
...
सच ! लोग हैं कि दुश्मनों से आस लगाए बैठे हैं
जी तो करता है, कि हम भी दुश्मन हो जाएं !!!
...
झूठी शान में भी वो शान से ज़िंदा हैं
किसी को क्या, जब वो खुद नहीं शर्मिन्दा है !

प्रेम ...

सिर्फ
एक वजह नहीं है
तुम्हारे प्रति आकर्षण की
कि -
तुम खूबसूरत हो !
एक वजह और भी है
कि -
तुम, मुझे -
अच्छी लगती हो !
जिसे लोग क्या कहते हैं ?
यह तो मैं नहीं जानता
पर, हाँ
जानता हूँ, तो सिर्फ इतना
कि -
मुझे, तम्हारी -
आँखों से
मुस्कान से
बातों से, तुमसे, प्रेम है !!

रण है ! विजय हैं हम !!

हर घड़ी, हैं मोर्चे पे हम
रण है ! विजय हैं हम !!

दिलों में धडकनें हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

खौफ का नाम हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

आख़िरी आस भी हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

जुनूं हैं, जान भी हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

विश्वास के प्रतीक हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

फक्र का दौर भी हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

वतन
की आन हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

वतन की शान हैं हम
रण है ! विजय हैं हम !!

Sunday, January 29, 2012

हम हैं, विजय है !!

नक्सली खौफ़ है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

आतंकी दौर है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

बारूदी
ढेर है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

पहाडी डगर है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

ठंड, गर्म, बरसात है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

दहशत का माहौल है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

नक्सली खौफ़ है तो क्या ?
हम हैं, विजय है !!

... कैसे मानूं कि तुम सच्चे हो !!

दोस्त होकर भी, फिर मुंह फुला के बैठा है
देखो तो, कितना सच्चा - कितना झूठा है !
...
सच ! कितना झूठा हूँ, मैं न पूछूंगा तुझसे
पर, तू कितनी सच्ची है, ये तो बताते जा !!
...
दिल को तोड़ना तो बहुत आसां है यारो
जोड़ के दिखाओ तो कुछ बात बने !
...
न तो तुम झूठे हो, न ही मैं सच्चा हूँ
पर, कोई तो हो जो ये फैसला कर दे !
...
न तो कुछ कहते हो, न ही कुछ सुनते हो
अब कैसे मानूं कि तुम सच्चे हो !!

Saturday, January 28, 2012

फूट ले ...

अबे ऐ ...
तू ...
हाँ तू ...
इधर आ ...
हाँ हाँ तू ...
इधर-उधर क्या देख रहेला है ...
और कौन है रे ... यहाँ पर ...
जो तू ... इधर-उधर ...
साले ... दूं क्या एक कान के नीचे ?
चिरकुट कहीं का ...
सुनता नहीं है ... इशारा नहीं समझता ...
चल चल ... बहुत हो गया ...
काय को खडा है यहाँ पे ?
फ़ोकट-फंड़ी ... साला ...
देखता नहीं ... अपुन आ गयेला है ...
बोले तो पुलिस ...
चल चल निकल ले ... नई तो ... कान के नीचे ...
जी साब ... जी साब ...
चल चल ... फूट ले ... फूट ले ... फूट ... !!

अच्छा-सच्चा ...

अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से
कभी-कभार, एकाद बार
लड़ जाओ
भिड़ जाओ
कुछ तीखा-तीखा बोल जाओ
फिर देखो
वो
कितना अच्छा-सच्चा है
क्या मन में है
क्या दिल में है
दोस्त है
दुश्मन है
सब का सब सामने आ जाएगा
या तो सीधे-सीधे
या किसी माध्यम से ... जय हो !!

एक टेलीफोनिक कविता ...

हैलो ...
एं ...
ऊं ...
हाँ ...
एं ...
एं ...
हाँ ...
ऊं ...
हाँ ...
हाँ ...
हाँ ...
ओके बाय !!

सहमत-असहमत ...

यह जरुरी, आवश्यक नहीं है
कि -
हर एक आपसे सहमत हो
भला सहमत हो भी, तो क्यों हो ?
उसके विचार, तर्क
आपके विचारों -
तर्कों से भिन्न हो सकते हैं !
जब
दो लोगों के आपस में
विचार व तर्क भिन्न होंगे
तो असहमत होना जायज है !
सहमती या असहमती के लिए
सही अथवा गलत होना जरुरी नहीं है
विचारों व तर्कों का
आपस में भिन्न होना पर्याप्त है !!

इंतज़ार ...

उसके इंतज़ार में
आज गुस्से ही गुस्से में
उसका नाम
तीन बार, कोरे कागज़ पे
लिख लिख कर -
फाड़ कर फेंक दिया !
जैसे ही
चौथी बार नाम लिखा
उसे, सामने देख
चुपके से जेब में रख लिया
और क्या करता ?
प्यार जो करता हूँ उससे !!

Friday, January 27, 2012

हे कवि ! महाकवि !!

हे कवि ! महाकवि !!
काश ! मैं भी तुम-सा हो जाऊं !!
राह बनाऊँ
राह दिखाऊँ
सारे जग को -
उस पे चलना सिखलाऊँ !
हे कवि ! महाकवि !!
काश ! मैं भी तुम-सा हो जाऊं !!

... ईमान को भी बेच के खा जायेंगे !

सुनते हैं कि वो सुगर-पेशेंट है यारा ... फिर भी
न जाने क्यूँ ? कड़वी बातों से परहेज करता है !
...
हर बार की तरह, इस बार भी बहुत खुश है
मुझे बुरा कह कर, खुद अच्छा बन गया है !
...
कहीं कहीं तो अक्ल पे, शक्ल का पर्दा है
तो कहीं, शक्ल-औ-अक्ल दोनों बेपर्दा हैं !
...
सच ! उसकी ये आदत भी काबिले-तारीफ़ आदत है
किसी का नाम पूंछो तो, वो खुद का नाम रखता है !
...
झूठी ख्वाहिशों में वे कुछ इस कदर डूबे हुए हैं
लग रहा है, ईमान को भी बेच के खा जायेंगे !

किसान का मकान ...

एक के ऊपर एक
फिर
एक के ऊपर एक
ईटें जमा कर
उन पर मिट्टी का गारा चढ़ा कर
किसान
सुकूं से बैठा था !

ठीक उसी पल
घने मेघ उमड़ आए, और -
बारिश की बूँदें टपकने लगीं
देखते ही देखते
मिट्टी का गारा, ईंटों से -
निकल कर, पानी संग बह गया !

फिर से
पहले की तरह, एक बार और
किसान का मकान
बनते बनते रह गया !
और
देखते ही देखते
उसकी मेहनत पर पानी फिर गया !

अब फिर से उसे
पहले की तरह, किसी दिन
मिट्टी खोद कर
गारा -
और मकान बनाना पडेगा
कहीं, फिर से
उस दिन भी बारिश न आ जाए ... !!

Thursday, January 26, 2012

योगदान ...

मैं
पागल नहीं हूँ
और न ही कोई सिरफिरा हूँ
फिर भी
हर पल, हर क्षण, हर घड़ी
कुछ न कुछ चीखते रहता हूँ !

ये चीखें -
उनके लिए नहीं हैं
जो अपने हांथों से
अपने कानों में रुई ठूंस के
कंटोपा पहन के बैठे हैं !

ये चीखें -
उनके लिए भी नहीं हैं
जो अंधे हैं -
या
जान-बूझकर अंधे बने हुए हैं !

ये चीखें -
सिर्फ उनके लिए हैं
जो
गलत राह पकड़ के
उन अंधे-बहरों की ओर
झूठी उम्मीदों संग बढ़ रहे हैं !

वो भी सिर्फ इसलिए
कि -
उन्हें रोकने का
कम से कम
एक प्रयास तो किया ही जाए
कहीं, वे भी -
उनके जैसे अंधे-बहरे न बन जाएं !

क्यों, क्योंकि -
इस तरह उनके जैसा बनकर
स्वतंत्रता में
गणतंत्रता में
उनका भी योगदान
उनके जैसा, नगण्य ही रहेगा !!

... वो सहम के मिलते हैं !

कुछ पल को ही बिखरा है, ये सन्नाटा
क्यूँ लगता है मुझको ये सदियों-सा है ?
...
दिलों की धड़कनें, तूफ़ान सी चल रही हैं
कहीं तुम तो नहीं, जो उन्हें भाने लगे हो !
...
क्या गजब की शान-औ-शौकत है उसकी
देख के लगता नहीं कि चोर-उचक्का है !
...
गम नहीं है, कि वो दोस्त होकर भी जलते हैं
खुशी इस बात की, कि वो सहम के मिलते हैं !
...
सच ! गजब के दस्तूर हुए हैं मेरे मुल्क में 'उदय'
उनकी बातें झूठी हैं, और अपनी बातें सच्ची हैं !

Wednesday, January 25, 2012

... गर्व से फूले हुए हैं !!

देख के लगता नहीं, वो बड़ा बेईमान है
हाँथ में तिरंगे से, आज उसकी शान है !
...
सच ! बड़ी अजीबो-गरीब दुनिया है 'उदय'
शेर की खाल में शान से खड़ा भेड़िया है !!
...
क्या खूब बन्दर-बाँट हुई है तमगों की
कुछ डरपोंक भी, गर्व से फूले हुए हैं !!
...
कहें तो ठीक, न कहें तो ठीक
उनकी अपनी बातें हैं !!
...
आज उसने तिरंगा फहराने की ठानी है
भले ही रोज करता रहा वो बेईमानी है !

... तुम ही तुम नजर आईं !!

नीलामी में, न जाने कौन-सा जूता, करोड़ों में बिक जाए
पांव से हाँथ में, हाँथ से मंच पे जाते ही कीमती हो जाए !
...
तुम न होकर भी, स्मृतियों में अंकुरित रहीं थीं
सच ! आज तन्हाई में तुम ही तुम नजर आईं !!
...
अब किसे देशी, किसे विदेशी समझें
जिसको देखो, वही मौक़ा परस्त है !
...
काश ! जिंदगी की डोर, इतनी नाजुक न होती
तो हम जैसा चाहते, वैसा खींच लेते !
...
दिलों की धड़कनों पर, जोर अपना कब रहा है
'खुदा' जाने तुमको देख के, वो क्यूँ मचलती हैं !

Tuesday, January 24, 2012

वे ऐंसे क्यूँ हैं ?

सुनते हैं,
उनकी कोई आल-औलाद नहीं है
फिर भी
वे किसी को -
प्रेम भरी नजर से नहीं देखते !
सुनते हैं
उन्होंने दौलत भी खूब जमा कर रक्खी है
फिर भी
वे किसी भिखारी को -
अन्न का एक दाना तक नहीं देते !
वे जब भी मुझे नजर आते हैं
मेरे मन में
सवाल कौंधने लगते हैं
कि -
वे ऐंसा क्यूँ करते हैं ? वे ऐंसे क्यूँ हैं ??

Monday, January 23, 2012

चैन ...

ताउम्र बेचैन रहे
दौलत के लिए, दौलतें समेटते रहे
दौलत का ढेर -
लगाते रहे - लगाते रहे !
जैसे ही सोचा -
चैन से जीवन जिया जाए
दौलती लाड-प्यार में बिगड़े
बच्चों की बेवफाई ने
उनका, चैन से जीना -
हराम कर दिया !
और तो और, अब वे उन्हें
चैन से मरने भी नहीं देंगे !!

... समझदार पीढी है !!

आज हर आदमी की जेब में एक आईना है
उसे खुद की कुरूपता से क्या लेना-देना है !
...
कुछ गूंगे, कुछ अंधे, तो कुछ बहरे हैं
क्या शहर इसी को कहते हैं ?
...
बन्दर हो, या हो मदारी
करतब नहीं होगा, तो ताली नहीं होगी !
...
हुनर का फर्क तो ज़माना कर ही लेगा
क्यूँ न दोनों ही हांथों से, एक-एक मूर्ती तराशी जाए !
...
परम्पराओं की दुहाई देकर, लोग चेले बन रहे हैं
सुनते हैं, समझदार पीढी है !!

स्त्री होकर सवाल करती है ...



"बोधि प्रकाशन" से प्रकाशित स्त्री विषयक काव्य संग्रह - "स्त्री होकर सवाल करती हो ...!" आज प्राप्त हुई, बेहद खुशी हुई ... सर्वप्रथम इस पुस्तक से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी हमकदम मित्रों को बधाई व शुभकामनाएं ...
सांथ-ही-सांथ इस ऐतिहासिक "काव्य संग्रह - स्त्री होकर सवाल करती हो ...!" की सफलता के लिए अमिट, असीमित, अनंत शुभकामनाएं ...

मित्रों, इस संग्रह में देश के जाने-मानें १२७ रचनाकारों के सांथ मेरी भी रचनाएँ हैं ... आप निसंकोच इस ऐतिहासिक काव्य संग्रह को अवश्य पढ़ें ...

इसी संग्रह से कुछ पंक्तियाँ -
०१ -
" ...
स्त्री बोली - ना
( वह बोला - नखरे दिखाती है साली ... )
स्त्री बोली - हाँ
( वह बोला - चालू है यार ... )
... "
०२ -
" ...
कभी तू डूब जाता है मुझमें
कभी कहता है मुझे
डूब जाने को
फर्क क्या है, तेरे, या मेरे
डूब जाने में
... "
०३ -
" ...
एक देह है जो बिछी है
घर के दरवाजे से लेकर
रसोई, बैठक और बिस्तर तक
न घिसती है
न चढ़ता है मैल इस पर
... "

ब्रेक के बाद ... फिर कभी, कुछ नई पंक्तियों के सांथ ... !!
...
"स्‍त्री होकर सवाल करती है....!"/फेसबुक पर मौजूद 127 रचनाकारों की स्‍त्री विषयक कविताओं का संग्रह/संपादक डॉ लक्ष्‍मी शर्मा/पेपरबैक/संस्‍करण जनवरी 2012/पृष्‍ठ 384/मूल्‍य 100 रुपये मात्र (डाक से मंगाने पर पैकेजिंग एवं रजिस्‍टर्ड बुकपोस्‍ट के 50 रुपये अतिरिक्‍त)/बोधि प्रकाशन, एफ 77, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर 302006 राजस्‍थान।
संपर्क दूरभाष : 099503 30101, 08290034632 (अशोक)

गुमान ...

हम
न जाने कब, धीरे धीरे
चट्टान से
रेत के कण हो गए
खबर न हुई !

चलो अच्छा ही हुआ
हमें
चट्टान होने का जो गुमान था
टूट गया !

शायद
अब हम
टूटेंगे नहीं, सिर्फ बिखरेंगे
और फिर
खुद, सिमट भी जाएंगे !!

Sunday, January 22, 2012

... पासपोर्ट-वीजा की जरुरत नहीं है !

उन्हें जब से खबर हुई है कि हम लट्ठ भारती हैं
तब ही से वे, खुद को अशोक स्तंभ समझ रहे हैं !
...
वो सारी रात शमा जलाए इंतज़ार में बैठे रहे
उफ़ ! हम अंधेरे के इंतज़ार में बाहर खड़े रहे !
...
किसने कह दिया तुमसे, कि हम ज़िंदा हैं
अकड़ देख के समझ जाना था, हो-ना-हो लाश ही है !!
...
दो-तीन कविताएँ, और चार-पांच शेर, विदेश जा रहे हैं
सच ! उन्हें पासपोर्ट-वीजा की जरुरत नहीं है !!
...
आज हर आदमी की जेब में एक आईना है
उसे खुद की कुरूपता से क्या लेना-देना है !

... किसे, क्या फर्क पड़ता है !

अब मुझे, उससे कोई उम्मीद तो नहीं है
पर उसे, कुछ देने में, हर्ज भी तो नहीं है !
...
वजह हो भी - या न भी हो, क्या फर्क पड़ता है
दिल जो टूटा है, भला उसको क्या दिलासा दें ?
...
देश में वैसे ही ढेरों नुक्कड़ नाटक चल रहे हैं
एक और सही ... किसे, क्या फर्क पड़ता है !
...
आज हर आदमी की जेब में, तीन-चार चेले-चपाटे हैं
जो कुरूपता दिखलाये, उसे उससे क्या लेना-देना है !
...
क्यूँ करे ? वो भला चिंता किसी की
कौन-सा उसको, कोई पुरूस्कार लेना है !!

Saturday, January 21, 2012

सौवा भी सही !!

भईय्या ... आपने जो
सौ लोगों की लिस्ट बनाई है
उस लिस्ट में से
सिर्फ एक नाम हटाकर
लिस्ट में ...
कहीं पर भी, कोई और नाम !
मसलन ... मेरा नाम -
क्यूँ नहीं जोड़ देते ?

आखिर मैं भी तो लिखता हूँ
अब, आज के दौर में
किसे ? कितने लोगों को ?
मतलब है, अच्छे-बुरे से !
और अगर है भी -
तो क्या फर्क पड़ता है ?
एक-दो नाम -
आगे-पीछे हो ही जाते हैं !!

वैसे भी, मैं जिस नाम को -
हटाने को कह रहा हूँ !
उसे भी -
कहाँ चिंता है नंबरों की ?
न तो वो कुछ कहेगा
और न ही -
कोई और, कहने वाला है !!

सच कहूं तो, आप अपने -
दिल पे हाँथ रख के देख लो
भले मैं सगा न सही
पर, सगे से कम भी नहीं हूँ !
और तो और
शेष, निन्न्यान्वें लोग -
आपके, अपने ही तो हैं !
सौवा भी सही !!

Friday, January 20, 2012

... सदियों सा लगता है !

वक्त से कौन जीता है ? फिर भी हम लड़ रहे हैं
लड़ते-लड़ते, सुलह का कोई रास्ता ढूंढ रहे हैं !
...
जी तो चाहता है कि जी की सुन लें
पर, उनकी जी से डरते हैं !!
...
ये लड़ाई अभी थमने वाली कहाँ है 'उदय'
सुलह तो कोई चाहता ही नहीं है !!
...
दिलों के टूटने का हश्र, तुम क्या जानो 'उदय'
कुछ घड़ी का जलजला, सदियों सा लगता है !
...
गुजरते वक्त के सांथ, हम कहाँ से कहाँ आ गए हैं
अब क्या कहें, कहाँ तक और जाना है !!

... उन्हें जीत से मतलब है !

सच ! समय की पटरी पे, रोज-रोज दौड़ती जिंदगानी है
कभी बैलगाड़ी, कभी घोडागाडी, तो कभी रेलगाड़ी है !!
...
सच ! कहाँ खबर थी मुझे, कि - तुम चाहती हो !!
कहो, क्या तुमने कभी मुझसे कहा था ?
...
न हमने उनसे कुछ कहा, न ही उन्ने हमसे कुछ कहा
यूँ ही खामोशियों में सवेरा हो गया !
...
सारे जिन्दे तो फरेबी निकल गए हैं 'उदय'
एक अदद उम्मीद पत्थरों से है !
...
तुम बेवजह हिन्दू-औ-मुसलमानी जज्बात में उलझे हो
सच ! उन्हें वोट से मतलब है, उन्हें जीत से मतलब है !

बूढा ... कब तक ?

बूढा, एक बेसहारा ...
जाए तो जाए कहाँ ?
न घर, न कोई द्वार !
सड़क के किनारे
चाय की दुकान के
बुझ-से चुके चूल्हे के पास
कहीं दबे -
किसी अंगार की आंच -
की उम्मीद में ...
सामने, ज़मीन पर
सिकुड़ के सो गया है !
लगता है, आज की रात
बूढ़े की उम्मीद
कड़-कडाती ठंड से -
फिर से जीत जायेगी !
और
वह सुबह उठकर
एक और -
नया सवेरा देखेगा !
लेकिन -
इस तरह, कब तक ?

पूर्णता ...

सच ! जी चाहता है
तेरे -
चमकते
दमकते
ख़ूबसूरत चेहरे पर
कहीं, किनारे -
काजल का टीका लगा कर
माथे पर
एक सिंदूरी बिंदिया लगा दूं !
और कह दूं !!
सभी से
कि -
मेरी कविता पूर्ण हो गई है !!

Thursday, January 19, 2012

... हम भी 'खुदा' हो जाएंगे !

आज फिर जख्म मेरे हरे-भरे हो गए
ज्यों ही, अन्दर झाँका मैंने आप ही !
...
आज वह खुद ही चल कर बाजार में जा बैठा है
सच ! लग रहा है आज वो बिक जाएगा !!
...
वक्त के हांथों हम कुछ इस तरह तराशे गए हैं
हीरे-मोती नहीं हैं, फिर भी कीमती हो गए हैं !
...
सुना है, उसने खुद को बेचने की मन में ठानी है
न जाने कौन ? कब ? उसको उठा ले जाएगा !!
...
वक्त की चोटों ने तराश के मूरत बना दिया है
न जाने किस घड़ी, हम भी 'खुदा' हो जाएंगे !

लेखन एक कला है ...

“लेखन एक कला है ... शब्दों व भावों की रचना, लेख, कहानी, कविता, गजल, हास्य-व्यंग्य, शेर-शायरी, ये सभी समय समय पर की जाने वाली नवीन अभिव्यक्तियाँ होती हैं, अभिव्यक्तियों के भाव-विचार सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं, अत: इन अभिव्यक्तियों के आधार पर लेखक की मन: स्थिति का आँकलन करना निरर्थक है !”

... जख्मों को हवा-पानी मिल गया !

सच ! जो दुम दबा कर भागने, के बड़े फनकार थे
लो, आज उन्हें बहादुरी का मिल रहा पुरूस्कार है !
...
क्या पडी थी झांकने की, खुद के भीतर आप ही
बेवजह, जख्मों को हवा-पानी मिल गया !
...
सच ! ये डगर, मेरी बस्ती को जाती नहीं है 'उदय'
न जाने क्यूँ, फिर पग मेरे, इस डगर पे बढ़ रहे हैं !
...
काश ! वे जुबां की तरह, नजरें भी थाम लेते
ख़ामो-खां हमें आज उनका इंतज़ार न होता !
...
गप्प-गप्प सूतने से परहेज है किसे
जिधर देखो उधर, टपकती लार है !

ऐंसा क्यों है ?

कुछ सूना
कुछ तन्हा-सा है
मेरा मन
मेरा दिल
क्यों है ?
क्यों है ?
क्यों है ?
कोई तो समझाए
कोई तो बतलाए
कि -
ऐंसा क्यों है ??

Wednesday, January 18, 2012

गंगा-स्नान ...

एक दिन मैंने भी सोचा
क्यों न - मैं भी गंगा-स्नान करूँ !
इसलिए,
ब्रह्ममुहूर्त में पहुँच गया, मैं सीधे गंगा तट पे !
पर, वहां भीड़ देख चंडालों की
मैं थोड़ा-सा सहम गया !

सारे गंगा तट पर -
भीड़ बड़ी थी, चोरों और चंडालों की !
डुबक-डुबक ...
भीड़ देख कर मैंने सोचा -
नहीं, अभी नहीं वो घड़ी है आई
कि -
मैं गंगा-स्नान करूँ !!

आज, यहाँ गंगा तट पर -
पाप-पुण्य की बेला है
न जाने -
किसको, क्या मिलना - क्या देना है ?
चहूँ ओर ... डुबक-डुबक ...
चलो चलें ...
देखेंगे, फिर देखेंगे, फिर किसी दिन देखेंगे !
आज नहीं वो बेला है
सच ! आज, गंगा-स्नान झमेला है !!

... पूरी अंधेरी रात बांकी है !

न खता, न कुसूर, ... तो क्या हुआ ?
बेपनाह मुहब्बत की, सजा तो मिलनी थी उसे !!
...
लो, उम्मीदों के आख़िरी चिराग भी बुझ गए हैं 'उदय'
और अभी, पूरी अंधेरी रात बांकी है !!

दोस्ती पर से, एतबार कुछ इस कदर टूटा है 'उदय'
अब यकीं नहीं होता, किसी से हो दोस्ती मुमकिन !
...
आज फिर उन ने, पुरानी बात छेड़ी है
न जाने क्या ? अब उनके जेहन में पल रहा है !!
...
ये कैसी मर्जी है ?
जो उनकी उनकी है, औ अपनी अपनी है !!

Tuesday, January 17, 2012

.. ये राजनैतिक पेंच हैं !

बड़ा मुश्किल सफ़र है, आज का ये दिन मेरे यारा
किसी ने कह दिया है, मुझे तुम सांथ ही रखना !
...
जिनके पांव, घर-आँगन से बाहर नहीं पड़ते
उन्हें कैसे खबर हो, शहर में मेला लगा है !
...
लड़ रहे हैं, अड़ रहे हैं, भिड़ रहे हैं
पर शान से सब चल रहे हैं !
...
जिस तरफ सिक्के गिरें, नेता वहां मौजूद हैं
ये राजनैतिक दांव हैं, ये राजनैतिक पेंच हैं !!
...
आज की सब, शीत की लहरें नहीं हैं
गुन-गुनी धूप संग, है बिखरा सवेरा !

... उंगली काँप जाती है !

ऐंसी क्या बात हुई ? जिसपे तुझे एतराज है हुआ
इससे पहले भी तो मैंने, तेरे होंठों से बात पूँछी है !
...
'रब' जाने है, बहानों से कितना परहेज है हमें
वर्ना, झूठ बयानी में, जाता क्या है ?
...
'खुदा' की पाबंदियां, सर-आँखों पे रखते सभी है
मगर उन्हें हम मानते कब हैं ?
...
सच ! जी तो चाहता है, ढेरों ख़त लिख दें सनम को
मगर जब नाम लिखते हैं, तो उंगली काँप जाती है !
...
इश्क तो, हम भी करते हैं 'उदय'
ये और बात है, कि हम बयां नहीं करते !

Monday, January 16, 2012

... जिसे चाहें, उसे अपना बाप कहें !

रंज इस बात का नहीं है, कि वे पढ़कर क्यूँ खामोश हैं ?
खुशी इस बात की है, कि वे मेरे जज्बात पढ़ रहे हैं !
...
'खुदा' जाने, उन्हें सपोर्ट की जरुरत है भी या नहीं
ख़ामो-खां दिलों में हल-चल मची है !
...
है तो कुछ नहीं,
पर ऐंसा भी नहीं है, कि गुंजाइश नहीं है !
...
'खुदा' जाने, उसे क्या मिला है रूठ कर मुझसे
बस इतना सुना है, कि अब वो हंसते नहीं हैं !!
...
उनकी मर्जी है, वे मर्जी के मालिक हैं
जिसे चाहें, उसे अपना बाप कहें !

उम्मीद ...

साहित्यिक समर में
अब तक
समय समय पर
शब्द नहीं
चेहरे तलाशे जाते रहे हैं
चेहरे तलाशे गए हैं, चेहरे पूजे गए हैं !

पर, इस बार
साहित्यिक समर में
समय है
नए कदमों के सांथ
नई राह की ओर बढ़ने का
नए पदचिन्ह के निशां पीछे छोड़ने का !

उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं टटोले जाएंगे !
उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं पूजे जाएंगे !
उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं, शब्द विजित होंगे !!

... पहले जेबें भर लूं !

आज उसने कुछ इस सलीके से हाँ कहा है
लग रहा है जैसे, उसने कुछ कहा नहीं है !
...
तुम मुझको, और मैं तुमको भज लूं
ज़माना खराब है, पहले जेबें भर लूं !
...
गर, मौकापरस्ती से हमें परहेज न होता
तो भले होता वो आसमां में, पर हमारे हाँथ में होता !
...
खुशनसीबी उनकी, जो हम पतंगबाजी करते नहीं हैं
वर्ना, सिर्फ उड़ाते ही नहीं, काटते भी किसी को !
...
सुना है, सब्र का फल मीठा हुआ है
'सांई' ही जाने, कब चखने मिलेगा !

खंजरों का जखीरा ...

मेरा दोस्त
दिमाग में खंजरों का जखीरा रख
मुस्कुरा रहा है
और मुस्कुराते हुए आज फिर उसने
मुझे अपना कहा है !
गर
पहले की तरह
इस बार भी, मैं चुप ही रहा तो
तय है !
पीठ पे घाव -
औ ताउम्र को एक और निशां
मुझे मिल जाएगा !!

Sunday, January 15, 2012

प्रिंट मीडिया पर कडुवा सच ...

मूल पोस्ट :- प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के नाम एक पत्र ...

नं. १ ...

आज उसने फिर से
श्रेष्ठ लोगों की
एक नई लिस्ट बनाई है
भईय्या
दादा
मामू
काकू
गुरु
प्रणाम
चरण स्पर्श ...
कहने-सुनने वाले, लिस्ट में नं. १ पर हैं !
और, कहीं नहीं है नाम अपुन का
तो क्या हुआ !
ये भी क्या कम है ?
कोई तो हो
जो हो नं. २ पर
वर्ना
किसकी ओर इशारा कर
वो खुद को कह पाएंगे
कि -
वो हैं, नं. १ पर !!

... भूत कहलाने की ठानी है !

सच ! अब कहें तो कैसे कहें कि ये अपना शहर है
शहर के सारे 'खुदा', हमें मुसाफिर कहते फिरे हैं !
...
करने दो उन्हें आलोचनाएँ, उनका अधिकार है
एक राह पकड़ के चलना, अपना अधिकार है !
...
दुम कटे कुत्ते की दुम, सीधी कहाँ से हो
भौं-भौं है शान जिसकी, वो चुप कैसे हो !
...
जब से सुना है, साहित्यिक संसार में भूतों की गुणगानी है
ठीक तभी से हमने भी, जीते जी भूत कहलाने की ठानी है !
...
आज को कल, तो कल को आज, हो जाना है
ठहरना है किसे ? सभी को चलते जाना है !!!

Saturday, January 14, 2012

लग रहा है अब मकां मिल जाएगा !

आज फिर तन्हाई राहों में दिखे है
दिल कहे है कोई तो मिल जाएगा !

भोर की किरणें सुहानी लग रही हैं
लग रहा है जी मचल ही जाएगा !

ओस की बूँदें भी मन को छू रही हैं
लग रहा है तन पावन हो जाएगा !

धड़क रहा है, दिल मेरा, नाम तेरे
अब कहाँ, वो मेरा रह पायेगा !

चल पड़े हैं, पग मेरे, तेरी डगर को
लग रहा है अब मकां मिल जाएगा !!