Tuesday, September 2, 2014

मिजाज ...

गर, खुबसूरती का, कोई पैमाना होता तो हम बताते
कि इन आँखों में तुम किस कदर बस गए हो आज ?
कच्ची मिट्टी का घरौंदा है अपना
सच ! आगे जैसी तुम्हारी मर्जी ?

न ठीक से वफ़ा, न बेवफाई
कुछ ऐसे हैं मिजाज उनके ?

सच ! चुकता किया है उन्ने कोई पुराना हिसाब-किताब
वर्ना, मंहगाई के इस दौर में कोई दिल तोड़ता है आज ?
तेरी खुबसूरती पे, एतबार नहीं है हमें
ये आँखों का भ्रम भी तो हो सकता है ?

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