Friday, August 29, 2014

सिसकियाँ ...

न कोई हिसाब, और न कोई किताब
मर्जी के मालिक हैं, हम सरकार हैं ?

न जख्म, औ न ही हैं कहीं लहू के निशाँ
चोट दिल पे है सिसकियाँ कर रही बयाँ ?
तुझे देखूं, या डूब जाऊं तुझमें
है तेरा ये हुस्न शबाव पे आज ?

Monday, August 4, 2014

छोटी-सी कहानी ...

हम जानते हैं, ये टेड़े-मेड़े लोगों की बस्ती है 'उदय'
यहां सीधे-सच्चे, फिसल-फिसल के गिर पड़ते हैं ?

पता नहीं आज कौन किसके साथ है 
विकास का मुद्दा, एक अलग बात है ?
कुछ इस तरह का नाता है उनका हमसे
दोस्ती, वफ़ा, फरेब, सब साथ-साथ हैं ?
अपुन ने तो 'उदय', गुरुओं का गुरु बनने की ठानी है
क्योंकि - चेले-चपाटों की, होती छोटी-सी कहानी है ?
खुद को खुद ही तराश लो यारा
कहीं ऐसा न हो वक्त तराशने पे अड़ जाए ?

Friday, August 1, 2014

पनाह ...

आओ, गुरु-गुरु खेलें, तुम मुझे, औ मैं तुम्हें
गुरु-गुरु… गुरु-गुरु … कहें, बोलें, और सुनें ?
… 
यूँ तो हर मसले का हल है तेरे पास
पर, हम तेरा क्या करें,
तू ही तो असली मसला है आज ??
वो, ... .…….. खड़े हैं शान से देखो, ... ….…..  पर 
शान-औ-शौकत दिखाबी है, कर्ज में डूबी कहानी है ?
"पल-पल … किल-किल बहती नदिया …
बिलकुल वैसे … जैसे मन बहता है … ?"

जब तक, बारिश का, दुआओं का, औ 'रब' का भरोसा है
हमें, तुम्हें, सबको, तूफानों में भी पनाह मिल जाएगी ?
...