Monday, October 31, 2011

उधेड़बुन ...

क्यूँ मियाँ, किस उधेड़बुन में हो
क्या कर रहे हो
कुछ खबर है भी या नहीं !

कहीं जिंदगी को -
सांप-सीढ़ी का खेल तो नहीं समझ रहे हो
और
बेधड़क, कुछ का कुछ करे जा रहे हो !

सुबह सोचते कुछ हो
और शाम होते होते, कुछ और कर ले रहे हो
क्या माजरा है ?
क्या समझाओगे हमें ?

क्या यूँ ही, जिंदगी की फटेहाली चलते रहेगी
या फिर
कुछ, कर गुजरने का भी इरादा है !

बोलो, बताओ, कुछ तो मुंह खोलो मियाँ
कब तक, यूँ ही गुमसुम से बैठे रहोगे
और, मन ही मन, ख्याली पुलाव पकाते रहोगे !

धन्य हो प्रभु, आप सचमुच धन्य हो
आपकी लीला अपरम्पार है
खुद तो डूबोगे सनम -
संग संग हमें भी बहा ले जाओगे !

अब उठ जाओ, और कर लो प्रण
कि -
आज से, अभी से, करोगे वही -
जो सुबह सुबह घर से सोच के निकलोगे
वरना, जय राम जी की !!

Sunday, October 30, 2011

एक ठूँसू और ठोकू कविता ...

क्या लिखूं, ये सोच रहा हूँ
कुछ सूझ गया तो ठीक
वरना
कुछ भी लिखने के नाम पे -
ठोक दूंगा !

पढ़ने वालों की भी कोई कमी नहीं है
वैसे भी
ज्यादा से ज्यादा गिने-चुने पाठक ही तो -
पढ़ने आते हैं
आएंगे तो ठीक, और नहीं आए, तब भी ठीक !

लेकिन, किन्तु, परन्तु, पर
कुछ न कुछ लिखने की -
भड़ास तो निकल ही जायेगी !

तो लो भईय्या तैयार हो जाओ
आज
जब मन नहीं हो रहा है -
तब भी ठूंस रहा हूँ
अगर नहीं ठूंसा तो, न जाने कब तक
बेचैनी बनी रहेगी !

बेचैनी दूर कैसे हो
ये तो आप भी भली-भाँती समझते ही हो
कि -

एक कवि -
जब तक दो-चार लोगों को, पकड़-पकड़ के
अपनी कविताएँ न सुना दे, तब तक !

एक नेता -
जब तक सुबह से शाम तक
दो-चार लोगों को चूना न लगा दे, तब तक !

एक नारी -
जब तक दिन में, सात-आठ बार
लिपस्टिक-पावडर न पोत ले, तब तक !

एक प्रेमी -
जब तक अपने माशूक के घर-मोहल्ले के
दो-चार चक्कर न लगा ले, तब तक !

एक फेसबुकिया -
जब तक दो-चार महिलाओं के फोटो और पोस्टों पर
आठ-दस लाईक व कमेन्ट न ठोक दे, तब तक !

खैर, यह सिलसिला तो चलते ही रहेगा
न थमेगा, बस बढ़ते रहेगा
इसलिए, फिलहाल, यहीं ब्रेक लगाते हैं
कल की कल देखेंगे -
और परसों की परसों, जय राम जी की !!

Saturday, October 29, 2011

आलिंगन ...

कहो, कब तक ?
मुझे तुम, यूँ ही -
समेटते रहोगे
लपेटते रहोगे
सहेजते रहोगे
अपनी बांहों में, बोलो -
कब तक ?

कब तक
तुम्हें मेरा आलिंगन
यूँ ही
सुकूं देता रहेगा !
और कब तक तुम
यूँ ही
लिपटे रहोगे मुझसे
क्या, किसी दिन
तुम्हारा मन -
नहीं भर जाएगा, मुझसे ?

शायद ! मेरी अंतरआत्मा होगी !!

मेरे अन्दर
कोई
चुप-चाप सो रहा था
या यूं कहें, सो रही थी
एक दिन
मेरी उस पर नजर पड़ गई
मैंने देखा
कि -
ये कौन सो रहा है, वो भी मेरे अन्दर !

फुर्सत से ...
जब मैंने उसे आवाज दी
वह
हिली-डुली
और करवट बदल कर सो गई
मुझे डर सा लगा
छोडो, बाद में देखेंगे, सोचकर
वापस
अपने काम-धंधे पर लग गया !

एक दिन
फिर
अचानक मेरी नजर उस पर पडी
मैं थोड़ा फुर्सत में था
इसलिए
इस बार उससे भिड़-सा गया !

वह
खामोश, गुस्से में मुझे देखने लगी
आँखें लाल
बाल बिखरे हुए
चेहरे पे असीम गुस्सा
उसे देख कर
मुझे डर सा लगा
लगा ऐसे, जैसे
कहीं, वह गुस्से में -
कुछ कर न दे
और मुझे लेने-के-देने न पड़ जाएं !

फिर से मैं, कौन लफड़े में पड़े, सोचकर
दूर हट गया
पर, अब, कुछ डर, कुछ जिज्ञासा -
बन रही है, जानने, समझने की
वह कोई और नहीं -
शायद ! मेरी अंतरआत्मा होगी !!

सहजता ...

आज के दौर में
सहज होना कठिन है
या फिर
लोग सहज होना नहीं चाहते
सोच रहा था
सोचते सोचते सोचा
कि -
शायद ! लोग
सहज होना ही नहीं चाहते !
इसके पीछे कोई वजह होगी
फिर यह सोचने लगा
पर, नतीजतन यह लगा
कि -
जो लोग खुद को
थोड़ी-सी भी ऊँचाई पर -
समझते हैं
महसूस करते हैं
या होते हैं
वे सहज होना ही नहीं चाहते
क्यों, क्योंकि -
सहज होने से, शायद
वे खुद को -
ऊंचा न महसूस कर सकें !

आम और ख़ास में फर्क ...

मैं पेड़ पे लटका हुआ आम हूँ
आम हूँ तो हूँ
खुद-ब-खुद, ख़ास कैसे हो जाऊंगा
तब तक, जब तक
कोई मुझे पेड़ से तोड़कर
किसी एयर कंडीशन शो रूम तक -
नहीं पहुंचाएगा !
और जब एयर कंडीशन शो रूम में -
पहुँच जाऊंगा
तो खुद-ब-खुद ख़ास हो जाऊंगा !
बस एक बार ख़ास होने -
तक की बात है
जैसे ही ख़ास हुआ
फ़टाफ़ट बिक जाऊंगा
खरीददार खड़े होंगे
बोलियाँ लगेंगी
मुंह माँगी कीमत मिल जायेगी
बस, यही फर्क होता है
आम और ख़ास में
आम की दो कौड़ी भी कीमत नहीं होती
और ख़ास की -
सच ! मुंह माँगी कीमत हो जाती है !!

Friday, October 28, 2011

टुच्ची हरकतें ...

सच ! होता है अक्सर
लोग -
पंदौली दे दे कर
काँधे पे बिठा बिठा कर
पीठ पे लाद लाद कर
हाँथ पकड़ पकड़ कर
छोटे
हलके
टुच्चे
लोगों को भी
बहुत बड़ा -
बहुत बड़ा आदमी बना देते हैं !
ऐंसी मिसालें -
एक नहीं अनेकों मिल जायेंगी !
दुःख तो तब होता है
जब
इन टुच्ची हरकतों के बीच में
हुनर
काबिलियत
मेहनत
कहीं न कहीं दब के रह जाती है
पिछड़ के रह जाती है !
फिलहाल तो -
टुच्ची हरकतों को सलाम !!

हुनर ...

हुनर की तो कम से कम
आज तुम हमसे बातें न करो
हमें मालूम है
कि -
हुनर क्या होता है !
एक समय सुनते थे ...
कि -
हुनर के भी अपने मसीहा हैं !
हुनर के भी अपने सलीखे हैं !
हुनर के भी अपने तजुर्वे हैं !
हुनर की भी अपनी कहानी है !
पर,
आज का हुनर, अपने आप में -
बेमिसाल है
बेजोड़ है
अकाट्य है
क्यों, क्योंकि -
वह
चमचागिरी
जी हुजूरी
भाई-भतीजावाद, से लबालब है !
इन जैसे हुनरों के फनकार
आज
खुद-ब-खुद, बन बैठे सरकार हैं !!

मरने के बाद ...

अब मैं बहुत याद आऊँगा
बहुत ही जियादा याद किया जाऊंगा
क्यों, क्योंकि -
मैं अब मर गया हूँ
है न कुछ अजब विडम्बना
कि -
मैं जीते जी कम याद किया गया
मरने के बाद -
बहुत ही जियादा याद किया आऊँगा
देख लो, याद आ रहा हूँ
मरते ही सबको याद आ रहा हूँ
याद आते रहूंगा ...
जन्मदिन के बहाने
जन्म शताब्दी के बहाने
पुण्यतिथि के बहाने
अक्सर गोष्ठी-संगोष्ठी होते रहेंगी
मेरे नाम पर ...
मैं एक ऐंसी साहित्यिक दुनिया का -
जीव, निर्जीव रहा हूँ
जहां -
अक्सर मरने के बाद
याद किये जाते हैं
पूजे जाते हैं, किसी न किसी बहाने ... !!

आदत ...

कब तक बैठे रहें
हम इंतज़ार में उनके
और कब तक देते रहें,
दिलासा खुद को
कि -
वो आएंगे, रहे होंगे ...
बहुत हुआ अब इंतज़ार, उनका !
जी चाहता है
क्यूं
आज से ही आदत बदल ली जाए
गर वो गए, दस मिनट में
तो ठीक है
वरना
बेहिचक, कोई और
नंबर घुमा लिया जाए !!

Thursday, October 27, 2011

सुलगती आग ...

सच ! मुझे न थी खबर
कि -
मेरा अस्तित्व सूखी लकड़ी सा भी है
कभी सोचा भी नहीं था
कि -
जिस दिन जलूँगी, बस जलते रहूँगी
हाँ, याद है वो रात, जब तुमने
कड़कड़ाती ठण्ड में
माचिस की तिली से सुलगाया था मुझे
तिली के स्पर्श ने -
मुझे भभका दिया था
तब से अब तक सुलगी हुईं हूँ
कभी दबे अंगार की तरह
तो कभी भभकती आग की तरह
फर्क होता है तो सिर्फ
तुम्हारे होने, और न होने का
तुम्हारे होने पर -
भभकती
सुलगती
दहकती
आग होती हूँ
और न होने पर दबा अंगार होती हूँ ... !!

... खुदगर्जी सर-आँखों पे है !!

हम तो नहीं थे उनके, फिर भी उनको यकीं था हम पर
न जाने क्या बात थी, जो उनके जेहन में थी !!!
...
जी तो चाहता है कि फना हो जाऊँ
पर सोचे फिरे हूँ किस पर होऊँ !
...
मैं उनका नहीं हूँ, ये तो खबर है मुझको
क्या उनको खबर है कि वो मेरे नहीं हैं !
...
न तो उसका था, और न ही खुदी का था
जिसने दिल से चाहा, मैं तो उसी का था !
...
सच ! कोई कहता भी रहे, मुझे तुमसे मुहब्बत है
मत करना यकीं, जब तक खुद पे एतबार न हो !
...
बहुत मुश्किल से सम्भाला है खुद को
कैसे कह दूं, मोहब्बत नहीं है तुम से !
...
गरीबी, लाचारी, बेचारी, और जवां खुबसूरती
क्या कहने, अब कोई धर्म-कर्म की बातें न करे !
...
तीन मरे, पांच मरे, हेडलाइंस बन गई है 'उदय'
उफ़ ! आज मौत की खबरें, सुर्ख़ियों में हैं !
...
क्या गजब रंगरेज हुआ है नेता हमारा
उफ़ ! सुबह-शाम खुदी को रंगता दिखे है !
...
जरूरतें, जरूरतों को जन्म दे रही हैं
उफ़ ! खुदगर्जी सर-आँखों पे है !!

... वजह कुछ तो होगी, आशिकी की !

फेसबुक भी, मतलबियों की बस्ती है 'उदय'
सच ! बहुत अपनी वाल से बाहर नहीं आते !
...
जूते उठाने के हुनर ने उसे मंत्री बना दिया
अब उसे जन भावनाओं की परवा नहीं है !
...
कम से कम आज तो नसीबों की बातें न हों
सुनते हैं, पत्थर भी पूजे गए हैं !
...
कुछ लोग लिखते तो बहुत धांसू हैं
अफ़सोस ! छपते नहीं हैं !!
...
आज उसे रंज हुआ है, मुझसे बिछड़ कर
सच ! कल तक तो वो बड़े घमंड में थे !!
...
मैंने उनके नाम, ढेरों पैगाम लिख छोड़े थे
उन्हें फुर्सत कहाँ थी, जो उन्हें पढ़ भी लेते !
...
सच ! कमबख्त ये क्या मुहब्बत है
वो होती तो है, पर होती नहीं है !!!
...
जी तो चाहता था, मुहब्बत कर लें हम
पर, उनकी हाँ पर भी हम खामोश रहे !
...
जिन पे फना होने को, हम आतुर हुए थे
कहाँ थी खबर कि वो भी हम पे फना हैं !
...
उम्मीद तो नहीं थी 'उदय' वफ़ा की
वजह कुछ तो होगी, आशिकी की !

Tuesday, October 25, 2011

... रौशनी बन जगमगाऊँगा !!

'रब' ने चाहा तो आज मैं भी दीप बन जाऊंगा
किसी के ख्यालों में रौशनी बन जगमगाऊँगा !
...
खुदी के कद को, इतना बढ़ा लो 'उदय'
लोग देखें तो लगे, आसमां हांथों में है !
...
जी तो चाहे है कि मुहब्बत कर लूं
पर सोचता हूँ, कि किस से करूं !!
...
जी चाहता है मेरा भी, दीप जलाऊँ
तुम होते, तो शायद दीवाली होती !
...
सिर्फ दिल की लगी होती, तो बुझ गई होती
ये आग, जेहन में लगी है, कैसे बुझने दूं !!
...
हर रंग में रंगने को बेताब हूँ
मगर जिद है, तेरे हांथों से !
...
तुम्हारे होने का असर, अब पूछो हमसे
पूछना है तो, होने का असर पूछो हमसे !
...
लोग हमसे उमड़ उमड़ के मिल रहे थे 'उदय'
बात जब दिल की आई, अनसुनी कर गए !!
...
ये सोच के मत बैठो 'उदय' कि आज दीवाली है
सूने दिलों तक, चराग बन के पहुँचना है हमें !!
...
कभी कभी तो, जल के ख़ाक होना ही है 'उदय'
क्यूं आज से, दीपक बन थोड़ा-थोड़ा जल लिया जाए !
...
जी चाहे है, सारी रात चिराग बन जलता रहूँ
कोई तो, कहीं तो होगा, जो अंधेरे में होगा !
...
सच ! मैं दीवाली की खुशियाँ, कैसे मना लूं 'उदय'
दिल कहता है, आज की रात भी कोई अंधेरे में है !

दीवाली ...

हर दीप बने जब दीवाली
हर आँगन में हो दीवाली !


दीप दीप से ...
जगमग-जगमग जगमगाए
गाँव-गाँव, शहर-शहर
हिन्दोस्तां में दीवाली !

तेरे मन में, मेरे मन में
खुशियों की हो दीवाली !


सूना न हो अब कोई दिल
और न हो अब खामोशी
'उदय' तू भी बन जा दीप मेरे संग
जग में कर दें रौशनी !

गाँव-गाँव, शहर-शहर
हिन्दोस्तां में हो दीवाली
जगमग-जगमग जगमगाए
तेरी-मेरी ... दीवाली !!

दीवाली ... और सूना आँगन !!

मेरा आँगन सूना है
और हर आँगन में खुशियाँ हैं
'सांई' जाने
कब तक मुझको
खुद ही
दीपक बन के जलना है !!

सूना आँगन लेकर मुझको
कब तक आगे बढ़ना है
अंधियारों से
कब तक मुझको
दीपक बन के लड़ना है !!

वो दिन कब आयेगा 'सांई'
जब खुद तुमको ही
इस सूने आँगन में
बन दीवाली -
जगमग जगमग होना है !!

( सांई = शिर्डी वाले सांई बाबा )

दीवाली का बाजार ...

पूरे गाँव में दीवाली का शोर था
हर इंसान कुछ न कुछ खरीद रहा था
किसी ने नए नए कपडे खरीदे
किसी ने सोने-चांदी के जेवर खरीदे
किसी ने ज़मीन खरीदी
किसी ने मकान खरीदा
किसी ने साइकल, तो किसी ने कार खरीदी
बहुतों ने बहुत कुछ खरीदा
जी ने जो-जो चाहा वो-वो खरीदा
वहीं पर तीन आम इंसान भी खड़े थे -
एक किसान
एक मजदूर
एक नौकर
तीनों गुमसुम गुमसुम से सोच रहे थे
कि -
दीवाली का बाजार लगा है
बच्चों के लिए
कुछ न कुछ तो खरीद ही लेते हैं
तीनों ने -
एक-दूसरे का मुंह देखते हुए पूंछा -
बताओ, क्या बेच के, क्या खरीद लें ???

Monday, October 24, 2011

... अंधेरा ही अंधेरा है !!

आज ऊंची-ऊंची दीवारों पे
रौशनी खूब जग-मगाई है 'उदय'
कम से कम तुम तो
उन घरों, उन आँगनों में
दीपक बन के जल जाओ
जहां, शाम से नहीं -
सदियों से अंधेरा ही अंधेरा है !!

संपादक ... उफ़ ! क्या खूब डाकिये हैं !!

एक दिन एक राष्ट्रीय साहित्यिक गोष्ठी के दौरान, दो महाशय सूटेड-बूटेड आपस में चर्चा कर रहे थे, दोनों की बातों से स्पष्ट था कि - दोनों किसी मशहूर साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक हैं ... वहीं पर एक बाबा जी भी बैठे हुए थे जो उन दोनों की बातें बहुत गंभीरता पूर्वक सुन रहे थे ... दोनों महाशयों की बातें सुनते सुनते बाबा जी अचानक बीच में कूद पड़े, कूदते ही बाबा जी ने कहा - बुद्धिमान महाशयो, इस साहित्यिक गोष्ठी में शामिल होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है यदि आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ जानना चाहता हूँ ... हाँ, पूछिए क्या बात है ... आपकी बातें सुनकर ऐंसा प्रतीत होता है कि आप दोनों सालों से संपादन का काम कर रहे हैं, और शायद आप पत्र-पत्रिकाओं के मालिक भी हैं ... हाँ, बिलकुल सही पहचाना ... अच्छा, आप ये बताइये - पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार, कविता, कहानी, हास्य-व्यंग्य, आलोचना, समालोचना, संस्मरण, बगैरह-बगैरह, सब खुद-ब-खुद आपके चैंबर में पहुँच जाते होंगे, वो भी बिना किसी मेहनत के ? ... हाँ, सच कहा आपने, सब लोग लिख लिख के भेज देते हैं, उनमें से ही हम लोग काँट-छाँट कर ... बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया, बिलकुल ऐंसा ही मेरा भी अनुमान था, क्या कभी ऐंसा हुआ जो आपने - किसी श्रेष्ठ, प्रभावी व प्रसंशनीय लेखन को स्वत: तलाशा हो ? ... शायद नहीं, इतनी फुर्सत ही नहीं होती, और तलाश करने की जरुरत भी क्या है जब सारी श्रेष्ठ सामग्री स्वत: ही अपने पास पहुँच जाती है ... हाँ, सच कहा आपने, तो इसका मतलब मैं यह समझ लूं कि - आप लोग सिर्फ एक डाकिये हो, जो आई हुई चिट्ठियों को छाप-छाप कर संपादक कहला रहे हैं ? ... सुनते ही दोनों तिलमिला गए, कुछ कहते-सुनते, पर बाबा जी से उलझना उचित न समझ कर, दोनों वहां से उठकर चले गए ... बाबा जी खुद ही खुद से बड़-बड़ाते हुए - लो भई, ये आज-कल के संपादक हैं जो इंटरनेटी फास्ट युग में भी - जहां एक से बढ़कर एक नए नए प्रभावशाली लेखक आ गए हैं वहां भी चैंबर में अपने भाई-भतीजों, चेलों-चपाटों की चिट्ठियों के भरोसे बैठे हैं ... संपादक ... उफ़ ! क्या खूब डाकिये हैं !!

... एक ईमानदार कोशिश तो की जाए !

जी चाहता है मेरा भी, दीप जलाऊँ
तुम होते, तो शायद दीवाली होती !
...
परवाह नहीं है कि - क्यूँ छपते नहीं हैं हम
अभी तो लिख रहे हैं फुर्सत में नहीं हैं हम !
...
न जाने कब, जी ने चाहा था कि तुझसे दूर हो जाऊं
उफ़ ! 'रब' ने सुनी तो सिर्फ इत्ती सी सुनी !!
...
इतना भी नहीं हूँ, मैं दूर तुमसे यारा
जब चाहे तब मिलो, हंस कर मुझे मिलो !
...
सच ! सुनते हैं, बहुत खूबसूरत हैं वो
बिना देखे, हम कैसे फैसला कर लें !
...
फना होने के भय से, जो सहमे हैं घरों में
उन्हें फिर रास्ते कैसे, और मंजिलें कैसी !
...
दुकानदार भी कमजोर लग रहा है 'उदय'
सोना छोड़, पीतल बेच रहा है !!
...
सच ! बहुत संगदिल हुआ है यार मेरा
मेरी सुनता नहीं है, खुद ही कुछ कह रहा है !
...
सच ! ऐंसा नहीं कि हम सुधर नहीं सकते
पर, एक ईमानदार कोशिश तो की जाए !
...
जी तो चाहता है, कि फना हो जाऊं
पर कोई तो हो जिस पे एतवार करूं !

Sunday, October 23, 2011

सच ! वह दूध का धुला है !!

वो दूध का धुला है
ये हमने सुना है
इसमें सच्चाई कितनी है
ये अलग बात है
पर पूरे गाँव में चर्चा है
कि -
वह दूध का धुला है !

बहुत पहले -
उस पर
तीन बलात्कार
एक ह्त्या
पांच जानलेवा हमले, और
पचीसों छेड़-छाड़ के आरोप लगे थे !

पर कल ही
उसके सरपंची पिता ने
पूरे गाँव में
एक सभा का आयोजन कर
सात गाँवों के -
गाय के दूध को इकट्ठा कर
उसे
सार्वजनिक रूप से
पंचायत के चबूतरे पर
दूध से नहलाया-धुलाया है !

हाँ, हम कह सकते हैं
कि -
जो हमने सुना है
वह गलत नहीं है
वह सचमुच दूध का धुला है
और तो और
यह फरमान भी जारी हुआ है
कि -
आज से उसकी पूजा होगी
क्यों, क्योंकि ...
सच ! वह दूध का धुला है !!

... खुद ही पूंछ लो उनसे !!

कौन कहता है कि तुम आ के छू लो मुझको
सच ! मैं पारस नहीं हूँ, ये मैं जानता हूँ !!
...
सच ! फना होने का, गर कोई सलीखा होता
इतना तो तय था कि, कोई न आशिक होता !
...
जितनी मर्जी तुम्हारी, आजमा लो मुझको
सच ! मैं हीरा हूँ, जी चाहे तराशो मुझको !
...
तुम फना होने की तहजीब सिखा दो मुझको
जी तो चाहे है कि आज फना हो जाऊँ !!
...
कहते-सुनते रहे हैं कि क्या बात है
गर बात होती, तो कुछ बात होती !
...
न तो कल ही था, और न ही आज हूँ उनका
सच ! गर चाहो तो, खुद ही पूंछ लो उनसे !!
...
गर चाहूँ भी तो कैसे खुद को साबित कर दूं
सच ! लोग कहते हैं कि बहुत छोटा हूँ मैं !!
...
लोग कहते हैं कि नज़रों का धोखा है सनम
कैसे मान लें, जब तक उनसे न पूंछ लें हम !
...
गर चाहें तो उन्हें खुद ही तराश लें हम
पर बिना पूछें ये खता कैसे कर लें हम !
...
जी न चाहे, तब भी तू मुझसे मुहब्बत कर ले
सच ! बिना बोले ही, तुझपे मैं फना हो जाऊं !

कौन हूँ मैं ?

ये न पूंछो कि -
कौन हूँ मैं ?
चलते चलते, धीरे धीरे
निकल आया हूँ
तुमसे, बहुत दूर हूँ मैं !

ये तो खबर नहीं
कि -
कहाँ तक पहुंचा हूँ
पर, तय है
मंजिल के करीब हूँ मैं !

चले आओ, तुम भी
आँख मूंदकर
बेहिचक पीछे पीछे
मंजिल नहीं -
पर रस्ता जरुर हूँ मैं !!

काश ! तुम भी कुंवारे होते !!

कल रात
तसलीमा रस्ते में मिल गई
हॉट, सेक्सी, अर्द्धनग्न
मगर अफसोस -
अब क्या कहें !
मैंने कहा -
मैडम, कहाँ जा रही हैं ?
जवाब -
जन्नत की सैर हो रही है
इकहत्तर हो चुके हैं
बस
बहत्तरवे की तलाश है
काश ! तुम भी कुंवारे होते !!

आज नया क्या लिख रहे हो ?

कब तक दिलासा दूं
खुद को
कि -
कुछ लिख रहा हूँ
कब तक !

रोज वही चेहरे, वही लोग
होते हैं सामने मेरे
खामोश रहकर भी कुछ न कुछ -
कहते हैं मुझसे, पूंछते हैं मुझसे
कि -
आज नया क्या लिख रहे हो ?

ऐंसे कब तक चलेगा
कब तक
चलते रहेगा
कब तक यूं ही -
कुछ छोटा-मोटा लिखते रहूँगा
कलम को -
पकड़ कर, यूं ही बैठे रहूँगा !

जी चाहता है, मेरा
कि -
कुछ ऐंसा लिखूं -
जैसा पहले कभी लिखा नहीं गया !
जैसा पहले कभी सोचा नहीं गया !
जैसा पहले कभी पढ़ा नहीं गया !

सच ! हाँ
कुछ ऐंसा ही लिखने का -
सोचता हूँ
कुछ ऐंसा ही लिखने की ओर -
बढ़ना चाहता हूँ
कलम मेरी
उस ओर ही है, जिस ओर ...
पहले कभी, कोई पहुंचा नहीं है !!

Saturday, October 22, 2011

पाठक की कसौटी पे लेखन !!

किसी भी लेखन को -
पढ़ते समय
मैं नहीं देखता
कि -
लेखक
बड़ा है, या छोटा है !
गर देख लूं
तो शायद मैं लेखन को,
दाद -
सच्चे मन से
सच्चे दिल से
एक पाठक के नजरिये से
शायद ! न दे पाऊँ !!

क्यों, क्योंकि -
उस समय मेरे जेहन में
लेखन नहीं, लेखक होगा
वो छोटा, या बड़ा होगा
और जब मैं
यह देख लूं कि -
लेखक बड़ा है, तो निसंदेह
मेरी अभिव्यक्ति
लेखन के दायरे से ऊपर होगी
और यह देख लूं कि -
लेखक छोटा है
तो शायद
मैं नजर-अंदाज भी कर जाऊं
लेखन को !

इसलिए -
इन दुर्भावनाओं से
खुद को दूर रखता हूँ
किसी भी
लेखन को पढ़ते समय
दाद देते समय
यह कतई नहीं देखता
कि -
लेखन से भी कोई -
ऊपर है, ऊपर हो सकता है
फिर भले चाहे
वो, कोई भी, क्यूं न हो !
क्यों, क्योंकि -
मैं एक पाठक हूँ !!

चर्चाओं में लेखक ...

मैं जानता हूँ, महसूस करता हूँ
कि -
आज
जो लेखक सुर्ख़ियों में हैं
उतने प्रभावी लेखक नहीं हैं
और जो लेखक, प्रभावी हैं
हमारा दुर्भाग्य है
कि -
वो आज
चर्चा में, सुर्ख़ियों में नहीं हैं !!

आज - कल !!

मैं कौन हूँ, मत पूछो
कुछ भी नहीं हूँ
सच ! अभी तक तो कुछ भी नहीं हूँ !
कल क्या होऊंगा -
ये मुझे
कम से कम
आज तो मालुम नहीं है !!

कौन जानता है -
कल को !
किसने देखा है -
कल को !
किसको है खबर -
कल की !
शायद ! किसी को भी नहीं !!

क्यों, क्योंकि -
हम
आज में ज़िंदा हैं
कल की सम्भावनाओं के सांथ
देखते हैं
कल क्या होगा -
या कुछ होगा भी नहीं !!

Friday, October 21, 2011

हे राम ! सत्य-अहिंसा !!

वह सत्य-अहिंसा के पथ पर था
बातें कड़वी, और व्यवहार में सादगी थी
वो जो भी कहता
बहुत कडुवा लगता था !
सत्य -
आज किसे मीठा लग सकता है !!

चुभता है
काटता-सा है
झंकझोरता-सा है
सुन-सुन के
कानों में जलन सी होने लगती है !
लगता है, जैसे किसी ने
कानों में कोई जहरीला कीड़ा घुसेड दिया है
जो रगड़ रगड़ के -
जला रहा है कानों को !!

एक दिन उसके तीखे व्यंग्यी शब्द -
सुनते सुनते
रहा नहीं गया, सहा नहीं गया
और उठकर
जड़ दिया एक तमाचा उसके गाल पे
चटाक ! वह खामोश देखता रहा !!

फिर धीरे से बोला -
बोला क्या, उसने दूसरा गाल आगे करते हुए कहा -
लो, एक चांटा और मार दो, इस गाल पे
सुनकर मैं सन्न रह गया
लगे ऐसे, जैसे उसने मुझ पर
बम फेंक दिया हो
और मैं
क्षित-विक्षित होकर, ज़मीन पे पडा, तड़फ रहा हूँ
हे राम !
सत्य-अहिंसा !!
ये कैसी मुसीबत है
जो चुभती भी है, और फूटती भी है !!

उफ़ ! ये प्रियंका !!

मैं यह कविता सोते सोते लिख रहा हूँ
आधे घंटे से बिस्तर पे करवटें बदल रहा हूँ
आँखों में नींद आने जैसी होती है
तब ही प्रियंका मेरी आँखों में उतर जाती है
मैंने क्या बिगाड़ा है उसका, कुछ भी तो नहीं
फिर भी पता नहीं क्यूं वो मुझे सोने नहीं देती है
कहती है तुम -
मुझे देखते क्यों नहीं हो
मुझे दिलो जां से चाहते क्यों नहीं हो
क्यों तुम मुझे सांथ घुमाते-फिराते नहीं हो
अब क्या कहूं, मैं तो चाहता हूँ
पर, वो दिन में मिलती कहाँ है, और रात को भी
बस तब आती है, जब मैं सो रहा होता हूँ
आती भी है तो आ जाए, मैंने मना कब किया है
आकर चुप-चाप मेरे बाजू में सो जाए
जो करना है कर ले, पर मुझे सोने दे, पर मानती नहीं है
कहती है, तुम कैसे सो सकते हो, मुझे सुलाए बगैर
मैं उससे तंग आ गया हूँ
एक तो सोने नहीं देती
और जब सो जाता हूँ तो, फिर जगने नहीं देती
सो जाती है मुझसे लिपटकर, सिमटकर
फिर न खुद उठती है, और न मुझे उठने देती है
अब बताओ, क्या करूँ, क्या न करूँ
उफ़ ! ये प्रियंका !!

कमाल है ! जय जयकार है !!

चलो आज कुछ नया किया जाए
क्यों किसी -
नेता
अभिनेता
अफसर
समाजसेवी
पर एकाद चप्पल उछाली जाए !

क्या होगा
ज्यादा से ज्यादा
मौके पर
या मौके से थाने जाते जाते
या थाने पर
दो-चार लात-घूंसे ही तो खाने पड़ सकते हैं
और दो-चार घंटों के बाद
रहमदिली के कारण
थाने से भी छूट जाना है !

पर इस बीच इतना तो तय है
कि -
अपुन का नाम फोटो
टेलीविजन -
समाचार पत्रों में छा जाना है
इंटरव्यू भी होंगे, और
दो,चार,: दिनों तक सुर्खियाँ भी बनी रहेंगी !

और जब जब ऐंसी घटनाएँ होंगी
तब तब भी अपुन की चर्चा होते रहेगी
मतलब
एक बार, एक साहसी कदम उठाकर
आजीवन चर्चाओं और सुर्ख़ियों में बने रहना है
और तो और माफी भी मिल जाना है
बस, उछालो जूते-चप्पल ...
कमाल है ! जय जयकार है !!

Thursday, October 20, 2011

रंग ...

कभी बदरंग से थे -
जीवन
ख्याल
विचार
भावनाएं
सब बदरंग से थे
पर अब
रंग
मुझे छूने लगे हैं
मुझे भाने लगे हैं
मेरी आँखों में बसने लगे हैं !

अब मन
रंगों को देख-देख के -
मचलने लगा है
ललचाने लगा है
मेरे -
विचार
ख्याल
इरादे
भावनाएं
रंग में डूबने लगे हैं
रंग से होने लगे हैं !

सच ! तुम्हारे -
विचारों ने
प्रेम ने
मुस्कान ने
समर्पण ने
स्पर्श ने
आलिंगन ने
मुझे रंगीन कर दिया है !!

... 'खुदा' जाने है, या तू !!

किवाड़ पे डोंट डिस्टर्व की तख्ती
और अन्दर डिस्टर्व ही डिस्टर्व है कोई !
...
वक्त के सांथ भी जब वो, खुद को बदलना चाहे
मुमकिन है वो वक्त को बदलने की चाह रखता है !
...
सरकार ने मंहगाई बढ़ा-बढ़ा के, खूब पाठ पढ़ाया है
बच्चे-बच्चे को, आटे-दाल का भाव समझ आया है !
...
एक अर्से से हम खुदी को आजमा रहे थे
जिंदगी का सबब जान के, हम खुद ही हैरां हुए हैं !
...
क्यूं दिल की लगी, दिल्लगी हुई
'खुदा' जाने है, या तू !!
...
जी चाहे, जितना चाहे, तुम चीखते रहो
लो, हम बैठ गए, और मौन हुए हैं !
...
लो, होते होते, ये क्या गजब हो गया
अपुन आज से किसी और का हो गया !
...
ठीक ही कहते हो 'उदय', पुरुस्कारों के भी पांव होते हैं
सच ! वे खुद--खुद, किसी किसी के दर पे होते हैं !
...
बहुत मुश्किल भी नहीं हैं, बहुत आसां भी नहीं हैं
चाहतें, ख्वाहिशें, मंजिलें, बहुत दूर भी नहीं हैं !!
...
कल तक तो थी डायन, आज भष्मासुर हुई है
सुनते हैं, मंहगाई सरकार की लुगाई हुई है !!

sweet heart ...

sweet heart
i love you very much
really, you too cool
not only in nature
but physically too
your sincerity, love and devotion
really i salute you
just believe
i have no words to express
my wonderful thoughts about you
really you too cool
and hot too
that is why
i love you very much !
till now, as i wish, you done
but tonight
i want, you desire
and enjoy with your desires
i am absolutely yours
as you wish, as you desire
you can, tonight
in every moments of night
your desires must be, as you wish
please come, don't shy
your desires are waiting
enjoy, enjoy and enjoy !!

Wednesday, October 19, 2011

सॉरी ...

कुछ ख़त पड़े थे
दराज में
किसी दिन मैंने खुद उन्हें
सहेज सहेज के रखे थे
किसी की याद में ...
जब जी चाहता
जब मन करता
दराज से निकाल-निकाल के -
पढ़ लेता था
छू लेता था
टटोल लेता था
याद कर लेता था किसी को
खो जाता था किसी में !

उनमे बचपन की लुका-छिपी
और जवानी की -
गर्म साँसों का मिश्रण था
कुछ भय था
कुछ चाह थी
कुछ प्यार का अनोखापन था
मिलने की -
और बिछड़ने की यादें भरी थीं उनमें
आज, न चाहकर भी -
सारे ख़त दराज से निकाल कर
सामने रख के जला दिए
राख को फूंक मार के उड़ा दिया !

शायद ! अब कोई -
याद नहीं आयेगा मुझे
क्या करूंगा अब, याद कर के उसे
जब वो
रहा ही नहीं
आज मालुम हुआ कि -
उसने दुनिया छोड़ दी है
परसों ही -
मुक्तिधाम में उसे मुक्ति दे दी गई !
सुनकर -
आँखें डब-डबा गईं मेरी
जाते-जाते उसने
संदेशा भी भेजा है -
दिल से, मुझे, सॉरी कहा है !!

इतनी रात ...

रात ने जगा दिया
काश ! कुछ देर और
अपनी बाहों में
समेटे हुए
रखे रहती, हमें सोने देती ...
किसी छोटे-मोटे ख़्वाब में
मुझे, उलझाए
रहती
कुछ देर और, घंटे-दो घंटे
उफ़ ! अब क्या करें
इतनी रात ...
किसे याद करें
कौन होगा जो जाग रहा होगा
या
किसे सोते से जगाएं
या फिर
खुद जागते रहें
किसी के जागने के इंतज़ार में ...
कहीं ऐंसा तो नहीं
ये रात
कुछ कह रही है
जगा कर, नींद से उठाकर
मुझे, कुछ इशारे कर रही है
कुछ न कुछ
तो जरुर है, या होगा
जो रात ने मुझे जगाया है
उठाया है ...
एक मित्र की तरह
एक प्रेमिका की तरह
एक नई दुल्हन की तरह
इतनी रात ... !!

चलो चलें, कहीं दूर चलें ...

चलो चलें, कहीं दूर चलें
दूर गगन के पार चलें
तुम चलो, हम चलें
एक नया संसार गढ़ें
जहां प्यार के फूल खिलें
खुशियों के जहां ढोल बजें
तुम चलो, हम चलें
मीत बनें, हम गीत बनें
चलो चलें, कहीं दूर चलें
दूर गगन के पार चलें !!

... मीठे लग रहे हैं !

मुहब्बत का नशा, बहुत भयानक हुआ है
परसों से चढ़ा है, अभी तक उतरा नहीं है !
...
सच ! कुछ मीठा, तो कुछ तीखा हो जाए
चलो, आज मुहब्बत को आजमाया जाए !
...
'खुदा' जानता है, हम चाहते हैं उसको
अब तुम, इसमें हिसाब-किताब की बातें न करो !
...
हमें ही मोहब्बत हुई थी, इसमें उसका क्या कुसूर
सच ! वो तो सिर्फ, देखते रही थी हमको !!
...
पता नहीं, आज वो क्यूं खामोश है 'उदय'
कल तक तो वो, बहुत बातें करती रही थी !
....
क्या खूब चढ़ा है, मुहब्बत का नशा हम पर
जिधर देखो उधर वो ही वो नजर आ रहे हैं !
...
कुछ घंटे पहले ही तो, वो हमसे मिले थे
जाते जाते, मुझे अपना बना गए !!
...
मैं याद कर के पाठ, वहां नहीं जाऊंगा
जो मन में आयेगा, वही बोल आऊँगा !
...
तुम कहते रहो, हम सुन रहे हैं
लवों के बोल, मीठे लग रहे हैं !
...
अब रंज दिलों में रख के क्या मिलना है 'उदय'
हम तो कब के, शहर उनका छोड़ चले आए हैं !

Tuesday, October 18, 2011

... खरीददार बहुत हैं !!

बहुत हुए, जग में अंधियारे, कब तक इसको-उसको देखें
चलो बनें हम खुद ही दीपक, दीपक बन के जलना सीखें !
...
उधर कच्ची, तो इधर पक्की मुहब्बत है
फर्क है तो, सोलह और छब्बीस का है !!
...
फेसबुकिया दोस्ती को सलाम है 'उदय'
वो भले न हों, पर हम तो कायल हुए हैं !
...
आज चाँद भी आसमां से दो घड़ी को इठलाएगा
तेरी खूबसूरती को देख, मंद मंद मुस्कुराएगा !!
...
सच ! आदत सी पड़ गई है, जी हुजूरी की 'उदय'
लोग, दर-ओ-दीवार को भी, ठोक देते हैं सलाम !
...
लगता है दोस्त मेरे, मरने की दुआ कर रहे हैं
तब ही तो बात बात पे, मेरी कसम खा रहे हैं !
...
कुसूर अपना था जो दिल दे बैठे थे
उन्होंने माँगा कब था !!
...
एक अर्से से, जिसे हम मुहब्बत माने बैठे थे
आज तजुर्वा हो गया, मुहब्बत क्या बला है !
...
किसी न किसी का तो भ्रम टूटना ही था
चलो अपना सही, समय पर टूट गया !!
...
जी चाहे है क्यूं न पुरुस्कारों की दुकां खोली जाए
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!

Monday, October 17, 2011

मर गई, या मार दी गई !!

महीनों से परेशान थी
माँ से मिली, तब दुःख बताया
पिता से अपनी पीड़ा बताई
सहेलियों को तो -
दर्द भरी सच्ची कहानियां
सुनने की आदत सी पड़ गई थी
कौन नहीं जानता
किसे नहीं सुनाया उसने
आस-पड़ोस में भी चर्चा होती थी
सिर्फ उसकी !
एक दो बार तो बात थाने तक भी
जा पहुँची थी
पर किसी ने उसके
दुःख
दर्द
पीड़ा
पर गंभीरता नहीं दिखाई
समझना नहीं चाहा
जानना नहीं चाहा
सुलझाना नहीं चाहा
आज
सब के सब खुद को कोस रहे हैं
पुलिस पंचनामा कर रही है -
लाश का !
जांच की जायेगी
वह मर गई, या मार दी गई !!

बहुत बूढा तो है लेकिन ...

कभी भूखा, कभी प्यासा, समर में आगे बढ़ता है
कभी खामोश रहता है, कभी चिंघाड़ पड़ता है !

सफ़र छोटा या लंबा हो, कभी परवाह नहीं करता
दिलों में आरजू रखकर, कदम मजबूत रखता है !

नहीं रुकता, नहीं थमता, नहीं हटता, वो पीछे है
अदब से बात करता है, गजब की शान रखता है !

तेरी, मेरी, इसकी, उसकी, वो बातें नहीं करता
वतन की आन, मान, शान, पे कुर्बान होता है !

नहीं डरता फिसलने से, संभल के पैर रखता है
बहुत बूढा तो है लेकिन, जवानी जोश रखता है !!

Sunday, October 16, 2011

टीम अन्ना के नाम एक खुला पत्र ...

टीम अन्ना ...
निसंदेह आप अपने प्राथमिक मिशन -
जंतर-मंतर तथा रामलीला मैदान पर जन लोकपाल रूपी मुहीम में सफल रहे हैं ...
किन्तु -
स्वामी अग्निवेश व प्रशांत भूषण रूपी घटनाक्रमों के बीच "टीम अन्ना" कमजोर भी हुई है, यदि यही सुस्त व गैर जिम्मेदाराना चाल चलती रही तो यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि शनै: शनै: टीम अन्ना स्वत: ही कमजोर होते चली जाएगी ...
इसलिए -
ऐंसा मेरा मानना है कि -
टीम अन्ना को चाहिए कि वह अपने "ढाँचे" को मजबूत करे तथा मजबूती के लिहाज से "कोर कमेटी" के सांथ-सांथ कम से कम "तीन या पांच विंग" और तैयार करे तथा अपने छोटे-मोटे अभियानों के अलावा ढांचें को मजबूत करने की दिशा में भी अग्रसर रहे ... टीम अन्ना का कमजोर होना अपने आप में भ्रष्टाचार समर्थक मंसूबों का मजबूत होना है जो देश हित में उचित नहीं है ... जय हिंद !!

कठिन राहें ...

रास्ते आसां होते हैं
किन्तु, सफ़र मुश्किल होता है
मंजिलें तय होती हैं
पर, फासले तय नहीं होते
यूं ही, बगैर -
मेहनत, लगन, तप
कोई, किसी मुकाम पे
पहुंचा नहीं करते !
हौसले, जज्बे
जब चलते हैं
रुकते हैं, बढ़ते हैं, बढ़ते चलते हैं
होती हैं, मिलती हैं
कठिन राहें सफ़र में
थकते हैं, ठहरते हैं, सहमते हैं
टूटते टूटते, बिखरने से संभलते हैं
चलते हैं, चले चलते हैं
कदम दर कदम
मंजिल की ओर ...
तब, कहीं जाकर, हम पहुंचते हैं
धीरे धीरे, शनै: शनै:
मंजिल पर, मुकाम पर, शिखर पर !!

जीवन छुक-छुक गाड़ी है ...

जीवन छुक-छुक गाड़ी है
बहुत दूर स्टेशन है !

ग्रीन लाईट है बढ़ने दो
धीरे धीरे चलने दो !

हवा के झौंके आने दो
गीत-भजन भी होने दो !

छुक-छुक बातें चलने दो
छुक-छुक यादें बनने दो !

छुक-छुक करते आए थे
छुक-छुक करते बढ़ने दो !

बहुत दूर स्टेशन है
ग्रीन लाईट है बढ़ने दो !

जीवन छुक-छुक गाड़ी है
धीरे धीरे चलने दो !!

चुम्बकीय औरत ...

मैं, न सोचता हूँ, और न ही मानता हूँ
कि -
औरत से भी अधिक ख़ूबसूरत, है कोई और
कैसे मान लूं
जब, मुझे, उससे जियादा ख़ूबसूरत
कोई और, लगता ही नहीं है
शायद ! प्रकृति ...
प्रकृति की सुनहरी वादियाँ -
जंगल
पहाड़
घाटियाँ
नदियाँ
झरने
वर्फ
फूल
खुशबू
ऊंची-नीची हंसी वादियाँ
सब कुछ, सारा जहां
औरत के बाद, या औरत के सांथ ही
ख़ूबसूरत नजर आता है
बगैर औरत के, शायद, ये सब भी
सूने-सूने लगें
फूल भी, खुशबू भी, वादियाँ भी
शायद ! ये सब, औरत के इर्द-गिर्द ही हैं
पर
औरत से जियादा
ख़ूबसूरत, आकर्षक, चुम्बकीय नहीं हैं !!

Saturday, October 15, 2011

पता नहीं आज कौन भूखा रहा, नाम मेरे ...

'रब' जाने, कौन, किस पर, कब फ़िदा हो जाए
मिट्टी के खिलौने भी, किसी के काम आते हैं !
...
पता नहीं आज कौन भूखा रहा, नाम मेरे
न वो जता पाए, और न हम समझ पाए !
...
सच ! हमने तो, कुछ कहा ही नहीं था उनसे
'रब' जाने, अब खामोशी का सबब क्या होगा !
...
आज की रात, समंदर सी चल रही है 'उदय'
कहीं ठहरी, तो कहीं बहुत हल-चल है !
...
सच ! अगर वो कह भी देते कि बहुत जल्दी है
ऐंसा मुमकिन तो नहीं था कि हम पकड़ लेते !
...
सच ! मुझे उनके कद की खबर तो नहीं है 'उदय'
पर इतना तो तय है कि कोई मेरे कद का नहीं है !
...
कह देते, ठहर जाओ कुछ घड़ी को तुम
क्यूं न, दो चार कदम और चल लें हम !
...
न रंज, न गम, न इबादत की बातें हों
मौत का कारवां है, सिर्फ मेरी बातें हों !
...
मर्जी थी उनकी, गुड नाईट कह दिया
कम से कम, जवाब तो सुनते जाते !!
...
हर एक जिंदगी की अपनी अपनी कहानी है
किसी की मीठी, किसी की कड़वी ज़ुबानी है !

खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

कल एक आशिक ने -
अपनी माशूक से कह दिया
हमें तुमसे मोहब्बत हो गई है
खट से उन्होंने कहा -
तो आज से समझ लें -
तुम पर हमारी बादशाहत हुई है !

जी हुजूर, हम तो बहुत पहले से ही
तुम्हें लाल पान की रानी
और खुद को -
काले पान का गुलाम समझते हैं
और तब ही से तुम पर
अपनी जान निछावर करते हैं !

हम तुम्हारी गुलामी के कायल हुए हैं
क्यों कुछ सैर-सपाटा कर लिया जाए
आओ, बन जाओ घोड़े
और हमें अपनी पीठ पे बैठने दिया जाए !

मल्लिका साहिबा -
हमारा मकसद ये वाली गुलामी से नहीं
वरन दिलों वाली गुलामी से है !

अच्छा, ये बात है, तो
इंतज़ार करिए, करते रहिये
अभी आप कतार में, बहुत पीछे चल रहे हैं
नंबर आयेगा, तब देखेंगे
करना तो तुम्हें, तब भी -
यही गुलामी होगी
बस समय समय की बात है
आज तुम्हें जवानी में
मौक़ा मिल रहा है -
हो सकता है तब तक बुढापा जाए
खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी !

मल्लिका की बातें सुनते सुनते
माथे पे पसीना गया
बातें ख़त्म होने के पहले ही
वह खुद--खुद घोड़ा बन गया !!

निर्जला उपवास ...

धर्मपत्नियों ने
आज
सुबह से उपवास रखा है
वे अपने अपने पति को -
देखे बगैर
पूजे बगैर
वृत नहीं तोड़ेंगी !
क्यों, क्योंकि -
आज करवा चौथ है !
आज
वे अपने अपने पतियों की -
लम्बी उम्र के लिए
दुआएं
प्रार्थनाएं
सुबह से कर रही हैं
आज
उनकी प्रार्थनाएं
सुनी जाएंगी, सुन ली जाएंगी
क्यों, क्योंकि -
आज करवा चौथ है !
आज सुबह से
उनका निर्जला उपवास है !!

Friday, October 14, 2011

सच ! करवा चौथ है !!

कितने
अजीब संस्कार हैं
लोग भी ...
जिन्होंने
संस्कार बनाए !

कभी नहीं सोचा
कि -
जो इंसान
सुबह-शाम, रोज-रोज
शैतां होता है ...
अपनी औरत के लिए !

कभी मारता
कभी कचोटता
कभी निचोड़ता है
उसकी मर्जी ...
जो आए ... करता है !

फिर भी ...
आज
वह शैतां
देवताओं की तरह
उसी औरत के हांथों
पूजा जाएगा
क्यों ? क्योंकि -
आज
करवा-चौथ है !

संस्कारों ने
उसे
देवता बनाया है
आज
उसकी लम्बी उम्र के लिए
दुआएं होंगी
प्रार्थनाएं होंगी
निर्जला उपवास रखे जाएंगे
उसे देखे बगैर
उसे पूजे बगैर
उपवास नहीं टूटेंगे !
आज ...
सच ! करवा चौथ है !!

... कुछ भी तो नहीं हूँ !!

मेरा कद उतना ऊंचा हो, कि तुझे गले लगा सकूं
वरना ! आसमानी ऊँचाई का, मैं करूंगा क्या !!
...
सटका हुआ दिमाग है, कुछ तो कहना चाहता है
रंज कर भी लें मगर, आसमान छूना चाहता है !
...
सोचने में हर्ज क्या है, जब देश में जनतंत्र है
जब नहीं होगा, तब कुछ और सोचेंगे हम !!
...
दिया, लिया, दिया, दिया, लिया, दिया, दिया
उधार, उधार, उधार, उधार, उधार, उधार !!!
...
जब से, मुल्क में चोरों की बादशाहत हुई है
सच ! सुनते हैं अंधेरों से रौशनी गुम हुई है !
...
अगर होता तो, मैं 'खुदा' होता
नहीं हूँ तो, कुछ भी तो नहीं हूँ !
...
जाने कब, अब ये सिलसिला थम पायेगा
हर हांथों में हैं मशालें, इंकलाब तो आयेगा !
...
मुश्किल घड़ी में, आज हमें खुदी को आजमाना है
कहीं ऐंसा हो, पाक इबादत में खलल पड़ जाए !
...
ये हमारी उस्तादी की तौहीन होगी 'उदय'
गर किसी और की शान में कसीदे पढ़ दें !
...
बड़ी मुश्किल से कल खुद को घाटे से बचाया था
आज फिर एक दोस्त व्यापारी बन के आया है !

Thursday, October 13, 2011

नवयौवन कविता ...

कविता क्या है ?
इस मुद्दे पे विवाद छिड़ गया
साहित्यिक मंच बनते बनते अखाड़ा-सा बन गया
बहुतों ने -
छंद
मात्राएँ
अलंकार
उपमाएं
रूपक
बिम्ब
भाव रूपी
तरह तरह के हथियार उठा लिए
और आपस में ही मारपीट को उतारू हो लिए
यह सब देख कर मैं सन्न रह गया
दर्शक दीर्घा से उठकर
न चाहते हुए भी, मंच पे पहुँच गया
मैंने कहा -
शांत हो जाओ महानुभावो
क्यूं बेवजह 'कविता' के लिए लड़-झगड़ रहे हो
'कविता' क्या है, सुनो मैं बताता हूँ
'कविता' नवयौवना से कम नहीं होती है
जो हर किसी को देखते ही, खुद-ब-खुद भा जाती है
फिर भले चाहे -
नवयौवना का रंग, रूप, नाक, नक्स, चाहे जैसा हो
वो तो देखते ही देखते मन में उतर जाती है
क्या अब भी कोई संशय है
या और भी विस्तार से समझाऊँ
किसी भी 'कविता' का कोई
रंग-रूप, नाक-नक्स, जात-पात, छंद-अलंकार
नहीं होता !
होता है तो बस, नवयौवन और चिर यौवन होता है !!

एक इनामी कविता ...

जी चाहता है, आज मैं भी कवि बन जाऊं
कौन-सी बड़ी बात है, सिंपल, बहुत सिंपल है
करना क्या है, कुछ भी तो नहीं
बस -
मछलियों को समुद्र से आसमान में जम्प कराना है
कुत्तों को रोटी के लिए रस्सी पे दौडाना है
परिंदों को चुनाव लड़ते दिखाना है
उल्लुओं के सिर पे ईनाम की घोषणा करना है
बन्दर को लुटेरा और -
बिल्ली को चोर साबित करना है
किसी बूढ़े को खांसते, तड़फते, बिलखते दिखाना है
बच्चों को सिर पे बोझा ढ़ोते तो -
महिलाओं को आपस में बाल खींच-खींच के लड़ते दिखाना है
और ज्यादा कुछ हुआ तो -
पुलिस को डकैती डालते और नेता को खजाना चुराते दिखाना है
इससे भी अगर काम नहीं बना तो
बन्दर की खी-खी-खी
चूहों की किट-किट,
बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ
कुत्ते की भौं-भौं
शेर की गुर्र-गुर्र,
कौए की कांव-कांव, इन सब को मिला-जुला कर
एक आर्ट टाईप की फिल्म बना कर आस्कर जितवा देना है
ये सब कौन-से बड़े, चमत्कारी, तिलस्मी कारनामे हैं
समेट-समेटा कर एक नई आधुनिक टाईप की कविता रच देना है
बुराई ही क्या है, आखिर इन मिर्च-मसालों में, कुछ भी तो नहीं
आखिर -
बिना तड़के के साग अच्छी कहाँ लगती है
बिना हरी मिर्च के टमाटर की चटनी भी बेस्वाद ही तो लगती है
बिना लहसुन के छौंके वाली दाल फीकी ही तो लगती है
इसी टाईप का कुछ न कुछ तो करना ही पडेगा
नहीं तो एक इनामी कविता कैसे बन पायेगी
और जब इनामी नहीं बन पाई तो
कविता लिखने से क्या फ़ायदा है
और जब कोई फ़ायदा नहीं तो, काहे को टाईम खोटी
काहे की कविता और काहे का कवि
बोलो सिया बलराम चन्द्र की जय, जय जय हनुमान की जय !!

उफ़ ! ये गरीबी रेखा !!

एक लम्बी यात्रा के बाद सुबह सुबह ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर निकल कर एक रिक्शेवाले से बोला - मंदिर चौक का कितना लेगा ... वह बोला - साहब, ४०/- रुपया ... मैंने कहा - वाह, कुछ कम से काम नहीं चलेगा ... वह बोला - बिलकुल नहीं चल पायेगा साहब ... मैंने कहा - सुबह सुबह बहस का मूड नहीं है, सही सही बता, कितना लेगा, मैं कोई नया आदमी नहीं हूँ, अक्सर आते-जाते रहता हूँ, अभी एक सप्ताह पहले ही ३०/- रुपये देकर वहां से स्टेशन तक आया था, और वह भी रिक्शावाला हंसी-खुशी छोड़कर गया था, और तू है कि सातवें आसमान पे बैठ के बात कर रहा है, सही सही बोल या फिर किसी और से बात करूं ... साहब आपको जिस से बात करना है कर लो, पर मैं तो ४०/- रुपये से कम नहीं लूंगा ... मैंने कहा - ठीक है, जैसी तेरी मर्जी ( दो कदम आगे बढ़कर दूसरे रिक्शावाले से ) ... क्यों भाई कितना लेगा मंदिर चौक का ... साहब ४०/- रुपया ... सुनकर मैं सोचने लगा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया है, फिर दोनों को बुलाकर पूंछा कि - क्या बात है अचानक रेट कैसे बढ़ गया ? ... वे बोले, साहब, हम लोग दिनभर में चार-पांच चक्कर लगा कर बड़ी मुश्किल से सवा-सौ, डेढ़-सौ रुपये कमाते हैं, उससे भी दो लोगों का ठीक-ठाक ढंग से खाना-पीना नहीं हो पाता है, फिर सरकार कैंसे २८/- रु. ३२/- रु. में दिनभर के खाने का हिसाब-किताब लगा रही है, हमें तो लगता है कि हम गरीबों को पूरी तरह निपटाने की योजना बना रही है, इसलिए ही हम लोगों ने भविष्य में आने वाले खतरों से बचने के हिसाब से, सब जगह के दस-दस रुपये दाम बढ़ा दिए हैं, अब आप ही बताओ साहब जी, ये कौन-सी "गरीबी रेखा" है जो आज की बढ़ती जानलेवा मंहगाई के दौर में भी ३२/- रुपये की सीमा पार नहीं कर पा रही है ... मैंने कहा - चलो, ले चलो ... उफ़ ! ये गरीबी रेखा !!

छुक-छुक, छुक-छुक ...

छुक-छुक, छुक-छुक
जीवन है !
छुक-छुक, छुक-छुक
गाड़ी है !
छुक-छुक, छुक-छुक
चलना है !
छुक-छुक, छुक-छुक
बढ़ना है !
छुक-छुक, छुक-छुक
चलो चलें !
छुक-छुक, छुक-छुक
बढे चलें !
छुक-छुक, छुक-छुक
आए थे !
छुक-छुक, छुक-छुक
जाना है !!

Wednesday, October 12, 2011

उफ़ ! बड़े साहब का ब्लडप्रेशर !!

जिला मुख्यालय ... बड़े साहब की मंथली मीटिंग का दिन -
जिले के समस्त अधिकारी सुबह .०० बजे समय पर मीटिंग कक्ष में हाजिर हो गए किन्तु देखते देखते घड़ी की सुई खिसकने लगी, देखते देखते पौने-दस बज गए, साहब नहीं आए ... समय के पक्के बड़े साहब के मीटिंग कक्ष में नहीं आने से माहौल सन्नाटे मय हो गया, सुगबुगाहट होने लगी, क्या बात है, क्या हो गया, क्यों नहीं रहे हैं साहब, तरह तरह के सवाल मन में उठने लगे, सारे अधिकारी बड़े साहब के पीए के सामने, क्या हो गया भाई, क्या बात है, साहब क्यों नहीं रहे हैं !

पीए ने कहा - बॉस, आज तो सभी संभल के रहो, साहब का मूड ठीक नहीं है, कहीं ऐंसा हो साहब आते ही भड़क पड़ें, और आप लोगों में से दो-चार विकेट गिर जाएं, आई मीन सस्पेंड हो जाएं ... अरे, क्या बात है भाई जी, साहब का मूड क्यों गरम है ... अब क्या बताएं, सुबह-सुबह .०० बजे राजधानी मुख्यालय से मंत्री महोदय का फोन आया था, पहले तो खूब भड़कते रहे, फिर धीरे से एक लाख की कोई बेगारी टिका दिए हैं, अब जानते तो हो आप सब लोग, जहां रुपये-पैसों की बात आती है वहां साहब का बीपी हाई हो जाता है, और बीपी हाई होने का मतलब तो आप सभी समझते ही हैं इसलिए मैंने साहब से निवेदन किया है कि आप बंगले पर ही रहिये, आराम कीजिये जब आराम जैसा महसूस हो तब आ जाना, तब तक मैं स्टेटमेंट बगैरह ... आखिर मुझे आप लोगों की चिंता भी तो सता रही थी !

अच्छा, बहुत अच्छा किया, अब क्या किया जाए ... करना क्या है, जो कुछ करना है वह आप लोगों को मिलकर करना है, लाख रुपये कौन-सी बड़ी रकम है, सब लोग जेब में हाँथ डालकर पांच-पांच निकालोगे तो काम बन जाएगा, आखिर साहब तो आप के ही हैं, एक लिफ़ाफ़े में डालकर जाऊंगा और साहब को खट से मना कर ले आऊँगा, आप सब जानते तो हो ही कि साहब की बीपी कैसे नार्मल होती है ... पीए का बोलना था और दो से तीन मिनट के अन्दर ही रुपये इकट्ठे हो गए ... पीए गया, साहब आए, और डेढ़ से दो घंटे में शांतिपूर्वक मीटिंग संपन्न ... मीटिंग के बाद सभी अधिकारी आपस में चर्चा करते हुए - यार, मीटिंग के दिन कोई कोई साहब का ब्लडप्रेशर जरुर बढ़ा देता है और अपुन लोग ब्लडप्रेशर की भेंट चढ़ जाते हैं... उफ़ ! बड़े साहब का ब्लडप्रेशर !!

... जी चाहे है, मुहब्बत कर लें !!

लड़ते लड़ते लड़ जायेंगे, मरने से नहीं घवराएंगे
आज नहीं तो कल, देश की सीरत बदल जायेंगे !
...

पंदौली दे दे, ले ले के, साहित्यिक मंडली बनाई है
तमगों के समय, आपस में ही पीठ थप-थपाई है !
...
किसी की मुस्कुराहट, भा गई है हमें
सच ! जी चाहे है, मुहब्बत कर लें !!
...
हम अपने उस्ताद को सलाम करते हैं 'उदय'
उस्तादी ने चेला बन कर जीना सिखाया है !
...
सच
! बदलने को तो, रोज बदल रहा है ज़माना
उनका
क्या, जो खुद, खुद को बदलते नहीं है !!
...
इन्टरनेटी दौर में भी लोग छिप के बैठे हैं
'खुदा' जाने, क्यूं पर्दे से बाहर नहीं आते !
...
जो जीते रहे, सदा सदा से खुद के लिए
कैंसे मान लें, वो निकले हैं हमारे लिए !
...
जीते जी दौलत समेटने में उलझे हुए थे
एक चुटकी बजी, मौत ने सुलझा दिया !
...
जो व्यवस्था बदलने का दम भर रहे हैं
वो खुद को बदलने से, क्यूं डर रहे हैं !!
...
हमने कसम खा के पानी पी रक्खा है 'उदय'
दाद देंगे तो उसको, जिसके हम पैर छूते हैं !

Tuesday, October 11, 2011

अद्भुत लड़कियाँ !!

कल रात -
तुम गुलाबी पंखुड़ी सी
लाल लिबास में लिपटी हुई थीं
सिर से पांव तक
लाल, लाल, लाल
लाल चुनरी
लाल गाल
लाल होंठ
लाल ब्लाउज
लाल मेंहदी से रचे हाँथ
लाल घाघरा
लाल मेंहदी से सजे पांव !
नजर मेरी
बार बार ठहर-सी जा रही थी
तुम पर
तुम, कहीं ज्यादा ख़ूबसूरत
और हसीन थीं
अद्भुत ...
शादी की रात
लड़कियाँ
दुल्हन के लिबास में
सच ! अद्भुत होती हैं !!

जन लोकपाल बिल ... बना गले की हडडी !!

एक तरफ कुआ
तो दूजी तरफ खाई है
इसलिए ही
जन लोकपाल के मसले पर
सरकार ने
अनसुनी दिखलाई है !

करते क्या
और क्या न करते
मरना तो लगभग तय है
मान लेने पर
जेल जाने का भय है
तो न मानने पर
हार जाने का संकट तय है !

जन लोकपाल बिल
गले की हडडी बन गई है
न उगल पाने
और न निगल पाने का
संकट गहरा रहा है
और न ही कोई
संकटमोचक नजर आ रहा है !

हे राम ! अब क्या करें
कहीं ऐंसा न हो
न घर के रहें
और न ही घाट के
जन लोकपाल के चक्कर में
राज-पाट न छिन जाए
और तो और, कहीं
घाट घाट का
पानी न पीना पड़ जाए !!

पीएम पद अत्यंत जरुरी है !!

पीएम पद की दौड़, दौड़ते-दौड़ते
दम न निकल जाए !
पर, क्या करें, मजबूर हैं
कहीं ख़्वाब अधूरा न रह जाए !

सत्ता के नशे में चूर हैं
पीएम बने बगैर, मरना नहीं मंजूर है !

फिर से, हाँ भई, फिर से
निकल पड़े हैं
आख़िरी, शायद आख़िरी ही, दौड़ दौड़ने !

एक दिन
एक युवा कवि ने, कविता के माध्यम से
समझाया था, कुछ रास्ता सुझाया था
समाज सेवा का !

पर, क्या करें
समाज सेवा नहीं

जीते जी
पीएम पद अत्यंत जरुरी है !!

जगजीत सिंह ... एक लम्बे सफ़र के लिए !!

मुसाफिर था, तेरी गलियों में,
घड़ी-दो-घड़ी के लिए
अब चल पडा हूँ, एक लम्बे सफ़र के लिए !

तेरी यादों में, रहेगा अब बसर मेरा
सदा सदा के लिए !

गुनगुनाते फिरा, सदा सदा
मैं गीत तेरे लिए
अब चल पडा हूँ, एक लम्बे सफ़र के लिए !

याद आऊँ, तो तुम
गुनगुना लेना
गीत बन गया हूँ, अब मैं तुम्हारे लिए !

सदा सदा के लिए
अब चल पडा हूँ, एक लम्बे सफ़र के लिए !!

Monday, October 10, 2011

आलोचक ... और मन की पीड़ा !!

एक दिन एक युवा लेखक देश के जाने-मानें आलोचक से मिलने, समय लेकर पहुँच गया, पहुंचते ही चरण स्पर्श, प्रणाम, बगैरह कर उनके सांथ बैठ गया ! आलोचक महाशय भी बेहद प्रसन्न हुए कि - चलो कोई तो लेखक आया उनके पास सलाह-मशवरा लेने ... दोनों के चेहरों पे प्रसन्नता के हाव-भाव थे, फिर दोनों के बीच चर्चा शुरू हुई ! युवा लेखक ने भूमिका बांधते हुए कहा - बाबू जी आप सालों साल से आलोचना कर रहे हैं ऐंसा कोई कवि, लेखक नहीं होगा जिसकी आपने बाल की खाल न निकाली हो, मैंने बहुत कुछ पढ़ा है आपके बारे में, आप सचमुच एक महान आलोचक हैं !

युवा लेखक की मीठी मीठी बातें सुनकर आलोचक महोदय के चेहरे पर चमक के भाव परिलक्षित होने लगे, बातें सुनकर वे बोले - हाँ, सच कह रहे हो, अच्छे से अच्छे लेखन की बाल की खाल उधेड़ी है ! फिर युवा लेखक ने नम्रता पूर्वक आग्रह किया - बाबू जी मैं आपके पास यह जानने-समझने आया हूँ कि एक श्रेष्ठ लेखक बनने के लिए क्या क्या किया जाए अर्थात कैसा लेखन किया जाए, यह मुझे आपसे बेहतर कोई और नहीं समझा सकता, इसलिए आपके पास आया हूँ !

अच्छा ये बात है तो सुनो - अक्सर मैंने देखा है कि लेखकगण दिल के भावों के बीच में अपने मन की कल्पनाएँ भी घुसेड देते हैं, तुम ऐसा बिलकुल मत करना ... दूसरा - एक सब्जेक्ट के भीतर कभी भी दो-दो, तीन-तीन सब्जेक्ट मत घुसेड़ना ... तीसरा - समय के अनुकूल क्या पसंद किया जा रहा है उस पसंद के अनुरूप लेखन करना ... चौथा - व्यवसायिक भाव से लेखन बिलकुल मत करना ... पांचवा - जी-हुजूरी, चमचागिरी, भाई-भतीजावाद के भाव रूपी लेखन से सदैव दूर रहना ... बस ये ही कुछ छोटे-मोटे सूत्र हैं जिनका पालन कर एक श्रेठ व महान लेखक बना जा सकता है !

बाबू जी, एक बात और, आप बुरा मत मानना, आप में इतनी समझ व अनुभव है फिर आप आलोचना छोड़ के स्वयं लेखन क्यों नहीं करते ? ... ( कुछ देर मौन रहने के बाद ) यार क्या बताऊँ, एक-दो बार कोशिश की, किन्तु कुछ दमदार-झन्नाटेदार लिख नहीं पाया, सच बोलूँ तो लेखन कठिन काम है जो हर किसी के बस की बात नहीं है, और रही बात आलोचना की - उसमें रखा क्या है, कुछ भी नहीं, जिसकी चाहो - जब चाहो, उठाओ और बजा दो, पर एक बात सदैव याद रखना - आलोचनाएँ अमर नहीं होतीं, श्रेष्ठ लेखन अमर होता है, अब क्या बताऊँ - बस इतना कहूंगा, बनाना कठिन है और मिटाना सरल ... ठीक है बाबू जी ... चलता हूँ, प्रणाम !!

बेजुबां मुहब्बत ...

हम दीवाने होकर भी
उनके सामने कटघरे में
खड़े हैं
और उन्होंने
जिस्म के सौदागर को
जज बना दिया है !

अब
'खुदा' जाने, क्या होगा
मेरी बेजुबां मुहब्बत का
कहीं
सिसक सिसक के
दम न तोड़ दे !

या कहीं, ऐंसा न हो
केस के चलते चलते
बेगुनहगार -
साबित होते होते
मेरी मुहब्बत, माशूक
बेच दी जाए !
किसी अमीर के हांथों
खरीद ली जाए !!

और पहुँच न जाए
किसी -
फ़ार्म हाऊस में
फ़्लैट में
या
पंच सितारा होटल में !!

जगजीत सिंह की याद में ...

जगजीत सिंह की याद में ...
हार्दिक श्रद्धांजलि ...
उनकी ओर से कुछ पंक्तियाँ ... जो मेरे जेहन में उमड़ पडीं ...

सहेज पाना, नहीं अब मुमकिन
तुम्हारी यादें, यहीं
छोड़ जा रहा हूँ !

था ये कैंसा, कारवां जिंदगी का
जिसे छोड़ पीछे, मैं चला जा रहा हूँ !

कभी याद आऊँ, गुनगुना लेना मुझको
गीत सारे, यहीं छोड़ जा रहा हूँ !

Sunday, October 9, 2011

... रहम की गुंजाईश नहीं छोडी !

उफ़ ! अच्छी बात है, दोपहर होते होते, हम जाग रहे हैं
फिर भले चाहे, जो मन में आए, आंकलन लगा रहे हैं !
...
सच ! आज हम एक हुनर को देख के दंग रह गए
कमाल है, जूते उठाते उठाते लोग, मंत्री बन गए !
...
चेलागिरी अपने आप में एक हुनर है 'उदय'
सच ! चेला, खुद-ब-खुद छैला हो जाता है !
...
अपुन ने बहुतों को, चेलों का चेला बनते देखा है
बिना सिर-पैर की बातों पे, उनको हंसते देखा है !
...
किसी ने मुस्कुरा के, हमें अपना बना लिया है 'उदय'
अब क्या करें, उसे कुछ कहें, या इंतज़ार करें !!
...
किसी ने लाख छिपानी चाही थी, चाहत अपनी
उसकी आँखों ने मगर चुगली कर दी !

...
सच ! शब्द पैने हों या न हों, मोटे होने चाहिए
लिखने वाले की शकल पहचानी होनी चाहिए !
...
सच ! कल रात तक वो हमारे थे
सुबह सुबह होते हम उनके हो गए !
...
हर किसी को हक़ मिला है जोर आजमाईश का
कोई भ्रष्टाचार के सामने, तो कोई पीछे खडा है !
...
जिन्दगी में कहीं कोई बंदिशें नहीं थी
मौत ने रहम की गुंजाईश नहीं छोडी !

दर्द ...

उन्होंने, कसम खाई थी
दर्द
देने की
अब वो अपनी कसम
निभा रहे हैं
मगर क्या करें
हम, फिर भी उन्हें
याद
आ रहे हैं
उनके, याद करने से
याद करते रहने से
हम
उनके जीवन में
खुद-ब-खुद
चाहकर, न चाहकर भी
सांथ सांथ
बढे, बढे चले जा रहे हैं !!

... मुहब्बत अच्छी नहीं होती !

खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !!
...
लो मियाँ, मुंह खुद-ब-खुद मीठा हो गया
उन्हें देखते ही, मुंह में पानी आ गया !!
...
ये करतब देखे हुए हैं, शायद यहाँ या कहीं और
सच ! कलम की, गजब जादूगरी है !!
...
क्या खूब, ठोक-ठोक के पीटा है
लोहे का टुकड़ा, चीमटा हुआ है !
...
आई लव यू, लिख कर हमने एस एम एस किया है
अभी जवाब आया नहीं है, उसे अंग्रेजी नहीं आती !
...
इसका मतलब यह नहीं है कि - जान दे देंगे
तुम पे मरते हैं, मतलब तुम्हारे सांथ मरेंगे !
...
हुजुर, क्या आपके गुरु, बादशाह औरंगजेब के जमाने के हैं
जो घर से निकलते तो हैं, पर बिना हाथी के नहीं !!
...
साहित्यिक मार्केट में अपुन ने भी, एक दुकान लगा ली है 'उदय'
शब्द दिल की क्यारियों में फले-फूले हैं, बस ISI मार्का नहीं है !!
...
कल तक खूब गुमां था उन्हें, अपनी चाहतों पर
अब कहते फिरे हैं, मुहब्बत अच्छी नहीं होती !
...
नजर चुरा के देख रहे थे, देखते देखते किसी ने देख लिया
उफ़ ! यही बात कल तुमने कही थी, आज सब कह रहे हैं !

युवा लेखन ... और गहमा-गहमी !!

कल एक चेले के चेले
शायद उसके भी चेले के चेले ने कहा -
भाई साहब
आपका लेखन खूब "धूम" मचा रहा है
किन्तु -
आपके लेखन की "तारीफ़" की जाए या नहीं
अभी इस पर विचार - मंथन चल रहा है
वैसे आप अपना उत्साह
मेरी बातें सुन, मत बढ़ा लेना
बहुतों पर ...
पहले भी विचार - मंथन चला है
चलते रहा है
पर ...
साहित्यिक ज्यूरी की राय -
एक नहीं बन पाई थी, नहीं बन पाई है
कल की ही सुनो -
तुम्हारे नाम पर
जबरदस्त गहमा-गहमी हुई थी
कुछ तो सहमत थे
पर कुछ उखड़े उखड़े हुए थे
जो उखड़े थे, उनका कहना था
कि -
कल का छोकरा है, ब्लॉग ही तो लिख रहा है
कैंसे, उसकी 'तारीफ़' में कसीदे पढ़ दें
अभी तो किसी की सुनता नहीं है
पता नहीं, कल क्या से क्या करेगा
कहीं ऐंसा न हो
लोग हमारे गुण गाना छोड़
उफ़ ! उसके गुण गाने लग जाएं !
कल, बहुत ही गहमा-गहमी हो चुकी है
इसलिए -
कह रहा हूँ, लिखते रहो जनाब -
खूब लिख रहे हो
सिर्फ हम ही नहीं ले रहे हैं मजा
ज्यूरी के सारे सदस्य भी
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके, खूब ले रहे हैं मजा
आज, नहीं तो कल, तुम्हारी भी बारी आयेगी
लेखन के सांथ सांथ -
सच ! तुम्हारी भी जय जयकार हो जायेगी !!

Saturday, October 8, 2011

राजा बाबू ...

चमक-दमक भरी राजा की शान है
भूखा सो रहा आम इंसान है !

भरे पेटों को पकवान परोसे जा रहे हैं
आज, जहां चूल्हा नहीं जला है
वहां राजा बाबू नजर नहीं आ रहे हैं !

टीवी, कैमरा, फोटो, के लिए
तीर्थस्थलों का खूब दौरा लगा रहे हैं !

जहां आमजन -
मंहगाई से
गरीबी से
ऋण से
रोज दम तोड़ रहे हैं
वहां राजा बाबू नजर नहीं आ रहे हैं !

कितने अच्छे, कितने प्यारे, आँख के तारे हैं
हमारे राजा बाबू !

जिन्हें -
टूटी सड़कें
टूट रही इमारतें
अधूरी योजनाएं
भ्रष्ट अफसर, मंत्री
नजर नहीं आ रहे हैं
जिन्हें आधा-अधूरा, खुल्लम-खुल्ला छोड़कर
कुछ सीखने, कुछ पढ़ने, कुछ सहेजने
विदेश यात्रा पे चले जा रहे हैं
हमारे राजा बाबू !!

... तो कभी कडुवे लगे हैं !!

मैं चाहत था, पर किसी के संग नहीं था
मैं कुछ तो था मगर, कुछ भी नहीं था !
...

वो मरने के बाद खूब याद किये जा रहे हैं
जिन्हें जीते जी कभी पुकारा नहीं गया !
...
सत्ता के लालच ने ऐंसा पाठ पढ़ा दिया
खच्चर को गधे का बॉस बना दिया !!
...
लोग बे-वजह ही दौलत समेटने में मगन हैं 'उदय'
सच ! सब जानते हैं, खाली हाँथ जाना है !!
...
सच ! जहां बस्ती नहीं, वहां स्कूल बन रहे हैं
अब सरकार की मंशा, कोई बताये हमको !!
...
सच ! समझ समझ के फेर हैं, वही लडडू, वही शेर हैं
कभी मीठे, कभी फीके, तो कभी कडुवे लगे हैं !!
...
फक्र है मुझे दुश्मनों पे, जो सामने से टकरा रहे हैं
दोस्त हैं जो बे-वजह ही, पीठ पे खंजर चला रहे हैं !
...
टहलते टहलते हम कहाँ से कहाँ आ गए हैं 'उदय'
सच ! अब पीछे लौट पाना मुमकिन नहीं लगता !!
...
क्यूं सोचते हो, बदन की चाह में दीवाना हुआ हूँ मैं
ये भी सोच तनिक, बिना तेरे कुछ भी तो नहीं हूँ मैं !
...
कहीं ऐंसा न हो, एक चेहरे पे दूसरा चेहरा नजर आए
जिसे हम पूजने बैठें, हो पापी पर 'देवता' नजर आए !

पंच सितारा होटल ...

हे राम ! मेरे देश की
ये क्या
अजब-गजब
दुर्दशा
हो गई है, होते जा रही है !
ये कैसा
साहित्यिक संसार है
जहां, आज
उन्हें, मरने के बाद
पंच सितारा होटल में
स्मृति के बहाने
याद -
आमंत्रित किया जा रहा है !
जो जीते जी
झोपडी में
भूखे-प्यासे जीते रहे थे !!
...
वो मरने के बाद खूब याद किये जा रहे हैं
जिन्हें जीते जी कभी पुकारा नहीं गया !
!

Friday, October 7, 2011

सत्य-अहिंसा की पाठशाला ...

महात्मा गांधी के पदचिन्हों पे चलकर
उन्हें आदर्श मानकर
उनके बताये मार्ग पे कदम बढ़ाकर
आज, विश्व की तीन महिलाएं -
एलेन जोहान्सन सरलीफ
लेमाह जीबोवी
तबाक्कुल करमान -
ने नोवल शान्ति पुरुष्कार जीतकर
पुरुष्कार का मान बढाया है !
कौन कहता, कौन मानता है, कि -
महात्मा गांधी ज़िंदा नहीं हैं !
ज़िंदा हैं -
एक विचारधारा बनकर
सत्य-अहिंसा का पाठ बनकर
अनशन, आन्दोलन की रूप-रेखा बनकर
दिलों-दिलों में
घरों-घरों में
गाँव-गाँव में
शहर-शहर में
देश-विदेश में
शान्ति, सौहार्द्र, अनशन, आन्दोलन -
और सत्य-अहिंसा की पाठशाला बनकर !!

हिसाब-किताब ...

हे राम ! ये क्या हो रहा है
सरकार या जनता
दोनों में, न जाने
कौन सो रहा है
उफ़ !
मेरे मुल्क में
ये क्या जुल्म हो रहा है !

जो निकलते नहीं हैं बाहर
कभी, अमीरी रेखा से
वो आज, गरीबी रेखा पे
योजना बना रहे हैं
जिन्होंने
कभी खरीदी नहीं है दाल
वो दाल-रोटी का
हिसाब-किताब लगा रहे हैं !

हे राम ! अब क्या होगा
गरीब रोयेगा
या रोते रोते सो जाएगा
सोयेगा भी
या सोते सोते ही
राम नाम सत्य बोल जाएगा !
क्या कमाल है
मचा धमाल है
गरीब सन्न है
अमीर प्रसन्न है
गरीबों में मचा हा हा कार है
फिर भी सत्ता की जय जयकार है !!

... हर दौड़ हमारी जीती हुई है !!

ऐंसा नहीं मेरे मुल्क में, नोवल राईटर नहीं हैं
हैं तो बहुत लेकिन, वहां तक पहुंचे ही नहीं हैं !
...
उफ़ ! बिना पढ़े ही ख़त, फेंके थे फाड़ के
अब दर दर भटक रहा, पता ढूँढते मेरा !
...
ऐंसा नहीं कि मुल्क में हीरे नहीं हैं
अफसोस है कि - सहेजे नहीं गए !
...
सुलझते सुलझते रिश्ते उलझ गए
बैठे-ठाले ही, लेने के देने पड़ गए !
...
हमारे लाखों आदाब पे वो खामोश रहे
आज, खुदा हाफिज पे मुंडी हिला दी !
...
किसी ने क्या खूब संशय पाल रक्खा है 'उदय'
दिल पे, दिमाग पे, आँखों पे यकीं नहीं करता !
...
'रब' जाने, कौन, किस घड़ी जाग जाए
फिलहाल तो हम खुदी को आजमा रहे हैं !

...
जब तक मुकद्दर की चाबी भरी हुई है
सच ! हर दौड़ हमारी जीती हुई है !!
...
कोई टैग, कोई पोस्ट, तो कोई ग्रुप में जोड़े पड़े है
फेसबुक बला से कम नहीं, कोई कुछ पूंछता नहीं !
...
बड़ी मुश्किल से, उनसे किताबें लिखी गई होंगी
सुनते हैं, बिना पैसों के उनसे कलम नहीं उठती !

निष्पक्ष भाव ...

जब तक
दुर्भावना पूर्ण सोच -
भाई भतीजा वाद
हमारे-तुम्हारे जेहन में रहेंगे
तब तक, हाँ, तब तक
आलोचना
समालोचना
समीक्षा
विश्लेषण
सलाह योजनाओं में ...
निष्पक्ष भाव -
विचार
शायद, परिलक्षित नहीं हो सकेंगे
इसलिए
सर्वप्रथम, हमें
खुद को बदलना होगा
बगैर खुद को बदले
शायद, हम
दुनिया की सोच बदल पाएं
और हम, हमारा
असल चेहरा, असल व्यक्तित्व
देश, दुनिया के सामने ला पाएं
कब तक
हम, खुद को
दुनिया रूपी मंच पर
पीछे, बहुत पीछे, देखते रहेंगे
खुद को, खुद ही पीछे ढकेलते रहेंगे ...
आज, हमें, हमारी सोच को
खुद ही बदलना होगा
और निष्पक्ष भाव से ...
कदम दर कदम आगे बढ़ना होगा !!

... अपनों को गुनगुना रहे हैं !

दोस्ती का दंभ वो इस कदर भर रहे थे
लगा जैसे किसी किसी से डर रहे थे !
...
अजब खेल, गजब तमाशे चल रहे हैं
अपने ही अपनों को गुनगुना रहे हैं !
...
हमारी मुहब्बत को नक्काशी की जरुरत नहीं है 'उदय'
खुद सजती है, खुद संवरती है, चन्दा सी चमकती है !!
...
दोस्तों की दोस्ती हम जब से भुलाने लग गए
सुन रहे हैं तब से उन्हें चक्कर आने लग गए !
...
संघर्षों की इस दुनिया में संघर्ष हमारा नारा है
बिना घोर त़प किये किसने रावण को मारा है !
...
जोकर बना फिरा, जो ताउम्र दर-बदर
सहता रहा वो गम, हंसता हुआ मरा !
...
सच ! अजब खेल, गजब तमाशों का बोलबाला है
साहित्यकारों के अलावा सबका जय जयकारा है !
...
राम अकड़ गया, रावण का सिर खिसक गया
बिना सोचे-समझे, उठा के सस्पेंड कर दिया !
...

साहित्यिक ठेकेदारी खूब फल-फूल रही है
उफ़ ! सिर्फ कमीशन पर गाडी चल रही है !
...
रावण मिलते कदम कदम पे, ये कलयुग की माया है
राम खड़े चुप-चाप देखते, रावण ने रावण जलाया है !

Thursday, October 6, 2011

मैं रावण नहीं मारूंगा ...

भईय्या, मैं रावण नहीं मारूंगा, कोई कुछ भी कहे, कहता रहे, मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता ... अरे, क्या हो गया, क्यूं ऐंसा बड़बड़ा रहा है, क्या वजह है साफ़ साफ़ बता ... भईय्या, अब आप से क्या छिपाऊँ, जब आज तक कोई बात छिपाई नहीं तो फिर आज कैंसे छिपा दूं ... हाँ, बता क्या बात है ... भईय्या, मैं पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान चल रहा था मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है किन्तु डर के कारण मैं उसे कह नहीं पा रहा था, कल रात मेरे एक दोस्त की बर्थ-डे पार्टी थी मैं भी गया था वहीं पर हम दोनों दोस्त बीयर पी रहे थे बीयर पीते पीते मैं उस लड़की की याद में तनिक मायूस सा हो गया था तब मेरे दोस्त ने मुझे कहा - एक बीयर और पी ले सब टेंशन दूर हो जाएगा किन्तु मैंने नहीं पी ... बहुत बढ़िया बेटा, एक से ज्यादा बीयर कभी पीना भी नहीं चाहिए, तू समझदार बच्चा है !

... लेकिन भईय्या आगे तो सुनो, थोड़ी देर बाद एक "काली छाया" सी आकर मेरे सामने खड़ी हो गई और कहने लगी कि - तू क्यूं परेशान है राजेश ... मैं सहम सा गया, सोचने लगा कि यह क्या मुसीबत है, कहीं ज्यादा नशा तो नहीं हो गया ... वह फिर बोली - डर मत, मैं रावण के वंशस का हूँ और मैं अमर हूँ, पास से गुजर रहा था तुम्हारा दुःख देखा नहीं गया इसलिए तुम्हारे पास आ गया हूँ अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ ... मैंने कहा - क्या ... जो तुम बोलो ... अच्छा, मुझे हिम्मत दो कि मैं जिससे प्यार करता हूँ उसे प्यार का इजहार कर दूं ... लगाओ फोन - बोल दो, डरो मत, मैं हूँ, लगाओ लगाओ ... मैंने फोन लगा कर - आई लव यू कह दिया, सामने से लड़की भी नाराज नहीं हुई किन्तु उसने जवाब नहीं दिया, मैं खुश हुआ, बहुत खुश हुआ !

... फिर मैंने उसे बैठने को कहा ... वह बैठ गया और बोला - दो बीयर बुलवाओ इंजॉय करेंगे ... फिर जैसा जैसा वह बोलता गया मैं करता गया, कितनी पी, कितना मुर्गा खाया, और कौन मुझे घर छोड़ गया, मुझे याद नहीं है, पर मेरी एक सबसे बड़ी समस्या का समाधान निकल गया, मैंने कल उसको आई लव यू बोल ही दिया, अब आप ही बताओ भईय्या कैसे मैं रावण को मारने जा सकता हूँ ... तू सरक गया है, ये क्या फिजूल की बकवास कर रहा है, तुझे तो तेरा दोस्त अनिल घर छोड़ के गया था पर तूने बहुत पी रखी थी, आज के बाद यह सब बर्दास्त नहीं होगा, और रही दूसरी बात - आई लव यू, देख कहीं तुझे लेने के देने न पड़ जाएं ... कुछ समझा नहीं भईय्या आपका मतलब ... अरे यार तूने नशे की हालत में आई लव यू बोल दिया है कहीं लड़की पुलिस-वुलिस में कम्पलेंट न कर दे या घर में शिकायत न कर दे ... बात तो सही कह रहे हो भईय्या, पर कल रात उस "काली छाया" की मेहरवानी से मेरा एक टेंशन तो मिट गया, अब देखेंगे जो होगा ... पर मैं तो आज रावण को मारने नहीं जाने वाला, आखिर उसके वंशज की मदद से अपुन का टेंशन दूर हुआ है ... ठीक है जैसी तेरी मर्जी !

... भाई के कमरे से बाहर जाते ही "काली छाया" फिर से प्रगट हो गई, देख कर राजेश सन्न हो गया ... वह बोली - डरो मत, कल रात से अपुन दोनों दोस्त हो गए हैं, जल्दी तैयार हो जाओ, आज अपुन मौज-मस्ती करने जंगल चलते हैं घर पर अनिल इंतज़ार कर रहा होगा, और हाँ तुम्हारी प्रेमिका का भी तुमको फोन आने वाला है ... ऐंसा है क्या ! तब तो लो फटा-फट तैयार हो जाते हैं ... और राजेश पंद्रह मिनट में ही नहा-धोकर तैयार हो गया ... और चाय पीते पीते प्रेमिका का फोन भी आ गया तथा उससे बातें कर राजेश प्रसन्न हो गया ... फिर क्या था, राजेश को लगा कि -उसकी निकल पडी है कोई "अद्भुत शक्ति" से दोस्ती हो गई है जो हर पल, हर घड़ी मदद में है और अब मौजे ही मौजे ... भाई के लाख समझाने पर भी राजेश नहीं माना और रावण दहन के कार्यक्रम का पूर्णरूपेण त्याग करते हुए मित्र अनिल के सांथ जंगल की सैर पर निकल गया ...
क्रमश : ... कहानी जारी है ... पार्ट - २ ... ब्रेक के बाद ...

रावण ...

एक दिन ऐंसा भी आयेगा
रावण
वादा कर
जलने से ...
मरने से ... मुकर जाएगा !

लड़ते लड़ते ... अड़ जाएगा
सामने ...
रावण रूपी राम को देखकर
मरने से
वह पीछे हट जाएगा !

कह देगा, ... वो कह देगा
नहीं मरुंगा, ... नहीं मरुंगा
कलयुगी राम -
के हांथों से
अब मैं नहीं मरुंगा !

कैसे ... मैं मर जाऊं ...
आज, उन हांथों से, जो खुद ही
भ्रष्ट
कपटी
पापी
दुष्ट
घुटालेबाज हुए हैं !

जन ... गण ... मन ...
जिनसे -
त्रस्त हुए हैं !
एक दिन, ऐंसा भी आयेगा
रावण -
मरने से पीछे हट जाएगा !!

दशहरा पर्व ...

बेहद मुश्किल ... दुष्कर्मों को
जो कभी ...
मुझे ... बहुत प्रिय हुआ करते थे
उन्हें,
शनै: शनै: छोड़ चुका हूँ !

सबसे पहले ... नान वेज
फिर ... वाइन
उसके बाद ... स्मोकिंग
अब ... महसूस कर रहा हूँ
बेहद सुकूं ... !

अब ... आगे ... धीरे-धीरे
एक-दो और नित्य कर्मों पर
ध्यान है मेरा,
देखें ... अब-कब,
उनकी बारी आयेगी !

पर
यकीं है, मुझे ... खुद पर
वह दिन दूर नहीं
जब
मैं भी ... नेक इंसा बन जाऊंगा !

फिर ... मैं भी ...
रावण दहन ... देखने
रामलीला मैदान ... जाऊंगा
उस दिन ... दशहरा पर्व
मैं भी ... धूम-धाम से मनाऊंगा !!
... ... ... ... ... ... ... ...
सभी मित्रों को दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ...

Wednesday, October 5, 2011

रावण की नाराजगी ... संशय में राम !

दशहरा पर्व के दिन ... शाम होते होते सारे शहर में हल्ला हो गया कि - रावण ने जलने से मना कर दिया है ... खबर फैलते हीचहूँ ओर, संशय का विकट वातावरण निर्मित हो गया ... यह खबर आग की तरह रावण का दहन करने वाले राम अर्थात शहर के सबसे दबंग नेता जी तक भी पहुँच गई ! अब चूंकि नेता जी एक पावरफुल मंत्री थे इसलिए सारा प्रशासनिक अमला और उनके चेले-चपाटे खबर की पुष्टि करने के लिए दौड़ पड़े ... कुछ ही देर में खबर की पुष्टि करने वालों की ... मंत्री जी के बंगले पर भीड़ लग गई ! 

जब सारे पुष्टिकर्ता आ गए ... तब मंत्री ने स्वयं सभी से चर्चा की ... चर्चा पर असल मसला सामने आया कि - शाम चार बजे रावण निर्माण का फिनिशिंग काम चल रहा था तब अचानक एक आवाज गूंजने लगी ... आवाज सुनकर बनाने वाले कारीगर डरने लगे, तब अचानक रावण रूपी एक विशाल आकृति प्रगट हुई और कहने लगी कि - "आज मुझे कोई राम प्रवृति का इंसान ही जलाएगा, यदि ऐंसा नहीं हुआ तो ... जो मुझे जलाएगा उसे चौबीस घंटे के अन्दर मैं जलाकर राख कर दूंगा" ... सुनते ही मंत्री जी चिंतित हो गए, मीटिंग हाल में सन्नाटा-सा पसर गया !

कुछ देर बाद मंत्री जी सहमे सहमे से बोले - अब क्या किया जाए ? ... कुछेक जुझारू प्रवृति के लोग बोल पड़े ... कुछ नहीं होता सर ... आप डरिए मत ... यह सब फिजूल बकवास जैसा है ... और फिर आप भी तो साक्षात भगवान राम ही हैं ... हाँ सर, आप भगवान राम से कम नहीं हैं ... मंत्री जी को ये सारे सुझाव मरवाने वाले सुझाव लग रहे थे, कुछ देर गमगीनी माहौल के बाद मंत्री जी ने मीटिंग हाल से सभी को बाहर बैठने का निर्देश दिया !


सभी के बाहर निकलते ही मंत्री जी अपने चहेते एक अधिकारी व अपने एक ख़ास आदमी से गुप्त रूप से बोले - आप दोनों त्वरंत जाओ, और रावण से हाँथ जोड़कर प्रार्थना करो कि - इस समस्या का कोई हल वे स्वयं बताएं ... उनसे आग्रह करो कि - मंत्री जी आपका दहन करना चाहते हैं यह उनकी मजबूरी है ... इसलिए आप स्वयं ही कोई उपाय सुझाएँ ... ऐंसा क्या किया जाए जिससे आप नाराज न हों, और आपकी नाराजगी का असर हमें मंत्री जी को खोकर न उठाना पड़े, ... और हाँ, सीधेतौर पर हाँथ जोड़कर प्रार्थना में बता देना कि मंत्री जी राम प्रवृति के नहीं है, कहीं कोई संशय न रहे ... जी सर ... !

लगभग आधे घंटे के बाद ... दोनों महाशय रावण से प्रार्थना-अर्चना कर वापस आकर मंत्री जी से मिले तथा बोले ... सर, मसला बेहद गंभीर है, रावण की आत्मा साक्षात प्रगट हो रही है, सर्वप्रथम तो माननीय रावण साहब भड़क गए और कहने लगे कि - तुम लोगों ने ये क्या मजाक बना कर रखा हुआ है, क्या तुम्हें इतने बड़े शहर में कोई राम जैसे स्वभाव का इंसान नहीं मिलता जो तुम शहर के सबसे दुष्ट व पापी इंसान से मेरा सालों से दहन करवा रहे हो, ... बहुत हो गया, अब मुझसे बर्दास्त नहीं होगा, जाओ चले जाओ !


फिर ... फिर हम दोनों उनके चरणों में गिर पड़े तथा अपनी मजबूरी व्यक्त किये, तब कहीं जाकर वे तनिक शांत होकर बोले - अच्छा ये बात है, ठीक है जाकर अपने रामरुपी मंत्री को बोल दो कि - मुझ पर तीर चलाने के पहले हाँथ जोड़कर मुझसे प्रार्थना करते हुए अपनी मजबूरी व्यक्त करने के बाद ही तीर चलाये, नहीं तो ... और हाँ, आप लोगों ने ये जो ढोंग बना कर रक्खा है कि शहर का सबसे बड़ा पापी व दुष्ट इंसान मुझे हर साल मार कर नाम कमा रहा है वह जल्द बंद कर दो अन्यथा ... यह सब देखते देखते अब मुझे क्रोध आने लगा है, कहीं ऐंसा न हो ... जो मेरा दहन करने आ रहा है उसका ही मैं दहन शुरू कर दूं !

बातें सुनते ही मंत्री जी सन्न हो गए तथा कुछ देर के लिए पुन: सन्नाटा-सा छा गया ... कुछ देर बाद लम्बी गहरी सांस लेते हुए मंत्री जी बोले - चलो ठीक है, जान में जान आई ... इस बार तो छुटकारा मिल गया, अगली बार का अगली बार देखेंगे ... दोनों बोल पड़े - जी सर, पर मामला बेहद संगीन होते जा रहा है, कोई न कोई हल निकालना पडेगा " रावण दहन" का ... कहीं ऐंसा न हो कि लेने-के-देने पड़ जाएं ... क्योंकि अभी सालों-साल तक आपको ही रावण दहन करना है ... 
ठीक है, चिंता जायज है, बाद में मुख्यमंत्री जी से बात करेंगे ! 

ठीक शाम सात बजे ... निर्धारित समयानुसार मंत्री जी ने रामलीला मैदान पहुँच कर ... मंच से, दूर से ही मन ही मन रावण से  क्षमा प्रार्थना की तथा प्रार्थना करने के बाद ही तीर चलाया ... तीर चलते ही ... चारों ओर ... फटाकों की गूँज ... शोर-गुल ... आतिशबाजी ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... के नारे गूंजने लेगे तथा मैदान में सभी लोग एक-दूसरे से गले लगने लगे ... चारों ओर ... बधाई ... बधाई ... जय श्रीराम ... जय श्रीराम ... नारों व खुशियों के बीच रावण दहन का कार्यक्रम संपन्न हुआ ... इन सब के बीच ...  मंत्री जी सन्न ... उपस्थित जनता प्रसन्न ...  और रावण तनिक खिन्न ... नजर आये ... जय श्रीराम !!

... जज्बे तूफानी चाहिए !

घोषित लोकशाही, अघोषित तौर पे राजशाही है 'उदय'
कभी विरासत, तो कभी वसीयत की जय जयकार है !
...
जाने क्यूं, मुल्क मेरा सौदे की मंडी हुई है
चप्पे-चप्पे पे, खुदी का सौदा कर रहे हैं लोग !
...
सर्द फिजाओं में भी, सहमे सहमे से क्यूं हो 'उदय'
मौके की नजाकत देख के, तनिक सिमट के चलो !
...
जिन्हें उठा लेना था अब तक बंदूकें हांथों में
जाने क्या हुआ उनको, जो सहमे हुए हैं !
...
उम्मीदों भरे जिस्म, नाउम्मीदी में सुलग रहे थे
यार तो बैठा था सामने, मगर खामोश बैठा था !
...
मरते मरते जज्बात, जी पड़े हैं 'उदय'
खबर है कि उधर, वो भी बेचैन हुए हैं !
...
चवन्नी से जियादा औकात नहीं थी जिनकी
आज क्या खूब सियासत चल रही है उनकी !
...
सूखी रोटी चबा-चबा के, चटनी चांट लेते हैं
उफ़ ! गरीबी में, यही हमारे माल-पुआ हैं !!
...
खानदानी सूरमाओं को कोई समझाओ यारो
बे-वजह झूठी शान बघारी में रक्खा क्या है !
...
आज मेरे मुल्क को एक नई इंकलाबी चाहिए
बस तेरे मेरे जेहन में, जज्बे तूफानी चाहिए !