जनाब, अक्सर ऐसे ही होते हैं हमारी संसद के नज़ारे
साल में बहुत ही कम दिन होते हैं जो काले नहीं होते ?
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भोले-भाले लोगों को, वो, अब भी मूर्ख समझ रहे हैं 'उदय'
जबकि, देश का 'आम आदमी' जाग रहा है, जाग गया है ?
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कितना समझाया था, 'आम आदमी' को हल्के में मत लो
लो, अब, सब पे,...................... पड़ रहा है न भारी ??
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वो जो, 'आम आदमी' को संवैधानिकता का पाठ पढ़ा रहे थे 'उदय'
आज उन्ने ही, क्या खूब पेश की है असंवैधानिकता की मिसाल ?
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सब जानते हैं, सत्ता अदरक नहीं है और वो बन्दर नहीं हैं
बस, ये बात सत्ता के सौदागरों को कौन समझाये 'उदय' ?
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1 comment:
सामयिक
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