Tuesday, June 1, 2010

क्या मेरा भला संभव है ?

दो भाई .. एक थानेदार ... दूसरा लेखक ... थानेदार भाई ने फ़ोन लगाया ... हां बोल अनुज ... भईया प्रणाम ... खुश रह ... भईया, ये घिसटना क्या होता है ? ... अरे यार तू भी कमाल करता है ... अरे जिसका कोई नही होता वह अपना जीवन ऎसे ही .. धीरे धीरे .. भगवान भरोसे घिसट-घिसट कर काटता है ... दूसरे शब्दों में कहूं तो ... जिसके समर्थक न हों, कोई पंदौली देने वाला न हो, जिसका कोई सालिड बेकग्राउंड न हो, जिसे जी-हजूरी न आती हो, जो चमचागिरी नहीं जानता हो, जो भईया-दादा न हो, जो अकड के चलता हो, बगैरह बगैरह .... अक्सर ऎसे लोग अपना जीवन घसिटते-घसिटते ही काटते हैं ....

... हां भईया समझ गया .... भईया मैं आपकी चमचागिरी तो करता हूं, आप मुझे पंदौली देते रहना, कम से कम मेरा जीवन तो ठीक-ठाक कट जायेगा ... फ़िर पकाने बैठ गया, ये बता तुझे कभी लगा कि मैने तेरा भला नहीं किया ... नई भईया... आपके पैर पकड-पकड कर तो मैं यहां तक पहुंचा हूं ... आपके एहसान तो शायद मैं सात जन्मों मे भी न उतार पांऊ ... अगर आप न होते तो, न जाने मैं कहां पडा होता ... चल ठीक है, अब ज्यादा भावुक मत हो ... बता क्यों फ़ोन लगाया ...

... क्या बोलूं भईया ... नये नये थानेदार आये हैं ... लगता है अब नौकरी करना मुश्किल हो जायेगा ... क्यों, क्या हो गया ... ये नये नये लडके कंधे पर दो-दो स्टार लगाकर भी मंत्रियों व नेताओं के पैर ऎसे उछल कर पकडते हैं जैसे मेंढक अचानक कूदकर पैर पर चढ जाता है ... भईया-भईया कहते आगे-पीछे घूमते रहते हैं जैसे उनकी पार्टी के युवा कार्यकर्ता हों ... इन लोगों ने धीरे धीरे पुराने लोगों को भसकाना शुरु कर दिया है ... लगता है अब मेरा भी नंबर लगने वाला है ... चल ठीक है, समय बदल गया है, पर इतना भी नहीं कि ईमानदार लोगों को मौका नही मिलेगा ...

... पर लगता है कुछ बदलाव तो आ रहा है ... कल की ही बात है ... अपने शास्त्री जी (मंत्री) ने याद किया था तो शाम को चला गया था ... कुछ पर्सनल था इसलिये एकांत में गार्डन में आधे घंटे चर्चा चली ... उनके बंगले पर भीड थी, कुछ आते ही जा रहे थे ... चर्चा के पश्चात शास्त्री जी ने हाथ जोडकर गले लगकर विदा किया ... बाहर निकलते निकलते उनके खास सिपहसलारों ने मेरे पैर छूकर आशीर्वाद लिया ... ठीक उसी समय लपक कर दो पुलिस अधिकारी भी आ गये और पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगे, दोनों के कंधों पर तीन-तीन स्टार चमक रहे थे, आशीर्वाद दे कर मैं तो चला आया ...

... मुझे लगा, दूर-दराज के रिश्तेदार होंगें, शायद मैं ही नहीं पहचान पा रहा हूं ... अरे नई भईया, वे कोई रिश्तेदार-विश्तेदार नहीं हैं ... कहीं दूर दूर तक मेरे अलावा कोई दूसरा पुलिस वाला आपके पहचान में भी नही है ... बात दर-असल ये है कि उन्होंने आपको और मंत्री जी को गुप्त चर्चा करते हुए देख लिया था, वे समझ गये कि आप "दम-खम" रखते हो, तब ही तो मंत्री जी ने आपसे गुप्त चर्चा की है, इसलिये मौके का फ़ायदा उठाते हुए, दोनों ने आपका आशीर्वाद ले लिया .... भईया अब ये बताओ, उन दोनों में से कोई एक कल सुबह सुबह आपकी चौखट पे आकर, पैर छूकर आशीर्वाद मांगने लगे, तो क्या आप आशीर्वाद नहीं दोगे ?

... अरे तू फ़िर गलत मतलब निकालने बैठ गया ... नई भईया, मैं कोई गलत मतलब नहीं निकाल रहा हूं, बिलकुल ऎसा ही हो रहा है... पूरे विभाग में ... इसलिये ही तो कह रहा हूं कि अब नौकरी करना मुश्किल लग रहा है ... आप तो जानते हो पूरे बीस साल काट दिये विभाग में, आज तक किसी मंत्री-अधिकारी के पैर नहीं छुए ... अब आप मुझे ये बताओ, यदि कल उन दोनों में से कोई भी एक और मैं ... किसी अधिकारी या मंत्री से मिलते हैं ... वो लपक के पैर छू ले ... और मैं सल्यूट मार के खडा रहूं ... तब क्या मेरा भला संभव है ???

11 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बस चमचा में ही सुखसागर समाया है
जिसने चमचागिरी की वही माल खाया है।

आत्मसम्मान से जीने वालो की पीड़ा का वर्णन किया है आपने।

लेकिन जो आत्मा और सम्मान का गला घोंट कर जीते हैं वे मरे समान ही हैं

इसलिए जीयो तो सम्मान के साथ मरो तो सम्मान के साथ

अच्छी पोस्ट आभार

kshama said...

Mauqa parasti to is jahan me sadiyon se chali aa rahi hai...chand eemandaar logon ke karan duniya mauqaparaston ke baavjood chal rahi hai..

परमजीत सिहँ बाली said...

यही है आज की सच्चाई।बढिया पोस्ट के लिए आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच बताता प्रसंग....सब मौके की ताक में रहते हैं

arvind said...

bahut hi damadaar, byavasth ki pol kholate majedaar vyangya, prastuti bahut badhiya....aabhaar.

Anonymous said...

वो लपक के पैर छू ले ... और मैं सल्यूट मार के खडा रहूं ... तब क्या मेरा भला संभव है ???

बेहद कड़ुवा सच

Udan Tashtari said...

यही आज की दुनिया में जीने का तरीका हो गया है. चमचागीरी की जय!!

Ra said...

मजेदार तरीके से सच को उजागर करती पोस्ट !

राज भाटिय़ा said...

हम साले उजड ही रहे....ब्स यही सलीका ना आया..वर्ना हम भी कहां के कहां पहुच जाते:)

सूर्यकान्त गुप्ता said...

भक्ति भी उचित माध्यम के द्वारा। कोटि कोटि नमस्कार उदय भाई।

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

badhiya prastuti