
नक्सली कमांडर आजाद की मौत को ह्त्या मानने का सीधा-सीधा तात्पर्य पुलिस को हत्यारा घोषित करना है जब एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे ह्त्या मान सकता है तो कल उसे शहीद की पदवी से भी नवाजा जाएगा ... धन्य है लोकतंत्र की माया जहां कुछ भी संभव है ।

मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना तो यह है कि जमीन व जंगल में सक्रीय नक्सली, शान्ति वार्ता की पहल कर रहे बुद्धिजीवियों के नियंत्रण से बहुत बाहर हैं यदि ऐसा नहीं है तो वे एक बार आजमा कर देख लें, कहीं ऐसा न हो कि शान्ति वार्ता का कोई सकारात्मक नतीजा निकल आये और नक्सली अपनी मनमानी करते हुए फैसले को मानने से साफ़ तौर पर इंकार कर दें ... ज़रा सोचो उस समय क्या होगा !!

एक बात और उभर कर चल रही है वो है माओवाद, नक्सलवाद को माओवाद की संज्ञा से क्यों पारितोषित किया जा रहा है, नक्सलवाद और माओवाद में जमीन - आसमान का फर्क है दोनों के मूलभूत सिद्धांतों व उद्देश्यों की व्यवहारिकता में कोई मेल नहीं है और न ही हो सकता है ।
नक्सलवाद एक समस्या है इसके समाधान के लिए शांतिवार्ता का मार्ग भी अपनाया जा सकता है पर शांतिवार्ता के लिए भी कुछ समय सीमा तय किया जाना बेहतर होगा अन्यथा समय बर्बाद करने से ज्यादा कुछ नहीं जान पड़ता ... बेहतर तो ये होगा कि नक्सली उन्मूलन के लिए एक ठोस व कारगर रणनीति तैयार की जाए तथा नक्सलियों का राम नाम सत्य किया जाए ।
6 comments:
एक समय के पहले तक बातचीत लाभप्रद रहती है, उसके बाद लोग हवा पा बहकने लगते हैं।
दोनों तरह के नक्सलवाद देश को खतरनाक हैं, चाहे वह सरकारी हो या विदेशों से प्रायोजित...
नक्सलवाद खतरनाक हैं
समसामयिक और विचारोत्तेजक आलेख। हमने देखा है कि पहले भी कई शांति के प्रयास सफल हुए हैं। आपकी इस बात से सहमत हूं कि शांतिवार्ता के लिए भी कुछ समय सीमा तय किया जाना बेहतर होगा। यह भी सही है कि इस समस्या से निज़ात पाने के लिए एक ठोस व कारगर रणनीति तैयार की जाए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आपकी बात से सहमत हूँ .... नक्सलवाद एक समस्या है ....
Behtarin post shyam bhai.
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