Monday, May 25, 2015

लू-औ-लपटें ...

पगडंडी भी कच्ची है,
औ हाईवे भी कच्चा है,
क्या डगर पे चलने का इरादा उनका पक्का है ?

कठिन डगर है ? या फिर …
पांवों में छालों का डर है ??

एक ओर, लू-औ-लपटें हैं,
एक ओर ठंडे कमरे हैं,
गर नहीं, … हाँ … हूँ … तो फिर …

लाल भी अपने हैं,
माटी भी अपनी है,
पगडंडी भी अपनी, हाईवे भी अपना है,
क्या डगर पे चलने का इरादा उनका पक्का है ???

Thursday, May 21, 2015

पक्की-सच्ची ...

चलो लिखें, हम भी लिखें
एक कविता अच्छी लिखें 

लूटा-लाटी …
चूमा-चांटी …
बांटा-बांटी …

पक्की लिखें, सच्ची लिखें
पर, चोरी की कुछ न लिखें ?

Wednesday, May 6, 2015

मुहब्बत का हिसाब ...

तस्वीरों की खूबसूरती तो महज इक इत्तफाक है 'उदय'
सच तो ये है कि - उनकी धड़कनों में बसती है कविता ?
सच ! वो सवालों पे सवाल दाग देंगे 'उदय'
गर, जुर्रत की, गिरेबां झांकने की तुमने ?

चाहें, न चाहें, देख कर तुझको, अदब से हाथ उठ जाता है आदाब को
समझ से परे है दोस्त, हम तेरे दीवाने हैं या तेरे कातिलाना नूर के ?

रंज … गम … औ मुहब्बत का हिसाब मत पूछो
कभी हारे … कभी जीते … मगर नुक्सान में हैं ?