बे-वजह, क्यूँ तड़फ रहे हो खामोशियों में
आँखों से ही सही, कुछ कह के तो देखो ?
…
भईय्या आज से अपुन भी समाजसेवी हो गए हैं
खुद अपुन ने ही,
अपने नाम के नीचे समाजसेवी लिख लिया है ?
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सच ! हम भ्रष्ट सरकारों के आदि हो गए हैं 'उदय'
गिरने दो, इकलौती……एक ईमानदार सरकार ?
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सच ! न कोई खता,
और न कोई कुसूर है हमारा
फिर भी,
मुहब्बत की कचहरी में
है आज हमारा कोर्ट मार्शल ?
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2 comments:
मुहब्बत की कचहरी - waah
जय हो, शुभकामनायें।
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