Tuesday, April 13, 2010

"खुदा महरवान तो गधा पहलवान"

आज मन में कुछ लिखने का विचार नहीं बन रहा था ....क्या लिखूं कुछ समझ में नहीं रहा था .... तभी दिमाग में एक बिजली कौंधी .... "चलो आज "भगवान" का बाजा बजाया जाये !" .... अरे भाई भगवान का ही क्यूं ... धरती पर क्या बाजा बजाने के लिये "गधे" कम पड गये हैं ... गधे कम नहीं पड गये हैं बल्कि उनकी संख्या दिन--दिन बढते जा रही है .... इसलिये ही तो "भगवान" का बाजा बजाने का मन कर रहा है .... देख के भाई जरा संभल के ... अब संभलना क्या है ... आज तो "भगवान" से पंगा लेकर ही रहेंगे ....

.... हुजूर ... माई-बाप ... पालनहार ... अरे इधर-उधर मत देखो "प्रभु ...अंतरयामी" ... मैं आप ही से बात कर रहा हूं बात क्या कर रहा हूं सीधा-सीधा एक सबाल पूंछ रहा हूं .... धरती पर "गधों" की संख्या दिन--दिन क्यों बढाये पडे हो ? .... भगवान जी सोचने लगे ... ये कौन "सिरफ़िरा" गया ... क्या इसे मैंने ही बनाया है !! .... भगवान जी चिंतित मुद्रा में ... चिंतित मतलब "नारद जी" प्रगट .... मैं समझ गया कि आज मेरे प्रश्न का उत्तर मुश्किल ही है ...

.... भगवान जी कुछ बोलते उससे पहले ही नारद जी बोल पडे .... नारायण-नारायण ... प्रभु ये वही "महाशय" हैं जो श्रष्टी की रचना करते समय "मीन-मेक" निकाल रहे थे, जिनके सबालों का हमारे पास कोई जबाव भी नही था जिन्हें समझा-बुझाकर कुछ समय के लिये शांत कर दिये थे आज-कल धरती पर समय काट रहे हैं ..... भगवान जी त्वरत आसन से उठ खडे हुये .... और नारद से पूंछने लगे ...

.... धरती पर गधे नाम के जानवर की संख्या तो कम हो रही है फ़िर ये कैसे हम पर आरोप लगा रहे हैं कि हम गधों की संख्या बढा रहे हैं .... प्रभु ये तो मेरे भी समझ में नहीं रहा ... चलो इन्हीं से पूंछ लेते हैं .... मैंने कहा- मेरा सीधा-सीधा सबाल है धरती पर "गधों" की संख्या दिन--दिन क्यों बढ रही है ? ... फ़िर आश्चर्य के भाव ... मेरा मतलब धरती पर "गधे टाईप" के मनुष्य जो लालची, कपटी, बेईमान, धूर्त, मौकापरस्त, लम्पट हैं उनसे है ...

.... उन पर ही आप की महरवानी क्यों हो रही है ... वे ही क्यों मालामाल हो रहे हैं .... वे ही क्यों मलाई खा रहे हैं ... उनको देख-देख कर दूसरे भी "गधे" बनने के लिये दौड रहे हैं .... किसी दिन धरती पे के देखो .... वो कहावत चरितार्थ हो रही है ...
"खुदा महरवान तो गधा पहलवान" .... मैं तो बस यही जानना चाहता हूं ... आप लोगों की महरवानी से "कब तक गधे पहलवानी करते रहेंगे"..... भगवान जी पुन: चिंतित मुद्रा में ... तभी नारद जी ... नारायण-नारायण ... प्रभु आपके सबाल का जबाव सोच रहे हैं ... मेरी एक समस्या है उसे सुलझाने मे मदद चाहिये .... नारद जी की समस्या ... समस्या क्या उनकी बातें सुनते सुनते फ़िर धरती पे गये .... मैं समझ गया आज जबाव मिलने वाला नहीं है .... लगता है "खुदा" की महरवानी से गधे पहलवानी करते रहेंगे !!!

13 comments:

M VERMA said...

किसको गधा मान रहे हैं आप. गधे तो गधे हैं ही उन्हें गधा कहेंगे तो वे बुरा मान सकते हैं. इंसानी गधे तो इतने गधे हैं कि वे किसी बात का बुरा मानते ही नहीं हैं.

राजीव तनेजा said...

वाह!...बहुत ही बढ़िया व्यंग्य

उम्मतें said...

बढ़िया :)

संजय भास्‍कर said...

वाह!...बहुत ही बढ़िया व्यंग्य

संजय भास्‍कर said...

वाह!...बहुत ही बढ़िया व्यंग्य

jamos jhalla said...

राम राम गधे को गधा?

रश्मि प्रभा... said...

karara vyangya....

कडुवासच said...

सम्माननीय साथियों
इस पोस्ट का टाईटल/हैडिंग बदल दिया हूं पहले "चलो आज "भगवान" का बाजा बजाया जाये !" रखा था फ़िर मन की इच्छानुसार "खुदा महरवान तो गधा पहलवान" रख दिया हूं !
बस मन की बात है !
धन्यवाद!

Udan Tashtari said...

नारायण नारायण!!

Anil Pusadkar said...

सटीक.

स्वप्न मञ्जूषा said...

सटीक....

मनोज कुमार said...

वाह!...बहुत ही अच्छा व्यंग्य!

द्रष्टिकोन said...
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