Monday, June 27, 2016

उठो ... जागो ... जगाओ ... ?

हम जनता हैं
अब हम ... आम आदमी नहीं
मामूली आदमी हैं,

हमारी कुछ मजबूरियाँ हैं
कुछ जरूरतें हैं,

हम तुम्हारी बात नहीँ मानेंगे
नहीं सुनेंगे
कि -
सस्ता माल खरीदना बंद कर दो
चाइनीज माल खरीदना बंद कर दो,

क्यों ?
क्योंकि -
हम मामूली आदमी हैं
गरीब हैं
हमारी औकात नहीं है
मंहगे सामान खरीदने की,

गर ... हमें चाइनीज माल
बाजार में दिखेंगे
तो हम
जरूर खरीदेंगे,

अगर तुम में दम है
तो चाइनीज माल का इम्पोर्ट बंद करा दो,

जब माल देश में आएगा ही नहीं
तो हम खरीदेंगे कैसे ?

ये बात ...
हमें समझने या समझाने की जरुरत नहीं है
कि -

चाइना हमसे खुन्नस रखता है
हमारे साथ दुश्मनी निकाल रहा है,

ये सब ... हम ...
समझते हैं
क्योंकि -
हम मामूली आदमी हैं,

पर ... अगर ... ये बात ...
किसी को समझने की जरुरत है
तो वो ... सरकार को है ...
साहब को है,

गर ... ये बात ...ये ... समझ गए ... तो
चाइना को ईंट का जबाव पत्थर से मिल जाएगा,

नहीं तो ... वो ...
ईंट मारते रहेगा, गोटी-कंकड़-पत्थर ...
फेंकते रहेगा ... उछालते रहेगा
हमारी ... नाक में दम करता रहेगा,

उठो ... जागो ... जगाओ ... ?
साहब को ... ??
मामूली आदमी तो जागा हुआ है ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, June 26, 2016

कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???

कुछ कमियाँ ...
कुछ नादानियाँ रही होंगी

कुछ भरोसे की ...
तो कुछ आशाओं की बात रही होगी

कुछ न कुछ तो
जरूर
अटपटा ... अनसुलझा-सा ... रहा होगा
हमारे दरमियाँ

वर्ना ... टूट नहीं सकता था
रिश्ता हमारा,

क्यों ?

क्योंकि -
पंखुड़ियों-सा नहीं था
शीशे-सा नहीं था
मिट्टी-सा ... भी .... नहीं था

गर ... था ... तो
सोने-सा था ...
चांदी-सा था
रिश्ता ... हमारा ... साथ हमारा ?
कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, June 25, 2016

मेरा देश .. बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है ???

कल बहुत शांत था माहौल
शाम से देर रात तक
कहीं भी
गाली-गलौच, झूमा-झटकी, पटका-पटकी
का शोर नजर नहीं आया,

गलियाँ, चौपाल, नुक्कड़, बस अड्डे
लगभग ... सब जगह
शांत थे
और तो और
दारु के अवैध अड्डे भी चिट्ट-पोट नहीं कर रहे थे,

कहीं से भी
अदधि, पउऐ, गिलास ... के लुढकने
टूटने ...
फूटने ...
की आवाज भी सुनाई नहीं दी,

अमन, चैन, भाईचारे,
की उम्मीदें
अभी भी ज़िंदा है,

भाइयों का झगड़ा
शांत हो जाएगा, वे फिर से गले मिलेंगे
दीवाली मनेगी, ईद मनेगी,

फिर से ... पूरे गाँव में
रंग-गुलाल खेले जाएंगे, सेवईंयाँ बांटी जाएंगी
ऐसा ... जान पड़ रहा है ?
मेरा देश .. बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 24, 2016

दो भाई

कल रात
दो भाई ... अतिउत्साह में
आपस में लड़ पड़े थे,

मुद्दा कुछ नहीं था
फिर भी
आपस में फट पड़े थे,

खून .. खंजर .. जूते .. और गालियाँ ...
तमाम चीजें
गवाह बन के ... बिखरी पडी हैं,

पुलिस कार्यवाही हो ...
मगर कैसे ?
दोनों तरफ से
FIR अब तक हुई नहीं है,

शायद
अभी भी
कहीं कोई गुंजाईश दिख रही है
समझौते की,

मल्हम का इंतज़ार है ...
कराह रहे हैं दोनों
दोनों घरों के ... दरवाजे ..
अभी भी .. किसी चाह में खुले पड़े हैं ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 17, 2016

अच्छे दिन ..... !

अच्छे दिन ..... !
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साहब तो साहब हैं
वो जिस दिन को चाहें ... उसे अच्छा कर दें
और जिसे चाहें ... उसे खराब,

अब जब वो कह रहे हैं
कह रहे थे
कि -
अच्छे दिन आने वाले हैं
तो मान लो ... आएंगे ... जरूर आएंगे,

ये और बात है
तुम्हारे न आएं, हमारे न आएं
पर ... किसी न किसी के तो आएंगे,

टमाटर वालों के आ सकते हैं ?
प्याज वालों के आ सकते हैं ?
दाल वालों के आ सकते हैं ?

पेट्रोल-डीजल वालों के आ सकते हैं ?
इनश्योरेन्स सेक्टरों के आ सकते हैं ?
मीडिया हाउसेस के आ सकते हैं ?

और तो और
बैंकों को चूना लगाने वालों ...
के भी ... आ सकते हैं ... अच्छे दिन ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, June 15, 2016

देश हमारा ... शमशान हो जाएगा ???

गर
हम ... सब ... मुर्दे हो गए तो
देश हमारा ... शमशान हो जाएगा,

इसलिए
कुछ को तो
ज़िंदा रहना ही पडेगा,

तुम रहो या मैं रहूँ
या
कोई और रहे,

किसी न किसी को तो
जलना पडेगा, मशाल बनना पडेगा
गर ऐसा न हुआ तो,

चंहूँ ओर ...
घुप्प अंधेरा छा जाएगा
देश हमारा ... शमशान हो जाएगा ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 10, 2016

जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

गिरगिट बदल रहे थे कल तक शहर में रंग
इंसानी रंग देख के, ... हैं हैरत में आज वो ?
... 

न मिले, न जुले,... न बहस हुई
फिर भी छत्तीस का आँकड़ा है ? 

...
दिल को... अब हम कैसे समझाएं 'उदय'
कि - .... वो भी अच्छे हैं .... और वो भी ? 

...
अभी तो चुभा है सिर्फ इक काँटा पाँव में
दो-चार कदम और आगे बढ़ो तो ज़नाब ?
...

उफ़ ! तड़फ भी है खूब, ... औ हैं शिकायतें भी खूब
जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, June 5, 2016

अब दरख्तों को भी छाँव की जरुरत है !

अब दरख्तों को भी छाँव की जरुरत है
पानी ... बूँदों ... और ...
शीतल हवाओं की जरुरत है,

तपन से
जलन से 

सिहरते पत्तों को
फूलों को 

सुकूं भरी बाँहों की जरुरत है 
साये की जरुरत है,

तुम्हारी भी जरुरत है
हमारी भी जरुरत है ..... ??

~ श्याम कोरी 'उदय'