Saturday, October 18, 2014

हुनर / वफ़ा / जाल / कर्म ...

01 -

गर कोई हुनर सीखना है 
तो 
तुम हमसे सीखो 
क्या रंग, 
क्या गुलाटी, 
औ क्या मौक़ा परस्ती ?
… 
02 - 

यकीनन यकीन है तुम पर 
तुम ... 
वफ़ा करो न करो, 
पर...... बेवफाई न करोगे ? 
… 
03 -

काश ! हम भी होते, तुम जैसे 
तो … 
जरूर 
एक बार 
कोशिश करते 
जमीं से आसमां तक 
एक, अनोखा जाल बुनने की ? 
… 
04 - 
मौज भी अपनी है, औ मस्ती भी है अपनी 
कर्म भी अपने हैं 
औ भूमि भी है अपनी, 
 
आओ … चलें … बढ़ें … ढूंढें … 

हीरे-मोती … हम, अपनी ही जमीं में 
और, करें साकार … कर्म … अपने-अपने !

No comments: