Monday, April 11, 2011

मर्जी के मालिक ...

मानते, तो क्या करते
चलो, मान लिया
मानना था !
क्या रक्खा था
फिजूल की बहसों में
गुनाह हो जाता
गर, हम मानते !

चलो अच्छा हुआ, जो हुआ
कोई तो खुश है
किसी को तो सुकून मिला !
पहले कितने बुरे थे, हम
तर्क, वितर्क, कुतर्क
लगते थे करने
पर, बदल गए, समय, काल, हम !

चलो, काम आए
हम, आज किसी के
पहले
सुनते नहीं थे, किसी की
हुआ करते थे
मालिक -
हम अपनी मर्जी के !!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मर्जी के मालिक, हाँ कुछ कुछ याद आ रहा है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आज भी हैं... और कल भी रहेंगे...

KUCHH TO HAI... said...

chalo aacha hua jo hua koi to khush hai,,,,,,