Friday, February 24, 2017

तांडव ...

जहर को मारना है तो जहर पीना पडेगा
धधकते कोलाहल का हमें शंखनाद करना पडेगा

अगर कूदे नहीं तो ये रणभूमि धरा को लील लेगी

औघड़ बनें या काल हम
तांडव की विकराल राह पर अब हमें चलना पडेगा ?

किसे छोड़ें .. किसे मारें ... नहीं शेष सवाल अब ?

जो भी चिंघाड़ता औ रक्त का प्यासा नजर आये
उसका सिर हमें धड़ से अलग करना पडेगा

धरा औ धर्म के अस्तित्व हेतु .. हमें तांडव करना पडेगा ?

Thursday, February 2, 2017

फरेबी ...

सच ! आज फिर .. वो हमें .. कुछ याद से आ गए
पता नहीं, रूठ के हमसे... वो किस हाल में होंगें ?
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सच ! आज जरुरत नहीं है आसमां में सुरागों की
कुछ पत्थर जमीं पर ही तबियत से उछालो यारो ?
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न खता थी, न कुसूर था, मगर अफसोस 'उदय'
'खुदा' भी अब खामोश है.. सजा देने के बाद ?
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वक्त गुजरा, कारवाँ गुजरा, अब तो गुबार भी गुजर गया
उफ़ ... मगर खामोशियाँ उनकी 'उदय' ..... ठहरी रहीं ?
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न दिलों की बात कर, न जुबाँ की बात कर
सच 'उदय' .. हर राह .. वो फरेबी निकले ?