जिनकी, खुद के ही घर में अनसुनी हो जाती है
भला उनकी 'उदय', हम………… क्यों सुनें ?
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वे, बे-वजह ही राजनैतिक मैदां में हुडदंग मचा लगा रहे हैं
किसी दिन, बाबा की तरह वे भी औंधे मुंह नजर आयेंगे ?
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उनकी, खुद की नईया है, वे खुद ही डूबा रहे हैं
अब इसमें, इस बारे में, हम क्या कहें 'उदय' ?
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किस जगह रखूँ तेरी मुस्कान मैं यारा
सिर से पाँव तक कब का भरा पड़ा हूँ ?
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कम से कम आज तो सच कह दो यार
भले चाहे बाद में एप्रिल फूल कह देना ?
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1 comment:
very nice...
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