खुद को मुकद्दर का सिकंदर मत समझ
हवाओं का रुख भी तो तनिक देख ले ?
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'उदय' ये कैसी लहर है, कैसी हवा है उनके नाम की
न सिर्फ वे, वरन उनके हमकदम भी हैं संशय में ?
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जबकि, पूरा ध्यान उनका लिपस्टिक-पॉवडर पे था
फिर भी उन्ने 'उदय', है लिक्खी क्या खूब कविता ?
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काश ! हमारे पास भी होते करोड़ रुपये 'उदय'
तो आज, हम भी, उनकी पार्टी के नेता होते ?
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जब मानना ही था, तो रूठे क्यूँ थे
उन्ने, हठ को तमाशा बना दिया ?
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1 comment:
सच है कडवे नीम सा,चख कर बढता स्वास्थ्य !
इसी लिये तो हिंद में, कड़वा नीम उप्पास्य !!
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