Friday, November 29, 2013

जागरूक मतदाता ...

इस बार … 
ऐसा नहीं है कि -
कोई भी 
सरकार बना ले ! 

हम 
जिसकी चाहेंगे 
उसकी बनेगी सरकार !!

क्यों ? 

क्योंकि - 
हम 
जागरूक मतदाता हैं !!!

Saturday, November 16, 2013

सचमुच … सचिन एक सच्चे भारत रत्न हैं ?

सचमुच … सचिन एक सच्चे भारत रत्न हैं !

सचिन ने जिस मुकाम से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा है शायद उस मुकाम का सचिन ने भी सपना नहीं देखा रहा होगा … वंडरफुल विदाई … अलविदा सचिन … शुक्रिया … शुभकामनाएँ … मित्रों, यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना उचित समझता हूँ कि मैं न तो सचिन तेंदुलकर का ब्लाइंड सपोर्टर हूँ, और न ही मैं उनका फैन हूँ … और हाँ, आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि विगत कुछ साल पहले जब भारत वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के क्वालीफाई मैचों के दौरान बंगलादेश से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गया था उस समय से मैंने क्रिकेट देखना भी बंद कर दिया है … वह दिन है और आज का दिन है … सिर्फ और सिर्फ सचिन तेंदुलकर के विदाई मैच के वे अंश ही मैंने दिल से देखे हैं जिनमें सचिन बैटिंग कर रहा था … एक समय क्रिकेट को लेकर दीवानगी मेरे अंदर भी उतनी ही समाई हुई थी जितनी आज किसी युवा क्रिकेटर के जेहन में होगी … आज मेरे जेहन में क्रिकेट के प्रति दीवानगी न सही, जुनून न सही, सचिन का सपोर्टर न सही, फैन न सही, … फिर भी, आज मैं उन्हें बधाई भी दूंगा … और शुभकामनाएँ भी दूंगा … क्योंकि सचिन उसके सच्चे हकदार हैं। 

सचिन का भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में जो योगदान है वह निसंदेह प्रशंसनीय है, अतुलनीय है … यदि आज मैं या हम … उनके योगदान को, उनकी विदाई को, उन्हें मिल रहे भारत रत्न सम्मान को उत्साह व गौरव की नजर से न देखते हुए आलोचना की नजर से देखेंगे तो फिर शायद ही हम कभी किसी भी व्यक्ति या व्यक्तित्व की प्रशंसा कर पाएं ? … आज वे क्षण नहीं हैं जब हम इस बात को लेकर चर्चा करें कि खेल जगत से ध्यानचंद भारत रत्न के प्रथम हकदार थे, उन्हें सचिन से पहले भारत रत्न मिलना चाहिए था, उनका योगदान खेल जगत में सचिन से ज्यादा था, बगैरह-बगैरह … अगर आज हम इस तरह के तरह-तरह के सवालों में उलझ कर रह जायेंगे तो सम्भवत: हम सिर्फ एक आलोचक बन कर ही रह जायेंगे ? … आज हमारे समक्ष सवाल यह नहीं है कि कौन पहले और कौन बाद में ? … आज समय है एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी को मिल रहे सम्मान की प्रशंसा का, बधाई का, शुभकामनाओं का … और इसके लिए हमें अग्रणी रहना चाहिए, आलोचनाओं से परे रहना चाहिए । 

किसे भारत रत्न मिलना चाहिए और किसे नहीं … इसके निर्धारण का अधिकार सरकार के पास है न कि हमारे पास … यदि समयानुकूल सम्मान देने में सरकार से चूक हुई है या हो रही है तो इसके लिए आलोचना सरकार की होनी चाहिए न कि सम्मान प्राप्त करने वाले व्यक्ति की ? … खैर, यह एक गम्भीर विषय है जिस पर निरंतर चर्चा चलते रहेगी … पर हमें, आज इस चर्चा में नहीं पड़ना है क्योंकि आज क्रिकेट जगत के एक अत्यंत प्रतिभाशाली खिलाड़ी के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई के उपरांत के क्षण हैं, उन्हें मिल रहे देश के सर्वोच्च सम्मान पर प्रशंसा के क्षण हैं … सचिन तेंदुलकर के रोमांचक खेल व क्रिकेट में उनके योगदान की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी … यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि सचिन विदाई के अंतिम क्षणों में जिस धैर्य के साथ खेल रहे थे उसने उनकी विदाई को और भी रोमांचक बना दिया था … खेलों में रिकार्ड तो टूटते-बनते रहते हैं लेकिन सचिन का यह रिकार्ड शायद कभी न टूटे कि वे कई दसकों तक क्रिकेट जगत से जुड़े युवाओं के प्रेरणास्रोत रहेंगे … सचिन सचमुच एक सच्चे भारत रत्न हैं उन्हें मिल रहा भारत रत्न सम्मान उनके धैर्य, एकाग्रता व समर्पण का प्रतिफल है … उन्हें बधाई व शुभकामनाएँ … !

Wednesday, November 13, 2013

गुमां ...

इतने ज्यादा भी नहीं थे उनकी यादों के अंधेरे 
कि हम चलते भी रहें औ उजाले भी न आयें ?
… 
बहुत हुईं तेरी खामोशियाँ 
गर कुछ है दिल में, तो अब उसे बेधड़क धड़कने दो ? 
… 
बहुत बाहियात निकले रहनुमा हमारे 
तड़फ को, कह रहे हैं वे इन्जॉय करो ? 
… 
गर तुझे गुमां है तो करते रह 
आज, हमें भी फुर्सत नहीं है ?
… 
आज,……………… जरुरत क्या है तूफानों की 
बस्तियां शहर की, फरमानों से भी उजड़ जाती हैं ? 
...

Sunday, November 10, 2013

शातिर ...

भरने को तो, कब के भर चुके हैं उनके पाप के घड़े 
बस, फूटने के लिए एक अदद पत्थर की जरुरत है ? 
...
काश ! होता अगर हमारा भी तनिक उनके शहर से वास्ता 
मुहब्बत न भी सही, पर उनकी दोस्ती जरुर होती हमसे ? 
… 
चोर उचक्कों जैसा था कुछ प्यार हमारा उनसे यारा 
कभी कूदते खिड़की वो थे, कभी फांदते हम दीवारें ? 
… 
सच ! बिना बन्दगी के, वो सीधे बाँहों में आ टपके थे 
हम जानते थे, किसी न किसी दिन खैर नहीं हमारी ? 
…  
सच ! उनकी बातों में, तुम यूँ ही मत आ जाया कीजे 
वो बड़े शातिर हैं, कोयले को भी डायमंड कह देते हैं ?
… 

Wednesday, November 6, 2013

छत्तीसगढ़ विस चुनावों में गड्ड-मड्ड नतीजों की सम्भावना ?

छत्तीसगढ़ विस चुनावों में गड्ड-मड्ड नतीजों की सम्भावना !

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को लेकर दलगत टिकट वितरण की कच-कच, उठा-पटक, धींगा-मस्ती, पटका-पटकी, रस्साकशी की पूर्णता के पश्चात विधानसभा चुनावों की सरगर्मियां तेज हो गई हैं, कांग्रेस और भाजपा दोनों अपनी अपनी ओर से जीत का दम भर रहे हैं, पूर्ण बहुमत हासिल करने की ताल ठोक रहे हैं, सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। दोनों ही दलों के दावे और दम कितने सही हैं… यह जानने के लिए आज हमारे पास कोई निश्चित व पारदर्शी पैमाना नहीं है, पर इतना तो तय है कि अगर आज छत्तीसगढ़ में कोई तीसरा दल अर्थात विकल्प रूपी पैमाना होता तो… शायद चुनाव पूर्व ही दोनों दलों अर्थात कांग्रेस व भाजपा के दावे और दम कितने सही हैं और कितने गलत… स्वस्फूर्त उजागर हो जाते, आज यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा की दोनों के दम और दावे अपने आप धराशाई नजर आ रहे होते ? 

खैर, जब तीसरा विकल्प अर्थात कोई तीसरा सशक्त राजनैतिक दल वर्त्तमान छत्तीसगढ़ की राजनीति व राजनैतिक पटल पर मौजूद नहीं है तो हम क्यों इस कच-कच में पड़ें कि कौन धराशाई होता और कौन नहीं ? जबकि सच्चाई तो यही है कि आज कांग्रेस व भाजपा दोनों छत्तीसगढ़ की जनता की पहली पसंद नहीं हैं, अगर आज कोई तीसरा सशक्त विकल्प होता तो शायद छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के आने वाले नतीजे… सम्भवत: वो आते हुए प्रतीत नहीं होते जो प्रतीत हो रहे हैं ? यह कहते हुए आज मुझे ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है कि वर्त्तमान में कांग्रेस व भाजपा दोनों का छत्तीसगढ़ में जनाधार घटा है, जनता के बीच विश्वास कम हुआ है, आज दोनों ही दलों अर्थात कांग्रेस व भाजपा को जनता संशय की नजर से देख रही है ! 

जनाधार घटने की वजहें तथा विश्वास कम होने की वजहें भी साफ़ हैं अर्थात मेरा अभिप्राय यह है कि पिछले दस साल से सत्ता में रहते हुए भी भाजपा जनमानस के जेहन में कोई ऐसी अमिट छाप नहीं छोड़ पाई है जिसकी वजह से जनता बिना सोचे-विचारे उनकी ओर अपना रुख कर ले, वहीं दूसरी ओर विपक्ष में बैठकर पिछले दस सालों में कांग्रेस भी कोई ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने में सफल नहीं रही है जिनकी वजह से जनता का उनके प्रति विश्वास बढे, सीधे व स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो पिछले दस सालों से दोनों ही दल न जाने कौन-से ख्यालों में खोये रहे, कौन-सी ख्याली खिचड़ी पकाते रहे यह समझ से परे है। इनके ख्यालों, ख्याली खिचड़ियों व इनके गड्ड-मड्ड रवईये अपने आप में पहेली जैसे रहे हैं… समझो तो समझो, न समझो तो न समझो ?

स्वयंभू हो रहे इन दोनों दलों के बारे में क्या राय दूं, मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि इन दोनों ही दलों को न तो जनमानस की चिंता है और न ही जनभावनाओं की,… क्या लिखूं, क्या न लिखूं,… फिर भी,… इन हालात में भी,… कांग्रेस व भाजपा दोनों का चुनाव जीतने का दावा करना अपने आप में किसी पहेली से कम नजर नहीं आता,… बूझो तो जानो ? खैर, जो है सो है, चुनाव मैदान में तो दोनों ही दल महत्वपूर्ण दल के रूप में हैं इसलिए किसी न किसी को तो जीतना ही है। इन सबके बीच, यह बात भी भूलने वाली नहीं है कि इस बार चुनाव मैदान में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, बहुजन समाज पार्टी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, गोंगपा, एनसीपी, निर्दलीय, बगैरह-बगैरह भी कमर कस के मैदान में उतरते नजर आ रहे हैं अत: इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि 8 से 15 तक सीटें कांग्रेस व भाजपा की झोली से बाहर छिटक जाएं ?

किसकी सरकार बनेगी ? कौन सरकार बनाने में सफल होगा ? किसके दावे सही निकलेंगे ? किसका दम भरना सार्थक सिद्ध होगा ? कौन मुख्यमंत्री बनेगा ? इस तरह के तरह-तरह के सवाल जो जनमानस के जेहन में गूँज रहे हैं उन सवालों के जवाब भी हमें मिल जायेंगे, पर उसके लिए हमें थोड़ा इंतज़ार करना होगा चुनावी नतीजों का अर्थात 8 दिसंबर को निकलने वाले परिणामों तक धैर्य रखना होगा। लेकिन, तब तक, हमें अर्थात समस्त मतदाताओं को अपने अपने कान व आँखें खुली रखनी होंगी, दिमाग की सकारात्मकता को जागरूक रखना होगा, कहीं ऐसा न हो जाए कि हम ही मतदान के पूर्व किन्हीं झूठे वादों व दिखावों के शिकार हो जाएँ,… वोट देना सोच रहे हों किसी को, और किसी और को दे आयें,… आज के भ्रष्टाचार से लबालब दौर में मतदाताओं का जागरूक रहना लोकतंत्र की मजबूती के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है।

अब, इन हालात में,… सरकार भाजपा की बने, या कांग्रेस की बने, या किसी और की बने ? ... मेहनत उनकी है, ख्याल उनके हैं, इरादे उनके हैं, हक़ उनका है,… पर आज मुझे यह जरुर कहना पड़ रहा है कि विगत सालों में भाजपा और कांग्रेस दोनों का जनाधार घटा है, जनाधार घटा है तो स्वाभाविक है कि इस बार उन्हें मिलने वाले वोटों के प्रतिशत में कमी आये। जहां तक मेरा मानना है कि इस बार के चुनावों में दोनों ही दलों को पिछले चुनावों की तुलना में लगभग 3 से 8 प्रतिशत तक वोटों में कमी आने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जब इन दलों को वोट कम मिलेंगे तो स्वाभाविक है उन वोटों से दूसरों को फ़ायदा पहुंचेगा, यह अंतर कहाँ तक और किस हद तक किसी को फ़ायदा पहुंचा सकता है या पहुंचा सकेगा यह कह पाना आज मुश्किल है ! 

फिलहाल, वर्त्तमान हालात में, यदि कोई दल, या कोई भविष्यवक्ता, या कोई सर्वे पोल यह दावा कर रहा है कि फलां की सरकार बन रही है तो यह मनगढंत कल्पना से ज्यादा कुछ भी नहीं है। यदि आज हम देखें तो सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में गिनी-चुनी 14-15 सीटें भी ऐसी नजर नहीं आ रही हैं जिन पर फलां, फलां, फलां,… प्रत्याशी के जीत की सम्भावना लगभग निश्चित हो जबकि शेष सीटों पर अनिश्चितता के बादल कुछ इस कदर मंडरा रहे हैं कि कहीं कहीं त्रिकोणीय तो कहीं चतुष्कोणीय संघर्ष स्पष्ट नजर आ रहे हैं। जहां तक मेरा मानना है या मेरा अनुमान कह रहा है कि यदि 8-15 सीटें भाजपा व कांग्रेस की झोली से खिसक गईं तो कहीं ऐसा न हो सरकार बनाने वालों को किसी और मुंह की ओर आशा भरी नज़रों से देखना पड़े, गठबंधन के डग भरना पड़ें, गड्ड-मड्ड सरकार बने !

Tuesday, November 5, 2013

मुस्कुराहट ...

उनसे मिलने की जिद में, हम खुद अपना पता गुमा बैठे 
अब, न उनका कोई पता है और न अपना कोई ठिकाना ?
… 
गर फुर्सत मिले तो एक बार इधर भी देख लेना 
यहाँ सदियाँ गुजर रही हैं… इक तेरे इंतज़ार में ?
… 
वे तो सियासती लोग हैं 'उदय', सियासत तो करेंगे ही 
कोई मरे या जिये, उन्हें किसी से कोई दरकार नहीं है ? 
कभी थी तमन्ना उसकी चौखट पे दम निकले मगर 
जालिम ने मुस्कुरा के ही दम निकाल दिया है आज !
… 
तेरी मुस्कुराहट में जादू है इसका हमें अंदाजा नहीं था 
वर्ना, कसम 'खुदा' की………… हम आँखें फेर लेते !
…