Monday, December 7, 2009

साहित्यकार ...

सरकार, कितनी अच्छी सरकार
जो दे रही है भत्ता बेरोजगारों को
कर रही है माफ़ ऋण किसानों के
दे रही है पेंशन सांसदों-विधायकों को !

और तो और अब क्रिकेटर भी
पेंशन के हकदार हो गए हैं
इस देश में, लोकतंत्र में !

सरकार हर किसी की भलाई
के लिए जोड़-तोड़ कर रही है
कोई छूट न जाए, ढूँढ -ढूँढ कर
हर किसी के लिए
अच्छे से अच्छा इंतज़ाम कर रही है !

सरकारी अधिकारी - कर्मचारी
चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि
आयोगों के सदस्य -अध्यक्ष
सांसद, विधायक, क्रिकेटर, बेरोजगार
हर किसी को नए-नए उपहार मिल रहें हैं !

क्या ये ही देश के कर्णधार हैं !
लोकतंत्र में प्रबल दावेदार हैं !
क्या इनके कन्धों पर ही देश खड़ा है ?

इनके क़दमों से ही देश आगे बढ़ रहा है
क्या ये ही सब कुछ हैं, देश के लिए ?

पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं
समीक्षक हैं,समालोचक हैं
स्तंभकार हैं, प्रेरणास्रोत हैं
शायद ये ही सब कुछ हैं
तो फिर साहित्यकार क्या हैं ?

क्या साहित्यकार कुछ भी नहीं हैं
क्या आज़ादी के आंदोलनों में
इनकी कोई भूमिका नहीं थी ?

क्या ये राष्ट्र-समाज के आइना नहीं हैं
क्या समाज में इनका कोई योगदान नहीं हैं
क्या देश के ये महत्वपूर्ण सिपाही नहीं हैं ?

क्या ये लोकतंत्र के स्थापित प्रतिनिधि नहीं हैं
क्या आन्दोलन-आजादी स्वस्फूर्त मिल गई ?

अगर ये कुछ नहीं हैं
तो इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
बेचने दो इन्हें पदकों और दुशालों को !

खोलने दो इन्हें दुकानें परचूनों की
तड़फने दो इन्हें बंद अँधेरी कोठरियों में
शायद ये इसी के हकदार हैं !

और सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि -
क्रिकेटर, बेरोजगार ही लोकतंत्र के प्रबल कर्णधार हैं
वेतन पेंशन और सुविधाओं के हकदार हैं !

अगर इस लोकतंत्र में
कोई सोचता, जानता, मानता है, कि -
साहित्यकारों ने -
देश की आजादी में कंधे से कन्धा मिलाया था
आज़ादी के सिपाहियों का खून लेखनी से खौलाया था
जनता को आंदोलनों के लिए गरमाया था
देश को मिलजुल कर आज़ाद कराया था !

तो आज़ाद लोकतंत्र में
ये साहित्यकार सुविधाओं के हकदार हैं
दावेदारों में प्रबल दावेदार हैं
ये भूलने वाली बात नहीं -
याद दिलाने वाली सौगात नहीं !

ये साहित्यकार ही हैं
जो समाज को आइना दिखाते हैं
शिक्षा के नए आयाम बनाते हैं !

ये ही रास्ते बनाते हैं
और उन पर चलना सिखाते हैं !

ये साहित्यकार ही हैं
जो धूमिल हो रही आजादी को
फिर से आज़ाद करायेंगे !

लोकतंत्र में, केन्द्रीय-प्रांतीय सरकारों से
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों से
एक छोटा-सा प्रश्न पूछता हूँ !

क्या इस देश में -
साहित्यकार, बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं ?

क्या ये अन्य हकदारों की तरह
वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा, पास के हकदार नहीं हैं ?

क्या ये मीनार के चमकते कंगूरे -
और नींव के पत्थर नहीं हैं ?

हाँ, अब समय आ गया है
शहीदों के सम्मान के साथ
स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के साथ
सीनियर सिटीज़नों के सम्मान के साथ
साहित्यकारों को भी सम्मानित करने का !

मान, प्रतिष्ठा एवं सुविधाएँ देने का
लोकतंत्र में, लोकतंत्र के लिए ...!!

14 comments:

संजय भास्‍कर said...

DAVE TO BAHUT KARTI HAI SARKAR
PAR GAREBI WAHI KI WAHI HAI

संजय भास्‍कर said...

अगर ये कुछ नहीं हैं / तो इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
BILKUL SAHI KAHA AAPNE SHYAM JI

हरकीरत ' हीर' said...

राष्ट्रपति - प्रधानमंत्री से,राज्यपाल - मुख्यमंत्रियों से
एक छोटा -सा प्रश्न पूछता हूँ
क्या साहित्यकार इस देश में
बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं
क्या ये अन्य हकदारों की तरह
वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा पास के हकदार नहीं हैं

sahi prashn uthaya hai aapne ....!!

Murari Pareek said...

जो सरकारी नोक्रिशुदा है उन्हें सब कुछ दिया जा रहा है और जो बेरोजगार उन्हें कुछ नहीं ?? कैसा कानून है कैसा न्याय है ?? संसोधन कौन करे??

नीरज गोस्वामी said...

क्या साहित्यकार इस देश में / बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं / क्या ये अन्य हकदारों की तरह / वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा पास के हकदार नहीं हैं / क्या ये मीनार के चमकते कंगूरे / और नींव के पत्थर नहीं हैं?

सच बहुत शाश्वत प्रश्न उठाया है आपने...लेकिन जवाब कौन देगा इस ज्वलंत प्रश्न का...???
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

jwalant prashn uthaya hai aapne ... par pahal koun karega ... ye sarkaar? kya isme se koi raajniti kari ja sakti hai ? nahi? to fir .......

Alok Nandan said...

साहित्यकार कौन है....इसका पैमाना क्या है...अनवरतर लेखन या फिर सिर्फ लेखन...या फिर लेखन की दशा और दिशा...खैर...साहित्यकारों के हिस्से को कौन लोग खा रहे हैं, और क्यों खा रहा है...और जो इनका हक है वो मिल क्यों नहीं रहा है...बहरहाल साहित्यकारों ने तो सबकुछ जलवाया भी है और बनाया भी है...आदमी सभी स्वतंत्र जन्म लेता है लेकिन सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है जैसे जुमले भी साहित्यकार ही रचता है ...और फिर दुनिया के कदम खून की ओर बढ़ जाते हैं...साहित्यकारों को जमाने अपने साथ क्यों नहीं लेता...जबकि लोग उसे पढ़ते हैं, और उसी की तरह कर भी गुजरते हैं...साहित्यकार विगत में तंत्र का हमला झेलना पड़ा है, और अब यही हमला शालीन तरीके से अनदेखी कर के हो रहा है....वैसे लामबंदी वाले साहित्यकार तो सरकारी तंत्र के मजे झेल ही रहे हैं...हां....बेखौफ बुद्धि वाले साहित्यकारों को खोज पाना मुश्किल है...बहुत तो आज भी छपते ही नहीं है,और छपास शायद साहित्यकार होने का पहला गुण है....वैसे सरकारो को इस प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहिए...क्योंकि सरकार जवाब नहीं देती है...संसद में तो सवाल और जवाब का ही कारोबार होता है...सरकार को सिर्फ सवाल करने का अधिकार है...वह जवाबदेह नहीं है...कहीं भी नहीं...वैसे साहित्यकारो के लिए इन कदमों को उठाकर सरकारें निसंदेह बेहतर काम करेंगी...कहानी और कविता लिखने वाले लोगों को लाभ होगा...मौसी का भाई फूफी की ताई से कविताएं लिखवाएगा और साहित्यकार बन जाएगा...मामा का भांजा मामी के भाई से कविताएं लिखवाएगा...अब साहित्यकार कौन है यह पहचान पाना मुश्किल होगा...और साहित्यकार लोग होते ही बेढबू...तो बेहतर है उनको उनके हाल पर ही छोड़ दिया जाये...

शोभना चौरे said...

रेलवे में वंशवाद ,सेना में वंशवाद सरकार में तो अनिवार्य ही है ?वंशवाद |कहाँवाली - कहाँ नही है ये वंशवाद और ये सिर्फ़ मिलने वाली सुविधाओ की ही खातिर तो है न ?न की योग्यता के बल से |
तो साहित्य क्यो अछूता रहे इससे ?

Arshia Ali said...

श्याम जी आपने बहुत सही बात कही है। अब देश के सभी साहित्यकारों को एक होना चाहिए।
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ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।

Yogesh Verma Swapn said...

bilkul uchit prashn.

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा एवं लिखा है आपने, आभार ।

BrijmohanShrivastava said...

साहित्यकार गरीबी पर लिखते है और बेरोजगारी पर लिखते है और सरकार गरीबी और बेरोजगारी मिटाना चाहती है इसलिये साहित्यकार को भी .......!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

prashn hi to rah gayaa he hindustaan.
aapki rachna behatreen he.

संजय भास्‍कर said...

बिल्‍कुल सही कहा एवं लिखा है आपने, आभार ।