Friday, October 28, 2016

अपने ही बुझा रहे थे घर के चिराग को ... ?

सच 'उदय', खूब बांटी गईं रेवड़ियाँ
पर.. किसी का मुंह मीठा न हुआ ?
...
चेले-चपाटे औ साहूकार करने लगें जब गुणगान
तब समझ लो 'उदय'... बहुत जल्द है बंठाधार ?
...
पहले चवन्नी-अठन्नी की भी शान थी
मगर अफसोस 'उदय',
आज ...... पांच-दस के नोटों का भी
कहीं कोई वजूद नहीं है ?
...
कहाँ कोई गैर था .. कहाँ कोई बेगाने थे
अपने ही बुझा रहे थे घर के चिराग को ?
...
उफ़ ! हिम्मत की तुम दरिंदगी तो देखो 'उदय'
कोई ताक में था.. कोई हाथ मलते रह गया ?

Wednesday, October 12, 2016

जख्म ...

अच्छे-खासे दिन थे फिर भी चाह रहे थे अच्छे दिन 
अब.. पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत ? 
... 
अब... कुछ बचा नहीं है सब लुटेरों के हाथ है 
ट्रेन.. दाल.. प्याज.. जब चाहेंगे तब लूट लेंगे ? 
...
गर, दिल को सुकूं मिले तो....उ. फिर तेरी बात हो
वर्ना ! तेरे बगैर भी जिंदगी कट रही है शान से ?
....
उनसे.. फिर से मिलने की शर्त पे, हुआ बिछड़ने का करार था
उफ़ ! ... जालिम... तनिक खुदगर्ज.. तनिक फरेबी निकला ?
... 
फिर से कोई जख्म हरा-भरा सा दिख रहा है 'उदय' 
न जाने कौन ... रात... ख़्वाब में छेड़ गया है मुझे ?

Saturday, October 1, 2016

लापरवाही .. !

अभी वक्त ठहरा है
शांत है
खामोश है ...

वक्त के
चलने .. बढ़ने का
हमें इंतज़ार करना चाहिए

अतिउत्साह में ..
अक्सर ... लापरवाही ..
हमें धोखा दे जाती है ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'