सरकार, कितनी अच्छी सरकार
जो दे रही है भत्ता बेरोजगारों को
कर रही है माफ़ ऋण किसानों के
दे रही है पेंशन सांसदों-विधायकों को !
और तो और अब क्रिकेटर भी
पेंशन के हकदार हो गए हैं
इस देश में, लोकतंत्र में !
सरकार हर किसी की भलाई
के लिए जोड़-तोड़ कर रही है
कोई छूट न जाए, ढूँढ -ढूँढ कर
हर किसी के लिए
अच्छे से अच्छा इंतज़ाम कर रही है !
सरकारी अधिकारी - कर्मचारी
चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि
आयोगों के सदस्य -अध्यक्ष
सांसद, विधायक, क्रिकेटर, बेरोजगार
हर किसी को नए-नए उपहार मिल रहें हैं !
क्या ये ही देश के कर्णधार हैं !
लोकतंत्र में प्रबल दावेदार हैं !
क्या इनके कन्धों पर ही देश खड़ा है ?
इनके क़दमों से ही देश आगे बढ़ रहा है
क्या ये ही सब कुछ हैं, देश के लिए ?
पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं
समीक्षक हैं,समालोचक हैं
स्तंभकार हैं, प्रेरणास्रोत हैं
शायद ये ही सब कुछ हैं
तो फिर साहित्यकार क्या हैं ?
क्या साहित्यकार कुछ भी नहीं हैं
क्या आज़ादी के आंदोलनों में
इनकी कोई भूमिका नहीं थी ?
क्या ये राष्ट्र-समाज के आइना नहीं हैं
क्या समाज में इनका कोई योगदान नहीं हैं
क्या देश के ये महत्वपूर्ण सिपाही नहीं हैं ?
क्या ये लोकतंत्र के स्थापित प्रतिनिधि नहीं हैं
क्या आन्दोलन-आजादी स्वस्फूर्त मिल गई ?
अगर ये कुछ नहीं हैं
तो इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
बेचने दो इन्हें पदकों और दुशालों को !
खोलने दो इन्हें दुकानें परचूनों की
तड़फने दो इन्हें बंद अँधेरी कोठरियों में
शायद ये इसी के हकदार हैं !
और सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि -
क्रिकेटर, बेरोजगार ही लोकतंत्र के प्रबल कर्णधार हैं
वेतन पेंशन और सुविधाओं के हकदार हैं !
अगर इस लोकतंत्र में
कोई सोचता, जानता, मानता है, कि -
साहित्यकारों ने -
देश की आजादी में कंधे से कन्धा मिलाया था
आज़ादी के सिपाहियों का खून लेखनी से खौलाया था
जनता को आंदोलनों के लिए गरमाया था
देश को मिलजुल कर आज़ाद कराया था !
तो आज़ाद लोकतंत्र में
ये साहित्यकार सुविधाओं के हकदार हैं
दावेदारों में प्रबल दावेदार हैं
ये भूलने वाली बात नहीं -
याद दिलाने वाली सौगात नहीं !
ये साहित्यकार ही हैं
जो समाज को आइना दिखाते हैं
शिक्षा के नए आयाम बनाते हैं !
ये ही रास्ते बनाते हैं
और उन पर चलना सिखाते हैं !
ये साहित्यकार ही हैं
जो धूमिल हो रही आजादी को
फिर से आज़ाद करायेंगे !
लोकतंत्र में, केन्द्रीय-प्रांतीय सरकारों से
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों से
एक छोटा-सा प्रश्न पूछता हूँ !
क्या इस देश में -
साहित्यकार, बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं ?
क्या ये अन्य हकदारों की तरह
वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा, पास के हकदार नहीं हैं ?
क्या ये मीनार के चमकते कंगूरे -
और नींव के पत्थर नहीं हैं ?
हाँ, अब समय आ गया है
शहीदों के सम्मान के साथ
स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के साथ
सीनियर सिटीज़नों के सम्मान के साथ
साहित्यकारों को भी सम्मानित करने का !
मान, प्रतिष्ठा एवं सुविधाएँ देने का
लोकतंत्र में, लोकतंत्र के लिए ...!!