आजकल "न्यूज चैनल" वाले भी फ़िजूल की बहस को तबज्जो देने में अपनी शान समझने लगे हैं या यूं समझ लें अपनी "टीआरपी" बढाने के चक्कर में फ़िजूल की बहस में उलझे रहते हैं, हुआ ये कि टेनिस खिलाडी "सानिया मिर्जा" और क्रिकेट खिलाडी "शोएब मलिक" की शादी तय होने की खबर सुर्खियों में है ..... अब इसमें सुर्खियों वाली कोई विशेष बात नहीं है शादी हर लडके हर लडकी की होती है .... खैर ये आम लडका-लडकी नहीं हैं इसलिये समाचार तो बनता है लेकिन ..... अब ये लेकिन क्या है!!!
...... लेकिन ये है कि अभी-अभी देश के एक प्रतिष्ठित "न्यूज चैनल" पर यह "पट्टी" चल रही थी कि "सानिया-शोएब" की शादी पर "एसएमएस" कर अपनी राय दें ..... अब शादी लडका-लडकी तथा परिवार के सदस्यों की मंशा के अनुरूप होना है .... भला "एसएमएस" से मिली राय से होना क्या है और राय देने वाले होते कौन हैं!!! .... लेकिन फ़िर भी राय तो राय है ..... राय दी जायेगी और ली जायेगी .... फ़िर "न्यूज चैनल" पर घंटों चलेगी ......... फ़िजूल की बहस !!!
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Tuesday, March 30, 2010
Monday, March 29, 2010
ब्रेकिंग न्यूज
ब्रेकिंग न्यूज इसलिये क्योंकि ये मेरे लिये है ..... बिलकुल अभी-अभी पता चला कि मेरे ब्लाग की पोस्ट "हालात" की चर्चा श्री ललित शर्मा जी द्वारा अपने ब्लाग ब्लाग ४ वार्ता में की है तथा श्री महेन्द्र मिश्र जी द्वारा अपने ब्लाग समयचक्र में पोस्ट "भिखारी" की चर्चा की है उक्त सराहनीय चर्चा के लिये ...आभार ...आभार ...आभार।
..... चलते चलते कुछ "शेर" प्रस्तुत हैं :-
..... चलते चलते कुछ "शेर" प्रस्तुत हैं :-
है मुमकिन करो कोशिश , तुम मुझको भूल जाने की
पर नामुमकिन ही लगता है, भुला पाना मुझे यारा।
..............
पर नामुमकिन ही लगता है, भुला पाना मुझे यारा।
..............
चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मै चौखटें ऊंची कर नही पाता ।
..............
चलो आए, किसी के काम तो आए
किसी दिन फिर, किसी के काम आएंगे ।
Sunday, March 28, 2010
समूह ब्लाग ..... पहचान खोते ब्लागर !!!
आजकल चारों ओर ब्लागिंग का बोलबाला है नेता, अफ़सर, कलाकार, पत्रकार, फ़िल्मकार, खिलाडी व अनाडी सभी लोग ब्लागिंग में मदमस्त हैं और अपनी-अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर रहे हैं .... सभी ब्लागर बधाई के पात्र हैं जो साहित्य के सृजन व ब्लागिंग को नई ऊंचाई प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
ब्लागिंग में "समूह ब्लाग" का भी जबरदस्त बोलबाला है ऎसे बहुत सारे ब्लागर हैं जिन्होंने अनेकों समूह ब्लाग बना रखे हैं और सफ़लता पूर्वक संचालन भी कर रहे हैं ..... समस्या यहां पर ये है कि यदि एक सदस्य ने कोई पोस्ट प्रकाशित की, उस पोस्ट के ऊपर दो-चार घंटे बाद ही किसी दूसरे सदस्य ने एक और नई पोस्ट प्रकाशित कर दी ..... यहां पर होगा ये कि पाठक आयेगा "लेटेस्ट पोस्ट" को पढेगा और टिप्पणी मार कर चला जायेगा .... अब दो-चार घंटे पहले पोस्ट प्रकाशित करने वाले बेचारे ब्लागर का क्या होगा !!!
एक और गंभीर समस्या .... कोई पाठक किसी ब्लागर के "प्रोफ़ाईल" पर पहुंचता है तो वहां ढेर सारे ब्लाग की सूची दिखाई देने लगती है अब पाठक कौन से ब्लाग को खोले .... कौनसा ब्लाग लेटेस्ट अपडेट है .... कौन से ब्लाग में क्या मिर्च-मसाला है ये समझ में ही नहीं आता ..... पाठक आनन-फ़ानन में किसी एक ब्लाग को खोलता है तो उसमे पोस्ट एक साल पहले की प्रकाशित हुई रहती है .... फ़िर हिम्मत करके किसी दूसरे ब्लाग को खोलता है तो उसमे "लेटेस्ट पोस्ट" किसी दूसरे ब्लागर की रहती है ऎसे में होता ये है कि पाठक यहीं से "नमस्ते" कर के चला जाता है .... क्या यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नही होगा कि समूह ब्लागिंग के चक्कर में "नामचीन ब्लागर" अपनी पहचान खोते नजर आ रहे हैं!!!
ब्लागिंग में "समूह ब्लाग" का भी जबरदस्त बोलबाला है ऎसे बहुत सारे ब्लागर हैं जिन्होंने अनेकों समूह ब्लाग बना रखे हैं और सफ़लता पूर्वक संचालन भी कर रहे हैं ..... समस्या यहां पर ये है कि यदि एक सदस्य ने कोई पोस्ट प्रकाशित की, उस पोस्ट के ऊपर दो-चार घंटे बाद ही किसी दूसरे सदस्य ने एक और नई पोस्ट प्रकाशित कर दी ..... यहां पर होगा ये कि पाठक आयेगा "लेटेस्ट पोस्ट" को पढेगा और टिप्पणी मार कर चला जायेगा .... अब दो-चार घंटे पहले पोस्ट प्रकाशित करने वाले बेचारे ब्लागर का क्या होगा !!!
एक और गंभीर समस्या .... कोई पाठक किसी ब्लागर के "प्रोफ़ाईल" पर पहुंचता है तो वहां ढेर सारे ब्लाग की सूची दिखाई देने लगती है अब पाठक कौन से ब्लाग को खोले .... कौनसा ब्लाग लेटेस्ट अपडेट है .... कौन से ब्लाग में क्या मिर्च-मसाला है ये समझ में ही नहीं आता ..... पाठक आनन-फ़ानन में किसी एक ब्लाग को खोलता है तो उसमे पोस्ट एक साल पहले की प्रकाशित हुई रहती है .... फ़िर हिम्मत करके किसी दूसरे ब्लाग को खोलता है तो उसमे "लेटेस्ट पोस्ट" किसी दूसरे ब्लागर की रहती है ऎसे में होता ये है कि पाठक यहीं से "नमस्ते" कर के चला जाता है .... क्या यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नही होगा कि समूह ब्लागिंग के चक्कर में "नामचीन ब्लागर" अपनी पहचान खोते नजर आ रहे हैं!!!
Saturday, March 27, 2010
भिखारी
अपने देश में भिखारियों की संख्या दिन-व-दिन बढते जा रही है गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, गांवों-शहरों, धार्मिक स्थलों, लगभग हर जगह पर भिखारी घूमते-फ़िरते दिख जाते हैं और तो और रेल गाडियों में भी इनका बोलबाला है हर गाडी, हर डिब्बे में भिखारी दमक जाते हैं और चालू ....दे दाता के नाम.... भगवान भला करे .... ।
मूल समस्या ये है कि जब आम आदमी प्लेटफ़ार्म पर बिना टिकट जाने से डरता है तो ये भिखारी ट्रेन में कैसे घुस जाते हैं और अपने कारनामों को कैसे अंजाम देने लगते हैं ...... ट्रेन में अगर कोई बिना टिकट चढ जाये तो टी टी ई अथवा रेल्बे पुलिस की "गिद्ध निगाह" से बच नहीं सकता फ़िर ये भिखारी खुलेआम ट्रेनों में कैसे भीख मांग रहे हैं .... क्या रेल प्रशासन व प्रबंधन की मिलीभगत से ये कारनामे हो रहे हैं ? ..... अगर नहीं, तो इन्हें ट्रेन में चढने ही क्यों दिया जाता है !!!
अपने देश में कार्यरत ढेरों "एन जी ओ" क्या इतना भी नहीं कर सकते कि चंद बेसहारा व असहाय लोगों को दो वक्त की "रोटी" व "झोपडी" मुहईया करा सकें !!!
मूल समस्या ये है कि जब आम आदमी प्लेटफ़ार्म पर बिना टिकट जाने से डरता है तो ये भिखारी ट्रेन में कैसे घुस जाते हैं और अपने कारनामों को कैसे अंजाम देने लगते हैं ...... ट्रेन में अगर कोई बिना टिकट चढ जाये तो टी टी ई अथवा रेल्बे पुलिस की "गिद्ध निगाह" से बच नहीं सकता फ़िर ये भिखारी खुलेआम ट्रेनों में कैसे भीख मांग रहे हैं .... क्या रेल प्रशासन व प्रबंधन की मिलीभगत से ये कारनामे हो रहे हैं ? ..... अगर नहीं, तो इन्हें ट्रेन में चढने ही क्यों दिया जाता है !!!
अपने देश में कार्यरत ढेरों "एन जी ओ" क्या इतना भी नहीं कर सकते कि चंद बेसहारा व असहाय लोगों को दो वक्त की "रोटी" व "झोपडी" मुहईया करा सकें !!!
मुफ़्त की चाय
अदभुत दुनिया के अदभुत लोग, अदभुत इसलिये कि क्रियाकलाप अदभुत ही हैं, एक सेठ जी जिनके कारनामें अचंभित कर देते हैं अब क्या कहें कभी-कभी सेठ टाईप के लोगों के साथ भी उठना-बैठना हो जाता है उनको मैने खाने-पीने के अवसर पर देखा, एक-दो बार तो सोचा कभी-कभार हो जाता है पर अनेकों बार के अनुभव पर पाया कि यह अचानक होने वाली क्रिया नही है वरन "सेठ बनने और बने रहने" का सुनियोजित "फ़ार्मूला" है ।
होता ये है कि जब सेठ जी को "मुफ़्त की चाय" मिली तो "शटशट-गटागट" पी गये और जब होटल में किसी के साथ चाय पीने-पिलाने का अवसर आया तो उनके चाय पीने की रफ़्तार ...... रफ़्तार तो बस देखते ही बनती है तात्पर्य ये है कि उनकी चाय तब तक खत्म नहीं होती जब तक साथ में बैठा आदमी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाल कर चाय के पैसे देने न लग जाये ..... जैसे ही चाय के पैसे दिये सेठ जी की चाय खत्म .... वाह क्या "फ़ार्मूला" है।
एक बार तो हद ही हो गई हुआ ये कि सेठ जी के आग्रह पर एक दिन बस तिगड्डे पे खडे हो कर शर्बत (ठंडा पेय पदार्थ) पीने लगे ... सेठ जी का शर्बत पीने का अंदाज सचमुच अदभुत था चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पीने लगे .... उनकी चुस्कियां देख कर मेरे मन में विचार बिजली की तरह कौंधा .... क्या गजब "लम्पट बाबू" है कभी मुफ़्त की चाय शटाशट पी जाता है तो आज शर्बत को चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पी रहा है .... मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ मुंह से निकल ही जाता है मैने भी झपाक से कह दिया ... क्या "स्टाईल" है हुजूर इतनी देर में तो दो-दो कप चाय पी लेते ... सेठ जी सुनकर मुस्कुरा दिये फ़िर थोडी ही देर में सहम से गये ... सचमुच यही अदभुत दुनिया के अदभुत लोग हैं।
होता ये है कि जब सेठ जी को "मुफ़्त की चाय" मिली तो "शटशट-गटागट" पी गये और जब होटल में किसी के साथ चाय पीने-पिलाने का अवसर आया तो उनके चाय पीने की रफ़्तार ...... रफ़्तार तो बस देखते ही बनती है तात्पर्य ये है कि उनकी चाय तब तक खत्म नहीं होती जब तक साथ में बैठा आदमी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाल कर चाय के पैसे देने न लग जाये ..... जैसे ही चाय के पैसे दिये सेठ जी की चाय खत्म .... वाह क्या "फ़ार्मूला" है।
एक बार तो हद ही हो गई हुआ ये कि सेठ जी के आग्रह पर एक दिन बस तिगड्डे पे खडे हो कर शर्बत (ठंडा पेय पदार्थ) पीने लगे ... सेठ जी का शर्बत पीने का अंदाज सचमुच अदभुत था चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पीने लगे .... उनकी चुस्कियां देख कर मेरे मन में विचार बिजली की तरह कौंधा .... क्या गजब "लम्पट बाबू" है कभी मुफ़्त की चाय शटाशट पी जाता है तो आज शर्बत को चाय की तरह चुस्कियां मार-मार कर पी रहा है .... मुझसे भी रहा नहीं जाता कुछ-न-कुछ मुंह से निकल ही जाता है मैने भी झपाक से कह दिया ... क्या "स्टाईल" है हुजूर इतनी देर में तो दो-दो कप चाय पी लेते ... सेठ जी सुनकर मुस्कुरा दिये फ़िर थोडी ही देर में सहम से गये ... सचमुच यही अदभुत दुनिया के अदभुत लोग हैं।
Friday, March 26, 2010
"करिश्मा"
..... हम कामेडी सर्कस में एक लम्बे समय से "करिश्मा" को कामेडी करते हुये देखते आ रहे हैं जिसकी अभिनय क्षमता निश्चिततौर पर प्रसंशनीय रही है ।
..... कामेडी करना, थीम के अनुरूप परफ़ार्म करना, डायलाग व फ़ेस एक्सप्रेशन को भलीभांति समायोजित करना तथा वाह-वाही लूटना ....बेहद मेहनत का काम है।
...... क्या हम इस फ़ोटो को देखकर यह कह सकते हैं कि यही "करिश्मा" है? .... क्या इसी "करिश्मा" को हम एक परिपक्व अदाकारा के रूप में देखते आ रहे हैं? ...... हां, ये "कामेडी सर्कस" की करिश्मा ही है जिसे हम "ख्याली" के साथ देखते आये हैं पर यहां इस फ़ोटो में "अंगप्रदर्शन" की हदें पार हो रही हैं, आजकल "अंगप्रदर्शन" सफ़लता के लिये "शार्टकट" हो गया है !!!
..... कामेडी करना, थीम के अनुरूप परफ़ार्म करना, डायलाग व फ़ेस एक्सप्रेशन को भलीभांति समायोजित करना तथा वाह-वाही लूटना ....बेहद मेहनत का काम है।
...... क्या हम इस फ़ोटो को देखकर यह कह सकते हैं कि यही "करिश्मा" है? .... क्या इसी "करिश्मा" को हम एक परिपक्व अदाकारा के रूप में देखते आ रहे हैं? ...... हां, ये "कामेडी सर्कस" की करिश्मा ही है जिसे हम "ख्याली" के साथ देखते आये हैं पर यहां इस फ़ोटो में "अंगप्रदर्शन" की हदें पार हो रही हैं, आजकल "अंगप्रदर्शन" सफ़लता के लिये "शार्टकट" हो गया है !!!
हालात ...
तेरी एक निगाह ने
फ़िर तेरी मुस्कान ने
कुछ कहा मुझसे
क्या कहा-क्या नहीं
मैं समझता जब तक
तेरे 'हालात' ने कुछ कह दिया मुझसे
इस बार शब्द सरल थे
पर 'हालात' कठिन थे
वक्त गुजरा, 'हालात' बदले
फ़िर तेरी आंखों ने कुछ कहा मुझसे
हर बार कुछ-न-कुछ कहती रहीं
क्या समझता - क्या नहीं
क्या मैं कहता - क्या नहीं
एक तरफ़ तेरी खामोशी
एक तरफ़ मेरी तन्हाई
खामोश बनकर देखते रहे
तुझको - मुझको
मुझको -तुझको ।
फ़िर तेरी मुस्कान ने
कुछ कहा मुझसे
क्या कहा-क्या नहीं
मैं समझता जब तक
तेरे 'हालात' ने कुछ कह दिया मुझसे
इस बार शब्द सरल थे
पर 'हालात' कठिन थे
वक्त गुजरा, 'हालात' बदले
फ़िर तेरी आंखों ने कुछ कहा मुझसे
हर बार कुछ-न-कुछ कहती रहीं
क्या समझता - क्या नहीं
क्या मैं कहता - क्या नहीं
एक तरफ़ तेरी खामोशी
एक तरफ़ मेरी तन्हाई
खामोश बनकर देखते रहे
तुझको - मुझको
मुझको -तुझको ।
ब्रेक के बाद
.......... एक छोटे ब्रेक के बाद पुन: "ब्लागिंग" की दुनिया में पदार्पण ..... ब्लागर हमसफ़र सम्माननीय मित्रों तथा इंटरनेट से दूर रहना वास्तव में बेहद कठिन पल रहे ....एक-एक पल कुछ-न-कुछ कमी महसूस हुई .... सर्वप्रथम तो मैं अपने ब्लागर साथियों को, जो हल पल साहित्य के सृजन व ब्लागिंग को नई ऊंचाईयां देने की दिशा में क्रियाशील हैं सभी को शुभकामनाएं ...... मेरी पिछली पोस्ट "पुलिस का डंडा" की चर्चा ब्लॉग 4 वार्ता में दिल्ली पर पाकिस्तान का कब्जा---ब्लाग4वार्ता--"राजीव तनेजा" में करने के लिये राजीव तनेजा जी का आभार व्यक्त करता हूं ........ हमारे छत्तीसगढ के प्रसिद्ध ब्लागर व साहित्यिक प्रतिभा के धनी भाई ललित शर्मा जी का जन्मदिन "२१ मार्च" को था देर से ही सही पर उनको "जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं"........ चलते-चलते कुछेक "शेर" पेश है :-
चलो उमड जाएँ, बादलों की तरह
सूखी है जमीं, कहीं तो बारिस होगी ।
...............
आज दुआएँ भी हमारी, सुन लेगा ‘खुदा’
जमीं पे, गम के साये में, खुशी हम चाहते हैं।
..................
दुश्मनी का अब, वक्त नही है
अमन के रास्ते मे, काँटे बहुत हैं।
...............
आज दुआएँ भी हमारी, सुन लेगा ‘खुदा’
जमीं पे, गम के साये में, खुशी हम चाहते हैं।
..................
दुश्मनी का अब, वक्त नही है
अमन के रास्ते मे, काँटे बहुत हैं।
Friday, March 19, 2010
पुलिस का डंडा ...
पुलिस का डंडा कहां है
पुलिस वाले तो निहत्थे खडे हैं
अब कोई डरे, क्यों डरे ?
निहत्थों से भला कोई डरता है क्या ?
पुरानी कहावत है -
जिसकी लाठी उसकी भैंस !
जब डंडा नहीं, तो काहे की भैंस !
मैंने पूछा एक पुलिस वाले से
क्यों भाई आपका डंडा कहां है ?
वह मुस्कुरा कर बोला, साहब जी
डंडा "अलादीन" का "जिन्न" ले गया !
तो रगडो "चिराग" को
वह बोला - चिराग बडे लोगों के पास है
उनसे कहो रगडने के लिये
उनसे कहने की जुर्रत किसकी है !!
अगर कोई कह भी दे
तो उनके हाथ खाली कहां हैं !
दोनों हाथों में "कुर्सी"
और पैरों में "चिराग" उल्टा पडा है !!
उन्हें डंडे की कहां, अपनी कुर्सी की पडी है
मतलब अब निहत्थे ही रहोगे
निहत्थे रहकर -
कानून और जनता की रक्षा कैसे करोगे ?
पुलिस वाला बोला - साहब जी
खेत में खडा "बिजूका" भी तो निहत्था खडा है !
सदियों से खेत की रक्षा करता रहा है
हम भी "बिजूका" बन कर रक्षा करेंगे !!
जो डरेगा उसे डरा देंगे
जो नहीं डरा उसे ... !!
हमारा क्या होगा
ज्यादा से ज्यादा कोई "भैंसनुमा" मानव
धक्का मार कर गिरा देगा !
कानून और जनता की धज्जियां उडा देगा !!
मतलब अब कानून और जनता की खैर नहीं ?
नहीं साहब जी
कानून, जनता और पुलिस तीनों की खैर नहीं !!!
सुर्खियां
इंटरनेट पर विचरण करते हुये अभी-अभी पता चला कि मेरे द्वारा बुधवार, २७ जनवरी २०१० को "छत्तीसगढ" ब्लाग पर "भ्रष्टाचार का बोलबाला" पोस्ट प्रकाशित की थी उक्त पोस्ट की चर्चा 28 जनवरी 2010 को "डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट" के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग राग' में की गई है.... डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में 'छत्तीसगढ़' .....खैर कोई बात नहीं, देर से ही सही पर आज जानकारी तो हुई.... पोस्ट पसंद करने वालों और समाचार पत्र में प्रकाशित करने वाले साथियों का आभार।
Thursday, March 18, 2010
क्या महिलाओं के बिना मानव जीवन संभव है !!!
महिलाओं के बिना मानव जीवन की कल्पना करना क्या उचित है ... आये दिन सुनने - पढने में आता है कि कन्याओं को जन्म से पहले ही मार दिया जा रहा है आखिर क्यों लोग पुत्र ही पैदा करने के लिये उत्साही हो रहे हैं, पुत्र के जन्म को गर्व का विषय क्यों माना जा रहा है, पुत्र के जन्म पर खुशियां और पुत्री के जन्म पर मायुसी का आलम .... क्यों , किसलिये !!! .... पुत्र या पुत्री के जन्म में ये भेदभाव क्या प्राकर्तिक, सामाजिक व व्यवहारिक रूप से उचित है .... नहीं, यह भेदभाव सर्वथा अनुचित है।
...जरा सोचो अगर यह सिलसिला चलता रहा तो धीरे-धीरे लडकिओं की संख्या घटते जायेगी और लडकों की संख्या बढते जायेगी, एक समय आयेगा जब चारों ओर लडके ही लडके नजर आयेंगे और लडकियां कुछेक ही रहेंगी .... जरा सोचो तब क्या होगा .... और यदि स्त्रियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाये सिर्फ़ पुरुष ही पुरुष बच जायें तब जरा सोचो क्या होगा !!! ..... कल्पना करना ही भयानक व असहजता की अनुभूति पैदा कर रहा है अगर ये सच हो जाये तब ...... उफ़...उफ़्फ़ ..... इसलिये लडका या लडकी के जन्म की प्रक्रिया में छेडछाड, भेदभाव, होशियारी सर्वथा अनुचित व अव्यवहारिक है और रहेगा।
... स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं और रहेंगे, किसी एक के बिना समाज व मानव जीवन की कल्पना करना मूर्खता के अलावा कुछ भी नही है, बुद्धिमानी इसी में है दोनों कदम-से-कदम व कंधे-से-कंधा मिलाकर एक-दूसरे के हमसफ़र बनें और प्रेम बांटते चलें।
...जरा सोचो अगर यह सिलसिला चलता रहा तो धीरे-धीरे लडकिओं की संख्या घटते जायेगी और लडकों की संख्या बढते जायेगी, एक समय आयेगा जब चारों ओर लडके ही लडके नजर आयेंगे और लडकियां कुछेक ही रहेंगी .... जरा सोचो तब क्या होगा .... और यदि स्त्रियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाये सिर्फ़ पुरुष ही पुरुष बच जायें तब जरा सोचो क्या होगा !!! ..... कल्पना करना ही भयानक व असहजता की अनुभूति पैदा कर रहा है अगर ये सच हो जाये तब ...... उफ़...उफ़्फ़ ..... इसलिये लडका या लडकी के जन्म की प्रक्रिया में छेडछाड, भेदभाव, होशियारी सर्वथा अनुचित व अव्यवहारिक है और रहेगा।
... स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं और रहेंगे, किसी एक के बिना समाज व मानव जीवन की कल्पना करना मूर्खता के अलावा कुछ भी नही है, बुद्धिमानी इसी में है दोनों कदम-से-कदम व कंधे-से-कंधा मिलाकर एक-दूसरे के हमसफ़र बनें और प्रेम बांटते चलें।
Wednesday, March 17, 2010
मंजिल ...
अगर चाहोगे
मुश्किलें हट जायेंगी
हौसला है लडने का
हर जंग जीत जाओगे !
मत देखो पहाडी को
कदम बढाओगे
तो चोटी पर पहुंच जाओगे !
हौसला है मजबूत
आग के दरिया को
तैर कर निकल जाओगे !
गर डर गये काटों से
तो फ़ूल कहां से पाओगे
चाह बनेगी दिल में
तो राह मिल जायेगी !
मत रुको डर कर
मत रुको थक कर
चलते चलो, बढते चलो
'मंजिल' को पा जाओगे !!
मुश्किलें हट जायेंगी
हौसला है लडने का
हर जंग जीत जाओगे !
मत देखो पहाडी को
कदम बढाओगे
तो चोटी पर पहुंच जाओगे !
हौसला है मजबूत
आग के दरिया को
तैर कर निकल जाओगे !
गर डर गये काटों से
तो फ़ूल कहां से पाओगे
चाह बनेगी दिल में
तो राह मिल जायेगी !
मत रुको डर कर
मत रुको थक कर
चलते चलो, बढते चलो
'मंजिल' को पा जाओगे !!
Tuesday, March 16, 2010
"टाप ब्लागर"
सुबह-सुबह फ़ोन पर एक "ब्लागर मित्र" ".... भईया ये "टाप ब्लागर" क्या होता है ... "टाप ब्लागर" बनने में कोई बुराई तो नही है .... अरे यार तू भी सुबह-सुबह पकाने बैठ गया कितने दिन से "ब्लागिंग" कर रहा है फ़िर भी नहीं पता ये "टाप ब्लागर" क्या होते हैं .... बात दरअसल ये है सभी "ब्लागों" का लेखा-जोखा "चिट्ठाजगत" व "ब्लागवाणी" में रखा जाता है तात्पर्य ये है किसने कितनी पोस्ट लिखीं, कितने समय के अंतराल में लिखीं, कितने लोगों ने पढीं, कितने लोगों ने टिप्पणी कीं, बगैरह - बगैरह ...।
.... हां एक बात और है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है वो है "हवाले" ....भईया अब ये "हवाले-घोटाले" भी यहां सक्रिय हैं .... अरे यार तू चिंतित मत हो "हवाले" एक "कला" है .... "हुनर" है ... ये बहुत ही नायाब औजार है जो किसी भी "ब्लाग" को "तराश" कर आठ-दस दिनों मे ही "चमचमाते हीरे" की तरह "टाप ब्लागर" की दौड में शामिल करा देता है .... और तो और अगर दो-चार "ब्लागर" मिलकर अर्थात "टीम" बना कर "हवाले" करने लगें तो फ़िर आपको "टाप ब्लागर" बनने से कोई रोक ही नहीं सकता ।
.... भईया मुझे भी "टाप ब्लागर" बनने की इच्छा हो रही है अभी-अभी मैने एक-दो "ब्लाग" देखे हैं जो "जुम्मा-जुम्मा" ही शुरु हुये हैं मुश्किल से पन्द्रह-बीस पोस्ट ही लिखीं गईं हैं वे अभी से "टाप ब्लागर" की सक्रियता सूची में ४००,५०० वे नंबर पर पहुंच गये हैं जबकि मैंने तो कम-से-कम ५० पोस्ट से ज्यादा ही लिखी हैं फ़िर भी उनसे पीछे चल रहा हूं ..... भईया अब आप ही मुझे "टाप ब्लागर"की सूची में ऊपर पहुंचा सकते हो ...... अरे यार तू भी मेरे ही पीछे पड गया, तुझे पता है ये "टाप ब्लागर"और "हवाले" के "यूनिक फ़ंडों" से मैं कितना दूर रहता हूं ... हां अगर तुझे "टाप ब्लागर" बनना ही है तो किसी "ब्लागिंग गुरु" से अविलंब टेलीफ़ोन अथवा ई-मेल से संपर्क कर ले ... वह तुझे निश्चिततौर पर "टाप ब्लागर" बना सकता है ... मेरी भी शुभकामनाएं हैं तू जल्दी ही "टाप ब्लागर" बने।
.... हां एक बात और है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है वो है "हवाले" ....भईया अब ये "हवाले-घोटाले" भी यहां सक्रिय हैं .... अरे यार तू चिंतित मत हो "हवाले" एक "कला" है .... "हुनर" है ... ये बहुत ही नायाब औजार है जो किसी भी "ब्लाग" को "तराश" कर आठ-दस दिनों मे ही "चमचमाते हीरे" की तरह "टाप ब्लागर" की दौड में शामिल करा देता है .... और तो और अगर दो-चार "ब्लागर" मिलकर अर्थात "टीम" बना कर "हवाले" करने लगें तो फ़िर आपको "टाप ब्लागर" बनने से कोई रोक ही नहीं सकता ।
.... भईया मुझे भी "टाप ब्लागर" बनने की इच्छा हो रही है अभी-अभी मैने एक-दो "ब्लाग" देखे हैं जो "जुम्मा-जुम्मा" ही शुरु हुये हैं मुश्किल से पन्द्रह-बीस पोस्ट ही लिखीं गईं हैं वे अभी से "टाप ब्लागर" की सक्रियता सूची में ४००,५०० वे नंबर पर पहुंच गये हैं जबकि मैंने तो कम-से-कम ५० पोस्ट से ज्यादा ही लिखी हैं फ़िर भी उनसे पीछे चल रहा हूं ..... भईया अब आप ही मुझे "टाप ब्लागर"की सूची में ऊपर पहुंचा सकते हो ...... अरे यार तू भी मेरे ही पीछे पड गया, तुझे पता है ये "टाप ब्लागर"और "हवाले" के "यूनिक फ़ंडों" से मैं कितना दूर रहता हूं ... हां अगर तुझे "टाप ब्लागर" बनना ही है तो किसी "ब्लागिंग गुरु" से अविलंब टेलीफ़ोन अथवा ई-मेल से संपर्क कर ले ... वह तुझे निश्चिततौर पर "टाप ब्लागर" बना सकता है ... मेरी भी शुभकामनाएं हैं तू जल्दी ही "टाप ब्लागर" बने।
छोटी सी ज्वाला
एक समय था जल रही थी
ऊंच-नीच की 'छोटी सी ज्वाला'
कुछ लोगों ने आकर उस पर
जात-पात का तेल छिडक डाला
भभक-भभक कर भभक उठी
वह 'छोटी सी ज्वाला'
फ़िर क्या था कुछ लोगों ने
उसको अपना हथियार बना डाला
न हो पाई मंद-मंद
वह 'छोटी सी ज्वाला'
अब गांव-गांव, शहर-शहर
हर दिल - हर आंगन में
दहक रही है 'छोटी सी ज्वाला' ।
ऊंच-नीच की 'छोटी सी ज्वाला'
कुछ लोगों ने आकर उस पर
जात-पात का तेल छिडक डाला
भभक-भभक कर भभक उठी
वह 'छोटी सी ज्वाला'
फ़िर क्या था कुछ लोगों ने
उसको अपना हथियार बना डाला
न हो पाई मंद-मंद
वह 'छोटी सी ज्वाला'
अब गांव-गांव, शहर-शहर
हर दिल - हर आंगन में
दहक रही है 'छोटी सी ज्वाला' ।
Monday, March 15, 2010
शेर
............................
आज की रात, फ़िर तन्हाई है
कल की सुबह, कल देखेंगे ।
.............................
असर करती हैं दुआएं, तो बददुआएं भी करती हैं
किसी को छेडो, तो जरा सोच के छेडो ।
.............................
बदलेंगे हालात भी मेरी जरुरत के माफ़िक
'उदय' का साथ है तो ये दौर भी गुजर जायेगा ।
.............................
आज की रात, फ़िर तन्हाई है
कल की सुबह, कल देखेंगे ।
.............................
असर करती हैं दुआएं, तो बददुआएं भी करती हैं
किसी को छेडो, तो जरा सोच के छेडो ।
.............................
बदलेंगे हालात भी मेरी जरुरत के माफ़िक
'उदय' का साथ है तो ये दौर भी गुजर जायेगा ।
.............................
सत्य-अहिंसा ...
सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने से डरता हूं
कठिन मार्ग है मंजिल तक
रुक जाने से डरता हूं
हिंसा रूपी इस मंजर में
कदम पटक कर चलता हूं
कदमों की आहट से
हिंसा को डराते चलता हूं
झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूं
सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने ......................।
आगे बढने से डरता हूं
कठिन मार्ग है मंजिल तक
रुक जाने से डरता हूं
हिंसा रूपी इस मंजर में
कदम पटक कर चलता हूं
कदमों की आहट से
हिंसा को डराते चलता हूं
झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूं
सत्य-अहिंसा के पथ पर
आगे बढने ......................।
Sunday, March 14, 2010
... मैं अच्छा लेखक हूं !
मैं अच्छा लेखक हूं .... क्यों हूं ... मैं बहुत अच्छा लिख रहा हूं , मेरे अच्छा लिखने का अगर कोई मापदण्ड है तो वो है "टिप्पणियां" ... अरे भाई "टिप्पणियां" तब ही कोई मारेगा जब मैं अच्छा लिखूंगा, नहीं लिखूंगा तो कोई भला क्यों टिप्पणी करेगा .... बिल्कुल सही कहा ... अच्छे लिखने का मापदण्ड तो निश्चिततौर पर "टिप्पणियां" ही हैं जब "टिप्पणियां" मिल गईं तो स्वभाविकतौर पर अच्छा ही लिखा गया है , नहीं तो किसी को क्या पडी थी "टिप्पणियां" मारने की, .... किसी को खुजली तो नहीं हुई है जो बेवजह ही "टिप्पणियां" ठोक देगा .... अब ५०, १००, १५०, "टिप्पणियां" मिल रही हैं इसका सीधा-सीधा मतलब यही है कि .... मैं अच्छा लेखक हूं !!!!
... इसके अलाबा एक और मापदण्ड है अच्छा लिखने का ... वो क्या है ? ... अरे भाई आजकल "हवाले" का भी बोलबाला है ..... अब "हवाले" की दौड में हर कोई तो आ नहीं सकता, जिसकी "सैटिंग" होगी वह ही "हवाले" की दौड में दौड पायेगा ... "हवाले" की दौड में भी "सैटिंग" होती है क्या ! .... बिल्कुल होती है !! ... क्या "हम-तुम" हवाले कर सकते हैं, शायद नहीं ... वो इसलिये कि "हवाले" हर किसी की बस की बात नहीं है !!! .... चलो कोई बात नहीं "टिप्पणियां" और "हवाले" की "सैटिंग" को दूर से ही "राम-राम" कर लेते हैं ... कोशिश यही कर लेते हैं कि कुछ अच्छा ही लिख लेते हैं !!!
... इसके अलाबा एक और मापदण्ड है अच्छा लिखने का ... वो क्या है ? ... अरे भाई आजकल "हवाले" का भी बोलबाला है ..... अब "हवाले" की दौड में हर कोई तो आ नहीं सकता, जिसकी "सैटिंग" होगी वह ही "हवाले" की दौड में दौड पायेगा ... "हवाले" की दौड में भी "सैटिंग" होती है क्या ! .... बिल्कुल होती है !! ... क्या "हम-तुम" हवाले कर सकते हैं, शायद नहीं ... वो इसलिये कि "हवाले" हर किसी की बस की बात नहीं है !!! .... चलो कोई बात नहीं "टिप्पणियां" और "हवाले" की "सैटिंग" को दूर से ही "राम-राम" कर लेते हैं ... कोशिश यही कर लेते हैं कि कुछ अच्छा ही लिख लेते हैं !!!
Saturday, March 13, 2010
क्या रेल्वे स्टेशनों व ट्रेनों में डाक्टर, दवाई दुकान अथवा फ़स्टऎड की सुविधा नहीं होना चाहिये ?
रेल्वे स्टेशन जहां प्रतिदिन सैकडों गाडियों का आना-जाना, लाखों मुसाफ़िरों का उन गाडियों से गुजरना, हजारों लोगों का हर क्षण स्टेशन पर बना रहना गाडियों के इंतजार में या किसी आगन्तुक के इंतजार में या किसी को विदा करने के इंतजार में या फ़िर सामान्यतौर पर रिजर्वेशन इत्यादि के लिये, यह भीड व आवाजाही आम बात है ..... इसी आपा-धापी में कभी कोई ट्रेन में चढते-उतरते समय गिर जाता है, कभी ओवरब्रिज पार करते समय गिर जाता है, कभी-कभी बैठे-बैठे ही चक्कर आने पर जी मचलाने लगता है, और कभी-कभी मोबाईल पर मिले संदेशों से भी ब्लडप्रेशर कम-ज्यादा होने लगता है ...... इन आपातकालीन स्थितियों में हर किसी को डाक्टर, दवाई दुकान अथवा फ़स्टऎड की आवश्यता होती है ..... ट्रेन आ रही है, आ गई है, छूट रही है, छूट गई है इन पलों में पीडित आखिर जाये तो जाये कहां ? ....... क्या रेल्वे स्टेशनों व ट्रेनों में डाक्टर, दवाई दुकान अथवा फ़स्टऎड की सुविधा नहीं होना चाहिये ? ..... यदि यह सुविधा होना चाहिये तो "हमारी सरकार, रेल मंत्रालय, रेल प्रबंधन, मीडिया" कोई सार्थक व सकारात्मक पहल क्यों नहीं कर रहे हैं ?
शेर
अभी टूटा कहां हूं, जो तुम्हें टुकडे नजर आएं
अभी है हौसला बांकी, और पत्थरों से जंग जारी है।
...........................................................
जीत कर भी, क्यूं भला खामोश हो तुम
हार कर भी हम, तेरी खुशियों में खडे हैं।
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कोई कहता रहा कुछ रूठकर मुझसे
मिले जब, फ़िर वही खामोशियां थीं।
अभी है हौसला बांकी, और पत्थरों से जंग जारी है।
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जीत कर भी, क्यूं भला खामोश हो तुम
हार कर भी हम, तेरी खुशियों में खडे हैं।
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कोई कहता रहा कुछ रूठकर मुझसे
मिले जब, फ़िर वही खामोशियां थीं।
Friday, March 12, 2010
कर्म
मैं
निर्माण करूंगा
भाग्य का
मेरे विचार
कर्म का रूप लेंगे
कर्म का प्रत्येक अंश
मेरे भाग्य की आधारशिला होगी
हर पल
मेरे विचार - मेरे कर्म
ही मेरे भाग्य बनेंगे
और मैं ................. ।
निर्माण करूंगा
भाग्य का
मेरे विचार
कर्म का रूप लेंगे
कर्म का प्रत्येक अंश
मेरे भाग्य की आधारशिला होगी
हर पल
मेरे विचार - मेरे कर्म
ही मेरे भाग्य बनेंगे
और मैं ................. ।
Thursday, March 11, 2010
ईश्वर / GOD
मैं चलता हूं
अपनी राहों पर
आवाज देकर न बुलाऊंगा
तुझको आना है
तो आजा मुझ तक
तुझे भी, तेरी मंजिल
पर पहुंचाऊंगा
तेरी मंजिल पर
शुभकामनाएं देकर तुझको
मैं अपनी राहों पर निकल जाऊंगा ।
अपनी राहों पर
आवाज देकर न बुलाऊंगा
तुझको आना है
तो आजा मुझ तक
तुझे भी, तेरी मंजिल
पर पहुंचाऊंगा
तेरी मंजिल पर
शुभकामनाएं देकर तुझको
मैं अपनी राहों पर निकल जाऊंगा ।
Tuesday, March 9, 2010
"थ्री इडियट्स" एक अश्लील फिल्म है !!!
परिवार के सदस्यों ने, मित्रों ने, जान पहचान वालों ने तारीफ़-पे-तारीफ़ की "थ्री इडियट्स" फ़िल्म बहुत अच्छी है बार-बार देखने लायक है, हां सच है फ़िल्म बहुत अच्छी है एक बेहतरीन "थीम" पर बनाई गई है पर इस फ़िल्म ने तो अश्लीलता की हदें ही पार कर दी हैं ..... अब आप कहेंगे अश्लीलता तो कहीं दिखाई ही नही दी ..... सही कहा इस फ़िल्म में अश्लीलता को "दादा कोंडके" के स्टाईल मे परोसा गया है कहने का तात्पर्य ये है कि जो महसूस कर सकता है उसे अश्लीलता दिखेगी और जो महसूस नहीं कर सकता वह "कामेडी" समझ हंस कर निकल जायेगा "..... तुसी ग्रेट हो जहांपनाह ..... तोहफ़ू कबूल कीजिये...." ये डायलाग फ़िल्म मे तीन-चार बार फ़िल्मांकन किया गया है इस "सीन" में एक इंसान व्यवहारिक रूप से दूसरे इंसान से किसी शर्त अथवा बातचीती मुद्दे पर हार जाता है तो वह हारने वाला जीतने वाले के समक्ष अपनी हार स्वीकारते हुये अपनी पेंट उतार कर कमर झुका कर अपना पिछवाडा उठा कर झुक जाता है और कहता है .... तुसी ग्रेट हो जहांपनाह ... तोहफ़ू कबूल कीजिये ..." ....... अब पेंट उतार कर "पिछवाडा" ऊंचा कर किसी के सामने झुक जाना और कहना "तोहफ़ा" कबूल कीजिये इसका सीधा-सीधा मतलब तो सभी समझते हैं समझाने की आवश्यकता नहीं है ........... फ़िल्मों में अश्लीलता की हदें पार हो रही हैं, क्या "सेंसर बोर्ड" अब अपनी भूमिका "मूकबधिर" की भांति अदा कर रहा है ?
Sunday, March 7, 2010
औरत
'औरत' के श्रंगार को देखो
और उसके व्यवहार को देखो
मन में बसे प्यार को देखो
और अंदर दबे अंगार को देखो !
देखो उसकी लज्जा को
और देखो उसकी शर्म-हया को
देखो उसकी करुणा को
और देखो समर्पण को !
'औरत' के तुम रूप को देखो
और रचे श्रंगार को देखो
देखो उसकी शीतलता को
और देखो कोमलता को !
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को !
उसने घर में "दीप" जलाये
आंगन में हैं "फ़ूल" खिलाये
बजने दो हांथों में चूंडी
और पैरों में पायल !
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका" !
अगर बनी वो "कालिका"
फ़िर, फ़िर तुम क्या ........!!
और उसके व्यवहार को देखो
मन में बसे प्यार को देखो
और अंदर दबे अंगार को देखो !
देखो उसकी लज्जा को
और देखो उसकी शर्म-हया को
देखो उसकी करुणा को
और देखो समर्पण को !
'औरत' के तुम रूप को देखो
और रचे श्रंगार को देखो
देखो उसकी शीतलता को
और देखो कोमलता को !
मत पहुंचाओ ठेस उसे तुम
मत छेडो श्रंगार को
रहने दो ममता की मूरत
मत तोडो उसके दिल को !
उसने घर में "दीप" जलाये
आंगन में हैं "फ़ूल" खिलाये
बजने दो हांथों में चूंडी
और पैरों में पायल !
मत खींचो आंचल को उसके
मत करो निर्वस्त्र उसे तुम
रहने दो "लक्ष्मी की मूरत"
मत बनने दो "कालिका" !
अगर बनी वो "कालिका"
फ़िर, फ़िर तुम क्या ........!!
Saturday, March 6, 2010
"ज्वलनशील बाबाओं" से आहत होते "ऊर्जावान बाबा"
अपना देश "बाबाओं" का देश है ...और हो भी क्यों न .... आखिर अपने देश की बुनियाद में "बाबाओं" की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और निर्माण में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है ... अब ये निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका ... आखिर कैसे ... निर्माण में ये कौन सी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जिसका श्रेय इन्हें दिया जाये .... बिलकुल सही प्रश्न उठाया है ... हर एक निर्माण में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से बहुत लोगों की भूमिका होती है फ़िर जब भूमिका होती है तो होती है ... श्रेय भी मिलना चाहिये ....
.....अब प्रश्न ये उठता है कि इनकी भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से भी कैसे है .... सीधी सी बात है अपने देश के "कर्ता-धर्ता" कौन हैं ... नेता, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी ये सभी के सब प्रत्येक नेक कार्य के शुभारंभ के पहले अपने-अपने चहेते "बाबा" के पास जाकर "दण्डवत" होकर आशीर्वाद लेते हैं ... "हां" हुई तो कार्य शुरु, "न" हुई तो कार्य गया "खटाई" में ..... और तो और, अगर "बाबा जी" ने कह दिया "बेटा" तीन दिन बाद ही अपनी नई "कुर्सी" पर बैठना तो समझ लो यही "ब्रम्हवाक्य" है .....भईय्या जब इन "बाबाओं" के इशारे से ही काम शुरु होता है तो इनकी भूमिका कैसे न हुई ... जब हुई तो श्रेय भी मिलना चाहिये।
.... चलो अब असली मुद्दे पे आ ही जाते हैं समस्या ये है कि अब "बाबाओं" का भी जीना मुश्किल हो गया है ... असंभव ... असंभव ... अरे भाई मान भी लो, हुआ ये है कि कुछ बाबा "ग्लैमर" के माया मोह में फ़ंस गये और लंबी-लंबी "उडान" भरने लगे ... इस उडान के चक्कर में कुछ बाबा सेक्स स्केंडल, स्मगलिंग, लूट-पाट, धोखाधडी, दैहिक शोषण व नरबली जैसे "अदभुत" कारनामे करने लगे, जब इनका "उडनखटोला" कालरूपी "चिंगारी" के चपेट में आया तो खुद भी "जल" गये और पूरी "बाबा मंडली" भी "झुलस" गई ..... सही मायने मे कहा जाये तो इन "ज्वलनशील बाबाओं" के कारण यदि कोई आहत हुआ है तो "ऊर्जावान बाबा" हुये हैं .... जय "काल" ..... जय जय "महाकाल" ... ।
.....अब प्रश्न ये उठता है कि इनकी भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से भी कैसे है .... सीधी सी बात है अपने देश के "कर्ता-धर्ता" कौन हैं ... नेता, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी ये सभी के सब प्रत्येक नेक कार्य के शुभारंभ के पहले अपने-अपने चहेते "बाबा" के पास जाकर "दण्डवत" होकर आशीर्वाद लेते हैं ... "हां" हुई तो कार्य शुरु, "न" हुई तो कार्य गया "खटाई" में ..... और तो और, अगर "बाबा जी" ने कह दिया "बेटा" तीन दिन बाद ही अपनी नई "कुर्सी" पर बैठना तो समझ लो यही "ब्रम्हवाक्य" है .....भईय्या जब इन "बाबाओं" के इशारे से ही काम शुरु होता है तो इनकी भूमिका कैसे न हुई ... जब हुई तो श्रेय भी मिलना चाहिये।
.... चलो अब असली मुद्दे पे आ ही जाते हैं समस्या ये है कि अब "बाबाओं" का भी जीना मुश्किल हो गया है ... असंभव ... असंभव ... अरे भाई मान भी लो, हुआ ये है कि कुछ बाबा "ग्लैमर" के माया मोह में फ़ंस गये और लंबी-लंबी "उडान" भरने लगे ... इस उडान के चक्कर में कुछ बाबा सेक्स स्केंडल, स्मगलिंग, लूट-पाट, धोखाधडी, दैहिक शोषण व नरबली जैसे "अदभुत" कारनामे करने लगे, जब इनका "उडनखटोला" कालरूपी "चिंगारी" के चपेट में आया तो खुद भी "जल" गये और पूरी "बाबा मंडली" भी "झुलस" गई ..... सही मायने मे कहा जाये तो इन "ज्वलनशील बाबाओं" के कारण यदि कोई आहत हुआ है तो "ऊर्जावान बाबा" हुये हैं .... जय "काल" ..... जय जय "महाकाल" ... ।
भारत की पहचान
एक छोटी सी बात अलग है
भारत की पहचान अलग है
कुंभ का स्नान अलग है
हिमालय की शान अलग है
फ़ौजों का आगाज अलग है
रिश्तों में मिठास अलग है
एक छोटी सी ............
होली की गुलाल अलग है
दीवाली की रात अलग है
दोस्ती का मान अलग है
दुश्मनी की घात अलग है
एक छोटी सी ............
इंसा का ईमान अलग है
नारी का स्वाभिमान अलग है
सर्व-धर्म की बात अलग है
भारत की पहचान अलग है
एक छोटी सी बात अलग है
भारत की पहचान अलग है ।
भारत की पहचान अलग है
कुंभ का स्नान अलग है
हिमालय की शान अलग है
फ़ौजों का आगाज अलग है
रिश्तों में मिठास अलग है
एक छोटी सी ............
होली की गुलाल अलग है
दीवाली की रात अलग है
दोस्ती का मान अलग है
दुश्मनी की घात अलग है
एक छोटी सी ............
इंसा का ईमान अलग है
नारी का स्वाभिमान अलग है
सर्व-धर्म की बात अलग है
भारत की पहचान अलग है
एक छोटी सी बात अलग है
भारत की पहचान अलग है ।
Friday, March 5, 2010
डामरे जी .... लडका बडा हो गया है!
एक दिन मैं "न्यू मार्केट" चौक भोपाल मे खडे होकर पान खा रहा था मेरा एक मित्र आया उसके साथ पुरानी यादें ताजा करते हुये "सिगरेट" का कश मारने लगे ... थोडी देर बाद मित्र चला गया मैं पान वाले को पैसे दे रहा था .... ठीक उसी समय एक सज्जन अपने मोबाईल फ़ोन पर बात करने लगे ... डामरे जी क्या हाल है... बढिया है ... आजकल भोपाल मैं हूं ... रिटायर हो गया हूं ... अभी-अभी आपका लडका दिखा था ... हां ... हां वहीं भोपाल मे "जी न्यूज" मे काम कर रहा है, बहुत नाम कमा लिया है ... वो सब तो ठीक है डामरे जी ... लेकिन आपका लडका बडा हो गया है ... क्यों, क्या हुआ ... अब क्या बतांऊ वह मुझे तो नहीं पहचान पाया पर मै उसे देखकर ही पहचान गया .... चलो अच्छी बात है उससे मिलते रहना मैं भी उसे बोल दूंगा आपसे मिल लेगा .... वो सब तो ठीक है डामरे जी ... अरे क्या हुआ, कुछ संकोच कर रहे हो ... नहीं ऎसी कोई बात नही है ... बस इतना बताना चाहता हूं ... डामरे जी ...... आपका लडका बडा हो गया है "सिगरेट" पी रहा था।
दानवीर सेठ
एक सेठ जी को महान बनने का विचार मन में "गुलांटी" मार रहा था वे हर समय चिंता मे रहते थे कि कैसे "महान" बना जाये, इसी चिंता में उनका सोना-जगना , खाना-पीना अस्त-व्यस्त हो गया था !
कंजूसी के कारण दान-दया का विचार भी ठीक से नहीं बन पा रहा था बैठे-बैठे उनकी नजर घर के एक हिस्से मे पडे कबाडखाने पर पड गई खबाडखाने के सामने घंटों बैठे रहे और वहीं से उन्हे "महान" बनने का "आईडिया" मिल गया !
दूसरे दिन सुबह-सुबह सेठ जी कबाड से पन्द्रह-बीस टूटे-फ़ूटे बर्तन - लोटा, गिलास, थाली, प्लेट इत्यादि झोले मे रखकर निकल पडे, पास मे एक मंदिर के पास कुछ भिखारी लाईन लगाकर बैठे हुये थे, सेठ जी ने सभी बर्तन भिखारियों में बांट दिये !
बांटकर सेठ जी जाने लगे तभी एक भिखारी ने खुद के पेट पर हाथ रखते हुये कहा "माई-बाप" कुछ खाने-पीने को भी मिल जाता तो हम गरीबों की जान में जान आ जाती, सेठ जी ने झुंझला कर कहा "सैकडों रुपये" के बर्तन दान में दे दिये अब क्या मेरी जान लेकर ही दम लोगे ?
... झुंझलाते हुये सेठ जी जाने लगे ...... तभी पीछे से भूख से तडफ़ रहे भिखारियों ने ...सेठ जी ... सेठ जी कहते हुये बर्तन उसके ऊपर फ़ेंक दिये और बोले .... बडा आया "दानवीर" बनने !!
(श्री मनोज कुमार जी द्वारा दानवीर सेठ की चर्चा निज कवित केहि लाग न नीका "चिट्ठाचर्चा" ब्लाग पर की गई है, आभार)
कंजूसी के कारण दान-दया का विचार भी ठीक से नहीं बन पा रहा था बैठे-बैठे उनकी नजर घर के एक हिस्से मे पडे कबाडखाने पर पड गई खबाडखाने के सामने घंटों बैठे रहे और वहीं से उन्हे "महान" बनने का "आईडिया" मिल गया !
दूसरे दिन सुबह-सुबह सेठ जी कबाड से पन्द्रह-बीस टूटे-फ़ूटे बर्तन - लोटा, गिलास, थाली, प्लेट इत्यादि झोले मे रखकर निकल पडे, पास मे एक मंदिर के पास कुछ भिखारी लाईन लगाकर बैठे हुये थे, सेठ जी ने सभी बर्तन भिखारियों में बांट दिये !
बांटकर सेठ जी जाने लगे तभी एक भिखारी ने खुद के पेट पर हाथ रखते हुये कहा "माई-बाप" कुछ खाने-पीने को भी मिल जाता तो हम गरीबों की जान में जान आ जाती, सेठ जी ने झुंझला कर कहा "सैकडों रुपये" के बर्तन दान में दे दिये अब क्या मेरी जान लेकर ही दम लोगे ?
... झुंझलाते हुये सेठ जी जाने लगे ...... तभी पीछे से भूख से तडफ़ रहे भिखारियों ने ...सेठ जी ... सेठ जी कहते हुये बर्तन उसके ऊपर फ़ेंक दिये और बोले .... बडा आया "दानवीर" बनने !!
(श्री मनोज कुमार जी द्वारा दानवीर सेठ की चर्चा निज कवित केहि लाग न नीका "चिट्ठाचर्चा" ब्लाग पर की गई है, आभार)
Wednesday, March 3, 2010
परिवर्तन ...
आज नहीं तो कल
होगा 'परिवर्तन' !
चहूं ओर फ़ैले होंगे पुष्प
और मंद-मंद पुष्पों की खुशबू !
चहूं ओर फ़ैली होगी
रंगों की बौछार !
आज नहीं तो कल
होगा 'परिवर्तन' !
न कोई होगा हिन्दु-मुस्लिम
न होगा कोई सिक्ख-ईसाई
सब के मन 'मंदिर' होंगे
और सब होंगे 'राम-रहीम' !
न कोई होगा भेद-भाव
न होगी कोई जात-पात
सब का धर्म, कर्म होगा
और सब होंगे 'कर्मवीर' !
आज नहीं तो कल
होगा 'परिवर्तन' !!
होगा 'परिवर्तन' !
चहूं ओर फ़ैले होंगे पुष्प
और मंद-मंद पुष्पों की खुशबू !
उमड रहे होंगे भंवरे
तितलियां भी होंगी
और होगी चिडियों की चूं-चूं !
और होगी चिडियों की चूं-चूं !
चहूं ओर फ़ैली होगी
रंगों की बौछार !
आज नहीं तो कल
होगा 'परिवर्तन' !
न कोई होगा हिन्दु-मुस्लिम
न होगा कोई सिक्ख-ईसाई
सब के मन 'मंदिर' होंगे
और सब होंगे 'राम-रहीम' !
न कोई होगा भेद-भाव
न होगी कोई जात-पात
सब का धर्म, कर्म होगा
और सब होंगे 'कर्मवीर' !
आज नहीं तो कल
होगा 'परिवर्तन' !!
Monday, March 1, 2010
"ब्लागिंग" लोकतंत्र का "पांचवा स्तंभ"
"ब्लागिंग" का क्रेज दिन-व-दिन बढ रहा है धीरे-धीरे "ब्लागिंग" का एक प्रभावशाली स्थान बनते जा रहा है बुद्धिजीवी वर्ग के लोग इसे लोकतंत्र का "पांचवा स्तंभ" भी कहने लगे हैं, कुछेक लोगों में ऎसी भी "सरसराहट" है कि जो काम "प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया" नहीं कर रही है वह काम "बेधडक व निष्पक्षरूप" से "ब्लागिंग" में हो रहा है तात्पर्य ये है कि "ब्लाग" में बिना मिर्च-मसाला, बिना जोड-तोड, बिना लाग-लपेट के अभिव्यक्तियां की जा रहीं हैं जिनकी प्रसंशा सभी वर्ग के लोग कर रहे हैं।
"ब्लागिंग" पर एक क्षेत्र विशेष अथवा किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है वरन लेखन की सभी विधाओं का समान रूप से अधिकार है कहने का तात्पर्य ये है कि कवि, लेखक, कहानीकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, आलोचक, समालोचक, इतिहासकार, ज्योतिषाकार, कार्टूनिस्ट इत्यादि सभी के लिये यह एक "खुला मंच" है इसके माध्यम से सभी अपनी-अपनी राय व हुनर को सफ़लतापूर्वक अभिव्यक्त कर रहे हैं ।
निसंदेह "ब्लागिंग" ने एक क्रांति का रूप ले लिया है जिसके माध्यम से ऎसी-ऎसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आ रही हैं जिन्होंने लेखन के क्षेत्र में स्थापित "महानुभावों" को भी संशय में डाल दिया है, कुक्षेक "ब्लागर्स" की लेखनी तो इतनी प्रभावशाली है कि आने वाले समय में उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर भी सराहा जायेगा और पुरुस्कारों से नवाजा जायेगा ।
अंत में, यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नही होगा कि "ब्लागिंग" न सिर्फ़ सामाजिक बदलाव व नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा वरन "प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया" के साथ मिल कर कदम-से-कदम मिलाकर एक नई राह दिखायेगा ।
"ब्लागिंग" पर एक क्षेत्र विशेष अथवा किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है वरन लेखन की सभी विधाओं का समान रूप से अधिकार है कहने का तात्पर्य ये है कि कवि, लेखक, कहानीकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, आलोचक, समालोचक, इतिहासकार, ज्योतिषाकार, कार्टूनिस्ट इत्यादि सभी के लिये यह एक "खुला मंच" है इसके माध्यम से सभी अपनी-अपनी राय व हुनर को सफ़लतापूर्वक अभिव्यक्त कर रहे हैं ।
निसंदेह "ब्लागिंग" ने एक क्रांति का रूप ले लिया है जिसके माध्यम से ऎसी-ऎसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आ रही हैं जिन्होंने लेखन के क्षेत्र में स्थापित "महानुभावों" को भी संशय में डाल दिया है, कुक्षेक "ब्लागर्स" की लेखनी तो इतनी प्रभावशाली है कि आने वाले समय में उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर भी सराहा जायेगा और पुरुस्कारों से नवाजा जायेगा ।
अंत में, यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नही होगा कि "ब्लागिंग" न सिर्फ़ सामाजिक बदलाव व नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा वरन "प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया" के साथ मिल कर कदम-से-कदम मिलाकर एक नई राह दिखायेगा ।
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