01
ये जो सियासत है, सियासतबाज हैं
वे अपने नहीं हैं
किसी दिन आजमा लेना, वे मुल्क के भी नहीं हैं !
02
लोग काम में उलझे रहे, हम इश्क में
कुछ इस तरह.. फ़ना हुई है जिन्दगी !
03
मजबूरियाँ ले आई हैं .. यहाँ मुझको
वर्ना
कौन खुशनसीब तेरे आगोश से यूँ ही चला आता ?
04
दीवाना हूँ कैसे बाज आऊँ आदत से
तुझे देखूँ, मिलूँ, और चूमूँ न !
05
कुछ हुनर मुझे भी बख्श दे मेरे मालिक
तेरी महफ़िल में अब भी ढेरों उदास बैठे हैं !
06
लगी थी आग, धधक रहे थे जिस्म, दोनों के मगर
कहीं कुछ फासले थे जो उन्हें थामे हुए थे !
07
ये जरूरी तो नहीं हर इल्जाम का मैं जवाब देता फिरूँ
क्या कुछ लोग हँसते हुए अच्छे नहीं लगते ?
08
दबी जुबान से वो खुद को गुलाम कहते हैं
इश्क हो जाये तो फिर शाह कहाँ रहते हैं !
09
जिस दिन गणेश प्रसन्न हुए
घर में ही रुकने, रुके रहने का मन किये
उसी दिन
तुम कर आये विसर्जित
वो भी कहाँ ?
एक दूषित जल में
क्यों ?
क्या ईश्वर -
तुम्हारे आडंबर से छोटे हैं, झूठे हैं ??
~ उदय
ये जो सियासत है, सियासतबाज हैं
वे अपने नहीं हैं
किसी दिन आजमा लेना, वे मुल्क के भी नहीं हैं !
02
लोग काम में उलझे रहे, हम इश्क में
कुछ इस तरह.. फ़ना हुई है जिन्दगी !
03
मजबूरियाँ ले आई हैं .. यहाँ मुझको
वर्ना
कौन खुशनसीब तेरे आगोश से यूँ ही चला आता ?
04
दीवाना हूँ कैसे बाज आऊँ आदत से
तुझे देखूँ, मिलूँ, और चूमूँ न !
05
कुछ हुनर मुझे भी बख्श दे मेरे मालिक
तेरी महफ़िल में अब भी ढेरों उदास बैठे हैं !
06
लगी थी आग, धधक रहे थे जिस्म, दोनों के मगर
कहीं कुछ फासले थे जो उन्हें थामे हुए थे !
07
ये जरूरी तो नहीं हर इल्जाम का मैं जवाब देता फिरूँ
क्या कुछ लोग हँसते हुए अच्छे नहीं लगते ?
08
दबी जुबान से वो खुद को गुलाम कहते हैं
इश्क हो जाये तो फिर शाह कहाँ रहते हैं !
09
जिस दिन गणेश प्रसन्न हुए
घर में ही रुकने, रुके रहने का मन किये
उसी दिन
तुम कर आये विसर्जित
वो भी कहाँ ?
एक दूषित जल में
क्यों ?
क्या ईश्वर -
तुम्हारे आडंबर से छोटे हैं, झूठे हैं ??
~ उदय