दीवाली में दीप जलाएं
द्वारे-द्वारे फूल सजाएं
आँगन आँगन रंग बिछाएं
चलो चलें हम 'दीप' बने,
और खुशी का गीत बनें
गाँव, शहर, प्रदेश, देश में
विकास का सन्देश बनें !
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Sunday, October 31, 2010
Saturday, October 30, 2010
रौशनी
...............................................................
जहां उजाले-ही-उजाले हैं,
वहां 'दीप' बन -
टिमटिमाने से बेहतर है
वहां 'दीप' बन -
टिमटिमाने से बेहतर है
चलो चलें, कहीं अंधेरों में,
रौशनी बन -
आँगन आँगन जगमगा जाएं !
रौशनी बन -
आँगन आँगन जगमगा जाएं !
................................................................
चाहत
...........................................
तू चाहे या न चाहे, कोई बात नहीं
हम तो चाहेंगे तुझे, रात में रौशनी बनाकर !
...........................................
Friday, October 29, 2010
'दीप'
............................
चलो चलें 'दीप' बनें हम
जगमग-जगमग छा जाएं
दीवाली के पावन में
दीप जलाएं आँगन में !
.............................
Wednesday, October 27, 2010
अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
रात में निकला नहीं था, सर्द की ठंडक के डर से
अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
जिन्हें हम भूलने बैठे, वो अक्सर याद आते हैं
जो हमको याद करते हैं, उन्हें हम भूल जाते हैं !
फलक से तोड़कर, मैं सितारे तुमको दे देता
पर मुझको है खबर, तुम उन्हें नीलाम कर देते !
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
...
अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
जिन्हें हम भूलने बैठे, वो अक्सर याद आते हैं
जो हमको याद करते हैं, उन्हें हम भूल जाते हैं !
फलक से तोड़कर, मैं सितारे तुमको दे देता
पर मुझको है खबर, तुम उन्हें नीलाम कर देते !
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
...
Monday, October 25, 2010
नक्सली चहरे में छिपा आतंकी चेहरा !
नक्सली विगत कुछेक वर्षों से एक ही नीति अर्थात सिद्धांत पर कार्य कर रहे हैं वो नीति है मारकाट, ह्त्या, लूटपाट, अटैक, ब्लास्ट, बगैरह बगैरह, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उन्हें इसी नीति पर कार्य करने की महारत हासिल है, क्योंकि वे सकारात्मकता व रचनात्मकता से काफी दूर हैं यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि उनका मकसद ही विनाशात्मक है। जब नक्सलवाद का मुख्य मकसद विनाशात्मक है तो उनसे रचनात्मकता व सकारात्मकता की उम्मीद रखना खुद के साथ बेईमानी करना ही प्रमाणित होगा, खैर इस व्यवहार से नक्सली मंसूबे स्वमेव जाहिर हो जाते हैं। किन्तु समस्या नक्सलियों के विनाशकारी रबैय्ये से नहीं है समस्या परिलक्षित हो रही है उनके बदलते व्यवहार से, बदलते व्यवहार से तात्पर्य उनके सिद्धांतों में अमूल-चूल परिवर्तन से है, सीधे शब्दों में कहा जाए तो जहां नक्सलियों की नीति सदा से मारकाट व ह्त्या की रही है वहां दूसरी ओर पुलिस कर्मियों को किडनेप करना फिर उन्हें छोड़ देना, यह व्यवहार तरह तरह के संदेहों अथवा सम्भावनाओं को जन्म देता है ! ये और बात है कि नक्सली शुभचिंतकों व समर्थकों ने किडनेप किये गए पुलिस कर्मियों को छोड़ने हेतु गुहार लगाईं थी।
नक्सलियों द्वारा पुलिस कर्मियों को किडनेप करना, जेल में बंद नक्सली साथियों को रिहा करने की शर्त पर पुलिस कर्मियों को छोड़ने की शर्त रखना, समयसीमा समाप्त होने के पश्चात पुन: समयसीमा बढ़ाना, फिर अंत में निशर्त बंधक पुलिस कर्मियों को रिहा कर देना, नक्सलवाद का ये कौनसा चेहरा है जो पहले तो पुलिस कर्मियों का किडनेप करते हैं और बाद में निशर्त छोड़ देते हैं !विगत दिनों बिहार प्रांत में चार पुलिस कर्मियों का नक्सलियों ने किडनेप किया जिसमे से एक लुकास टेटे की ह्त्या कर दी थी तथा दूसरी ओर तीन कर्मी सब इन्स्पेक्टर रुपेश कुमार व अभय यादव तथा हवलदार एहसान खान की बाद में निशर्त रिहाई कर दी। ठीक इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भी नक्सलियों ने चार पुलिस कर्मियों को किडनेप किया जिन्हें भी निशर्त छोड़ दिया।
हालांकि पूर्व में नक्सलियों ने अगुवा किये गए पुलिस कर्मियों को छोड़ने के एवज में जेल में बंद अपने नक्सली साथियों की रिहाई की मांग रखी थी किन्तु बाद में पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया गया। लगभग दस दिनों तक ये पुलिस कर्मी नक्सलियों के बंधक रहे, हालांकि वामपंथी विचारधारा के लोकप्रिय कवि बाराबारा राव ने भी इन्हें छोड़ने के लिए अपील की थी और कहा था की अपनी शर्तें मनवाने का यह तरीका उचित नहीं है।गौरतलब बात यह है की इस बार नक्सलियों ने अपनी शर्त व समय सीमा को नजर अंदाज करते हुए समय सीमा गुजर जाने के बाद निशर्त पुलिस कर्मियों को रिहा कर एक नई मिशाल पेश की है, ये बात और है की इसके पीछे नक्सलियों के कुछ-न-कुछ मंसूबे जरुर होंगे ! ठीक इसी प्रकार बिहार में भी नक्सलियों ने पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा करते समय कहा था कि वे मानव अधिकार समर्थकों, बुद्धिजीवियों व शुभ चिंतकों के आग्रह पर इन्हें छोड़ रहे हैं।समस्या पुलिस कर्मियों के किडनेप होने तथा निशर्त रिहा हो जाने को लेकर नहीं है समस्या नक्सली सोच व व्यवहार में बदलाव की है, इसे हम कुछ पल के लिए खुशी का मंजर मान सकते हैं कि नक्सलियों ने अगुवा किये पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया !
किन्तु यहाँ पर मेरा मानना है कि नक्सलियों का यह व्यवहार नजर अंदाज करने योग्य कतई नहीं हैं, क्योंकि विगत दिनों ही नक्सलियों ने काश्मीर में चल रहे जिहादी आतंकवाद के समर्थन में बंद का आव्हान किया था।अभी तक नक्सलियों को अंदरुनी रूप से आतंकवादियों के सपोर्ट की बात परिलक्षित होती रही है आधुनिकतम हथियारों से नक्सलियों का लैस होना इस बात की प्रमाणिकता है कि नक्सली व आतंकी एक-दूसरे के पूरक हैं, साथ ही साथ आतंकी समर्थन में बंद का आव्हान कर नक्सलियों ने अपने मंसूबे खुल्लम-खुल्ला तौर पर जाहिर कर दिए हैं ! नक्सलियों का दिन-व्-दिन विस्तार होना तथा आतंकवादियों के समर्थन में बंद का आव्हान करना, अपने आप में नक्सली मंसूबे जाहिर हो रहे हैं नक्सली चहरे के भीतर आतंकी चेहरा परिलक्षित हो रहा है यदि अब भी केंद्र व राज्य सरकारें एक दूसरे को तकते रहेंगी तो यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि अंजाम बेहद खतरनाक ही सामने आयेंगे !
नक्सलियों द्वारा पुलिस कर्मियों को किडनेप करना, जेल में बंद नक्सली साथियों को रिहा करने की शर्त पर पुलिस कर्मियों को छोड़ने की शर्त रखना, समयसीमा समाप्त होने के पश्चात पुन: समयसीमा बढ़ाना, फिर अंत में निशर्त बंधक पुलिस कर्मियों को रिहा कर देना, नक्सलवाद का ये कौनसा चेहरा है जो पहले तो पुलिस कर्मियों का किडनेप करते हैं और बाद में निशर्त छोड़ देते हैं !विगत दिनों बिहार प्रांत में चार पुलिस कर्मियों का नक्सलियों ने किडनेप किया जिसमे से एक लुकास टेटे की ह्त्या कर दी थी तथा दूसरी ओर तीन कर्मी सब इन्स्पेक्टर रुपेश कुमार व अभय यादव तथा हवलदार एहसान खान की बाद में निशर्त रिहाई कर दी। ठीक इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भी नक्सलियों ने चार पुलिस कर्मियों को किडनेप किया जिन्हें भी निशर्त छोड़ दिया।
हालांकि पूर्व में नक्सलियों ने अगुवा किये गए पुलिस कर्मियों को छोड़ने के एवज में जेल में बंद अपने नक्सली साथियों की रिहाई की मांग रखी थी किन्तु बाद में पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया गया। लगभग दस दिनों तक ये पुलिस कर्मी नक्सलियों के बंधक रहे, हालांकि वामपंथी विचारधारा के लोकप्रिय कवि बाराबारा राव ने भी इन्हें छोड़ने के लिए अपील की थी और कहा था की अपनी शर्तें मनवाने का यह तरीका उचित नहीं है।गौरतलब बात यह है की इस बार नक्सलियों ने अपनी शर्त व समय सीमा को नजर अंदाज करते हुए समय सीमा गुजर जाने के बाद निशर्त पुलिस कर्मियों को रिहा कर एक नई मिशाल पेश की है, ये बात और है की इसके पीछे नक्सलियों के कुछ-न-कुछ मंसूबे जरुर होंगे ! ठीक इसी प्रकार बिहार में भी नक्सलियों ने पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा करते समय कहा था कि वे मानव अधिकार समर्थकों, बुद्धिजीवियों व शुभ चिंतकों के आग्रह पर इन्हें छोड़ रहे हैं।समस्या पुलिस कर्मियों के किडनेप होने तथा निशर्त रिहा हो जाने को लेकर नहीं है समस्या नक्सली सोच व व्यवहार में बदलाव की है, इसे हम कुछ पल के लिए खुशी का मंजर मान सकते हैं कि नक्सलियों ने अगुवा किये पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया !
किन्तु यहाँ पर मेरा मानना है कि नक्सलियों का यह व्यवहार नजर अंदाज करने योग्य कतई नहीं हैं, क्योंकि विगत दिनों ही नक्सलियों ने काश्मीर में चल रहे जिहादी आतंकवाद के समर्थन में बंद का आव्हान किया था।अभी तक नक्सलियों को अंदरुनी रूप से आतंकवादियों के सपोर्ट की बात परिलक्षित होती रही है आधुनिकतम हथियारों से नक्सलियों का लैस होना इस बात की प्रमाणिकता है कि नक्सली व आतंकी एक-दूसरे के पूरक हैं, साथ ही साथ आतंकी समर्थन में बंद का आव्हान कर नक्सलियों ने अपने मंसूबे खुल्लम-खुल्ला तौर पर जाहिर कर दिए हैं ! नक्सलियों का दिन-व्-दिन विस्तार होना तथा आतंकवादियों के समर्थन में बंद का आव्हान करना, अपने आप में नक्सली मंसूबे जाहिर हो रहे हैं नक्सली चहरे के भीतर आतंकी चेहरा परिलक्षित हो रहा है यदि अब भी केंद्र व राज्य सरकारें एक दूसरे को तकते रहेंगी तो यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि अंजाम बेहद खतरनाक ही सामने आयेंगे !
समाचार पत्र भी चले न्यूज चैनल्स की राह !
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उनकी पत्नी साक्षी गोवा के अरब सागर में तैराकी का लुत्फ़ उठा रहे थे, नहाना-तैरना एक सामान्य प्रक्रिया है कोई भी, कहीं भी नहा सकता है फिर चाहे वो महेंद्र सिंह धोनी हों या कोई और ! यह इतनी बड़ी खबर भी नहीं है की इस पर चर्चा की जाए, किन्तु इस खबर से निकली एक खबर है उस पर चर्चा आवश्यक महसूस कर रहा हूँ वो खबर है कि इस खबर को देश के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने इतना तबज्जो दिया कि अपने मुख्य पेज पर ही महेंद्र सिंह धोनी व उनकी पत्नी साक्षी की नहाते-तैरते हुई फोटो को छापकर मुख्य समाचार का हिस्सा बना दिया ! यह फोटो वैसे तो सामान्य खबर भी नहीं थी किन्तु फ्रंट पेज में छपने से अपने आप में ख़ास खबर बन गई, वाह भाई वाह, अभी तक तो इस तरह की बे-सिर-पैर की खबरें न्यूज चैनल्स पर धड़ल्ले से टी.आर.पी.बढाने के लिए प्रसारित हो रही थीं किन्तु अब प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में इन्हें स्थान देना वो भी फ्रंट पेज पर ... ऊफ्फ ! न्यूज चैनल्स पर इस तरह की खबरें प्रसारित होना आम बात है अक्सर इस तरह की खबरें वे टी.आर.पी.के चक्कर में हर दूसरे दिन चलाते रहते हैं किन्तु देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में इस तरह की खबरें प्रकाशित होना चिंता का विषय है !
Sunday, October 24, 2010
ब्लॉग चटा-चट ... गुरु-चेला ! (०२)
चेला - भईय्या आप ब्लागजगत के नामी, गिरामी, धुरंधर ब्लॉगर हो ... पर मैं देखता हूँ कि आप दो-दो, चार-चार दिन तक पोस्ट नहीं लगाते और जब लगा भी देते हो तब कोई पढ़ने भी नहीं आता ... मेरा मतलब टिप्पणियों से है फिर भी रेंकिंग में चालीस की लिस्ट में बने हुए हैं ... मानना पडेगा, प्रणाम भईय्या !
गुरु - ये अपुन का स्टाईल है बिडू ... इसलिए ही तो लोग अपुन को खटरंग ब्लॉगर मानते हैं ... बोले तो धुरंधर ब्लॉगर !
चेला - वाह भईय्या वाह मानना पडेगा आपके स्टाईल को ... पर भईय्या ऐसा कब तक चलता रहेगा ... लोग पोस्ट पढ़ने नहीं आते ... आठ-दस आते भी हैं तो बिना टिप्पणी के चले जाते हैं ... कहीं आपकी रेंकिंग जमीन पर न आ जाए और आपका ब्लॉग 'धूल' चाटते न रह जाए !
गुरु - अबे चिरकुट ये भी अपुन का स्टाईल है .... जिसको पढ़ना है पढ़े न पढ़ना है न पढ़े ... जिसको टिपियाना है टिपियाये नहीं तो भाड़ में जाए ... अपुन ने ऐसी सेटिंग बैठाल कर रखी हुई है कि कोई भी अपुन का रेंकिंग नहीं बिगाड़ सकता ... मंच्च, वार्टा, चौप्पाल ये सब अपुन के चेले हैं पोस्ट लगाने के पहले अपुन को सेल्यूट जरुर मारते हैं ... अब तू शागिर्दगी में आ ही गया है तो धीरे धीरे सब सीख जाएगा ... हा हा हा !
गुरु - ये अपुन का स्टाईल है बिडू ... इसलिए ही तो लोग अपुन को खटरंग ब्लॉगर मानते हैं ... बोले तो धुरंधर ब्लॉगर !
चेला - वाह भईय्या वाह मानना पडेगा आपके स्टाईल को ... पर भईय्या ऐसा कब तक चलता रहेगा ... लोग पोस्ट पढ़ने नहीं आते ... आठ-दस आते भी हैं तो बिना टिप्पणी के चले जाते हैं ... कहीं आपकी रेंकिंग जमीन पर न आ जाए और आपका ब्लॉग 'धूल' चाटते न रह जाए !
गुरु - अबे चिरकुट ये भी अपुन का स्टाईल है .... जिसको पढ़ना है पढ़े न पढ़ना है न पढ़े ... जिसको टिपियाना है टिपियाये नहीं तो भाड़ में जाए ... अपुन ने ऐसी सेटिंग बैठाल कर रखी हुई है कि कोई भी अपुन का रेंकिंग नहीं बिगाड़ सकता ... मंच्च, वार्टा, चौप्पाल ये सब अपुन के चेले हैं पोस्ट लगाने के पहले अपुन को सेल्यूट जरुर मारते हैं ... अब तू शागिर्दगी में आ ही गया है तो धीरे धीरे सब सीख जाएगा ... हा हा हा !
Saturday, October 23, 2010
लिव-इन रिलेशनशिप : एक सामाजिक द्रष्ट्रीकोण
'लिव-इन रिलेशनशिप' से तात्पर्य एक ऐसे रिश्ते से है जिसमें मर्द-औरत सामाजिक तौर पर शादी किये बगैर साथ-साथ रहते हैं और उनके बीच के संबंध निर्विवाद रूप से पति-पत्नी जैसे ही होते हैं, इस रिश्ते की खासियत यह होती है कि स्त्री-पुरुष दोनों ही एक-दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं फर्क सिर्फ इतना होता है कि उनकी सामाजिक रीति रिवाज के अनुरूप शादी नहीं हुई होती है। यह स्थिति समय के बदलाव के साथ-साथ आधुनिक संस्कृति का एक हिस्सा बन गई है कहने का तात्पर्य यह है कि आज के बदलते परिवेश में युवक-युवतियां इतने आधुनिक हो गए हैं कि वे आपसी ताल-मेल पर मित्रवत एक साथ पति-पत्नी के रूप में साथ साथ रहना गौरव की बात समझते हैं। इसे हम गौरव न समझते हुए जरुरत भी कह सकते हैं, जरुरत इसलिए कि आधुनिक समय में एक दूसरे को समझने तथा काम-धंधे में सेटल होने के लिए समय की आवश्यकता को देखते हुए वे दोनों एक दूसरे के साथ रहने व जीने के लिए स्वैच्छिक रूप से तैयार हो जाते हैं और जीवन यापन शुरू कर देते हैं। समय के बदलाव के साथ-साथ साल, दो साल या चार साल के बाद यदि उन्हें महसूस होता है कि आगे भी साथ साथ रहा जा सकता है तो वे विधिवत शादी कर लेते हैं या फिर स्वैच्छिक रूप से ब्रेक-अप कर अलग अलग हो जाते हैं।
'लिव-इन रिलेशनशिप' एक तरह का मित्रवत संबंध है जिसे विवाह के दायरे में कतई नहीं रखा जा सकता क्योंकि विवाह एक सामाजिक व पारिवारिक बंधन अर्थात रिवाज है जिसकी एक आचार संहिता है, मान मर्यादा है, कानूनी प्रावधान हैं, ठीक इसी क्रम में विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के दायरे में न रखते हुए घरेलु हिंसा संबंधी कानूनी दायरे से बाहर माना है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चिततौर पर स्वागत योग्य है क्योंकि इस फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते चलन में कुछ मात्रा में कमी अवश्य आनी चाहिए। यदि इस रिश्ते को कानूनी या सामाजिक सपोर्ट मिलता है तो निश्चिततौर पर यह एक सामाजिक क्रान्ति का रूप ले लेगा जो सामाजिक मान-मर्यादा व पारिवारिक द्रष्ट्रीकोण से अहितकर साबित होगा। किन्तु हम एक सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से देखें तो इस 'लिव-इन रिलेशनशिप' रूपी अनैतिक व असामाजिक रिश्ते को स्वछंद छोड़ देना भी अहितकर ही साबित होगा, क्योंकि इस रिश्ते से तरह तरह की आपराधिक घटनाओं को जन्म लेने का खुला अवसर मिलेगा, इसलिए मेरा मानना है की इस अनैतिक रिश्ते को कानूनी अमली-जामा पहनाते हुए कानूनी बंधन में बांधा जाना सामाजिक, पारिवारिक व मानवीय द्रष्ट्रीकोण से हितकर होगा।
हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप रूपी रिश्ते का जन्म आधुनिक संस्कृति रूपी कोख से हुआ है अत: इसे स्वछंद छोड़ देना समाज के हित में कतई नहीं होगा, ये माना की इस रिश्ते के परिणाम स्वरूप दहेज़ प्रताड़ना, दहेज़ ह्त्या व अन्य घरेलु हिंसा जैसे अपराध घटित नहीं होंगे किन्तु सामूहिक बलात्कार, ग्रुप सेक्स, शारीरिक शोषण, ब्लेक मेलिंग, ह्त्या, ब्लू फिल्म मेकिंग जैसे अपराधों को निसंदेह प्रश्रय मिलेगा, जो समाज को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कलंकित ही करेंगे। यहाँ पर मेरा मानना तो यह है की इस रिश्ते को हम जितना नजर अंदाज करेंगे या स्वछंदता प्रदान करेंगे वह उतना की 'बेसरम' पेड़ की तरह स्वमेव फलता-फूलता रहेगा और समाज रूपी 'बगिया' को प्रदूषित करता रहेगा। यदि हम एक साफ़-सुथरे समाज की आशा रखते हैं तो हमें निसंदेह स्वत: आगे बढ़कर इस अनैतिक रिश्ते पर गंभीर मंथन कर इसे कानूनी बंधन में बांधना आवश्यक होगा जो न सिर्फ कानूनी रूप से वरन सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से भी हितकर होगा।
Friday, October 22, 2010
नेतागिरी ...
नेताओं की महिमा देखो
खूब जमीं है महफ़िल देखो !
धूम मची है नेताओं की
रंग जमा है नेताओं का !
नेताओं की शान निराली
दौलत हुई है आन पर भारी !
लटक रहे हैं पैर कबर में
दौड़ रहे हैं दिल्ली दिल्ली !
क्या बूढा, क्या महिला देखो
दांव-पेंच हैं अजब निराले !
बूढ़े-बाढ़े नतमस्तक हैं
युवराजों की शान निराली !
क्या बूढ़े, क्या बच्चे देखो
लूट रहे हैं मिलकर सारे !
स्कूलों - कालेजों में भी
शान हो रही नेताओं की !
पढ़ना-लिखना भूल रहे हैं
नेतागिरी सीख रहे हैं !
बच्चे भी अब डोल रहे हैं
नेता नेता खेल रहे हैं !!
खूब जमीं है महफ़िल देखो !
धूम मची है नेताओं की
रंग जमा है नेताओं का !
नेताओं की शान निराली
दौलत हुई है आन पर भारी !
लटक रहे हैं पैर कबर में
दौड़ रहे हैं दिल्ली दिल्ली !
क्या बूढा, क्या महिला देखो
दांव-पेंच हैं अजब निराले !
बूढ़े-बाढ़े नतमस्तक हैं
युवराजों की शान निराली !
क्या बूढ़े, क्या बच्चे देखो
लूट रहे हैं मिलकर सारे !
स्कूलों - कालेजों में भी
शान हो रही नेताओं की !
पढ़ना-लिखना भूल रहे हैं
नेतागिरी सीख रहे हैं !
बच्चे भी अब डोल रहे हैं
नेता नेता खेल रहे हैं !!
Thursday, October 21, 2010
कामनवेल्थ गेम्स : भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार
कामनवेल्थ गेम्स - २०१० का आयोजन देश की राजधानी नई दिल्ली में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ, ये और बात है कि आयोजन की संपूर्ण प्रक्रिया पर शुरू से अंत तक भ्रष्टाचार के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे, पर आयोजन की प्रक्रिया चलती रही और अंतत: एक सफल आयोजन के रूप में कामनवेल्थ गेम्स संपन्न हुए, किन्तु संपूर्ण आयोजन प्रक्रिया में जाहिरा तौर पर ही भ्रष्टाचार की बू महसूस की जाती रही है ! भ्रष्टाचार हो भी क्यों न, आखिर ७० हजार करोड़ का बजट जो था ! ७० हजार करोड़ कोई छोटी-मोटी रकम नहीं होती है, पर क्या कहें आखिर कामनवेल्थ गेम्स आयोजन भी कोई छोटा-मोटा खेल आयोजन नहीं था ! विशाल खेल आयोजन पर विशाल रकम खर्च होनी ही चाहिए, पर खर्च को लेकर जो चर्चाएँ गलियारों में फ़ैली हुई हैं उन्हें सुनकर तो यही लगता है कि सरकारी धन की खूब 'बन्दर बांट' हुई है 'बन्दर बांट' भी कुछ इस तरह लग रही है कि कुछेक लोगों की तो लाटरी निकल पडी थी, इसे हम लाटरी के टिकट वाली लाटरी न समझें वरन एक खजाना मिल जाने वाली लाटरी समझें तो ज्यादा उचित होगा, जब खजाना मिल ही गया था तो फिर दोनों हाथों से लूटने-लुटाने से कैसा परहेज ! चर्चाएं व आरोप-प्रत्यारोप सुनकर तो यही लग रहा है कि धन का उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा हुआ है यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि कुछेक लोग तो तर गए अर्थात 'मालामाल' हो गए !
यह सर्वविदित है कि कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन की जिम्मेदारी भारत को सन-२००३ में सौंपी गई थी किन्तु २००६ तक यह परियोजना फाइलों में ही दबी पडी रही तथा जब शुरू हुई तो आनन्-फानन में त्रुटियाँ होना लाजिमी है ! चलो देर आये दुरुस्त आये वाली कहावत चरितार्थ तो हुई, इसमें कतई संदेह नहीं है कि आयोजन एक विशाल व आकर्षक आयोजन साबित हुआ इस खेल आयोजन में शामिल हुए लगभग सभी देशों के खिलाड़ियों तथा दर्शकों ने आयोजन की भूरी-भूरी प्रसंशा की है, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सफल आयोजन ने देश की गरिमा में चार चाँद लगा दिए तथा देश के खिलाड़ियों ने पदक-पर-पदक जीत कर आयोजन को सोने-पे-सुहागा सिद्ध कर दिया, निसंदेह यह अत्यंत गौरव की बात है। खिलाड़ियों के न भूलने वाले प्रदर्शन की जितनी सराहना की जाए कम ही होगी, खिलाड़ियों के प्रदर्शन व पदक विजेता खिलाड़ियों को मैं सलाम करता हूँ।
कामनवेल्थ गेम्स का आयोजन, ७० हजार करोड़ का बजट, सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता वाली आयोजन समीति तथा भ्रष्टाचार के नए नए आयाम रचने वाला अपना देश ! यह कोई नया या सुनहरा अवसर नहीं था भ्रष्टाचार के लिए, भ्रष्टाचार तो अपने देश में आम बात हो गई है सही मायने में कहा जाए तो अपने देश में भ्रष्टाचार की कोई मर्यादा, सीमा या दायरा नहीं है जिसको जहां - जहां मौक़ा मिल रहा है जी भर कर मुंह मार रहा है, लगभग सभी भ्रष्टाचारी यह भलीभांति जानते हैं कि उनका कुछ बिगड़ना तो है नहीं, देर-सबेर भ्रष्टाचार की पुरानी फाइलों की तरह नई फाइलें भी कहीं-न-कहीं धूल खाते पडी रहेंगी, फिर क्यों भ्रष्टाचार से मुंह मोड़ा जाए ! ठीक इसी क्रम में ७० हजार करोड़ का बजट देख कर मुंह में पानी आना लाजिमी है, जब मुंह में पानी आ ही गया तो फिर मान क्या और मर्यादा क्या ! सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता वाली आयोजन समीति ने भी वही किया जो किसी दूसरे नाम वाली समीति करती तात्पर्य यह है कि आज जो नाम सामने है वह सुरेश कलमाडी का है कोई दूसरा होता तो उसका नाम सामने होता, कहने का सीधा-सीधा तात्पर्य यह है कि समीति का अध्यक्ष कोई भी होता, होता वही जो हुआ है !
इसमे कतई संदेह नहीं है कि कामनवेल्थ गेम्स आयोजन में न सिर्फ भ्रष्टाचार की सभी मर्यादाएं पार हुई होंगी वरन भ्रष्टाचार के नए नए आयाम भी रचे गए होंगे ! जिस तरह के आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं उन्हें देख-सुन कर तो यही लग रहा है कि इस 'बन्दर बांट' के लिए किसी एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, यह माना कि सुरेश कलमाडी आयोजन समीति के अध्यक्ष थे किन्तु एक व्यक्ति का इतना दम-ख़म नहीं की वह अकेला ७० हजार करोड़ रुपयों का खेल करता रहे और सब देखते रहें ! इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस महा घोटाले में किसी एक व्यक्ति ने अकेले गुटर-गूं की हो और बांकी सब महारथी देखते रहे हों , निश्चिततौर पर इस महा घोटाले के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता ! खैर देखते हैं आगे आगे क्या होता है आखिर इस महा घोटाले पर पर्दाफ़ाश के लिए जांच तो शुरू हो ही गई है, पर देखने वाली बात यह भी होगी कि जांच के परिणाम कब व कितने देर बाद सामने आयेंगे, कहीं ऐसा न हो कि अन्य जांचों की तरह यह जांच भी स्वमेव ठंठे बस्ते में चली जाए !
Wednesday, October 20, 2010
ब्लॉग चटा-चट ... गुरु-चेला !
चेला - भईय्या आप ब्लागजगत के नामी, गिरामी, धुरंधर ब्लॉगर हो ... पर मैं देखता हूँ की आप ब्लागजगत के उभरते ब्लागर्स की पोस्ट पर टिप्पणी करते ही नहीं हो वहीं दूसरी ओर कुछेक ब्लॉग की सड़ी-गली पोस्टों पर भी खूब वाह-वाही ठोक देते हो !
गुरु - ये अपुन का स्टाईल है बिडू ... इसलिए ही तो लोग अपुन को धुरंधर ब्लॉगर मानते हैं !
चेला - वाह भईय्या वाह मानना पडेगा आपके स्टाईल को ... पर भईय्या आपके ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने वालों की संख्या दिन-ब-दिन घटते जा रही है फिर भी आप टाप लिस्ट में ऊपर बने हुए हैं ... राज क्या है !
गुरु - अबे चिरकुट ये भी अपुन का स्टाईल है .... अगर कोई पढ़ने नहीं आयेगा और न ही टिप्पणी ठोकेगा फिर भी अपुन टाप पर रहेगा ... समझा की नहीं समझा ... अब तू शागिर्दगी में आ ही गया है तो एक दिन तुझे भी यह राज गिफ्ट कर दूंगा ... हा हा हा !
गुरु - ये अपुन का स्टाईल है बिडू ... इसलिए ही तो लोग अपुन को धुरंधर ब्लॉगर मानते हैं !
चेला - वाह भईय्या वाह मानना पडेगा आपके स्टाईल को ... पर भईय्या आपके ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने वालों की संख्या दिन-ब-दिन घटते जा रही है फिर भी आप टाप लिस्ट में ऊपर बने हुए हैं ... राज क्या है !
गुरु - अबे चिरकुट ये भी अपुन का स्टाईल है .... अगर कोई पढ़ने नहीं आयेगा और न ही टिप्पणी ठोकेगा फिर भी अपुन टाप पर रहेगा ... समझा की नहीं समझा ... अब तू शागिर्दगी में आ ही गया है तो एक दिन तुझे भी यह राज गिफ्ट कर दूंगा ... हा हा हा !
Tuesday, October 19, 2010
चुपके से !
तुम मौन रहो
खामोश रहो
या खड़े रहो
खामोशी में
पर कुछ कह दो
चुपके से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
बात वो जो तुम
कह न पाए
भीड़ भरे सन्नाटे में
आज तुम कह दो
चुपके से
आँखों से, मुस्कानों से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
खामोश रहो
या खड़े रहो
खामोशी में
पर कुछ कह दो
चुपके से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
बात वो जो तुम
कह न पाए
भीड़ भरे सन्नाटे में
आज तुम कह दो
चुपके से
आँखों से, मुस्कानों से
हम सुन लेंगे
चुपके से
तुम कह तो दो कुछ
चुपके से !
Monday, October 18, 2010
शाबास इंडिया ... रहमान को अब भी नाज है थीम सांग पर !
कामनवेल्थ गेम्स थीम सांग को लेकर जो छी-छा लेदर, टीका-टिप्पणी हुई थी कोई बे-वजह नहीं हुई थी यह सच है कि थीम सांग उच्चस्तरीय व प्रसंशनीय नहीं था, इस बात की स्वीकारोक्ति स्वयं गीतकार आस्कर अवार्ड विजेता ए.आर.रहमान ने कर ली है किन्तु उनका यह भी कहना कि उन्होंने " ... सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश की थी फिर भी मैं अपेक्षाओं के अनुरूप खरा नहीं उतरा, मगर मुझे अपने गीत व धुन पर नाज है ... " नाज करो, आपका हक़ है नाज करना, आखिर जग-हसाई करवाने के बदले में साढ़े-पांच करोड़ रुपये जो मिले हैं अगर कोई महाशय इतनी बड़ी रकम हजम करने के बाद भी "नाज" न करे तो जरुर चिंता का विषय होगा !
देश के आमजन, आयोजन समीति, खेलप्रेमी व खेल के जानकार ए.आर.रहमान के गीत "इंडिया बुला लिया" की तुलना फुटबाल विश्वकप के गीत "वाका-वाका" से कर रहे थे जो लाजिमी नहीं था ! क्योंकि किसी एक गीत की तुलना किसी दूसरे गीत से करना न्यायसंगत नहीं होगा, पर यह भी आवश्यक है कि हर किसी फरफार्मेंस का अपना अपना महत्त्व होता है जो स्पष्ट है कि ए.आर.रहमान अपने थीम सांग पर विशाल आयोजन व खेल भावनाओं के अनुरूप खरे नहीं उतरे ! अब जो हो गया सो हो गया, जो गुजर गया तो गुजर गया, अब इस विषय पर बहस का कोई औचित्य भी नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ! पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के अवसरों पर इस तरह का साधारण रबैय्या देश को शर्मसार ही करता है, खैर जाने देते हैं !
किन्तु मेरा मानना तो यह है कि जिस प्रकार अब भी ए.आर.रहमान अपने गीत व धुन पर नाज कर रहे हैं वह उचित नहीं है, ये तो वही बात हुई कि देश का हर दूसरा-तीसरा आदमी बाथरूम में गीत गुनगुना कर खुद पर नाज कर लेता है ! सच्चाई तो आखिर सच्चाई ही रहेगी ... रहमान जी खुद पर नाज करने से कुछ नहीं होगा ... अगर कुछ करना ही है तो उन सभी खिलाड़ियों पर नाज करो जिन्होंने "मेडल-पर-मेडल" जीत कर देश को गौरवान्वित किया है ! ... जो साढ़े-पांच करोड़ आपको मिले हैं यदि उस रकम में से आप इमानदारी से अपनी मेहनत का हिस्सा रखकर शेष रकम को मेडल जीतने वाले खिलाडियों के मान-सम्मान पर खर्च कर दें तो शायद आपकी भी जय जय कार हो जाए !
Sunday, October 17, 2010
एक रावण को मारता दूसरा रावण !!
महाराज चलो रावण मारने चलें !
क्या मतलब है दिखावा करने से ?
नहीं महाराज दिखावा काहे का !
अरे ये दिखावा नहीं है तो और क्या है ?
चलो ठीक है, अब रावण मारना भी आपकी नजर में दिखावा हो गया है !
दिखावा नहीं तो और क्या है, जो रावण तुम्हारे अन्दर बसा हुआ है उसे क्यों नहीं मारते हो ?
आप भी मजाक कर रहे हो, अब जिसे खुद पाल कर, अन्दर बसा कर, सिद्ध कर रखे हुए हैं ... उसे भला मारना कैसा ?
तो फिर रावनरूपी पुतला बना बना कर जलाने का दिखावा किसलिए ?
महाराज अब आप तो खुद समझदार हो, आजकल दिखावा बहुत जरुरी हो गया है ! ... यदि हम लोग दिखावा नहीं करेंगे तो किसी दिन कोई रामनुमा इंसान हमें ही जलाने का विचार नहीं कर लेगा ?
ये तो सच कहा ... मतलब खुद को बनाए रखने के लिए कुछ-न-कुछ ढोंग-धतूरा तो करना ही पड़ता है ... बढ़िया ... बहुत बढ़िया !
तो चलें महाराज ... रावण मारने !
नहीं भईय्या ... आप ही जाओ ... मुझे तो डर ही लगता है कि कहीं देखा-देखी के चक्कर में ... वहां रावण जल तो जाए पर उसकी आत्मा मेरे संग - संग न आ जाए !
ठीक है हम ही चले जाते हैं ... जैसी आपकी मर्जी !
पर जाते जाते ये तो बता जाओ कि तुमने खुद के अन्दर रावण को कैसे पाल कर रखा हुआ है ?
बहुत लम्बी कहानी है भईय्या ... आजकल गाय, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, तोता बगैरह को पाल कर रखने में ही पसीना छूट जाता है फिर ये तो रावण है !
बताओ भईय्या बताओ ... आखिर रावण की कहानी जो है ... रावण !
एक दिन हम बहुत दुखी बैठे थे तब अचानक रावण की आत्मा हमारे सामने प्रगट हो गई ... कहने लगी तुम्हारे सारे दुख-दर्द ख़त्म कर दूंगा बस तुम्हें अपने अन्दर रहने के लिए मुझे जगह देना पडेगा ... मैंने पूछा क्या मतलब है तुम्हारा ? ... अरे डरो मत मैं सिर्फ मांस-मदिरा ग्रहण करूंगा और तुम्हारे सब काम करता रहूँगा ! ... बस, फिर क्या था मैंने उसे उसी दिन उसे मांस-मदिरा का भोग लगवा दिया ... वह दिन है की आज का दिन है रावण मेरे अन्दर मेरे साथ ही रहता है !
भईय्या रावण को पालने से आपको फ़ायदा क्या है ? तुम्हारी हालत तो ज्यों की त्यों है ?
मेरी हालत पर मत जाओ भईय्या, मैं जो सुख भोग रहा हूँ उसका अलग ही मजा है ... कुछ भी काम बेधड़क कर लेता हूँ और कोई रोकने वाला भी नहीं रहता है ! ... बस अच्छे काम ही नहीं कर पाता हूँ क्योंकि रावण करने नहीं देता है ... अब भला आज के कलयुग में अच्छे काम करने से फ़ायदा भी क्या है ?
अच्छा ये बात है, मतलब मौजे-ही-मौजे हैं ! भईय्या जब रावण तुम्हारे ही अन्दर है फिर रावण मारने, मेरा मतलब देखने क्यों जा रहे हो ?
भईय्या ये अन्दर की बात है अब पूछ रहे हो तो सुन लो ... आजकल रावण मारने ( जलाने ) की होड़ रहती है, शहर का जो सबसे बड़ा रावण होता है अर्थात जो सर्वाधिक पावरफुल रावण प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है वह ही रावण को जलाता है ... उसके चहरे पर रावण फूंकते समय जो मुस्कान होती है, यूं समझ लो बस वही देखने जाता हूँ ... चलो आपको दिखाता हूँ !
नहीं भईय्या ... आपको ही रावण और उसकी मुस्कान मुबारक हो ... आप ही देखो कैसे एक रावण को दूसरा रावण मारता है ... जय श्रीराम ... जय जय श्रीराम !!!
क्या मतलब है दिखावा करने से ?
नहीं महाराज दिखावा काहे का !
अरे ये दिखावा नहीं है तो और क्या है ?
चलो ठीक है, अब रावण मारना भी आपकी नजर में दिखावा हो गया है !
दिखावा नहीं तो और क्या है, जो रावण तुम्हारे अन्दर बसा हुआ है उसे क्यों नहीं मारते हो ?
आप भी मजाक कर रहे हो, अब जिसे खुद पाल कर, अन्दर बसा कर, सिद्ध कर रखे हुए हैं ... उसे भला मारना कैसा ?
तो फिर रावनरूपी पुतला बना बना कर जलाने का दिखावा किसलिए ?
महाराज अब आप तो खुद समझदार हो, आजकल दिखावा बहुत जरुरी हो गया है ! ... यदि हम लोग दिखावा नहीं करेंगे तो किसी दिन कोई रामनुमा इंसान हमें ही जलाने का विचार नहीं कर लेगा ?
ये तो सच कहा ... मतलब खुद को बनाए रखने के लिए कुछ-न-कुछ ढोंग-धतूरा तो करना ही पड़ता है ... बढ़िया ... बहुत बढ़िया !
तो चलें महाराज ... रावण मारने !
नहीं भईय्या ... आप ही जाओ ... मुझे तो डर ही लगता है कि कहीं देखा-देखी के चक्कर में ... वहां रावण जल तो जाए पर उसकी आत्मा मेरे संग - संग न आ जाए !
ठीक है हम ही चले जाते हैं ... जैसी आपकी मर्जी !
पर जाते जाते ये तो बता जाओ कि तुमने खुद के अन्दर रावण को कैसे पाल कर रखा हुआ है ?
बहुत लम्बी कहानी है भईय्या ... आजकल गाय, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, तोता बगैरह को पाल कर रखने में ही पसीना छूट जाता है फिर ये तो रावण है !
बताओ भईय्या बताओ ... आखिर रावण की कहानी जो है ... रावण !
एक दिन हम बहुत दुखी बैठे थे तब अचानक रावण की आत्मा हमारे सामने प्रगट हो गई ... कहने लगी तुम्हारे सारे दुख-दर्द ख़त्म कर दूंगा बस तुम्हें अपने अन्दर रहने के लिए मुझे जगह देना पडेगा ... मैंने पूछा क्या मतलब है तुम्हारा ? ... अरे डरो मत मैं सिर्फ मांस-मदिरा ग्रहण करूंगा और तुम्हारे सब काम करता रहूँगा ! ... बस, फिर क्या था मैंने उसे उसी दिन उसे मांस-मदिरा का भोग लगवा दिया ... वह दिन है की आज का दिन है रावण मेरे अन्दर मेरे साथ ही रहता है !
भईय्या रावण को पालने से आपको फ़ायदा क्या है ? तुम्हारी हालत तो ज्यों की त्यों है ?
मेरी हालत पर मत जाओ भईय्या, मैं जो सुख भोग रहा हूँ उसका अलग ही मजा है ... कुछ भी काम बेधड़क कर लेता हूँ और कोई रोकने वाला भी नहीं रहता है ! ... बस अच्छे काम ही नहीं कर पाता हूँ क्योंकि रावण करने नहीं देता है ... अब भला आज के कलयुग में अच्छे काम करने से फ़ायदा भी क्या है ?
अच्छा ये बात है, मतलब मौजे-ही-मौजे हैं ! भईय्या जब रावण तुम्हारे ही अन्दर है फिर रावण मारने, मेरा मतलब देखने क्यों जा रहे हो ?
भईय्या ये अन्दर की बात है अब पूछ रहे हो तो सुन लो ... आजकल रावण मारने ( जलाने ) की होड़ रहती है, शहर का जो सबसे बड़ा रावण होता है अर्थात जो सर्वाधिक पावरफुल रावण प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है वह ही रावण को जलाता है ... उसके चहरे पर रावण फूंकते समय जो मुस्कान होती है, यूं समझ लो बस वही देखने जाता हूँ ... चलो आपको दिखाता हूँ !
नहीं भईय्या ... आपको ही रावण और उसकी मुस्कान मुबारक हो ... आप ही देखो कैसे एक रावण को दूसरा रावण मारता है ... जय श्रीराम ... जय जय श्रीराम !!!
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