tag:blogger.com,1999:blog-19512364456486182082024-03-05T21:32:18.801-08:00कडुवा सच ..."चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comBlogger2007125tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-250515019828748642019-08-26T04:57:00.000-07:002019-08-26T04:57:26.065-07:00गुड्डू आओ ... गोलगप्पे खाएँ .... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गुड्डू आओ ... चलें ..<br />
गोलगप्पे खाएँ<br />
कुछ खट्टे-मीठे .. तो कुछ चटपटे-चटपटे खाएँ<br />
<br />
चलो .. चलें ...<br />
अपने उसी ठेले पे .. स्कूल के पास ...<br />
<br />
आज .. जी भर के ... मन भर के<br />
सूत-सूत के खाएँ<br />
<br />
गुड्डू आओ ... चलें ..<br />
गोलगप्पे खाएँ !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-44370024299931072172019-08-17T20:14:00.000-07:002019-08-26T04:59:38.997-07:00राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राजू उठ<br />
भोर हुई<br />
चल दौड़ लगाने चल<br />
<br />
पानी गरम कर दिया है<br />
दूध गरम हो रहा है<br />
राजू उठ<br />
भोर हुई<br />
चल दौड़ लगाने चल<br />
<br />
दूर नहीं अब मंजिल<br />
पास खड़े हैं सपने<br />
इक दौड़ लगा कर जीत ले<br />
तू .. सारे अपने सपने<br />
<br />
राजू उठ<br />
भोर हुई<br />
चल दौड़ लगाने चल ।<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-30799225308587736322019-01-25T21:55:00.000-08:002019-01-25T21:55:02.327-08:00क्या वफ़ा, क्या बेवफाई, सब सिलसिले हैं .... !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
भक्ति क्या है ?<br />
भक्ति एक कला है, और एक गुलामी भी है<br />
<br />
बहुत कम लोग होते हैं जो<br />
"भक्ति योग" में जन्म लेते हैं, और जो<br />
<br />
एक बार "भक्ति योग" में जन्म ले लेते हैं<br />
वो फिर,<br />
जीवन भर भक्ति में ही रहते हैं<br />
<br />
यह जरूरी नहीं, कि -<br />
सिर्फ छोटे-मझौले लोग ही भक्त हो सकते हैं<br />
<br />
बड़े, उनसे बड़े, और उनसे बड़े ... सबसे बड़े ....<br />
भी भक्त हो सकते हैं,<br />
<br />
हम, आज देख रहे हैं सबसे बड़े लोगों को<br />
भक्त के रूप में .... ??<br />
<br />
02<br />
<br />
क्या वफ़ा, क्या बेवफाई, सब सिलसिले हैं ....<br />
<br />
क्या इतना काफी नहीं है<br />
कि -<br />
वो हमें भूले नहीं हैं !<br />
<br />
03<br />
<br />
ऐसा भी क्या कुसूर था जो भुला दिया हमें<br />
किसी न किसी काम तो आ ही रहे थे हम !<br />
<br />
04<br />
<br />
वक्त भी साथ है, और हवाएँ भी<br />
जलाओ बस्तियाँ, देखें तो जरा बुझाने कौन आता है !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-67712094339652488832019-01-11T20:44:00.000-08:002019-01-11T20:44:16.019-08:0010% आरक्षण .... इसमें संशय कैसा ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जो लोग यह सोच रहे हैं कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% है इसलिए जो 10% सीमा बढ़ाई गई है वह सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाएगी ... उनका यह सोचना मात्र भ्रम है।<br />
<br />
क्योंकि इस बार संविधान में संशोधन के साथ आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई है / बढ़ाई जा रही है, इसलिए खारिज होने की संभावना नहीं के बराबर है।<br />
<br />
यदि सरकार द्वारा कोई महत्वपूर्ण कानूनी चूक की गई होगी या की जा रही होगी, तब ही खारिज होने की संभावना है अन्यथा बिल्कुल नहीं .... लोग अपने अपने भ्रम दूर रख दें।<br />
<br />
चिंता का विषय सिर्फ इतना है कि आर्थिक रूप से पिछड़े होने का जो आधार आठ लाख रुपये सालाना आय व पांच एकड़ जमीन का पैमाना रखा गया है या रखा जा रहा है, वह है ... क्योंकि .....<br />
<br />
उक्त पैमाने पर .. जो वास्तविक रूप से आर्थिक गरीब हैं उन्हें न्याय मिल पायेगा अथवा नहीं, इसमें संशय है ?<br />
<br />
उक्त संदर्भ में मेरा मानना तो यह है कि जिनकी सालाना आय तीन लाख से कम है तथा जमीन दो एकड़ से कम है उन्हें रखा जाना चाहिए .... ??<br />
<br />
~ श्याम कोरी 'उदय'</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-75165941491665914282019-01-01T01:20:00.000-08:002019-01-01T01:20:14.163-08:00बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे .... ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
जरा पत्तों की मजबूरियाँ भी तो तुम समझो 'उदय'<br />
हवा का झौंका जिधर चाहेगा उधर उड़ना पड़ेगा !<br />
<br />
02<br />
<br />
अभी बिजूका तक तो लगा नहीं है खेत में<br />
विपक्षी.. बेवजह ही चैं-चैं चैं-चैं कर रहे हैं ?<br />
<br />
03<br />
<br />
किसी की किसी से कोई साहूकारी नहीं<br />
हार भी तेरी है और जीत भी तेरी ?<br />
<br />
04<br />
<br />
उन्हें चैन न मिलेगा तक तक<br />
जब तक वो खुद को उस्तरे से छील नहीं लेंगे<br />
वो बंदर हैं,<br />
यही तो पहचान है उनकी ?<br />
<br />
05<br />
<br />
न कर गुमां.. सिर्फ अपनी कौम पर<br />
तेरी बस्ती में कई कौमों का डेरा है !<br />
<br />
06<br />
<br />
ठंड से कुछ तो सबक ले लो हुजूर<br />
कहीं.. मई की गर्मी जान न ले ले ?<br />
<br />
07<br />
<br />
सादगी भी बे-फिजूल रही, औ कमीनापन भी<br />
उन्हें.... झूठ ही कुछ ज्यादा पसंद था !<br />
<br />
08<br />
<br />
आईना तो आईना ही रहेगा 'उदय'<br />
भले चाहे तुम मुँह फेर लो उससे !<br />
<br />
09<br />
<br />
क्या खूब जुगलबंदी है भक्त औ भगवान की<br />
झूठ का हवन है औ झूठ का ही स्वाहा है ?<br />
<br />
10<br />
<br />
बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे<br />
वो पत्थर ... जो वक्त के हाथों में हैं ?<br />
<br />
अगर चाहो<br />
तो छटपटा कर निकल जाओ, जैसे-तैसे<br />
<br />
रच लो खुद को .... अपनी शर्तों पर<br />
<br />
कौन जाने, कौन-सा पत्थर<br />
कब 'खुदा' हो जाये !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-45234214846455774802018-12-26T06:27:00.000-08:002018-12-26T06:27:04.321-08:00अनपढ़ मंत्री <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लघुकथा - अनपढ़ मंत्री !<br />
<br />
कॉफी हाउस की टेबल पर ... दो न्यूज चैनल के पत्रकार, तीन समाचार पत्रों के पत्रकार तथा एक राजनैतिक दल के दो नेता ... आपस में इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि .. लो एक अनपढ़ आदिवासी नेता को मंत्री बना दिये, जिसे पढ़ना तक नहीं आता ....<br />
<br />
पास की टेबल पर बैठे एक कवि का बे-फिजूल की बहस सुनकर खून खौल गया ... कवि से रहा नहीं गया .... और उठकर बुद्धिजीवी चर्चाकारों पर बेहद शांत अंदाज में पिल पड़े तथा 3-4 सवाल दाग दिए .....<br />
<br />
पहला सवाल ... क्या आपको पता है जिसकी आप आलोचना कर रहे हैं उसका जन्म जिस गांव में हुआ था उस गांव में स्कूल नहीं था तथा आस-पास के 20-30 किमी दूर किसी गांव में भी नहीं था ?<br />
<br />
दूसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि उसके माता-पिता उसे 100, 200, 300 किमी दूर पढ़ने हेतु भेजने में सक्षम नहीं थे अर्थात वह चाँदी की चम्मच लेके पैदा नहीं हुआ था ??<br />
<br />
तीसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि जब उसके पास के गांव में स्कूल खुला तब तक वह 20 साल की उम्र पार कर चुका था तथा साक्षरता अभियान क्या होता है यह भी वह नहीं जानता था ???<br />
<br />
चौथा सवाल ... क्या यह गर्व की बात नहीं है कि वह आदिवासी अंचल से 3 बार, 4 बार, 5 बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहा है ????<br />
<br />
कवि महोदय सवाल दाग कर चले गए ... और ..... बुद्धिजीवी पत्रकार व नेतागण सवालों के जवाब ढूंढने में लग गए .... !!<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-71310732575568475712018-12-14T21:45:00.000-08:002018-12-14T21:45:36.502-08:00अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो .... !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
सब कुछ.. वक्त पे मत छोड़ 'उदय'<br />
वक्त हर घड़ी रहमदिल नहीं होता !<br />
<br />
02<br />
<br />
यकीनन ये इम्तिहान उनका था<br />
भले ही, कोई और फैल कर दिया गया है आज !<br />
<br />
03<br />
<br />
आईने का कुसूर तो आईना जानता है<br />
आज तुझे अपने चेहरे को भांपना है !<br />
<br />
( भांपना = आंकलन लगाना, अनुमान लगाना )<br />
<br />
04<br />
<br />
कुछ-कुछ ख्याल से हैं मिजाज तेरे<br />
बदल जाते हैं बार-बार !<br />
<br />
05<br />
<br />
न आहट, और न ही कहीं कोई सरसराहट है<br />
वक्त करवट बदल रहा है शायद ?<br />
<br />
06<br />
<br />
अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो<br />
झील हैं बहता दरिया नहीं हैं हम !<br />
<br />
07<br />
<br />
तनिक हार का गम तो हल्का कर लेते मियाँ<br />
सरकारें तो.... हमेशा ही कटघरे में होती हैं !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-36382074344326574342018-12-07T20:19:00.000-08:002018-12-07T20:19:08.675-08:00तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी ... ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
यकीं नहीं था कि - वो बेवफा निकल जाएंगे<br />
जिनसे सीखा था कभी हमने वफ़ा का पाठ !<br />
<br />
02<br />
<br />
फड़फड़ाते रहे ख्वाब उड़ान भरने को<br />
इक झौंका हवा का करीब नहीं आया !<br />
<br />
03<br />
<br />
बात आहिस्ता-आहिस्ता ही कही गई थी लेकिन<br />
खामोशियों से भी रहा न गया !<br />
<br />
04<br />
<br />
जिन्दगी में, कभी .. किसी इम्तिहान में हारे नहीं थे <br />
चलो, तुम्हारी खामोशियों से कुछ सबक तो मिला !<br />
<br />
05<br />
<br />
अब इसे, फितरत कहो, या हुनर<br />
वो, खुद ही बंदर, खुद ही भालू, औ खुद ही मदारी हैं !<br />
<br />
06<br />
<br />
तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी<br />
बददुआ ने पल में कमाल कर दिया !<br />
<br />
07<br />
<br />
यहाँ, कोई, एतबार के काबिल नहीं दिखता<br />
क्यों, खामों-खां किसी को आजमाया जाए !<br />
<br />
08<br />
<br />
तेरे वादे पे अब क्या एतबार करते<br />
जब तेरे दिल पे ही एतबार न रहा !<br />
<br />
09<br />
<br />
तमाशेबाजो अब तो बाज आ जाओ तमाशों से<br />
लहू जो बह रहा है वो कर्ज है तुम पर !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-6144471088024531472018-11-24T05:31:00.000-08:002018-11-24T05:31:25.902-08:00ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद ... ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
हम उन्हें भी याद आएंगे, इक दिन देख लेना तुम<br />
उन्हें लगने तो दो ठोकर किसी सोने की मूरत से ?<br />
<br />
02<br />
<br />
मिट जाएँ खुद-ब-खुद अंधेरे शायद<br />
वर्ना अब कोई एतबार के काबिल न रहा !<br />
<br />
03<br />
<br />
अब वो जो आये हैं तो कुछ बात तो होगी ही<br />
वैसे भी, बिना बात के वो आते कब हैं !<br />
<br />
04<br />
<br />
तमाम कोशिशें नाकाम ही रहीं उनकी 'उदय'<br />
वो, झूठ चेहरे से छिपा नहीं पाए !<br />
<br />
05<br />
<br />
जीत की चाह इत्ती है, कि कुछ मुगालते में अब भी हैं<br />
शायद ! जब तक हारेंगे नहीं ख्वाब टूटेंगे नहीं !!<br />
<br />
06<br />
<br />
ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद<br />
वर्ना, हम आदमी कहाँ थे पहले !<br />
<br />
07<br />
<br />
मुगालतों की कहानी थी भली<br />
कुछ इस तरह, वो जिंदगी से रु-ब-रु न हो सके !<br />
<br />
08<br />
<br />
दलालों की मेहरवानी से सौदे हो रहे हैं तय<br />
वर्ना, आदमी की कोई कीमत नहीं है !<br />
<br />
09<br />
<br />
फरिश्तों की खामोशियाँ समझो 'उदय'<br />
कहीं कुछ चूक हो रही है शायद !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-83941735837484633022018-11-14T05:29:00.000-08:002018-11-14T05:29:53.665-08:00कुछ महक सी है फिजाओं में ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
खुद का, खुद से, खुद हो जाना, 'खुदा' हो जाना है 'उदय'<br />
कब हम करेंगे ये करिश्मा ये बताओ तो जरा ?<br />
<br />
02<br />
<br />
कुछ रोशनी खुद की भी जगमगाने दो<br />
सिर्फ दिये काफी नहीं गरीबों के लिए !<br />
<br />
( दिये = दीप, दीपक )<br />
<br />
03<br />
<br />
फ़िराक में तो थे कि वो 'खुदा' कहला जाएं मगर<br />
दो घड़ी की रौशनी भी वो दे ना सके !<br />
<br />
04<br />
<br />
किस बात पे रोएं या किस बात पे हंसे<br />
सारा जग है भूल-भुलैय्या ?<br />
<br />
05<br />
<br />
हमारी आशिकी भी इक दिन उन्हें रुला देगी<br />
जिस दिन उन्हें कोई उनसा मिलेगा !<br />
<br />
06<br />
<br />
कुछ महक सी है फिजाओं में<br />
कोई आस-पास है शायद !<br />
<br />
07<br />
मेरे निबाह की तू फिक्र न कर<br />
कोई और भी सफर में साथ है मेरे !<br />
<br />
( निबाह = निर्वाह, गुजारा, साथ )<br />
<br />
08<br />
<br />
गर तुझको 'खुदा' का खौफ है तो पीना छोड़ दे<br />
वर्ना ये बता, 'खुदा' ने कब कहा पीना गुनाह है ?<br />
<br />
09<br />
<br />
यूँ तो, वक्त के साथ फरिश्ते भी बदल जाते हैं<br />
फिर किसी पे क्यूँ करें एतबार उतना ?<br />
<br />
10<br />
<br />
सारा शहर जानता है उनके सारे इल्जाम झूठे हैं<br />
मगर फिर भी, कचहरी लग रही है !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-91091350898997077552018-11-03T06:34:00.000-07:002018-11-03T06:34:26.562-07:00ख्वाहिशें <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
ये सच है, तू सदा ही मेरी ख्वाहिश रही है मगर<br />
बच्चों की भूख से बड़ी कहाँ होती हैं ख्वाहिशें ?<br />
<br />
02<br />
<br />
फ़ना हो गए, कल फिर कई रिश्ते<br />
एक चाँद कितनों संग निभा पाता ?<br />
<br />
03<br />
<br />
कैसा गुमां जिन्दगी का या कैसा रंज मौत का<br />
कोई दास्तां नहीं, इक दास्तां के बाद ?<br />
<br />
04<br />
<br />
ये सियासत है या है कोई परचून की दुकां<br />
कोई सस्ता, तो कोई बेतहाशा कीमती है ?<br />
<br />
05<br />
<br />
न कोई उनकी ख़ता थी न कोई मेरी ख़ता थी<br />
राहें जुदा-जुदा थीं ..... ..... जुदा-जुदा चलीं !<br />
<br />
06<br />
<br />
ताउम्र तन्हाई थी<br />
कुछ घड़ी जो तुम मिले तो कारवें बनने लगे !<br />
<br />
07<br />
<br />
ये किसे तूने<br />
मेरी तकलीफों के लिए मसीहा मुकर्रर कर रक्खा है<br />
<br />
जिसे खुद<br />
अपनी तकलीफों से फुर्सत नहीं मिलती ?<br />
<br />
08<br />
<br />
कोई ज़ख्म यादों के सफर में है<br />
कब तलक बचकर चलेगा वो मेरी नजर में है<br />
<br />
उसे भी साथ चलना होगा उसके<br />
ज़ख्म जो हर घड़ी जिसकी नजर में है !<br />
<br />
09<br />
<br />
किस बात का गुमां करूँ किस बात का मैं रंज<br />
पहले फक्कड़ी मौज थी अब है औघड़ी शान !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-68982939671994095072018-10-27T05:54:00.000-07:002018-10-27T05:54:39.049-07:00कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
आपको एक अच्छा कवि बनने के लिए<br />
संपादक, प्रकाशक, मालिक या<br />
इनसे भी बड़ा स्वयंभू होना जरूरी होगा<br />
<br />
यदि आप<br />
इनमें से कोई एक भी नहीं हैं तो<br />
<br />
तो भी कोई बात नहीं<br />
आप कविताएँ लिखते रहें<br />
शायद<br />
आपकी किसी कविता को पढ़कर<br />
इनमें से किसी के रौंगटे खड़े हो जाएं<br />
<br />
या किसी को इतना विचलित कर दे कि वो<br />
आपको<br />
कवि मानने को मजबूर हो जाये<br />
<br />
लेकिन<br />
ऐसा कब होगा<br />
इसकी कोई गारंटी नहीं है<br />
सच कहूँ तो<br />
कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ??<br />
<br />
02<br />
<br />
किसी के रूठने की, कोई हद तो होगी<br />
या ये सफर ....... यूँ ही चलता रहेगा ?<br />
<br />
03<br />
<br />
ये कौन किसे मार रहा है<br />
राम रावण को, या रावण रावण को ?<br />
<br />
ये कौन भ्रम में है<br />
तू, मैं, या कोई और .... ??<br />
<br />
एक रावण जो -<br />
तुम्हारे भीतर है, मेरे भीतर है, हर किसी के भीतर है<br />
उसे कौन -<br />
पाल-पोष रहा है .... ???<br />
<br />
04<br />
<br />
इल्जामों की फिक्र किसे है 'उदय'<br />
फिक्र तो इस बात की है कि अदालतें उनकी हैं !<br />
<br />
05<br />
<br />
कैसा गुमां, कैसा गुरुर, और कैसी मगरूरियत<br />
बस, मिट्टी से मिट्टी तक का सफर है ?<br />
<br />
06<br />
<br />
खामोशियाँ भी जुर्म ही हैं अगर<br />
खामोशियाँ सत्ता की हैं ?<br />
<br />
07<br />
<br />
कुछ झूठ, कुछ फ़रेब,<br />
कुछ ऐसी ही मिली-जुली फितरत है उसकी,<br />
<br />
मगर फिर भी<br />
वो खुद को 'खुदा' कहता है ?<br />
<br />
08<br />
<br />
न दुख के बादल थे औ न ही गम की घटाएँ थीं मगर<br />
रिमझिम-रिमझिम बरस रही थीं तकलीफें !<br />
<br />
09<br />
<br />
चाँद का चाँद-सा होना लाज़िमी था<br />
मगर मुस्कान उसकी उससे जियादा कातिलाना थी ?<br />
<br />
( लाज़िमी = उचित )<br />
<br />
10<br />
<br />
आज बाजार में गजब की चिल्ल-पों है 'उदय'<br />
लगता है किसी बेजुबाँ की नीलामी है शायद ?<br />
<br />
~ उदय </div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-63027719594474771082018-10-18T00:19:00.000-07:002018-10-18T00:19:05.154-07:00औरत देवी है .... ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
बड़े अजब-गजब थे फलसफे जिंदगी के<br />
न सहेजे गए, न भूले गए !<br />
<br />
( फलसफे = दर्शन शास्त्र, तर्क, ज्ञान, अनुभव )<br />
<br />
02<br />
<br />
शह और मात का खेल है सियासत<br />
कभी घोड़ा मरेगा, कभी हाथी मरेगा, कभी राजा मरेगा !<br />
<br />
03<br />
<br />
लोग कहते हैं 'उदय' तुम भी 'खुदा' हो जाओ<br />
सोचता हूँ, करेंगे क्या 'खुदा' होकर ?<br />
<br />
न तो मस्जिद<br />
न मजार<br />
और न ही कोई मकबरा है अपने मिजाज सा<br />
<br />
रही-सही एक मुहब्बत है अपनी<br />
कहीं वो भी न छिन जाए<br />
तुम्हारे सुझाये 'खुदाई' चक्कर में<br />
<br />
वैसे भी, शहर तो भरा पड़ा है, पटा पड़ा है<br />
स्वयंभू 'खुदाओं' से<br />
<br />
एक हम 'खुदा' न हुए तो क्या हुआ !!<br />
<br />
कदम-कदम पर तो<br />
'खुदा' मिलते हैं, बसते हैं, शहर में अपने !!!!!<br />
<br />
04<br />
<br />
हम उन्हें संवारते रहे और वो हमें उजाड़ते रहे<br />
कुछ इस तरह, तमाम दोस्त अपने ही रकीब निकले !<br />
<br />
सिलसिले दोस्ती के ठहर गए उस दिन<br />
जिस दिन दोस्त अपने ही आस्तीन के साँप निकले !!<br />
<br />
05<br />
<br />
फुटपाथ पे होकर भी नजर चाँद पे थी<br />
उसके ख्वाबों की कोई इन्तेहा तो देखे ?<br />
<br />
06<br />
<br />
तलवे चाट लो<br />
या घुटने टेक दो, या दुम हिला लो<br />
<br />
या नतमस्तक हो जाओ<br />
बात एक ही है<br />
<br />
मतलब<br />
तुमने गुलामी कबूल ली !!<br />
<br />
07<br />
<br />
विकल्प है तो ठीक है<br />
अगर नहीं है<br />
तब भी एक विकल्प ढूँढ लिया जाता है<br />
<br />
गर किसी ने यह भ्रम पाल लिया है कि<br />
अवाम के पास विकल्प नहीं है<br />
इसलिए<br />
वह अजेय है<br />
तो यह उसकी नादानी है<br />
<br />
विकल्प -<br />
लंगड़ा, लूला, काना ... भी हो सकता है !<br />
<br />
08<br />
<br />
बामुश्किल ही सही, ढही तो, एक गुंबद गुनह की<br />
वैसे तो, सारा किला ही गुनहगार दिखे है ?<br />
<br />
09<br />
<br />
औरत देवी है, सर्व शक्तिशाली है<br />
आदिशक्ति है<br />
पूजी जाती है, पूज्यनीय है<br />
<br />
इतना ढोंग काफी है<br />
औरत के<br />
शोषण करने के लिए .... ??<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-49363593205429353822018-10-11T08:43:00.000-07:002018-10-11T08:43:59.577-07:00दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
दिल भी, कुछ आशिक मिजाज हो रहा है आज<br />
या तो मौसम का असर है, या फिर कोई पास से गुजरा है !<br />
<br />
02<br />
<br />
लोग, सदियों से छले जाते रहे हैं<br />
आगे भी छले जाएंगे<br />
<br />
पहले राजनीति की बुनियाद में छल था<br />
अब सत्ता भी छल युक्त हो गई है<br />
<br />
अब,<br />
लोगों को भी छलने की कला सीखनी होगी<br />
नहीं तो<br />
लोग हारते रहेंगे !<br />
<br />
03<br />
<br />
वो.. कुछ झूठे.. कुछ सच्चे.. ही अच्छे हैं<br />
एक से लोग, हर घड़ी अच्छे नहीं लगते !<br />
<br />
( एक से लोग = एक स्वभाव के लोग अर्थात जिनका स्वभाव हर समय एक जैसा होता है ... से है )<br />
<br />
04<br />
<br />
लौट कर आएंगे, वो ऐसा कह कर गए हैं<br />
क्यों न इस झूठ पर भी एतबार कर लिया जाए !<br />
<br />
05<br />
<br />
गर तुम चाहो तो मैं कुछ कहूँ वर्ना<br />
सफर खामोशियों का, कहाँ उत्ता बुरा है !<br />
<br />
06<br />
<br />
इल्जाम उनके रत्ती भर भी झूठे नहीं हैं लेकिन<br />
उनकी म्यादें बहुत पुरानी हैं ?<br />
<br />
07<br />
<br />
मसला शागिर्दगी का नहीं है 'उदय', उस्तादी का है<br />
कोई, कैसे, किसी... पैंतरेबाज को 'खुदा' कह दे ?<br />
<br />
08<br />
<br />
पहले ज़ख्म, फिर मरहम, फिर तसल्ली<br />
ये अंदाज भी काबिले तारीफ हैं उनके ?<br />
<br />
09<br />
<br />
मुगालतों में जिंदगी का अपना अलग मजा है लेकिन<br />
दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ !<br />
<br />
( दोज़ख = नर्क, जहन्नुम )</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-45975542413772461012018-10-04T21:19:00.000-07:002018-10-04T21:19:12.321-07:00गरम गोश्त <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
यूँ तो ....... हर सियासत में, अपने लोग बैठे हैं<br />
पर, हम ये कैसे भूल जाएं कि वे सियासती हैं !<br />
<br />
02<br />
<br />
मैं भी उसके जैसा होता, थोड़ा सच्चा-झूठा होता<br />
थोड़ा इसका<br />
थोड़ा उसका<br />
सबका थोड़ा-थोड़ा होता<br />
<br />
मंदिर होता - मस्जिद होता<br />
गाँव भी होता<br />
शहर भी होता<br />
सबका थोड़ा-थोड़ा होता <br />
<br />
बच्चा होता<br />
बूढ़ा होता<br />
इधर भी होता - उधर भी होता<br />
मैं भी उसके जैसा होता, थोड़ा सच्चा-झूठा होता !<br />
<br />
03<br />
<br />
पुरुष को अब बंधनों से मुक्त कर दिया गया है<br />
साथ, स्त्री को भी<br />
<br />
अब दोनों स्वतंत्र हैं<br />
किसी दूसरे-तीसरे के साथ रहने के लिए, सोने के लिए<br />
लेकिन<br />
<br />
कितनी भयंकर होगी वो रात, वे मंजर<br />
जब<br />
एक ही छत के नीचे, शहर में<br />
दो-दो .. तीन-तीन .. तूफान मचलेंगे ... ?<br />
<br />
सोचता हूँ तो दहल उठता हूँ कि<br />
कब तूफान ..<br />
किसी के हुए हैं .... ??<br />
<br />
04<br />
<br />
औरत को आजादी चाहिए<br />
लेकिन कितनी ?<br />
<br />
कहीं उतनी तो नहीं, जितनी -<br />
<br />
एक बच्चे को होती है<br />
या उतनी जितनी एक बदचलन पुरुष को है<br />
<br />
लेकिन एक सवाल है<br />
औरत तो सदियों से ही आजाद है, मर्यादा में<br />
फिर कैसी आजादी ?<br />
<br />
हम यह कैसे भूल रहे हैं कि<br />
पुरुष भी तो एक मर्यादा तक ही आजाद है<br />
<br />
अगर मर्यादा से ऊपर, बाहर<br />
कोई आजादी है, और वह उचित है, तो<br />
<br />
मिलनी ही चाहिए<br />
औरत भी क्यों अछूती रहे, ऐसी आजादी से ?<br />
<br />
05<br />
<br />
बड़े हैरां परेशां हैं सियासी लोग<br />
इधर मंदिर - उधर मस्जिद, किधर का रुख करें ?<br />
<br />
06<br />
<br />
न वफ़ा, न बेवफाई<br />
कुछ सिलसिले थे यूँ ही चलते रहे !<br />
<br />
07<br />
<br />
कृपया कर<br />
गड़े मुर्दे मत उखाड़ो, सिर्फ हड्डियाँ ही मिलेंगी<br />
वे किसी काम न आएंगी<br />
<br />
क्या किसी को डराना है ?<br />
यदि नहीं तो<br />
<br />
किसी ताजे की ओर बढ़ो<br />
स्वाद मिलेगा<br />
<br />
गरम खून, गरम गोश्त<br />
गरमा-गरम<br />
<br />
सुनो, अगर ताजा न मिले तो<br />
किसी जिंदा को उठा लो<br />
<br />
हमें तो अपना पेट भरना है<br />
हम काट लेंगे .... !!<br />
<br />
08<br />
<br />
सुनो, कहो उनसे, अदब में रहें<br />
हम इश्क में हैं, कोई उनकी जागीर नही हैं !<br />
<br />
09<br />
<br />
गुमां कर खुद पे, हक है तेरा<br />
पर जो तेरा नहीं है उस पे गुमां कैसा ?<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-30772785349136953282018-09-25T21:09:00.000-07:002018-09-25T21:09:21.446-07:00आडंबर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
ये जो सियासत है, सियासतबाज हैं<br />
वे अपने नहीं हैं<br />
<br />
किसी दिन आजमा लेना, वे मुल्क के भी नहीं हैं !<br />
<br />
02<br />
<br />
लोग काम में उलझे रहे, हम इश्क में<br />
कुछ इस तरह.. फ़ना हुई है जिन्दगी !<br />
<br />
03<br />
<br />
मजबूरियाँ ले आई हैं .. यहाँ मुझको<br />
वर्ना<br />
कौन खुशनसीब तेरे आगोश से यूँ ही चला आता ?<br />
<br />
04<br />
<br />
दीवाना हूँ कैसे बाज आऊँ आदत से<br />
तुझे देखूँ, मिलूँ, और चूमूँ न !<br />
<br />
05<br />
<br />
कुछ हुनर मुझे भी बख्श दे मेरे मालिक<br />
तेरी महफ़िल में अब भी ढेरों उदास बैठे हैं !<br />
<br />
06<br />
<br />
लगी थी आग, धधक रहे थे जिस्म, दोनों के मगर<br />
कहीं कुछ फासले थे जो उन्हें थामे हुए थे !<br />
<br />
07<br />
<br />
ये जरूरी तो नहीं हर इल्जाम का मैं जवाब देता फिरूँ<br />
क्या कुछ लोग हँसते हुए अच्छे नहीं लगते ?<br />
<br />
08<br />
<br />
दबी जुबान से वो खुद को गुलाम कहते हैं<br />
इश्क हो जाये तो फिर शाह कहाँ रहते हैं !<br />
<br />
09<br />
<br />
जिस दिन गणेश प्रसन्न हुए<br />
घर में ही रुकने, रुके रहने का मन किये<br />
उसी दिन<br />
तुम कर आये विसर्जित<br />
<br />
वो भी कहाँ ?<br />
एक दूषित जल में<br />
<br />
क्यों ?<br />
<br />
क्या ईश्वर -<br />
तुम्हारे आडंबर से छोटे हैं, झूठे हैं ??<br />
<br />
~ उदय </div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-74011534254049547122018-09-20T20:31:00.000-07:002018-09-20T20:31:17.385-07:00लंगर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
होंगे वो कातिल जमाने की नजर में, मुझे क्या<br />
मुझे तो, दे जाते हैं सुकूं दो घड़ी में उम्र भर के लिये !<br />
<br />
( यहां ... "मुझे क्या" से अभिप्राय ... जमाने से मुझे कोई लेना-देना नहीं है ... से है .... अर्थात मैं क्यूँ परवाह करूँ जमाने की ... )<br />
<br />
02<br />
<br />
वो, बहुत मंहगी शराब पीता है<br />
ठहरता नहीं है पल भर भी, छक कर शराब पीता है<br />
<br />
बैठा है आज लंगर में, इसलिए<br />
काजू, कबाब, टंगड़ी, चिकन चिल्ली के साथ पीता है<br />
<br />
हम भी देखेंगे उसे, उस दिन<br />
अपने पैसों से, वो कितनी शराब पीता है !<br />
<br />
03<br />
<br />
हार गए, थक गए, मर-खप गए<br />
शहर के कइयों नेता ...<br />
<br />
मगर<br />
इस, मंदिर-मस्जिद के बीच की ये दीवार<br />
वो<br />
आधा इंच भी<br />
इधर-उधर,<br />
टस-मस कर नहीं पाए !<br />
<br />
आज, ये जो तेरे सामने हैं, स्वार्थी, मतलबी लोग<br />
ये तुझे<br />
बरगलायेंगे,<br />
फुसलायेंगे,<br />
ललचाएँगे,<br />
पर तू<br />
इन नामुरादों पे, कभी ऐतबार मत करना<br />
<br />
क्योंकि -<br />
सुकून<br />
अमन<br />
चैन<br />
सब कुछ अपना है<br />
और<br />
ये, मंदिर-मस्जिद के बीच की दीवार, भी अपनी है<br />
मंदिर भी अपना है, मस्जिद भी अपनी है<br />
<br />
ये शहर भी अपना है !<br />
<br />
04<br />
<br />
पुतला दहन ... ?<br />
-------<br />
पुतला दहन<br />
अब एक बहुत पुरानी परंपरा हो गई है<br />
विरोध की<br />
<br />
इस प्रतीक से<br />
अब कोई असर नहीं पड़ता है शैतानों पर<br />
<br />
अब पीड़ितों को<br />
विरोध का कोई नया तरीका ढूँढना होगा<br />
नहीं तो<br />
शैतान, शाम-रात तक, सब कुछ मुस्कुरा कर भूल जाएंगे<br />
<br />
और<br />
आपकी पीड़ा व पुतला दहन<br />
मात्र<br />
प्रतीक बन कर राह जाएंगे<br />
<br />
आप .. इक्कीसवीं सदी में हैं<br />
आज<br />
अठारहवीं, उन्नीसवीं, बीसवीं सदी के हथियार<br />
सब फुस्स हैं ....<br />
कुछ .. आज के हिसाब से सोचो .. करो ... ठोको .... ?<br />
<br />
05<br />
<br />
'उदय' न तो हमें तुम्हारी कविता समझ में आती है<br />
और न ही शेर<br />
क्या लिखते हो, क्या पढ़ते हो, क्या समझते हो<br />
तुम्हीं जानो<br />
<br />
हमें तो सब घंडघोल ही लगते हैं<br />
<br />
तुम<br />
ऐसा क्यूँ नहीं करते<br />
कुछ और लिखो, जो हमें समझ में आये<br />
सबको समझ में आये<br />
जो दुनिया के लोग लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं<br />
<br />
जैसे<br />
कुछ नंगा-पुंगा .. सैक्सी टाइप का ...<br />
मचलते हौंठ, ललचाते स्तन, पुकारती अधनंगी पीठ ...<br />
फुदकते नितम्ब, .. इससे भी कुछ हाई लेबल का<br />
<br />
कब तक, बोलो कब तक<br />
तुम अपनी गंवार टाइप की लेखनी से<br />
हमें बेहोश करते रहोगे ??<br />
<br />
~ उदय </div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-76120591520387069802018-09-16T06:26:00.000-07:002018-09-16T06:26:03.139-07:00वक्त-वक्त की बात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
एक और अनर्गल कविता ...<br />
-----<br />
<br />
आधी लूट<br />
पूरी लूट<br />
कच्ची लूट<br />
पक्की लूट<br />
<br />
टमाटर लूट<br />
प्याज लूट<br />
डीजल लूट<br />
पेट्रोल लूट<br />
बैंक लूट<br />
रुपया लूट<br />
लूट सके तो लूट, भाग सके तो भाग ..<br />
<br />
चौकीदार अपना, दरोगा अपना, पंच-सरपंच सब अपने<br />
बस ..<br />
तू ... लूट .... लूट .... लूट .....<br />
<br />
लूट .. लूट के लूट ... फिर लूट के लूट ....<br />
<br />
लंदन जा .. न्यूयार्क जा .. मेलबोर्न जा .. पेरिस जा<br />
कहीं भी जा के बैठ ...<br />
<br />
अँगूठा दिखा .... पीठ दिखा ... अकड़ पकड़ के बैठ ..<br />
तेरी मर्जी .... हा-हा-हा .. तेरी मर्जी ... !!<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
02<br />
<br />
14 सितंबर ..<br />
<br />
"हिन्दी दिवस ... आज की हिन्दी पर चाटूकारों का कब्जा है और वे इसे अपने चंगुल से निकलने नहीं देंगे .. किन्तु ... जो हिन्दी से प्रेम करते हैं वे करते रहेंगे !"<br />
<br />
03<br />
<br />
कोई रंज नहीं है कि वे इकरार से बचते हैं<br />
इतना काफी है कि वो इंकार नहीं करते !<br />
<br />
04<br />
<br />
वक्त .... वक्त .... वक्त ...... वक्त-वक्त की बात है 'उदय'<br />
कभी उन्हें काजल से प्रेम था औ अब हिना प्यारी हुई है !<br />
<br />
05<br />
<br />
इनके .. उनके .. किन-किन के सवालों के वो जवाब दें<br />
सच तो ये है ..<br />
न हिन्दू .. न मुसलमां ... वो कुर्सी के ज्यादा करीब हैं !<br />
<br />
06<br />
<br />
इधर हम तन्हा ..…............ उधर वो तन्हा<br />
इस मसले का कोई हल तो बताओ 'उदय' !<br />
<br />
07<br />
<br />
वो इतने करीब से गुजरे हैं<br />
लगता नहीं कि बहुत दूर पहुँचे होंगे !<br />
<br />
( यहाँ करीब से आशय .. जानबूझकर टकराते-टकराते बच कर निकलने से है )<br />
<br />
08<br />
<br />
चोट दौलत की ... जिस घड़ी उनका सीना चीर देगी<br />
देखना ... उस दिन उन्हें भी मुफ़लिसी भाने लगेगी !<br />
<br />
09<br />
<br />
दरअसल, हम भी .. उनकी तरह ही तन्हा हैं<br />
पर ये बात .. जा के ... कौन समझाए उन्हें !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-31250323811023733462018-09-14T07:07:00.001-07:002018-09-14T07:09:56.068-07:00हिन्दी .... नचइयों की मौज !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इक दिन .. मैं ... बिन बुलाये मेहमान की तरह<br />
एक कार्यक्रम के ... दर्शक दीर्घा में जाकर बैठ गया<br />
<br />
मैंने देखा ..<br />
कुछ नचइये हिन्दी को नचवा रहे थे<br />
<br />
हिन्दी घूँघट में थी<br />
और<br />
नचइये .. हिन्दी संग मदमस्त झूम रहे थे<br />
<br />
नचइये किस मद में थे<br />
यह कह पाना मुश्किल है<br />
क्योंकि -<br />
आजकल .. नशे भी कई प्रकार के होते हैं<br />
<br />
खैर .. छोड़ो ...<br />
<br />
कुछ देर बाद मैंने देखा<br />
हिन्दी .... ब्रा और पेंटी में नाच रही थी<br />
और<br />
नचइये .. मंजीरे, ढोल, नगाड़े, इत्यादि पीट रहे थे<br />
<br />
फिर .. कुछ देर बाद ... क्या देखता हूँ<br />
<br />
हिन्दी ... ब्रा-पेंटी औ चुनरी में स्टेज पर चुपचाप खड़ी थी<br />
और .. सारे नचइये कुर्सियों में ससम्मान बैठे थे<br />
<br />
हॉल में तालियाँ गूँज रही थीं<br />
पुरुस्कार वितरण का समय आ गया, यह सोचकर<br />
<br />
मैं ... उठकर चला आया .... ??<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-50303243567702716412018-09-13T06:03:00.000-07:002018-09-13T06:03:50.268-07:00कोई आखिरी इच्छा ... ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
एक अनर्गल कविता ....<br />
-------------<br />
<br />
कुत्ता भौंक रहा था<br />
उसे देखकर आदमी चुपचाप बैठ गया<br />
<br />
कुछ देर बाद<br />
आदमी उठ खड़ा हुआ<br />
<br />
यह देख<br />
कुत्ता चुपचाप बैठ गया<br />
<br />
सहम गया<br />
और आदमी को भौंचक देखने लगा<br />
<br />
उसे डर था<br />
कहीं आदमी न भौंकने लगे .... ?<br />
<br />
02<br />
<br />
दिन का सफर तो जैसे-तैसे कट ही जाएगा 'उदय'<br />
कोई कहे उनसे, हमें अंधेरों में उनकी ज्यादा जरूरत है !<br />
<br />
03<br />
<br />
कभी अपना भी किसी के मुहब्बती महल में डेरा था<br />
पर .. अब ... सड़क पर हैं !<br />
<br />
04<br />
<br />
मँहगाई ....<br />
<br />
फरिश्ते नहीं आयेंगे बचाने तुमको<br />
गर, हिम्मत है तो खुद ही जूझ लो उनसे !<br />
<br />
05<br />
<br />
लो .. तन्हाई भी बेवफा निकली<br />
हर घड़ी उनको लिए फिरती है !<br />
<br />
06<br />
<br />
एक और अनर्गल कविता ...<br />
-----------<br />
<br />
हुजूर ..<br />
आपने सारे के सारे खेत उजाड़ दिये<br />
फसल चौपट कर दी<br />
आपका शुक्रिया<br />
<br />
हमने आप पे भरोसा किया<br />
बहुत हुआ<br />
<br />
अब और नहीं<br />
कोई आखिरी इच्छा .... ?<br />
<br />
07<br />
<br />
इक दिन .. तुझे भी खाक होना है<br />
आज भभक ले जितना जी चाहे !<br />
<br />
08<br />
<br />
कुसूर उनका नहीं है<br />
हमें ही मुहब्बत रास नहीं आई शायद !<br />
<br />
09<br />
<br />
वजह कुछ खास नहीं है लेकिन<br />
दलितों को लेकर दिलों में उनके गुबार बहुत है !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-82473679973896209502018-09-09T04:58:00.000-07:002018-09-09T04:58:44.050-07:00तीखी घड़ी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
कुसूर उनका नहीं है 'उदय'<br />
दिल अपना ही तनिक काफ़िर निकला !<br />
<br />
02<br />
<br />
दिल्लगी ......... नहीं .. ऐसा कुछ भी नहीं है<br />
बस, कुछ यूँ समझ लो, वो हमें पहचानते हैं !<br />
<br />
03<br />
<br />
बहुत काफी नहीं थे फासले<br />
मगर खामोशियों की जिद बड़ी थी !<br />
<br />
04<br />
<br />
बड़ी तीखी घड़ी है<br />
हैं भक्त औ भगवान दोनों कटघरे में<br />
<br />
एक ताने तीर है<br />
तो एक पकड़े ढाल है<br />
<br />
कौन सच्चा ..<br />
कौन झूठा ..<br />
धर्म विपदा में खड़ा है !<br />
<br />
05<br />
<br />
सिर्फ कत्ल का इल्जाम है बेफिक्र रहो<br />
यहाँ सजी सब दुकानें अपनी हैं !<br />
<br />
06<br />
<br />
अनार, सेव, अँगूर के बगीचों पे उनका कब्जा है लेकिन<br />
दलितों की बाड़ियों में लगे बेर उन्हें चुभते बहुत हैं !<br />
<br />
07<br />
<br />
वो खुद ही 'खुदा' होने का दम भर रहे हैं<br />
जो हिन्दू-मुसलमां में भेद कर रहे हैं !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-70265652421083713552018-09-06T05:18:00.000-07:002018-09-06T05:18:41.788-07:00हाजिर जवाबी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
काश, इश्क की भी कोई परिभाषा होती<br />
हम पढ़ लेते, रट लेते<br />
<br />
और<br />
हू-ब-हू टीप देते<br />
<br />
कुछ इस तरह ..<br />
<br />
स्कूल की, प्रिंसिपल की, मास्टर की<br />
सब की धज्जियाँ उड़ा देते<br />
<br />
तुम तो क्या ..<br />
<br />
गर, राधा भी सामने होती तो<br />
हम, उसे भी प्रीत लेते !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
02<br />
<br />
क्या हम बगैर समझौते के साथ नहीं चल सकते<br />
साथ नहीं रह सकते<br />
<br />
कुछ अच्छाइयों, कुछ बुराइयों के साथ<br />
यूँ ही .. बगैर रिश्ते के<br />
<br />
जरूरी तो नहीं<br />
कुछ रिश्ता हो, हम सोलह आने खरे हों<br />
<br />
और, वैसे भी<br />
हम, उम्र के जिस पड़ाव पे हैं<br />
<br />
वहाँ<br />
अहमियत ही क्या है रिश्तों की, पैमानों की ... !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
03<br />
<br />
भय ..<br />
दहशत ..<br />
खौफ ..<br />
ड़र ..<br />
आतंक ..<br />
मायूसी ..<br />
चहूँ ओर .. कुछ ऐसा ही माहौल हो गया है हुजूर<br />
<br />
मुझे तो<br />
लगभग हर चेहरे पे इंकलाब लिखा नजर आ रहा है<br />
<br />
आप भी .. अपनी नजर पैनी करिए हुजूर<br />
ये मौन क्रांति ...<br />
<br />
शायद<br />
अपनी ओर ही बढ़ रही है .... !!<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
04<br />
<br />
उनकी .. हाजिर जवाबी भी लाजवाब है 'उदय'<br />
झूठ पे झूठ .. झूठ पे झूठ .. फिर झूठ पे झूठ !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
05<br />
<br />
उनका .. पास से गुजरना ही काफी था<br />
सारे ज़ख्म .... खुद-ब-खुद हरे हो गये !<br />
<br />
~ उदय</div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-86345257965773248432018-09-02T06:56:00.000-07:002018-09-02T06:56:06.377-07:00दहशतगर्दी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
न तू<br />
न तेरी मोहब्बत<br />
और न ही ये तेरा शहर रास आया<br />
<br />
सोचता हूँ<br />
मैं यहाँ अब तक रुका क्यूँ था ?<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
02<br />
<br />
साब जी<br />
उसकी मंशा ठीक नहीं है ...<br />
कहो तो -<br />
गिरफ्तार कर लूँ ?<br />
<br />
अबे, तुझे कैसे पता ??<br />
<br />
अरररे ... साब जी<br />
वह ..<br />
सोशल मीडिया पर रोज कुछ भी उट-पुटांग लिख कर<br />
क्योश्चन(?)मार्क लगा देता है<br />
<br />
उसकी सवाल करने की .. आदत ... मंशा .....<br />
<br />
समझो न साब जी<br />
ऐसे लोग ... कितने खतरनाक .... ???<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
03<br />
<br />
उसके शब्द<br />
खंजर से भी ज्यादा पैने हैं<br />
और सवाल<br />
मिसाइल से भी ज्यादा विस्फोटक<br />
<br />
उसे पढ़कर, सुनकर<br />
कई लोग सुध खो बैठते हैं<br />
<br />
और<br />
<br />
आप यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि -<br />
वह देशद्रोही है ..... ?<br />
<br />
क्यूँ मी लार्ड .. क्यूँ .... ??<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
04<br />
<br />
तुम मुझे समझने की कोशिश करते रहो<br />
और जानने की भी<br />
तुम्हारी मर्जी<br />
<br />
पर<br />
ये मत भूलो कि तुम अब मेरे दायरे में हो<br />
<br />
मैं<br />
किसी न किसी दिन<br />
<br />
बड़े आहिस्ते<br />
तुम्हारे भीतर, पूरा का पूरा समा जाऊँगा<br />
<br />
फिर<br />
बेसुध जिस्म और चमचमाती आँखों से<br />
<br />
समझते रहना मुझे ... !!<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
05<br />
<br />
अब .. तब ..<br />
<br />
तब ... अब ..<br />
बोलो .. कब तक खामोश रहें<br />
<br />
कहो.. कुछ तो कहो<br />
क्या .. यूँ ही ... तुम भी खामोश रहोगे ?<br />
<br />
खामोशी भी .. कभी-कभी ..<br />
चुभने लगती है<br />
<br />
देखो .. सुनो ..<br />
बीच-बीच में कुछ बोलते रहा करो<br />
<br />
जुबां से न सही तो<br />
आँखों से .. !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
06<br />
<br />
लो, अब तो<br />
बच्चों ने भी घर से निकलना बंद कर दिया है<br />
<br />
चीलें भी मंडराने लगी हैं आसमां में<br />
<br />
परिंदों में फड़फड़ाहट<br />
जानवरों में छटपटाहट<br />
और<br />
बुजुर्गों में घबराहट साफ नजर आ रही है<br />
<br />
क्या इतनी दहशतगर्दी पर्याप्त नहीं है हुजूर ?<br />
<br />
कहो तो -<br />
खून से सने खंजरों की<br />
एक-दो रैलियां और निकलवा दूँ हुजूर ??<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
07<br />
<br />
जी चाहता है<br />
गटक लूँ तुम्हें .. गुपचुप की तरह ...<br />
<br />
गटकते रहूँ ..<br />
गटकते रहूँ ..<br />
गटकते रहूँ ..<br />
गटकते रहूँ ..<br />
<br />
तब तक ... जब तक ....<br />
डकार न आ जाये<br />
<br />
मैं जानता हूँ<br />
घंटे दो-घंटे में हजम हो जाओगी तुम<br />
<br />
कुछ इस तरह<br />
हम ..<br />
एक हो जाएंगे .. सदा सदा के लिए ... !<br />
<br />
~ उदय </div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-40172264038815416932018-08-30T02:43:00.000-07:002018-08-30T02:43:52.316-07:00झूठे दिलासे ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
आओ, अभी तो आखिरी साँस तक साथ चलें<br />
फिर देखेंगे, किधर जाते हैं ..................... ?<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
02<br />
<br />
बिन लकीरों के इन हाथों में तुम उतर आये कैसे<br />
सोचता हूँ तो<br />
खुद पे यकीं नहीं होता<br />
<br />
मगर ..<br />
<br />
फिर<br />
तेरे हाथों की लकीरों का भी तो ख्याल आ जाता है !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
03<br />
<br />
एक आदमी<br />
जो अभी-अभी 'कलेक्टरी' छोड़ कर आया है<br />
<br />
वह<br />
हमारा तुरुप का इक्का है<br />
<br />
जीत तय है ....<br />
क्योंकि<br />
<br />
अभी<br />
हमारे पास और भी इक्के हैं !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
04<br />
<br />
कुछ खामोशियाँ चेहरे पे<br />
क्यों ?<br />
<br />
क्या कोई वजह नहीं है मुस्कुराने की<br />
या चाहते नहीं हो मुस्कुराना<br />
<br />
या फिर चाहते हो<br />
कि<br />
मैं कहूँ ...<br />
<br />
मैं कहूँ, या न कहूँ<br />
<br />
बस<br />
तुम इतना समझ लो<br />
कि<br />
मैं चाहता हूँ कि तुम मुस्कुराओ ...<br />
<br />
वजह जरूरी नहीं है<br />
मैं चाहता हूँ .... !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
05<br />
<br />
उनके मिजाज कुछ मुझसे मिलते नहीं हैं<br />
फिर भी वो मेरे साथ चल रहे हैं<br />
<br />
तुम भी<br />
मेरे साथ चलो<br />
<br />
शायद, ख्वाबों के मिजाज मिल जाएं<br />
या खामोशियों के !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
06<br />
<br />
बस<br />
तुम<br />
एक बार मेरी नजर से खुद को देखो तो सही<br />
<br />
गर<br />
खुद को खुद से प्यार न हो जाए तो कहना<br />
<br />
ये<br />
मेरी नजर है<br />
<br />
जो<br />
ठहर जाती है .. कहीं न कहीं .... !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
07<br />
<br />
न दुख, न दर्द, न दया, न करुणा, न मासूमियत<br />
<br />
कुछ ऐसे मिजाज हैं,<br />
मेरे महबूब के !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
08<br />
<br />
सच ..<br />
उनके झूठे दिलासे भी काम कर रहे हैं<br />
<br />
हमें, हम पर<br />
एतबार होने लगा है !<br />
<br />
~ उदय </div>
कडुवासचhttp://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1951236445648618208.post-89115662964785067052018-08-25T22:55:00.000-07:002018-08-25T22:55:14.038-07:00हुजूम ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
01<br />
<br />
सच ..<br />
लिपट-लिपट के सिमट रही थीं<br />
तकलीफें हमसे<br />
<br />
जबकि हमें चाह थी कि कोई और लिपटे !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
02<br />
<br />
रोज ख्याल बदल जाते हैं उनके<br />
मेरे बारे में<br />
<br />
लिखता जो हूँ<br />
लिखे को, मुझसा समझ लेते हैं !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
03<br />
<br />
वह आई,<br />
और आकर सीधे बाजू में बैठ गई<br />
<br />
लगा जैसे<br />
कन्फर्म टिकिट हो उसके पास ... !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
04<br />
<br />
उतनी अस्तियाँ नहीं थीं<br />
जितनी विसर्जित की जा रही हैं<br />
गंगा भी मौन है<br />
जमुना भी मौन है<br />
सरस्वती भी क्या कहती बेचारी<br />
हुजूम से .... !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
05<br />
<br />
कल ..... राख बन के मैं ...... गंगा में समा जाऊँगा<br />
आज, जी भर के, उठती लपटों में देख लो मुझको !<br />
<br />
~ उदय<br />
<br />
06<br />
<br />
मेरे बाप की जागीर है, पैसा है<br />
अब, मैं उससे ..<br />
<br />
आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ<br />
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ<br />
तुम्हें क्या ?<br />
<br />
तुम, बेवजह ही<br />
चूँ-चूँ .. चूँ-चूँ ... कर रहे हो .... !<br />
<br />
~ उदय </div>
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