शेर - 86
कभी राहें नहीं मिलतीं, कभी मंजिल नहीं मिलती
ये जिंदगी के सफर हैं, कभी हमसफर नहीं मिलते ।
शेर - 85
तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
शेर - 84
जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
16 comments:
बहुत सुंदर लगे आप ने तीनो शेर.
धन्यवाद
हर शेर उम्दा
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श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
waah bahut ghajab ke sher
bahut hi badhiya sher aur aakhiri wala to lajawaab hai.
"तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।"
बहुत उम्दा शेर..
बहुत अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
TINO SE SHE'R TIN ALAG ALAG MIJAAJ KE JANAAB WAAH KHUB KAHE HAI AAPNE...
ARSH
वाह ! लाजवाब तीनो शेर शानदार मजा आ गया .
राहें नहीं मिलती ,रहे मिले तो मंजिल नहीं मिलती ,जिन्दगी के सफ़र में हमसफ़र नहीं मिलते सुंदर अभिव्यक्ति
तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
बहुत hi उम्दा बहुत अच्छा लगा........
श्याम "उदय" जी
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आपकी प्रतीक्षा में,
विनम्र,
जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)
sir ..har sher me kuchh n kuchh naya hi milta hai....great thinking...
जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
लाजवाब शुभकामनायें
तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
'मिटटी पे पानी की इबारत' bahut hi khoob sher kaha hai! waah!
"Kabhee kiseeko mil gayee raste me manzilen,
Kabhee kisee ke qadam uthe to kho gaye hain raaste...!"
Ashar mere nahee..aapke ashar padhe to yaad aa gaye..!
Kaash aisa ho,ki, 'lamhon me mit jaye sadiyon kee thakan..!'
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जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
वाह! एक ही शेर में सारी थकान मिट गइ।लाजवाब शेर।
Pak Karamu reading your blog
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