Friday, December 21, 2012

फांसी ...


अंधेरे ...

हुकूमत की तमाम बस्तियों में, 
हैं आलम 
घोर अंधेरों के 
मगर ... फिर भी 
हुक्मरानों के 
सूने ...
आँगनों में 
दूधिया रौशनी... बिखरी पड़ी है ? 
... 
...
फांसी ... 

चढ़ा दो उन्हें... फांसी पे...
किसे ? 
बलात्कारियों को ... 
क्यों ? ... 
क्योंकि - बतौर सजा ...
बगैर फाँसी सुने 
किसी का ... 
मन हल्का नहीं होगा ???
... 
वक्त ...

एक-एक दिन, जिन्दगी के
बंदरों की तरह 
उछल-कूद में कट गए 
कमबख्त ...
वक्त भी 'उदय' 
बहुत बड़ा मदारी निकला ?
... 
कुछेक उठा पटक ...
...
कुछ और न सही, मुलाजिम ही समझ ले 
इस नाते,... बख्शीश पे तो हक़ है अपना ? 
... 
खिलने को तो, काँटों संग फूल खिल रहे हैं 
पर, तेरी बस्ती में हमें कहीं चैन न मिला ? 
... 
युवराज ... 
काम न धाम, बेवजह का नाम ?
... 
उसूलों की बातें, करो,........ तुम खूब करो 
पर, जब ईमान बेचा था तब कहाँ थे मियाँ ? 
... 

Monday, December 17, 2012

शर्त ...


धुंध छाया है शहर में, बस इक तेरी ही याद का 
गर भूलना चाहूँ तुझे, तो तू बता मैं क्या करूँ ?
... 
बगैर तमाशे के............ शोर 
क्या वजह हो सकती है 'उदय' ? 
... 
उनकी खामोशियों ने 'उदय', हमें शायर तो बना दिया 
मगर अफसोस, दिल........ औ जज्बात नहीं बदले ?
... 
आईना देख-देख के, मत मुस्कुराया करो 
किसी दिन, खुद की नजर न लग जाए ? 
... 
गर कोई शर्त है, तो खुलकर बयां कर दो मेरे यारा 
वैसे भी,... नुक्ताचीनी की हमारी आदत नहीं है ? 

Wednesday, December 12, 2012

हरकतें ...


तुम्हारे ... हरेक सवाल का  
वो ...
जवाब तो ... दे ही देंगे 
पर, गर ...
जवाब कड़वे मिले ...
या कडुवे हुये !
तब ...
क्या तुम ..... उनका ...
कुछ उखाड़ लोगे ...
बिगाड़ दोगे ?
क्योंकि - 
वो ... ये ऊट-पुटांग हरकतें 
जान-बूझकर... कर रहे हैं ??

रिवाज ...


मुश्किल घड़ी में,... ये कैसा इम्तिहान है 'उदय' 
जवाब ख़त्म होने को हैं पर उनके सवाल नहीं ? 
... 
सच ! किसी न किसी से, तुम हर पल घिरे होते हैं 
अब कैसे सुनायें तुम्हें, हम अपने दिल की यारा ? 
... 
न वफ़ा, न बेवफाई 
मेरे महबूब......... ये कैसे रिवाज हैं ? 

Tuesday, December 11, 2012

हकीकत ...


उनकी आशिकी में, हमने नाम कमाया है या हुये हैं बदनाम 
ये जिससे पूंछो,........................ तो वो चुप हो जाता है ?
... 
उन्हें, फर्जीवाड़े की आदत कुछ इस कदर हुई है 'उदय'
कि - मौके-बेमौके.... बाप का नाम भी बदल लेते हैं ? 
... 
अब तुम, झूठे दिलासों से मत बहलाओ हमको 
किसको नहीं मालूम जन्नत की हकीकत यारा ?

Sunday, December 9, 2012

आशिक ...


लो, उन्ने.. फिर से उन्हें धो डाला 
उफ़ ! क्या गजब की सफेदी है ??
... 
चवन्नी छापों को, सिक्कों के तमगे 
क्या.... यही हिन्दी का साहित्य है ? 
... 
रहम कर, बेरहम न बन 
सच्चे आशिक... बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ? 

Saturday, December 8, 2012

हित ...


तुम्हारे फैसले ...
किसके हित में है, किसके हित में नहीं है 
इसे छोडो मियाँ ... !
तुम्हारा हित ...
कब ?... कैसे ??... कितना सदा, 
इसपे भी ... तनिक बोलो ज़रा ???

Friday, December 7, 2012

मुखौटे ...


लो, आज उन्ने.... उनके समर्थन में सीना ठोक दिया है 
अब,... जनता,... पार्टियाँ ... जिसकी जो मर्जी वो करे ? 
...
अब तो बच्चों-बच्चों की जुबां पे सरेआम चर्चे हैं 
कि - वे बिन पेंदी के हैं, कहीं भी लुड़क सकते हैं ? 
...
न तो उन्हें शर्म है 'उदय', और न ही वे शर्मिन्दा हैं 
क्यों ?.. क्योंकि वे ईमान तो कभी का बेच चुके हैं !
... 
उनके चेहरों पे,..... नौ-नौ मुखौटे हैं 'उदय' 
फिर भी, न मान है, और न ही ईमान है ? 

Thursday, December 6, 2012

हमारा तंत्र ...


कल जिसे ... 
नंगा ठहराया गया था 'उदय'
आज उसे... 
साधू मान लिया गया है !
ये तमाशा है 
जादू है 
या कोई खेल है 
क्या यही ... 
ऐंसा ही ..... हमारा तंत्र है ?

शून्य-बटे-सन्नाटा ...


काश ! होता .......... हम में भी, छपने-छपाने का हुनर 
तो शायद, हमारे करतबों पे भी तालियाँ बज रही होतीं ?
... 
अब 'खुदा' ही जाने, क्यूँ खफा हैं वो 
बस, वजह पूंछो तो चुप हो जाते हैं ? 
... 
लो, मचा.......... बेवजह का शोर-शराबा है 
जबकि सब जानते हैं शून्य-बटे-सन्नाटा है ? 
... 
तुझे एतबार करना है कर, न करना है न कर 
पर, मुझ पर फरेबी होने का इल्जाम न लगा ?
... 
चलो ठीक है 'उदय', वे किसी की उम्मीदों पे तो खरे उतरे 
वैसे, ................ बुझता चिराग, और करता भी क्या ?

Wednesday, December 5, 2012

तमाशेबाज ...


हाँ ... मैं जानता हूँ 'उदय' 
मेरी चिता ...
की आग ठंडी भी नहीं होगी ...
उसके पहले ही ...
कोई चतुर व चालाक 'तमाशेबाज' 
मेरी आत्मा को ... 
शोकसभा व श्रद्धांजलि रूपी ... 
'मंत्रों' से ... सिद्ध कर लेगा !
और फिर ... 
वह ... 
मेरे सिद्ध लेखन के बल-बूते ...
अपने ... 
आलोचना व सम्पादन रूपी ...
'तमाशे' दिखा-दिखा कर 
खूब ... तमगे .... दुशाले .... ??

Tuesday, December 4, 2012

शोर-शराबा ...


चहूँ ओर, ... खामों-खाँ का ...
शोर-शराबा है ... 
कि - 
उन्ने ... 
अब तक पत्ते नहीं खोले !
वैसे हम ... 
सब जानते हैं ... 
कि - 
उनके पास ...
दुक्की, तिक्की, चऊआ ... 
से जियादा ... कुछ भी नहीं है 
फिर भी ... 
उनकी ...
हुआ-हुआ ... का शोर है ??

Monday, December 3, 2012

मकसद ...


उफ़ ! बड़ी अजीबो-गरीब है, .............. मुहब्बत उसकी 
कभी हंस के लिपटती है, तो कभी सहम के छिटकती है ? 
... 
मरते मरते भी... मौत न आई मुझको 
बस, तेरी एक उम्मीद ने ज़िंदा रक्खा ? 
... 
गुनह उनका, ..... काबिल-ए-माफी नहीं है दोस्त 
कलम की आड़ में, लूट मकसद हुआ था उनका ? 

Sunday, December 2, 2012

बेरुखी ...


समय समय की बात है 'उदय', दुम हिलाने की कला में 
इंसा, ............... कुत्तों से भी दो कदम आगे है आज ?
...
पटका-न-पटकी .............................. बस 
चहूँ ओर ... सरकारी धन की... गटका-गटकी ?
... 
उनसे बेरुखी की वजह, खता या कुसूर नहीं है 'उदय' 
बस, उन्हें जब देखते हैं, जी मचल उठता है अपना ? 
... 
लो, वो मरते-मरते भी ... अपने मुल्क का नाम रौशन कर गया 
और एक अपने मुल्क में, जीते-जागतों ने बदनामी की ठानी है ? 
...
गर, अब भी उन्ने, विवादास्पद चेहरों से मुंह नहीं मोड़ा 
तो तय है 'उदय', उनकी ............... भयाभय दुर्गती ?

Saturday, December 1, 2012

लालबत्ती ...


वे बिना औकात के भी औकाती हुए हैं 
यही तो खेल है, ....... हमारे तंत्र का ? 
... 
सन्नाटा-सा,............... क्यूँ पसरा है आज तुम्हारी बस्ती में 
खुशियों ने दम तोड़ दिया है, या कुछ और वजह है मातम की ? 
... 
जब, जुबां से बयां, तुमको कुछ करना नहीं है 
फिर, अपनी आँखों पे बंदिशें क्यूँ नहीं रखते ? 
... 
अब हम क्या कहें 'उदय', उनकी औकात चवन्नी से जियादा नहीं है 
मगर ... 'खुदा' की मेहरबां देखो, वे ..... 'लालबत्ती' में घूम रहे हैं ? 
... 
उन्ने, आँखों-ही-आँखों में, हमें अपना बना लिया 
गर, वो बातों पे उतर आते, तो ... 'खुदा' ही जाने ?

Thursday, November 29, 2012

टारगेट ...


जिन्हें लोग, 
आज ...
मचल-मचल के, बाप-बाप कह रहे हैं !

अब तो बस 'उदय' 
हमारा ... 
इक ... यही टारगेट है !

कि - 
अब ... 
उनके बाप, ... हमें ... बाप-बाप कहें !!

Wednesday, November 28, 2012

बंठाधार ...


उन्हें चिट्ठी लिखी, और खुद ही डर के फाड़ डाली 
मुहब्बत में 'उदय', ये दौर भी... देखा है हमने ?
... 
आज, बेहद हंसी मौक़ा है 'उदय', ............... दुकां सजाने का 
क्योंकि - कदम कदम पे उनको जीत के फार्मूलों की दरकार है ? 
... 
बेरुखी पे, तुम एतबार मत करना 
'रब' जानता है, मजबूरियां हमारी ? 
... 
वैसे तो उन्ने 'उदय', हमें बदनाम करने का बीड़ा उठाया था 
पर लग रहा है ऐंसे, जैंसे वे खुद का बंठाधार कर रहे हों ??
... 
इक दिन 'उदय', दलालों-औ-भ्रष्टाचारियों की भी मजारें होंगी 
लोग सिद्दत से, ...................... 'हुनर' की दुआएँ मांगेंगे ?

Tuesday, November 27, 2012

इबादत ...


अब देखते हैं 'उदय', कितने 'आम' ....... सरेआम होते हैं 
या फिर, चोरी-छिपे किसी-न-किसी के 'ख़ास' बने रहते हैं ? 
... 
कुछ तो शर्म करो, ........... बेशर्मो 
देश की आबरू सरेआम लुट रही है ? 
...
हे 'खुदा', ............ मेरे उस रकीब को तू सलामत रख 
भले बद्दुआ में सही, उसकी इबादत में मेरा नाम तो है ?  
... 
बात पते की, पते पे पहुँच गई है 
आओ यारो, ..... जश्न मनाएं ?
... 
उफ़ ! भूख से बच्चे बिलख के सो गए हैं 
तनिक देर हो गई तन उसको बेचने में ?

Sunday, November 25, 2012

टेंशन ...


क्यूँ जनाब, क्या हुआ ... 
क्यूँ ...
चिंता के बादल ...
सिर पे ... मंडराये हैं ? 
हुजूर ... बाई !!
कौन-सी ?
 
बोले तो ??
जनाब ... बोले तो ... 
कामवाली ?
नामवाली ?
या दामवाली ? 

हुजूर ... आप भी ... 
नामवाली ...
दामवाली ... के लिए भी ... 
कोई -
टेंशन में रहता है कभी ?

ओह-हो ... यू मीन ... 
कामवाली बाई !!
उफ्फ़ ... 
अब हम ... क्या कहें !!!

Saturday, November 24, 2012

मजार ...


छपने की लालसा, 
कब की हमने 
दफ्न कर दी है 'उदय' 
अब 'खुदा' ही जाने, 
कब वहां -
इत्र ... 
फूल ... 
चादरें ... 
चढ़ाई जाएंगी ???

Friday, November 23, 2012

मारा-मारी ...


एक के बाद एक ...
फिर ... एक के बाद एक ...
इस तरह ... 
एक-एक कर ... सब को जाना है !

और ... तथा ... 
सब के, सब लोगों के, हम सब के - 
गड़े धन ... 
तिजोरी में बंद धन ... 

परिजनों के घरों में -
छिपा के रखे सुरक्षित धन ... 
नौकरों के नाम -
इन्वेस्ट किये गए धन ...

मित्रों के कारोबार में लगाए गए -
काले-पीले-नीले-हरे धन ... 
उधार लिए-दिए गए काले-सफ़ेद धन 
यहीं छूट जाना हैं !

जब ... सब ...
यहीं ..... छूट ही जाना है 
फिर ... ये मारा-मारी 
क्यों ? ............... किसलिये ???

गुनह ...


हिट होने का फार्मूला, बेहद सरल है 'उदय' 
बस, पांवों की धूल.. माथे पे लगाते चलो ?
...
लो, उन्ने अपनी कीमतें तय कर दी हैं 
अब, .......... आगे तुम्हारी मर्जी ???
... 
अब कैसा संशय 'उदय', खुद उन्ने गुनह क़ुबूला है  
क्यूँ न, ..... अब उन्हें, फाँसी पे चढ़ा दिया जाए ?
... 
समय-समय की बात है 'उदय' 
एक समय, हम उनसे बेमौके भी मिल लिया करते थे ? 

Thursday, November 22, 2012

करिश्माई ...


सौदागिरी का हुनर, हम सीख के भी क्या लेते 'उदय' 
क्योंकि - ईमान का सौदा हमसे मुमकिन नहीं होता ? 
... 
कहीं मातम, तो कहीं जश्न के मंजर हैं  
उफ़ ! मौत उसकी, करिश्माई निकली ?
... 
खौफ का साये में, वे सलाम को तो मजबूर थे 'उदय' 
किन्तु सलामती दुआ के लिये,.. उनके हाँथ न उठे ? 

Wednesday, November 21, 2012

अड़चन ...


अब क्या बयां करता, वो ख्वाहिशें दिल की 
जब दो घड़ी के बाद, जहन्नुम नसीब था ? 
... 
जी चाहे है, किसी दिन फुर्सत निकाल के तुम्हें पूरा पढ़ लूँ 
ताकि, ........ फिर कभी, ........ कहीं कोई अड़चन न हो ?
... 
क्या खूब तसल्ली दे रहे हैं वे ........... आज खुद को 'उदय' 
लूट-खसोट जारी रखो, इसी रकम से हम चुनाव जीत लेंगे ? 

Tuesday, November 20, 2012

चंडाली ...


बगैर चक्खे, अब हम ...... ये कैसे कह दें 
कि - तुम कितने खट्टे हो कितने मीठे हो ?
...
गर उन्ने हमें, एक बार भी सिद्दत से रोका होता 
कसम से, क़यामत भी जुदाई से मुंह मोड़ लेती !
... 
उफ़ ! क्या गजब चंडाली छाई है अपने मुल्क में 'उदय' 
माल के सांथ-सांथ चोरों को भी गटक जा रहे हैं लोग !!

Monday, November 19, 2012

वक्त ...


बदलते वक्त ने, 
हमको ...
बदलना चाहा था !

पर, 
हम ... ठहरे रहे !

लो, ... अब ...
वक्त ...
बदल रहा है 'उदय' ? 

Thursday, November 15, 2012

राज ...


गर तुम कहो तो, किसी दिन तुम्हें भी आजमा लें 
ताकि तुम्हें भी एहसास हो जाए, कितने गहरे हो ? 
... 
लगा के आग, अब क्या ढूंढते हो यारा 
राख में दफ़्न हो गए हैं, वो राज सारे ?
... 
मिला है क्या तुम्हें, आज .......... रूठ कर हमसे 
हमने आज के दिन के लिये ही तो तुम्हें चाहा था ?

Wednesday, November 14, 2012

पाबंदी ...


चलो माना 'उदय', कि - उनके स्वीस खाते ..... काले नहीं हैं 
पर, सवाल तो ये है, कि - उनमें जमा धन कितना सफ़ेद है ?
... 
अब हम क्या कहें 'उदय', कि वे, अपनों की नजर में शेर हैं 
मगर अफसोस, कभी वे ..... पिंजड़े से बाहर नहीं दिखते ? 
... 
हम जानते हैं 'उदय', इक दिन, वे भी, उनके जैसे हो जाएंगे 
क्यों ? ... क्योंकि - वे भी ... पहले इनके जैसे ही तो थे ??
... 
ये तुमसे किसने कह दिया, है मस्जिद 'खुदा' का घर 
अम्मी तो कह रही थीं, .... 'खुदा' बसते हैं 'दिल में ? 
... 
निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत पे, चुनावी अखाडों में भी पाबंदी नहीं है 'उदय'
पर अब, ..... उन्हें .... कौन समझाये, कि - ..... ये साहित्य नगरी है ???

Tuesday, November 13, 2012

हौसला आफजाई ...


सच ! सितारे जगमगाएँ, लाख चाहे आसमां में 
कल बिन तेरे, अंधेरा.. लग रहा था आंगना में !!
... 
सच ! तुम्हारे आगमन से, घर का अंधेरा छट गया है 
बस, तनिक छू लो हमें, हम भी जगमगा जाएँ फिर !!
... 
जो तू कहे तो रात सारी, 'दीप' बन जलता रहूँ 
बस दो घड़ी तू ठहर जा हौसला आफजाई को ! 

कुबेर ...


वैसे तो रोज बरस पड़ते थे 
छोटी-छोटी बातों पे 
आज ... 
जब ...
कुबेर बन के बरसने की घड़ी है, 
तो ... 
तुम, गुमसुम खड़े हो ???

Monday, November 12, 2012

जगमग-जगमग ...


सच ! आज, तेरे होने बस से 
जगमग-जगमग हो रहा 
है ये जहां 
कल जब तुम नहीं थे ... 
तब, 
सितारों से भरा 
ये आसमां, 
भी ...
मायूस हमको लग रहा था !!

Sunday, November 11, 2012

पहली बधाई ...


सच ! कल.. जो तू कहे, उस रंग में रंग जाऊँ मैं 
बस आज की रात, तू रौशनी बन जा मेरे संग !!
... 
आओ, गले लग कर, मना लें हम दिवाली 
गिले-शिकवों ...... में क्या रक्खा है यारा !
... 
उनकी मुस्कान, दिवाली की पहली बधाई है 
लग रहा है अबकि, हम तर-बतर हो जाएंगे !

Friday, November 9, 2012

कलंकी लाल ...


खूब सोच-विचार के बाद, 
माँ-बाप ने 
नाम उसका 'राम' रखा था 
उनके जेहन में 
इस बात का 
अंदेशा भी नहीं रहा होगा 
कि -
इक दिन ...
बेटा 
बड़ा होकर 
उन्हें और 'राम' 
दोनों को ... 
सरेआम कलंकित करेगा ? 

बे-कसूर ...


जब ख्वाहिशों से जियादा मिल चुका है तुम्हें 
फिर, ख्याली पुलाव क्यूँ पका रहे हो मियाँ ? 
... 
दागी मंत्री-और-अफसर तो उनकी शान हैं 'उदय' 
तुम भी, खामों-खाँ उन पे निशाने साध रहे हो ? 
... 
दोस्तो, कुछ तो रहम करो, वे रहम के हकदार हैं 
अल्टी-पल्टी से, हमने ही उन्हें, सत्ता सौंपी है ?  
... 
अब तो ...... उन्हें, छोड़ दो, बख्श दो, जाने दो 
उन्ने, खुद ही खुद को, बे-कसूर ठहरा लिया है ? 
... 
'उदय' .................. हम झुके नहीं, टूट गए 
गर, झुक जाते, तो रौंदे जा रहे होते अब तक ?

Thursday, November 8, 2012

आम आदमी ...


क्या खूब, अजब-गजब सल्तनतें हैं अपने मुल्क में 'उदय' 
जिधर देखो उधर, मूर्ख, धूर्त, ढोंगी, पाखंडी... सुलतान हैं ? 
... 
सुनो, ... वे ... बेक़सूर हैं, खुद की अदालत में 
अब आगे तुम्हारी मर्जी, जहाँ जाना है जाओ ?
... 
लो, फूंक दिए उन्ने .............. सवा-चार-सौ करोड़ 
खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, जय छत्तीसगढ़ !
... 
तू, अपने समुन्दर से, आगोश में डूब जाने दे मुझे 
सच ! जी भर गया है अब इस खुदगर्ज जमाने से !!
... 
चलो, उन्ने कुबूला तो, कि - आम आदमी... आम आदमी है 
जिनके लिए, रहनुमाई के दर, बा-अदब सदा-सदा से बंद हैं ?

Wednesday, November 7, 2012

जिंदाबाद ...


बहुत हुई, बहुत हो चुकी, 
गांधीगिरी दोस्तो 
अब तो, 
चलो, 
उठो, 
उठाएं लट्ठ, 
और ... 
फोड़ दें -
भ्रष्टाचारियों ... 
औ ...
देशद्रोहियों को !
क्यों ? ... क्योंकि - 
अब ... 
भ्रष्टाचारी ... सीधेतौर पर 
दादागिरी पे ...
और ........... देशद्रोही ... 
सीनाजोरी पे ... 
......... उतर आये हैं !
इंकलाब ....... जिंदाबाद !!

Tuesday, November 6, 2012

इल्जाम ...


उन्हें, खुद शौक है, 
कुल्हाड़ी पे, 
पांव .... 
खचा-खच मारने का 
और अब, 
टपकते ...
लहु को देख के, 
इल्जाम ...
हम पे मढ़ रहे हैं ??

दोनों तरफ ...


अलग अलग वक्त की, 
अलग अलग ... 
बातें हैं ... 
अलग अलग ... किस्से हैं !

बातें ..... किस्से ... 
कुछ सच्चे हैं 
तो कुछ ... 
...... अभी कच्चे हैं ? 

फिर भी ..... उनमें तुम 
कभी ... 
उस पार हो ...
तो कभी ... इस पार हो !

पर तुम ... हो जरुर ... 
दोनों तरफ ... 
दोनों तरफ ... 
................ दोनों तरफ !!

Monday, November 5, 2012

सलीका ...


डियर ...... आई एम सॉरी 
आज ... 
पहली ... मुलाक़ात में 
तुम ... कुछ खफा-खफा से हो !

हाँ ... जबकि ... कोशिशें तो ...
तमाम ... की हैं तुमने 
हमें ...
खुश करने की ... पर !

बोले तो ?
बस ... तुम ... तनिक ...
'----का' सीख लो यार 
यू मीन ... सलीका या तरीका ? 

ओह ... यू ... नॉटी ... 
आई मीन ... सलीका ... 
तरीका तो ... 
कोई भी ........... चल जाएगा !!

Sunday, November 4, 2012

सरेआम ...


अब तो जाग जाओ ... 
मूर्खो, 
चाटूकारो, 
दलालो, 
मौकापरस्तो ...
तुम बुद्धिजीवी नहीं हो, 
आला दर्जे के धूर्त हो ? 
क्यों ? ... क्योंकि -
तुम्हारा मुल्क ... 
तुम्हारी ही आँखों के सामने 
सरेआम लुट रहा है ??

Saturday, November 3, 2012

नासूर ...


बात इत्ती-सी, न जाने क्यूँ, हम समझ नहीं पाए 'उदय' 
कि - बदले में ...... उनकी, हमसे कोई चाहत नहीं थी ?
... 
अब क्या कहें, हम उनकी बेरुखी पर 
कल ही तो, वो वादा कर के गए थे ? 
... 
ऐंसे नहीं न सही, वैसे ही सही 
बस, एक बार तुम हाँ तो कहो ?
...
सच ! वक्त रहते, बयां कर दो, तुम जज्बात दिल के 
कहीं ऐंसा न हो, कसक दिल में ... नासूर बन जाए ?

Friday, November 2, 2012

चर्चित लेखक ...


हाँ 'उदय' ... ये सच है कि - 
मैं एक चर्चित लेखक ... 
जीते-जी ... कभी नहीं बन पाऊँगा !

क्यों ? ... क्योंकि - 
मैं किसी 'गुट' में नहीं हूँ ... जब 'गुट' में नहीं हूँ तो - 
मेरी किताबें भी छपना मुश्किल हैं !

और फिर, ... ऐंसे में ...
पुरूस्कार बगैरह ... तो बहुत दूर की बात है 
पर हाँ ... मरने के तुरंत बाद ही ... हो जाऊँगा !!

वो कैसे ?? 
वो ऐंसे ... कि - 
मरने के बाद ... मेरा मुझ पर ... 
जब ... कोई जोर नहीं रहेगा ... 

तब ... कोई धुरंधर 'गुटबाज' ... 
मेरी आत्मा को ...
ससम्मान -
अपने 'गुट' में मिला लेगा, तथा -

गोष्ठियाँ, चर्चाएँ, श्रद्धांजलि सभाएँ ... 
समीक्षाएँ, किताबें, इत्यादि ... 
और मैं, ... इस तरह ... 
एक चर्चित लेखक ... हो जाऊँगा ... 

वाह ... वाह-वाह ... 
क्या बात है ... बधाई ... शुभकामनाएँ !!!

बेरुखी ...


विवादों में बने रहना तो उनका पब्लिसिटी स्टंट है यारो 
क्योंकि - वो जानते हैं, उनके नतीजे सिफर ही होंगे ??
... 
मुश्किल है 'उदय', अब जीत पाना उनसे, ... क्यों ? 
क्योंकि - दिल भी उनका है, धड़कनें भी उनकी हैं !!!
... 
बेरुखी का मतलब ................... बेवफाई नहीं है दोस्तो 
सुनते हैं, कुछ-कुछ बातें, देर से समझ में आती हैं उन्हें ? 

Thursday, November 1, 2012

देर-सबेर ...


पुख्ता इल्जामों पे, अब वो, जवाब दें तो क्या दें 
इसलिये उन्नें, इल्जामों से मुंह मोड़ लिया है ?
... 
कुछ तो रहम करो, तुम ............... उनपे यारो 
भले चोर सही, पर उन्हें जिताया तो हमने ही है ? 
... 
देर-सबेर तमाम दौलतें उनकी, यहीं छूट जानी हैं 
फिर भी, चैन नहीं है उन्हें, ... लूट-खसोट से ??

Wednesday, October 31, 2012

सौदा ...


हम जानते हैं, वे हमसे, कभी बेवजह खफा नहीं होते 
अब 'खुदा' ही जानता है, .... क्या खता हुई है हमसे ?
... 
वैसे तो 'उदय', हरेक दामन, दागदार है आज 
कितना अच्छा होता, उनमें, एक वो न होते ? 
...
कल, भीड़ में भी .... तुम हमें तन्हा दिखे 
अब बोल भी दो, है क्या वजह तन्हाई की ? 
... 
गर आज उसने, जिस्म का सौदा न किया होता 
तो शायद, बच्चे उसके ... भूखे ही सो गए होते ? 
... 
लो, ये भी खूब रही, न चाल बदली, न चरित्र बदले 
बस, ...................... चेहरे बदल लिये हैं उन्ने ?

Tuesday, October 30, 2012

फकीरी ...


वैसे तो 'उदय', वो जेब से 
खानदानी ... 
करोड़ों का आदमी है !

पर, 
देख फकीरों को, 
खुद फ़कीर-सा हो जाता है !

क्यों ? 
क्योंकि - 
न देना पड़ जाए ... 
उसे, चवन्नी तक जेब से !! 

Monday, October 29, 2012

इल्जाम ...


उनपे ... उनपे ... उनपे ...
लगे आरोप ... उनकी नजर में 
साजिशें हैं !

पर, हकीकत में 
लगते हमें ... इल्जाम सच्चे हैं !

पर, अब ... 
करे तो करे ... कौन -
फैसला इसका ?

क्योंकि - 
कहीं सरकार ... उनकी है !
तो कहीं -
उनकी ............... सरकार है !!

Sunday, October 28, 2012

यादें ...


देर सबेर ही सही, उन्हें ..... हम याद तो आये 
भले चाहे उन्हें, खुदगर्जी ले आई हो हम तक ?
... 
कुछ तो वजह जरुर होगी, बेरुखी की 
वर्ना, मिले मौके को, वे हाँथ से जाने नहीं देते ?
... 
कमबख्त, बहुत सख्त हैं, यादें तेरी 
छू-छू कर, चूर-चूर कर देती हैं मुझे ? 
... 
आज का दौर, खरीद-फरोख्त का दौर है दोस्त 
बस, कीमतों में ....... तनिक तनिक फेर है ? 

Saturday, October 27, 2012

क्लीनचिट ...


ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं 
कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ?
... 
ब्लेकमेलिंग तो उनके किरदार का एक छोटा-सा हुनर है 
बस, बदकिस्मती ने, उन्हें बे-नक़ाब कर दिया है आज ? 
... 
किरदार उसका, कुछ ऐंसा था 'उदय' 
जाते-जाते ..... रुला गया है हमको !
... 
क्लीनचिट मिल गई, अब वे बेक़सूर हैं 
गर अब किसी ने, इल्जाम लगाया तो ?
... 
आज मौक़ा हंसी है, गले लग जाओ हंसकर 
क्या रक्खा है यारा, दिलों की खुन्नसों में ? 

Friday, October 26, 2012

मुबारकां ...


गर ... आज ... वतन में ... 
गलियों में ... 
चौराहों में ... 
दिलों में ... जज्बातों में - 
प्रेम है ... 
भाईचारा है ...
शान्ति है ... 
सौहार्द्र है ...
अमन है, ... चैन है !
तो ठीक है ... 
फिर ... आज ... अपनी भी -
दीवाली है ... 
होली है ... 
ईद है ... 
मुबारकां ...... शुभकामनाएँ !!

सवालों के कटघरे में मीडिया !


भारतीय मीडिया जिसे भारतीय लोकतंत्र के चौथे सशक्त स्तम्भ के रूप में माना व जाना जाता है जिसके वर्त्तमान समय में दो धड़े प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में सक्रीय व क्रियाशील हैं किन्तु विगत कुछेक वर्षों से इनकी निष्पक्षता व पारदर्शिता सवालों के कटघरे में है। यदि ये अपनी अपनी आँखें मूँद कर सीधे व सरल ढंग से नाक की सीध में चलते रहते अर्थात अपनी भूमिका का निर्वाहन व सम्पादन करते रहते तो शायद प्रश्न ही खड़े नहीं होते, किन्तु यहाँ यह भी स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूँ कि सवाल इनकी सक्रियता व क्रियाशीलता पर नहीं लग रहे हैं वरन इनके आचरण की संदिग्तता पर लग रहे हैं।

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ वर्तमान समय में न सिर्फ सक्रीय व क्रियाशील है वरन बेहद सशक्त व आधुनिक संसाधनों से युक्त भी है, इन प्रगतिशील हालात में मीडिया का आचरण यदि संदेह व सवालों के कटघरे में है तो यह निसंदेह गंभीर व विचारणीय मुद्दा है ! वर्त्तमान समय में मीडिया पर सांठ गांठ के गंभीर आरोप लग रहे हैं यहाँ पर मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि सांठ-गांठ से मेरा तात्पर्य गठबंधन, मिलीभगत अथवा तालमेल की नीति से ओत-प्रोत नीति से है यह नीति सामान्य तौर पर सत्तासीन राजनैतिक अथवा व्यवसायिक प्रतिस्पर्धी आपस में अपने अपने निजी स्वार्थों व मंसूबों को साधने अर्थात पूर्ण करने के लिए उपयोग में लाते हैं।

यहाँ पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब मीडिया का राजनैतिक हितों व व्यवसायिक हितों से कोई लेना-देना नहीं है तो फिर यह सांठ-गांठ क्यों व किसलिए ! यदि मीडिया का राजनीति व व्यावसाय से कुछ लेना-देना है तो वो सिर्फ इतना कि इनकी नीतियों व कारगुजारियों को समय समय पर निष्पक्ष व निर्भीक ढंग से जनता के सामने रखना है। क्या कोई भी मीडिया कर्मी ऐसा होगा जो अपने कर्तव्यों व दायित्वों से अंजान होगा ... शायद नहीं ! फिर क्यों मीडिया कर्मियों पर खुल्लम-खुल्ला तौर पर राजनैतिज्ञों व उद्धोगपतियों के साथ सांठ-गांठ के सकारात्मक अथवा नकारात्मक आरोप लग रहे हैं अर्थात आचरण जगजाहिर हो रहे हैं ! इसी पराकाष्ठा का एक जीता-जगता उदाहरण वर्त्तमान में सुर्ख़ियों में आया नवीन जिंदल बनाम जी न्यूज प्रकरण है, ठीक इसी क्रम में कुछ समय पूर्व नीरा राडिया प्रकरण में भी अनेक प्रतिष्ठित मीडिया कर्मी सुर्ख़ियों में रहे थे !

आधुनिकीकरण की दौड़ एक ऐसी दौड़ है जिसमे हरेक महत्वाकांक्षी शामिल होना चाहता है, यहाँ आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य आधुनिक संस्कृति व भौतिक सुख-सुविधाओं से ओत-प्रोत होने से है, जब आधुनिक संस्कृति अपने चरम पर चल रही हो तब क्या कोई भी महात्वाकांक्षी शांत ढंग से उसे बाहर से बैठ कर देख सकता है ... शायद नहीं ! संभव है यह एक कारण हो मीडिया कर्मियों का राजनैतिज्ञों व उद्धोगपतियों की ओर रुझान का, या फिर मीडिया को अपने पावर अर्थात शक्ति का अचानक ही एहसास हुआ हो कि क्यों न राजनीति व व्यवसाय को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर अपने ढंग से संचालित किया जाए !

साथ ही साथ हम इस बात से भी कतई इंकार नहीं कर सकते कि मीडिया को गुमराह करने का प्रयास नहीं किया गया होगा, या ऐसे प्रलोभन नहीं दिए गए होंगे जिनके प्रभाव में आकर मीडियारूपी धारा का प्रवाह स्वमेव मुड गया हो, या सीधेतौर पर यह मान लिया जाए कि झूठी महात्वाकांक्षा इसकी मूल वजह है ! संभव है इन कारणों में से ही किसी न किसी कारण की चपेट में आकर कुछेक या ज्यादातर मीडिया कर्मियों ने अपनी स्वाभाविकता को खो दिया है जिसके परिणामस्वरूप ही नवीन जिंदल बनाम जी न्यूज प्रकरण हमारे समक्ष है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि इन्हीं परिस्थितियों व परिणामों के फलस्वरूप ही आज सम्पूर्ण मीडिया तरह तरह के सवालों के कटघरे में स्वमेव खडी है !


Thursday, October 25, 2012

भड़ास ...


आज रावण ने रावण जला के, खूब वाह-वाही लूटी है 
पर, दिल के किसी कोने में, बेचैनी जला रही है उसे ? 
...
उनका अहंकार, किसी रावण से कम नहीं है 'उदय'
बस, फर्क है तो, ................. तनिक लचीला है ?
...
भ्रष्टाचार रूपी अवैध बम फट तो रोज रहे हैं 'उदय'
मगर अफसोस, कोई कार्यवाही को तैयार नहीं है ?
... 
हद है 'उदय', लोगों ने, पुतलों पे भड़ास निकाल ली है 
जबकि, कदम-कदम पे, ज़िंदा रावणों की भरमार है ? 

Wednesday, October 24, 2012

सत्ता की डोर ...

भाईयों ... सुनो ... चलो ...
रावण को मारेंगे ...
नहीं ... नहीं ... नहीं ...
मत मारो ... रावण को !

क्यों ? किसलिये ??
क्योंकि -
आज,
उसके हाँथों में सत्ता की डोर है !

तो ... रहने दो ... क्या हुआ ?
नहीं ... ज़रा सोचो ...
उसके मरते ही,
डोर ... छूट जायेगी हाँथों से ...
और हम ...
दिशाहीन ... हो जायेंगे !

तो फिर ... ये भ्रष्टाचार ??
भ्रष्टाचार ...
होने दो ... रहने दो ... बढ़ने दो ...
पर, रावण को ...
ज़िंदा ... रहने दो ... !

रहने दो ... होने दो ... भ्रष्टाचार ...
ज़िंदा ... रहने दो ... रावण को
कहीं,
सत्ता की डोर ...
छूट न जाए ... उसके हाँथों से !!

Tuesday, October 23, 2012

देवता ...

भ्रष्ट ... भ्रष्टाचार ...
पुत्र मोह में ... पुत्रों के -
मोह में ...
मम्मी-पापा खामोश हैं
उनकी खामोशी
तो जायज है 'उदय'
पर ...
कोई समझाये हमें
कि -
लोकतंत्र के ...
'देवता' क्यूँ मौन है ???

Sunday, October 21, 2012

जी-हुजूरी ...


जूता पार्टी औ चांटा पार्टी नजर नहीं आ रही है यारो 
भ्रष्टाचारी ...... सरेआम, बे-खौफ घूम रहे हैं आज ?
... 
ये फ़रियाद नहीं है दोस्त, ... मुहब्बत है 
जिस दिन समझोगे, बहुत पछताओगे ? 
... 
नहीं है चाह हमें ....... बनावटी तमगों की 
फिर भला क्यूँ, हम उनकी जी-हुजूरी करें ? 
... 
अब तुम, इतना भी न इतराओ दिखा-दिखा कर 
कहीं ये हाँथ .................. बेकाबू न हो जाएं ? 
... 
उन्होंने, कुछ इस तरह, मुंडी हिला के 'हाँ' कहा था 
हमें महीनों लगा ऐसे, कि - .... जैसे 'ना' कहा हो !

Saturday, October 20, 2012

आशियाना ...


नींद का खुलना हुआ, और... यादों में तुम आ गए 
अब क्या करें, कैसे उठें, हम बिन तेरे आगोश के ?
... 
जी मचल रहा है, देख देख कर तुम्हें 
जैसे तुम, आज ओस की बूँदें हुई हो !
... 
नींद खुलते ही, तुम्हारी याद, सताने लगती है हमको 
कहो तो, ...... हम .......... एक कर लें आशियाना ?
... 
उनकी फूहड़ता की, अब हम क्या मिसाल दें 
वो, ............. खुद को, 'खुदा' कह रहे हैं ??
... 
दारु-मुर्गा, ही-ही-हू-हू, नाच-नचईय्या, तू-तू-मैं-मैं 
उफ़ ! ये शादी का मंजर है,... या तमाशा है 'उदय' ?

Friday, October 19, 2012

चर्चित साहित्यकार ...


क्यूँ 'उदय', ये कौन आदमी है ? 
कौन-सा ?? 
अरे ... वो ... जिसके - 
सिर पे दो-तीन ... 
कांधों पे चार-पांच ... 
बांहों में दस-बारह ... 
और 
जिसके चरणों में -
पच्चीस-तीस आदमी बैठे हैं ! 
ओह ... 
उफ्फ़ ... 
वो ... 
वो आज के दौर का 
एक ... चर्चित साहित्यकार है !!

दौर ...


ये कैसा दौर है 'उदय',
जहां ...
हमने सुना है, कि -
विरासती सरकारों का 
हो-हल्ला ... 
बोल-बाला है !
हाँ ... 
है तो ...
पर, हमने 
ये भी सुना है, कि -
दिया बुझने से पहले
एक बार 
भभकता जरुर है ???

Thursday, October 18, 2012

मुनासिब ...


लो, आज उन्ने, हम पे, बेवजह के इल्जाम जड़ दिये 
बस्ती में, .... नियम-क़ानून होते, तो हम तोड़ते ??.
.. 
हम क्या हैं - क्या नहीं हैं, ये तो 'सांई' ही जानता है 'उदय' 
पर आज, ............. हम अपने ही शहर में अजनबी हैं ? 
... 
यकीनन यकीं मानिये, ......... हम, ....... हर जाँच को तैयार हैं 
पर, कोई एक ऐंसी एजेंसी तो सुझाव, जिसके तुम मालिक न हो ? 
... 
आज सिंहासन ... क्यूँ सन्न है, क्यूँ मौन है 'उदय' 
क्या, आम आदमी के सवाल ... मुनासिब नहीं हैं ?
... 
गर आज, वो, चूक गए, उनको पटकनी देने से 
तो कल ..... वो, उल्टा उन्हें ही चित्त कर देंगे ?

Wednesday, October 17, 2012

बेशरम ...


गर हम ठोक दें, आज, इक सत्यरूपी कील उनके ताज में 
तो तय है 'उदय', वे हमारी ... कब्र खोदने में लग जाएंगे ?
... 
कल तक जो, मेमने की तरह मिमिया रहते थे 'उदय' 
न जाने क्या हुआ, वो आज ... गीदड़ भभकी दे रहे हैं ? 
... 
वे बड़े बेशरम हैं 
गर, हारने लगे, तो नंगे हो जाएंगे !
... 
गर, गुनहगारों की कतार,कश्मीर से कन्याकुमारी तक लंबी न होती 
तो शायद, ....... वे, ......... जाँच को ....... तैयार भी हो गये होते ?
... 
जब पूरी-की-पूरी खाप, भ्रष्टाचार में लिप्त हो 'उदय' 
फिर, क्या सबूत, क्या गवाही, और क्या आरोप ??

Monday, October 15, 2012

जाकिर हुसैन ट्रस्ट प्रकरण : कांग्रेस की साख पर बट्टा ?


जाकिर हुसैन ट्रस्ट प्रकरण : कांग्रेस की साख पर बट्टा ? 
...
भ्रष्टाचार व घोटालों के दौर में विगत दिनों उत्तरप्रदेश में घटित व सुर्ख़ियों में आये जाकिर हुसैन ट्रस्ट के घोटालेरुपी तरो-ताजा प्रकरण ने न सिर्फ यूपीए सरकार के मंत्री सलमान खुर्शीद को कटघरे में खडा किया है वरन सरकार भी कटघरे में आ गई है, सरकार के कटघरे में आने अर्थात घिरने के पीछे का कारण घोटाले में लिप्त होना नहीं है वरन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ट्रस्ट व सलमान खुर्शीद के बचाव में खड़ा होना है। यह सर्वविदित है कि - 'आजतक' न्यूज चैनल ने अपने चैनल पर विगत दिनों प्रसारित किये गए 'ऑपरेशन धृतराष्ट्र' रूपी कार्यक्रम ने जिसमें उत्तरप्रदेश के एनजीओ - जाकिर हुसैन ट्रस्ट द्वारा विकलांगों को उनकी जरुरत के अनुसार साईकल, ट्राईसाईकल, बैसाखी, ईयरमशीन, इत्यादि सामाग्रियों के वितरण में किये गए तथाकथित घोटाले अर्थात नियमित रूप से कैम्प का आयोजन न करना, जरुरतमंदों को उनकी जरुरत के हिसाब से सामग्री का वितरण न करना, मृत लोगों को जीवित बता कर उन्हें भी सामग्री का वितरण कर देना, जरुरतमंदों के नाम सामग्री वितरण लिस्ट में दर्ज करना किन्तु उन्हें सामग्री का वितरण न करना, इत्यादि तरह-तरह के आरोप प्रकाश में आये हैं।

 'आजतक' न्यूज चैनल पर 'ऑपरेशन धृतराष्ट्र' रूपी कार्यक्रम में कथित घोटाले के प्रसारण के बाद विपक्षी राजनैतिक पार्टियों में सुगबुगाहट भी शुरू नहीं हुई थी कि तभी मौके की नजाकत को भांपते हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन के प्रमुख कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल विकलांग लोगों के सांथ हुई तथाकथित घोटालेरुपी छल व बेईमानी के विरोध में खुलकर विकलांगों के समर्थन में खड़े हो गए तथा ट्रस्ट के प्रमुख कर्ताधर्ता केंद्र सरकार के कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। अरविंद केजरीवाल न सिर्फ जाकिर हुसैन ट्रस्ट के संचालक कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद व् उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद के विरुद्ध मोर्चा खोलने में सफल रहे वरन केंद्र सरकार को पार्टी बनाने, मुद्दे को भुनाने व जन-जन तक पहुंचाने में भी सफल रहे, क्योंकि केंद्र सरकार के कानूनमंत्री पर उनके द्वारा संचालित ट्रस्ट में विकलांगों को वितरण की जाने वाली सामग्रियों के वितरण में अनियमितता व घोटाले के आरोप लगे हैं। यहाँ यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि "बिना आग के धुआँ निकलने की कल्पना करना स्वयं के सांथ बेईमानी करने जैसा होगा" अर्थात अभी तक न्यूज चैनल्स के माध्यम से प्रकाश में आये तथ्यों के आधार इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि केन्द्रीय कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद के संचालन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर विकलांगों को की गई सामग्री वितरण में अनियमितताएं हुई हैं। 

खैर, ट्रस्ट पर लगे आरोपों, घोटालों व अनियमितताओं की जाँच के परिणाम स्वरूप देर-सबेर दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो ही जाएगा ... किन्तु इस प्रकरण के प्रकाश में आने से केन्द्रीय कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद तथा कांग्रेस पार्टी पर जो ऊंगलियाँ उठी हैं तथा उठ रही हैं, उन पर चर्चा किया जाना अत्यंत आवश्यक होगा, आवश्यक इसलिए कि कांग्रेस पार्टी अर्थात केंद्र सरकार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सलमान खुर्शीद के बचाव में खड़ी नजर आई है, नजर आ रही है। यहाँ इस बात का उल्लेख किया जाना भी आवश्यक होगा कि - विगत लम्बे समय से केंद्र सरकार पर निरंतर भ्रष्टाचार व घोटालों के आरोप लगते रहे हैं, लग रहे हैं, जिसमें कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, टूजी घोटाला, तथा ताजा-तरीन कोलगेट घोटाला प्रमुख हैं, इन घोटालों के आरोपों से समय-समय पर कांग्रेस की छबि निरंतर धूमिल हुई है तथा निरंतर धूमिल हो रही है ... ठीक इसी बीच उनके एक महत्वपूर्ण मंत्री सलमान खुर्शीद व उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद के द्वारा संचालित एनजीओ - जाकिर हुसैन ट्रस्ट पर लगे तथाकथित घोटालों के आरोपों से उनकी अर्थात कांग्रेस पार्टी की साख पर भी बट्टा लगा है, लग रहा है। 

जाकिर हुसैन ट्रस्ट पर लगे घोटाले की चर्चा करने का मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि अब तक केंद्र सरकार अर्थात कांग्रेस पार्टी पर लगे भ्रष्टाचार व घोटालों के आरोप सीधेतौर पर आमजन को प्रभावित नहीं कर रहे थे वरन अप्रत्यक्षतौर पर प्रभावित व क्षति कारित कर रहे थे, कर रहे हैं, और संभवत: भविष्य में भी करते रहें ... किन्तु वर्त्तमान में केंद्र सरकार के प्रमुख मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा संचालित जाकिर हुसैन ट्रस्ट पर लगे घोटालेरुपी आरोप सीधेतौर पर आमजन को प्रभावित कर रहे हैं अर्थात उक्त घोटाले ने न सिर्फ विकलांगों की मन: स्थिति को झंकझोरा है वरन प्रत्येक आमजन के दिल को भी दहलाया है, सीधेतौर पर कहा जाए तो विकलांगों के सांथ ट्रस्ट द्वारा किये गए घोटाले के प्रकाश में आने से देश के एक एक आदमी की भावनाओं को ठेस पहुँची है। उक्त तथाकथित घोटाले की जाँच का स्वरूप क्या होगा, जाँच के परिणाम क्या आएंगे, इन सवालों के जवाब उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, और न ही यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार को सलमान खुर्शीद इस्तीफा देंगे या नहीं, केंद्र सरकार उन्हें बर्खास्त करेगी या नहीं ... किन्तु यह सवाल कांग्रेस पार्टी के लिये अत्यंत विचारणीय व महत्वपूर्ण है कि उक्त तथाकथित घोटालेरुपी क्रूर, घृणित व अमानवीय आचरण के फलस्वरूप कांग्रेस पार्टी की साख पर कितना बट्टा बैठेगा ?

(नोट - एक लम्बे अंतराल के बाद समसामयिक मुद्दे पर कीबोर्ड रूपी कलम चली है ... पत्र-पत्रिका / वेबसाईट से जुड़े मित्रों को यह लेख प्रकाशन योग्य प्रतीत हो, तो अवश्य प्रकाशित करें ... आभार !)

बेगुनाही के सबूत ...


भृष्टाचारियों, तुम खुद ही तुम्हारी हदें तय कर दो 
ताकी, उसके बाद ही, हम तुम्हारे ... गिरेबां पकड़ें ? 
... 
तमाम सबूतों और गवाहियों के बाद भी, गुनहगारों की अकड़ कायम है  
लंगड़े, लूले, गूंगे, बहरे .... अब, न्याय की चाह में जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
... 
न तो शर्म है उन्हें, और न ही वे बेक़सूर हैं 'उदय' 
बस, सत्ता का कवच है, ..... सही-सलामत हैं ? 
... 
क्या खूब, आज उन्ने, खुद ही खुद को, बेक़सूर सिद्ध किया है 'उदय'
लगता नहीं कि अब ... अदालतों व जाँच एजेंसियों की जरुरत होगी ? 
... 
दो-एक तस्वीरें, रसीदें व आयोजनों के झूठे-सच्चे आंकड़े 
उफ़ ! ये, खुद की नजर में, खुद की बेगुनाही के सबूत हैं ?

Sunday, October 14, 2012

मम्मी-पापा ...


चहूँ ओर ... दुख ... 
और सिर पे, चिंता के बादल 
घिर आए हैं 
बच्चों की नादानी से 
मम्मी-पापा ... 
दोनों ... घवराये हैं !
अब करें, तो क्या करें वे 
यही विचार ... 
विचार रहे हैं ... दोनों 
कहीं नादानी - नादानी में 
सत्ता ... 
निकल न जाए हांथों से !!

Saturday, October 13, 2012

परहेज ...


दिल पे, ... कुछ इस कदर असर हुआ है उनकी खामोशी का 
कि न तो कुछ सुन रहा है मेरी, और न ही सुना रहा है कुछ ?
... 
उफ़ ! क्या खूब बदला है, खुद को किसी ने 
अपने हो के भी, अब वो अपने नहीं लगते ? 
... 
चलो माना 'उदय', कि उनके आरोप अनर्गल हैं 
फिर जांच से ... सत्ताधीशों को  परहेज क्यूँ है ?
...
उन्हें, हम याद आएंगे ..................... मगर दिल टूटने के बाद 
अभी तो, दिल उनका, रकीबों के झूठे दिलासों से गुब्बारा हुआ है ? 
... 
जनआक्रोश से, उनकी, कोई साहूकारी नहीं है 
उन्हें तो, समर्थन की आड़ में, रोटी सेंकना है ? 

Friday, October 12, 2012

सबक ...


सुनो, कुचल दो उसकी जुबान ... 
और, दफ़्न कर दो ... 
उसको -
और उसकी आवाज को 
कहीं भी ... 
जहां से ... 

गर उसकी रूह भी चिल्लाना चाहे 
तो चिल्लाते रहे ... 
पर, 
उसकी आवाज, यहाँ तक ... 
हम तक ... 
न पहुँच सके !

उसे सबक मिलना ही चाहिए 
हमारे सामने ... 
चीखने ... 
चिल्लाने ... 
और, बगावत करने का !!
आखिर .... हम .... सरकार हैं !!!

Thursday, October 11, 2012

कहर ...


वे दिल पे दस्तक तो देते हैं, पर अन्दर नहीं आते 
'रब' ही जाने, ये उनकी अदा है, या मजबूरियाँ हैं ? 
... 
गर, आज इस मुल्क में, सख्त क़ानून होते 'उदय' 
तो इन घमंडियों के ..... सर कलम हो गए  होते ? 
... 
गरीबों, किसानों, मजदूरों से जी नहीं भरा था उनका 
तब ही तो, लंगड़े-लूलों पे ... कहर बरपा है उनका ? 
... 
वे रोज प्रोफाइल पिक्चर बदल बदल के वाह-वाही लूट लेते हैं 
काश ! ये हुनर ......................... हम में भी होता 'उदय' ?
... 
पिन चुभा-चुभा के, क्यूँ सता रहे हो यार 
खंजर ही सीने में ... क्यूँ उतार नहीं देते ? 

Wednesday, October 10, 2012

लल्लो-चप्पो ...

गुनाह करके 'उदय', उन्ने ... हमसे सबूत मांगे हैं 
अब हम  क्या कहें, वैसे .... फैसले भी उनके हैं ?
... 
उनकी बला, उन्ने अपने सिर पे ले ली 'उदय' 
अब 'खुदा' ही जाने, ... उनका हश्र क्या होगा ? 
... 
ए दोस्त, तुम कितने सच्चे, कितने झूठे हो, ये तो तुम ही जाने हो 
पर, गर ये मजाक है, तो भी  .......................... तुम्हें सलाम !
... 
ऊँचाईयों का खौफ, ये ... किसे दिखा रहे हैं 'उदय' 
हम परिंदे हैं, आसमानों में ही है, बसेरा अपना ? 
... 
लल्लो-चप्पो के हुनर से, वे सत्ता के सरताज हैं 'उदय' 
वर्ना, उनकी काबलियत ... चपरासी से ज्यादा नहीं है ? 

Tuesday, October 9, 2012

कवि और कविताएँ ...


क्यूँ 'उदय', ... तुम - 
कविताओं में कवि ढूंढ रहे हो ? 

या फिर -
कवियों में कविताएँ ??

या फिर -
खुद को दे रहे हो तसल्ली ... 
कि - 
अभी नहीं तो कुछ देर बाद ... 
आज नहीं तो कल ... 

कभी न कभी ... 
मिल ही जाएंगे ...
आज के दौर में भी ... 
पुराने दौर जैसे -

खून खौला देने वाले - 
रौंगटे खड़े कर देने वाले 
कवि -
और कविताएँ ??? 

तमगों की चाह ...


देर-सबेर, सब दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाएगा 
लोग, खामों-खाँ ... सच्चाई से बचने की जुगत ढूंढ रहे हैं ?
... 
अब क्या कहें, अपने मिजाज उनसे मिलते नहीं 'उदय' 
वर्ना, तकरार की ..... आज कोई गुंजाइश नहीं होती ? 
... 
ऐंसा लगता है 'उदय', उनकी बत्ती गुल हो जायेगी 
गर, बिजली की कीमतों पे अंकुश न लगाया उन्ने ? 
... 
ये पोंगा-पंडितों का युग है 'उदय', जहां वे जन्मे हैं 
वर्ना, उनकी भी ........ आज जय-जयकार होती ?
... 
हमें, किसी की भी, चमचागिरी औ जी-हुजूरी की जरुरत नहीं है 'उदय' 
क्यों ? .................. क्योंकि, हमें बनावटी तमगों की चाह नहीं है ??

Monday, October 8, 2012

स्क्रिप्ट ...


साहब, मैं आपको खरीदना चाहता हूँ !
क्यों ? 
मुझे आपकी जरुरत है ... 
किसलिये ??
मुझे एक बहुत बड़ा घोटाला करना है !!
करो, वहां मेरा क्या काम ???
साहब, आप एक बहुत बड़े लेखक हैं ...
आप से -
महाघोटाले की ... 
और उसके बाद, ... उससे ...
बच निकलने की, एक - 
सुपर-डुपर हिट स्क्रिप्ट लिखवानी है !!!

Sunday, October 7, 2012

गारंटी ...


दौलतें सब की 'उदय', यहीं छूट जानी हैं 
लोग, खामों-खाँ उछल-कूद कर रहे हैं ? 
... 
खिड़की, चौखट, आँगन, ... सब सूने-सूने-सूने हैं 
उनके ............................. चले जाने के बाद ? 
... 
देर-सबेर ही सही 'उदय', इक दिन वो पल आएगा 
कुकुर-बिलई के चंगुल से, देश मुक्त हो जाएगा ?
... 
वो हमसे परसों की गारंटी ले के गए थे 'उदय' 
लो, वो खुद ही .......... आज शाम चल बसे ? 
... 
वो मर्जी के मालिक हैं, हमें संगदिल कह सकते हैं 
मन ही मन चाहते रहना, गुनाह तो नहीं है 'उदय' ? 

जीत ...


तुम जीत कर हारने का सोचो, 
और मैं ...
हार कर जीतने का सोचता हूँ, 
किसी न किसी तरह ...
इस तरह ... 
हम दोनों जीत जायेंगे ?????

Friday, October 5, 2012

सरपंची ...


काश ! हमारे बस में होता, 'दिल' छोटा-बड़ा करना 
तो एक बार बड़ा कर के, जहां अपना हम कर लेते ? 
 ... 
कदम कदम पे, दंगाईयों का हुजूम मिल जाता 'उदय' 
गर, मौक़ापरस्तों को, ...... आज रोका नहीं जाता ?
... 
ये किन महाशय को सरपंची सौंपी गई है 'उदय' 
उफ़ ! जिन्ने कभी ... गाँव की सूरत नहीं देखी ?
...
गर, इसी तरह वे, .......................... उन्हें चांटे जड़ते रहे 'उदय' 
तो तय है, गाल उनके, सिर्फ सूजेंगे नहीं वरन लाल भी हो जायेंगे ? 
... 
'खुदा' जाने इसके बाद नंबर किसका आना है 
बहुत तो, यह सोच कर ही अचंभित हैं 'उदय' ? 

Thursday, October 4, 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं ...


ज्योतिपर्व प्रकाशन से रश्मि प्रभा जी के सम्पादन में प्रकाशित यह पुस्तक ब्लॉग लेखकों पर आधारित है ... जिसमें आज के दौर के अधिकाँश चर्चित ब्लॉग लेखकों की लेखनी के सांथ-सांथ मेरी लेखनी के अंश भी मौजूद हैं ... यह एक बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय पुस्तक है जो वर्ष - २०११ की चुनिन्दा "ब्लॉग पोस्ट्स" का संग्रह है, अवश्य पढ़ें ... आभार !

निम्न ई-मेल पर संपर्क कर पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं - 
rasprabha@gmail.com

रैफरी ...


सुनहरा मौक़ा है, आज उनके हांथों में 
गिरा लें ... 
लड़ लें ... 
बना लें  ...
सरकार ? 
मगर भूलें नहीं, ... कि - 
वे भी हैं सरकार !
दांव-पेंच ...
धोबी-पछाड़ के 
वे भी हैं ... फनकार !!
और तो और, उनके पास ... 
सत्ता रूपी ... बोनस पाइंट भी है ?? 
और ये भी न भूलें, ... कि - 
'रैफरी' भी तो ... उनका है सरकार ???

Wednesday, October 3, 2012

हुनर ...


जैसे पहले डूबी थी, वैसे ही इस बार भी डूबेगी लुटिया उनकी
फिर भले चाहे ...... वो कड़क हों, ......... या मुलायम हों ?
... 
उन्हें तो गुमान है 'उदय', सिर्फ ...... अपनी चतुराई पे 
और एक हम हैं, जो उनकी लेखनी में हुनर ढूंढ रहे हैं ?
... 
उन्होंने तय कर लिया है, कि हमें लिखना नहीं आता 
जब नहीं आता, तो क्या कहें, समझ लो नहीं आता ? 
... 
तमाम हो-हल्लों और घोटालों के बाद भी धूम है उनकी 
ये लोकतंत्र है, ..................... या भृष्टतंत्र है 'उदय' ? 
... 
लो, ढोंग से भरा चेहरा उसका, क्या खूब चम-चमाया है
क़त्ल का इल्जाम, जो उसने, किसी और पे लगाया है ? 

Tuesday, October 2, 2012

प्रतिक्रिया ...

उन्हें करने दो सितम, आज तो हम सह लेंगे 
पर अब, किसी गद्दार को, वोट हम नहीं देंगे ?
...
जब राजनैतिक भौं-भौं से परहेज है तुम्हें 
फिर, मंच पे दुम क्यूँ हिला रहे हो मियाँ ? 
... 
छपी है कविता पत्रिका में, और उन्हें फेसबुक पे प्रतिक्रिया की चाह है 
'उदय' कोई समझाए हमें, ... हम दें ... प्रतिक्रिया ... तो कहाँ दें ???
... 
उन्हें तो, हक़ है टिप्पणी का, भले भद्दी ही सही 
तुम औ हम कौन होते हैं उन्हें मना करने वाले ?
... 
सिर्फ नारी नहीं, वे तो सारे देश पे भारी हैं 
सर हैं, ... सरकार हैं, ... असरदार हैं वो ?

Sunday, September 30, 2012

नौटंकी ...

अब इनसे तो 'उदय', कोई नंगा ही जीत सकता है 
शंका है हमें, कहीं 'खुदा' भी न हार गया हो इनसे ? 
... 
दो-चार दांव-पेंच सीखने में हर्ज ही क्या है 'उदय' 
सुनते हैं, वही तो चमकते भाव हैं साहित्य के ??
... 
लोग खामों-खां इल्जाम लगा रहे हैं, कि - हमने छेड़ा है उन्हें 
पर, ......... हकीकत तो ये है, कि - हमें छेड़ा गया है 'उदय' ? 
... 
क्या गजब नौटंकी देखने को मिलती है अपने मुल्क में 'उदय' 
उफ़ ! अर्थी सजाने की घड़ी में, सेहरा सज रहा भृष्टाचार का ?
... 
उनकी शर्तें पढ़-पढ़ के हम हैरान हैं 'उदय' 
लगता नहीं, कि - हम कभी छप पाएंगे ?

Saturday, September 29, 2012

जागीर ...

हमने तो सुना था, 
कि - 
सिर्फ ..... सरकार उनकी है ?
पर, 
यहाँ तो -
सारा मुल्क ... 
उनके ...
बाप की -
जागीर हमको लग रहा है ??

Friday, September 28, 2012

पैमाना ...

तू आ, या ना आ, हमें क्या !
वैसे भी, हमें नींद ... अब आती नहीं है ? 
... 
गर, सर टेकना जरुरी था, किसी दरगाह में टेक लेते  
कम से कम गद्दारों का हौसला आफजाई तो न करते ?
... 
न जाने ये किसकी नजर लगी है मेरे मुल्क पे 'उदय' 
चवन्नी-अठन्नी की तरह, लुप्त हो रहा ईमान है ??
... 
जी तो चाहता है हमारा भी समेट लें धन-दौलत 
पर, बेईमानी के लिए दिल हामी नहीं भरता ??
... 
काश ! बिचौलियेपन का भी ... कोई पैमाना होता 'उदय' 
तो शायद, मंत्री, मुमंत्री, प्रमंत्री, रेस में आगे नहीं होते ?