Friday, December 9, 2016

पश्चाताप .... आत्मग्लानी ..... !

आओ, चलें, लिखें, कुछ ...
नंगी दीवारों पर

कुछ ... सत्य लिखें
कुछ ... धर्म लिखें
कुछ ... कर्म लिखें
कुछ ... कथनी-औ-करनी लिखें

राहगीरों के काम आयेंगीं
लिखी बातें ...

शायद किसी दिन काफिला गुजरे
'साहब' का ...

'साहब' की .. नजर पड़े .. किसी दीवार पे
पढ़कर ... मन व्याकुल हो जाए

2-3 घड़ी को सही ...
पश्चाताप हो .... आत्मग्लानि हो ..... !

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, December 4, 2016

ये तूने क्या कर दिया राजन ... !

कहीं भी धूप नहीं है
कहीं भी छाँव नहीं है

ये तूने क्या कर दिया राजन ...

कहीं खुशियों सा शोर नहीं है
कहीं मातम सा सन्नाटा नहीं है

लोग ज़िंदा हैं, या मर गए हैं
कोई आहट नहीं है

लोग हो रहे हैं नोट, हजार के, पाँच सौ के
पर कहीं कोई सौदाई नहीं हैं

ये तूने क्या कर दिया राजन ...

बस्तियों, शहरों, गलियों, मोहल्लों में
कहीं को भेद नहीं है ..... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, November 18, 2016

तमाशा ... !

तू कोई सबक सिखा
उसे या मुझे
या तो वो चेत जाए, या फिर मैं

रोज रोज
उसका गुब्बारे फुलाना, और मेरा उन्हें फोड़ देना
अब दर्शकों को भी रास नहीं आ रहा है

तालियों की गूँज ... दिन-ब-दिन ..
कम होते जा रही है
अब किसी नए तमाशे की जरुरत है ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, November 13, 2016

त्राहिमाम्-त्राहिमाम्

जिंदगी को दांव पे लगा दो
पूरा गाँव अपना है
हा-हा-कार मचे, या त्राहिमाम्-त्राहिमाम्
मचने दो,

हम सरपंच हैं
गाँव के,
हम मुखिया हैं
बस्ती के,

जो चाहेंगे वो करेंगे
लोग रोयें रोते रहें, मरते हैं मरते रहें
वैसे भी ... लोगों की आदत है ...
बात-बात पे रोने की .... ???

Tuesday, November 8, 2016

मधुशाला

आ, चल, बैठें, देखें,
है कितनी .. कड़वी-मीठी .. मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला,

भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला ....

छोड़, उतार, अहं का चोला
चल, जांचें, परखें, मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला !

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, October 28, 2016

अपने ही बुझा रहे थे घर के चिराग को ... ?

सच 'उदय', खूब बांटी गईं रेवड़ियाँ
पर.. किसी का मुंह मीठा न हुआ ?
...
चेले-चपाटे औ साहूकार करने लगें जब गुणगान
तब समझ लो 'उदय'... बहुत जल्द है बंठाधार ?
...
पहले चवन्नी-अठन्नी की भी शान थी
मगर अफसोस 'उदय',
आज ...... पांच-दस के नोटों का भी
कहीं कोई वजूद नहीं है ?
...
कहाँ कोई गैर था .. कहाँ कोई बेगाने थे
अपने ही बुझा रहे थे घर के चिराग को ?
...
उफ़ ! हिम्मत की तुम दरिंदगी तो देखो 'उदय'
कोई ताक में था.. कोई हाथ मलते रह गया ?

Wednesday, October 12, 2016

जख्म ...

अच्छे-खासे दिन थे फिर भी चाह रहे थे अच्छे दिन 
अब.. पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत ? 
... 
अब... कुछ बचा नहीं है सब लुटेरों के हाथ है 
ट्रेन.. दाल.. प्याज.. जब चाहेंगे तब लूट लेंगे ? 
...
गर, दिल को सुकूं मिले तो....उ. फिर तेरी बात हो
वर्ना ! तेरे बगैर भी जिंदगी कट रही है शान से ?
....
उनसे.. फिर से मिलने की शर्त पे, हुआ बिछड़ने का करार था
उफ़ ! ... जालिम... तनिक खुदगर्ज.. तनिक फरेबी निकला ?
... 
फिर से कोई जख्म हरा-भरा सा दिख रहा है 'उदय' 
न जाने कौन ... रात... ख़्वाब में छेड़ गया है मुझे ?

Saturday, October 1, 2016

लापरवाही .. !

अभी वक्त ठहरा है
शांत है
खामोश है ...

वक्त के
चलने .. बढ़ने का
हमें इंतज़ार करना चाहिए

अतिउत्साह में ..
अक्सर ... लापरवाही ..
हमें धोखा दे जाती है ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Thursday, September 29, 2016

कथनी औ करनी ... !

इश्क में.. कारीगिरी.. कभी हमने भी की थी 'उदय'
मगर अफसोस.. कहीं-कहीं.. रंग फीका रह गया ?
...
आज फिर शाम से घिर आया था उनकी यादों का नशा
गर .... हम .... कॉकटेल न करते ..... तो उतरता कैसे ?
...
वो थे तो मेरे करीब .... पर ..... हर पल खामोश थे
कुछ इस तरह के भी माजरे, मेरे दिल के करीब थे ?
...
न .. मत ढूंढों .. तुम ... अब आसमां में सुरागां
कहाँ अब ... कथनी औ करनी ... एक लगे है ?
...
खटिया खड़ी न हो जाए, बस यह डर सता रहा है 'उदय'
वर्ना.. कौन नहीं जानता, खाट से कितना परहेज है हमें ? 

Monday, September 26, 2016

संशय .. !

सिर्फ
आस्थाओं के
दिए जलाने से कुछ नहीं होगा
विश्वास के भी जलाने होंगें

नहीं तो
तुम्हारी पूजा अपूर्ण रह जायेगी
व्यर्थ हो जायेगी

तुम्हें
तुम्हारे भगवान मिलेंगें जरूर
पर तुम
उनसे मिल पाओगे या नहीं
इसमें संशय रहेगा ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, September 25, 2016

युद्ध .. चाहो तो.. देख लो ... इतिहास ... !

युद्ध पहले भी हुए हैं
आगे भी होंगें

कोई हारा है, कोई जीता है

फिर से ..
कोई हारेगा, कोई जीतेगा

पर
लहू-लुहान, खून-खच्चर ... मातम ..

दोनों के नसीब थे, और रहेंगें

चाहो तो.. देख लो ... इतिहास ...
या
आजमा लो .. भविष्य ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Monday, September 5, 2016

तुम ... और तुम्हारी डींगें ... उफ्फ .... !

गर ... अगर ... बात ... सिर्फ हार-जीत की होती तो
हम .. छोड़ देते ...

दे देते .. तुझे .. ये बाजी

मगर तूने
ये जो माहौल बनाया है

कि -

तुझसे बड़ा .. कोई खिलाड़ी नहीं है ..
कोई तुर्रम नहीं है

ये बात ... हमें कुछ जंच नहीं रही है
इसलिए ..

अब ... दो-दो हाथ ...
तुम ... तय समझ लो दोस्त ...

दर-असल .. जमाने को भी
तुम्हारी हकीकत से ... रु-ब-रु कराना .. जरूरी है ..

वर्ना .. तुम ... और तुम्हारी डींगें ... उफ्फ .... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Thursday, September 1, 2016

दाँव ... रिस्क का .. ?

चलो दाँव लगाएं
एक और ... रिस्क का ..

जैसा ...
पहले लगाते रहे हैं ... हम ..

हार-जीत ... देखेंगे ..
कौन भिड़ता है .. कौन टांग अड़ाता है

अगर नहीं लड़े ... नहीं भिड़े .. तो ...
जिन्दगी .. नीरस ही रहेगी

उत्साह को .. हम तरसते रहेंगे ...

कोल्हू के बैल .. की भाँती
हम चलते रहेंगे ... घिसटते रहेंगे ..

चलो दाँव लगाएं
एक और ... रिस्क का .. ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, August 31, 2016

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ... ?

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ..
यह एक कड़वी सच्चाई है

सिर्फ कोई मुहावरा ...
कहानी ...
या किस्सा नहीं है

कभी-कभी ... अक्सर ...
ऐसा होता है
जब इंसान बुरे दौर से गुजर रहा होता है
न चाहते हुए भी ...
वह ..
खजूर में अटक जाता है

ये अटकना
एक ऐसी पीड़ा की भाँती होता है
जिसका एहसास

उफ़ ..... क्या कहें ...
बस ..... अहसास होता है

खजूर ... एक पेड़ ..
कंटीली .... झाड़ियों-नुमा ...
जहाँ फंसा आदमी ... अपनी मर्जी से ..
न हिल सकता है .. न डुल सकता है
क्यों ? ..... क्योंकि ..
वह .. वहाँ ...
अटका होता है ... लटका होता है
फंसा होता है

अब .. इस सच्चाई से कौन अनभिज्ञ है
या होगा
कि -

उसकी .. उस आदमी की .. क्या बिसात
कि .....
वह अपनी मर्जी कर ले
वो भी .. कंटीली झाडी-नुमा .. पेड़ पे
खजूर पे ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, August 24, 2016

कृष्ण नहीं है .. जान रहा है ... ?

राधा राधा पुकार रहा है
भटक रहा है
गली-गली ..

होश पूरे गँवा चुका है
कुछ व्याकुल, कुछ तड़फ लिए
राधा-राधा ... गली-गली

रोता .. बिलखता .. आस लिए
उम्मीदों की टीस लिए ...
हर नुक्कड़ पे ..

निकल पड़ा है ..
पुकार रहा है ... राधा-राधा ...
गली-गली .. राधा-राधा .. शहर-शहर .. ?

कृष्ण नहीं है ..
जान रहा है ... मान रहा है
फिर भी .. राधा-राधा .. गली-गली .. ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Tuesday, August 9, 2016

22 साल बाद ... !

22 साल बाद ...
जब लौटो
अपने शहर में
तो वो अपना-सा नहीं लगता

गलियाँ ...
नुक्कड़ ...
बगीचे की शाम ...
चौके-छक्के ... दौड़-कूद ... गप्पें ...

कुछ भी तो अपने नहीं लगते
शहर बदल गया है ..
या फिर मैं ... ?
सोचता हूँ तो खुद को निरुत्तर पाता हूँ

अब वो ...
हंसी-मुस्कान ...
छिपी नज़रें ...
आहटें ...
कुछ भी तो .. अपनी .. नजर नहीं आतीं

सब बदल-सा गया है ... शायद ..
इन 22 सालों में ...
कहीं कोई ...
आहट-सी भी नजर नहीं आती
दीवानगी की ... दिल्लगी की ... ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, August 6, 2016

जहां 'कृष्ण' है ... वहां 'सुदामा' है ... !

जहां 'गुड' है ... वहां 'मॉर्निंग' है
नहीं तो .. 'गड्डमड्ड' है

जहां 'कृष्ण' है ... वहां 'सुदामा' है
'दोस्ती' है .. 'भाईचारा' है

काजू है .. किशमिश है ..
'मलाईपुआ' है ... 'रबड़ी' है .. 'मिसरी' है

नहीं तो .. 'तीखा' है .. 'खटास' है
'गड्डमड्ड' है ... सब 'गड्डमड्ड' है

जहां .. 'कृष्ण' है ... 'सुदामा' है
वहां .. सब 'गुड' है ... 'गुड मॉर्निंग' है ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, August 5, 2016

'रब' जाने क्या मिला उन्हें....... रूठ के हमसे ?

कभी वक्त, कभी भाग्य, तो कभी हालात की रूसवाइयाँ थीं,
वर्ना ! आसमानों में.. कब के.. कइयों.. सुराख हो गए होते ?
... 
कभी रुके, कभी चले, कभी मचल से गए थे, 
सफ़र में... कभी पाँव... तो कभी ख़्वाब मेरे ? 
... 
सोच बदली, मिजाज बदले, फिर राहें बदल लीं 
'रब' जाने क्या मिला उन्हें....... रूठ के हमसे ? 
... 
उठा कट्टा......... ठोक दे साले को 
कल से, बेवजह फड़-फडा रहा है ?
... 
गर, दिल को, कुछ .. सुकूँ-औ-तसल्ली मिले 'उदय'
तो कुछ झूठे ... कुछ सच्चे ... ख्याल भी अच्छे हैं ?

~ श्याम कोरी 'उदय' 

Thursday, August 4, 2016

यकीनन .. यकीन मानिए जनाब ... !

दरअसल हमें ही
अपने मिजाज बदलने थे

थोड़े ख्याल बदलने थे
थोड़े-थोड़े सवालों के जवाब बदलने थे

यकीनन .. यकीन मानिए जनाब
हम ...

तमाम इम्तहानों में ...
न जाने .. कब के .. पास हो गए होते ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, July 30, 2016

रहनुमाई ... !

अब तू ...
रहनुमा ... बनने .. दिखने ..
की .. कोशिश मत कर

हम जानते हैं
तब से ... तेरी रहनुमाई
जब .. तूने ...

पीठ दिखाई थी
जब मैं ... लड़ रहा था
अकेला ..

कुदरती कहर से
और तू .. हाँ .. तू ..
देखते ही देखते .. ओझल हो गया था

मेरे पैरों के तले की ..
जमीं को ...
धीरे-धीरे .. खिसकता देख के ..... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Thursday, July 28, 2016

चल ... छोड़ .. जाने दे उसे ..... ?

चल ... छोड़ .. जाने दे उसे
गर ... परवाह नहीं है .. उसे .. तेरी

तो फिर ... तू क्यूँ .. रो-बिलख रहा है
तड़फ रहा है ..
अंदर ही अंदर .. सिमट रहा है

देख .. उधर ... दूर ...
खिडक़ी से .. कोई .. तुझे देख रहा है

छोड़ .. जज्बात अपने
पहचान ... जज्बात उसके ...

जो ... दूर .. कहीं खिड़की से ..
तुझे .. चाह रहा है ...

उम्मीदों की आस लिए ..

मन ही मन .. दिल-ही-दिल ...
तुझे ... पुकार रहा है ... ?

चल ... छोड़ .. जाने दे उसे ..... ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, July 27, 2016

तुम मानो ... या न मानो ... ?

चाहो तो भी
न चाहो तो भी

शहर के रंग में
खुद को ... रंगना पड़ता है
हवाओं के संग में उड़ना पड़ता है

यही दस्तूर हैं
यही रिवाज हैं

जमाने के ...
कुदरत के ...
तुम मानो ... या न मानो ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, July 24, 2016

सच ... सच है ... ईश्वर है ... ?

सच तो सच होता है
लोग ... मानें ..... या न मानें
लोग.. सुनें या न सुनें.. या अनसुनी कर दें

सच ... दीवार पे लिखा हो
चट्टान पे लिखा हो
या जुबाँ ... या दिलों पे .....

लोग पढ़ रहे थे
पढ़ रहे हैं
पढ़ते रहेंगे ...

क्यों ? ...
क्योंकि .. सच ... सच है
और... सच ही रहेगा

तुम्हें मानना पडेगा
उन्हें मानना पडेगा
हमें ... हम सब को मानना पडेगा

सच ... कड़वा है ... या मीठा है
तीखा है ... या फीका है ...
इन सब ..... सवालों से परे है

क्योंकि ... सच ... सच है ...
जो.. अमिट है ... अमर है ... नश्वर है ...
सच ... सच है ... ईश्वर है ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, July 16, 2016

हाँ .. हम ... कश्मीर हैं ...... ?

क्यों .... क्यों करें ... हम शर्म ?
जाओ ... नहीं करना
तुम्हें ... जो सोचना है सोचो ...

जो करना है करो
जो कर सकते हो .. वो करो ..

और ..
जो हमें अच्छा लगता है .. लग रहा है ..
वो .. हमें करने दो

हम नहीं करेंगे शर्म
हमें ... नहीं आयेगी शर्म ?

क्यों ?..... क्योंकि ......
हम जन्मजात आतंक के समर्थक हैं
आतंकियों के समर्थक हैं

आतंक .. हमारा फैशन ... पैशन है ..
हुनर है .... दीवानगी हैं ..

या .. यूँ समझ लो
आतंक ही हमारा धर्म है

हमारे लहू में .. हमारी धड़कनों में ..
आतंक .. दौड़ रहा है .. धड़क रहा है

हाँ .. हम ... कश्मीर हैं ...... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Tuesday, July 5, 2016

देव बनें ... शैतान नहीं ... !

चलो हो जाएँ रथ पे सवार
बन जाएँ ...
हो जाएँ ... जगन्नाथ ...

करें संहार ...
दुष्टों औ पापियों का

बनें पालनहार ...
असहायों औ निर्बलों का

यही प्रण करें ...
यही पग बढ़ें ...
यही पथ चुनें ...

देव बनें ... शैतान नहीं ...
चलो ... चलें ... बनें ...
जगन्नाथ... जगन्नाथ ... जगन्नाथ ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, July 2, 2016

जिंदाबाद ... मुर्दाबाद ... !

नौकर शब्द से ... नौकरी बना है ...
जो नौकरी कर रहे हैं .. सब नौकर हैं,

चाहे चपरासी हो.. या हो कलेक्टर ...
एस.पी. हो.. या हो सिपाही.. सब नौकर हैं,

कोई छोटा है ... कोई बड़ा है ...
पर ... झंडे पकड़ के ... सब चल रहे हैं,

गर ... फर्क है ... तो इत्ता-सा है
कोई बंधुआ है ... तो कोई मुनीम है,

कोई गिलास उठा-उठा के रख रहा है
तो कोई गिलास धो रहा है,

जिंदाबाद ... मुर्दाबाद ... के नारों से ...
कोई अछूता नहीं है ...
सब लगा रहे हैं.. सब लगा रहे हैं.. ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Monday, June 27, 2016

उठो ... जागो ... जगाओ ... ?

हम जनता हैं
अब हम ... आम आदमी नहीं
मामूली आदमी हैं,

हमारी कुछ मजबूरियाँ हैं
कुछ जरूरतें हैं,

हम तुम्हारी बात नहीँ मानेंगे
नहीं सुनेंगे
कि -
सस्ता माल खरीदना बंद कर दो
चाइनीज माल खरीदना बंद कर दो,

क्यों ?
क्योंकि -
हम मामूली आदमी हैं
गरीब हैं
हमारी औकात नहीं है
मंहगे सामान खरीदने की,

गर ... हमें चाइनीज माल
बाजार में दिखेंगे
तो हम
जरूर खरीदेंगे,

अगर तुम में दम है
तो चाइनीज माल का इम्पोर्ट बंद करा दो,

जब माल देश में आएगा ही नहीं
तो हम खरीदेंगे कैसे ?

ये बात ...
हमें समझने या समझाने की जरुरत नहीं है
कि -

चाइना हमसे खुन्नस रखता है
हमारे साथ दुश्मनी निकाल रहा है,

ये सब ... हम ...
समझते हैं
क्योंकि -
हम मामूली आदमी हैं,

पर ... अगर ... ये बात ...
किसी को समझने की जरुरत है
तो वो ... सरकार को है ...
साहब को है,

गर ... ये बात ...ये ... समझ गए ... तो
चाइना को ईंट का जबाव पत्थर से मिल जाएगा,

नहीं तो ... वो ...
ईंट मारते रहेगा, गोटी-कंकड़-पत्थर ...
फेंकते रहेगा ... उछालते रहेगा
हमारी ... नाक में दम करता रहेगा,

उठो ... जागो ... जगाओ ... ?
साहब को ... ??
मामूली आदमी तो जागा हुआ है ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, June 26, 2016

कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???

कुछ कमियाँ ...
कुछ नादानियाँ रही होंगी

कुछ भरोसे की ...
तो कुछ आशाओं की बात रही होगी

कुछ न कुछ तो
जरूर
अटपटा ... अनसुलझा-सा ... रहा होगा
हमारे दरमियाँ

वर्ना ... टूट नहीं सकता था
रिश्ता हमारा,

क्यों ?

क्योंकि -
पंखुड़ियों-सा नहीं था
शीशे-सा नहीं था
मिट्टी-सा ... भी .... नहीं था

गर ... था ... तो
सोने-सा था ...
चांदी-सा था
रिश्ता ... हमारा ... साथ हमारा ?
कुछ न कुछ ... तो ... जरूर ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, June 25, 2016

मेरा देश .. बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है ???

कल बहुत शांत था माहौल
शाम से देर रात तक
कहीं भी
गाली-गलौच, झूमा-झटकी, पटका-पटकी
का शोर नजर नहीं आया,

गलियाँ, चौपाल, नुक्कड़, बस अड्डे
लगभग ... सब जगह
शांत थे
और तो और
दारु के अवैध अड्डे भी चिट्ट-पोट नहीं कर रहे थे,

कहीं से भी
अदधि, पउऐ, गिलास ... के लुढकने
टूटने ...
फूटने ...
की आवाज भी सुनाई नहीं दी,

अमन, चैन, भाईचारे,
की उम्मीदें
अभी भी ज़िंदा है,

भाइयों का झगड़ा
शांत हो जाएगा, वे फिर से गले मिलेंगे
दीवाली मनेगी, ईद मनेगी,

फिर से ... पूरे गाँव में
रंग-गुलाल खेले जाएंगे, सेवईंयाँ बांटी जाएंगी
ऐसा ... जान पड़ रहा है ?
मेरा देश .. बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 24, 2016

दो भाई

कल रात
दो भाई ... अतिउत्साह में
आपस में लड़ पड़े थे,

मुद्दा कुछ नहीं था
फिर भी
आपस में फट पड़े थे,

खून .. खंजर .. जूते .. और गालियाँ ...
तमाम चीजें
गवाह बन के ... बिखरी पडी हैं,

पुलिस कार्यवाही हो ...
मगर कैसे ?
दोनों तरफ से
FIR अब तक हुई नहीं है,

शायद
अभी भी
कहीं कोई गुंजाईश दिख रही है
समझौते की,

मल्हम का इंतज़ार है ...
कराह रहे हैं दोनों
दोनों घरों के ... दरवाजे ..
अभी भी .. किसी चाह में खुले पड़े हैं ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 17, 2016

अच्छे दिन ..... !

अच्छे दिन ..... !
-------------------

साहब तो साहब हैं
वो जिस दिन को चाहें ... उसे अच्छा कर दें
और जिसे चाहें ... उसे खराब,

अब जब वो कह रहे हैं
कह रहे थे
कि -
अच्छे दिन आने वाले हैं
तो मान लो ... आएंगे ... जरूर आएंगे,

ये और बात है
तुम्हारे न आएं, हमारे न आएं
पर ... किसी न किसी के तो आएंगे,

टमाटर वालों के आ सकते हैं ?
प्याज वालों के आ सकते हैं ?
दाल वालों के आ सकते हैं ?

पेट्रोल-डीजल वालों के आ सकते हैं ?
इनश्योरेन्स सेक्टरों के आ सकते हैं ?
मीडिया हाउसेस के आ सकते हैं ?

और तो और
बैंकों को चूना लगाने वालों ...
के भी ... आ सकते हैं ... अच्छे दिन ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, June 15, 2016

देश हमारा ... शमशान हो जाएगा ???

गर
हम ... सब ... मुर्दे हो गए तो
देश हमारा ... शमशान हो जाएगा,

इसलिए
कुछ को तो
ज़िंदा रहना ही पडेगा,

तुम रहो या मैं रहूँ
या
कोई और रहे,

किसी न किसी को तो
जलना पडेगा, मशाल बनना पडेगा
गर ऐसा न हुआ तो,

चंहूँ ओर ...
घुप्प अंधेरा छा जाएगा
देश हमारा ... शमशान हो जाएगा ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, June 10, 2016

जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

गिरगिट बदल रहे थे कल तक शहर में रंग
इंसानी रंग देख के, ... हैं हैरत में आज वो ?
... 

न मिले, न जुले,... न बहस हुई
फिर भी छत्तीस का आँकड़ा है ? 

...
दिल को... अब हम कैसे समझाएं 'उदय'
कि - .... वो भी अच्छे हैं .... और वो भी ? 

...
अभी तो चुभा है सिर्फ इक काँटा पाँव में
दो-चार कदम और आगे बढ़ो तो ज़नाब ?
...

उफ़ ! तड़फ भी है खूब, ... औ हैं शिकायतें भी खूब
जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, June 5, 2016

अब दरख्तों को भी छाँव की जरुरत है !

अब दरख्तों को भी छाँव की जरुरत है
पानी ... बूँदों ... और ...
शीतल हवाओं की जरुरत है,

तपन से
जलन से 

सिहरते पत्तों को
फूलों को 

सुकूं भरी बाँहों की जरुरत है 
साये की जरुरत है,

तुम्हारी भी जरुरत है
हमारी भी जरुरत है ..... ??

~ श्याम कोरी 'उदय' 

Tuesday, May 24, 2016

जन लोकपाल ... जान बाकी है ... जिन्दा है ... !

जन लोकपाल
अभी-भी ... जिन्दा है ... लहु-लुहान पड़ा है,

न कराह रहा है ...
न तड़फ रहा है ...
क्यों ? .... क्योंकि - .... वह कोमा में है !

न ड्रिप चढ़ी है, न आई.सी.यू. में है,
संग ... न कोई नर्स है, न ही कोई डॉक्टर है,
 
अगर कुछ है ... तो ...
पत्तों की छाँव है
कभी ठंडी, तो कभी गर्म हवाएँ हैं
जन लोकपाल
पीपल के पेड़ के नीचे
बेसुध पड़ा है
जान बाकी है ... साँसें चल रही हैं ... जिन्दा है ... ,

पीठ पे
खंजर भौंकने वाले
आज भी हाथों में खंजर लिए
खुलेआम ... घूम रहे हैं
शान से ... मान से ... सम्मान से ... ??? 

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, May 8, 2016

दुःख के बादल ...

दुःख के बादल बिखरे हैं
चहूँ ओर ........ आकाश में,

और हम ...
सुख की छतरी
छोटी-छोटी

पकड़ हाथ में
दौड़ रहे हैं ... दौड़ रहे हैं,

जीवन की आपा-धापी में
हम ...
कुछ पकड़ रहे ... कुछ छोड़ रहे हैं,

दुःख के बादल बिखरे हैं
चहूँ ओर ........ आकाश में !!

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, April 6, 2016

'औ' एंड 'आ' ...

'औ' एंड 'आ'  ... !
-------------------
उमर ढल गई, गाल लटग गए
झुर्रियां भी तमाम चम-चमा रही हैं 'यारा,

बालों को रंगने
और
पॉवडर पोतने से
कोई 'स्वीट सिक्सटीन' हो नहीं जाता ?

ख्यालों को छोडो, उड़ानों को छोडो
ये हाल
सिर्फ ... 'औ' का नहीं, 'आ' का भी है ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Tuesday, April 5, 2016

जिन्दगी ...

जिन्दगी ... !
---------
धड़कन 
सांसें
आँगन
खुशियाँ 
जितनी तेरीं - उतनी मेरी, 

फिर क्यूँ ...
दुःख के बादल
आधे तेरे - आधे मेरे ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Monday, April 4, 2016

हॉफ पेंट ...

हॉफ पेंट ... !
----------
हॉफ पेंट हो, या फुल पेंट
हमें क्या !
हमें तो मतलब है
तुम्हारी सोच से, विचारधारा से, 
गर, वो सही, तो तुम सही
वर्ना, ........... सब गलत है ?

~ श्याम कोरी 'उदय' 

Sunday, April 3, 2016

चूनेबाजी ...

चूनेबाजी ... !
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कुछ चेलों ने मिलकर
इक चेले को ... गुरु बनाया
पीठ थप-थपाई ... तिलक लगाया ... और गले में डाली माला
निकल पड़े फिर मिलकर
कत्था-चूना लेकर
देश की भाई अब खैर नहीं
लगना तय है चूना ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, April 1, 2016

लफ्फाज ...

लफ्फाज ... !
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लफ्फाजियों के दम पर 
तू ... कब तक बैठेगा तनकर,

शर्म कर ... झाँक गिरेबां में
तू ... बन बैठा है 'बॉस'
कमीनों
दोगलों
दलालों
ढोंगियों
माफियाओं 
भगोड़ों
कालाबाजारियों और मिलावटखोरों का,

लफ्फाजियां तू छोड़ ... कुछ बो
फसल काटेगी जनता
तू ... कुछ तो ... अच्छा बो !!!

~ श्याम कोरी 'उदय'

Thursday, March 17, 2016

चोरी और सीनाजोरी ....

लघुकथा : चोरी और सीनाजोरी
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( गाँव की चौपाल पर )
सरपंच - पंडित जी नमस्कार ... क्या बात है कुछ उदास-उदास से लग रहे हो ?
पंडित जी - नमस्कार सरपंच साहब ... आओ बैठो ... हाँ ... कुछ उदासी की ही बात है ... बेटा जिसका नाम काफी सोच-विचार कर रखा था कि वह बड़ा होकर 'सत्य' के पथ पर चलेगा तथा अंधेरों में 'प्रकाश' फैलायेगा ... किन्तु वह नाम तो नाम ... कुल को कलंकित कर रहा है ।

सरपंच - अरे ... ऐसा क्या कर दिया लाडले बेटे ने ?
पंडित जी - अब क्या बताऊँ ... बताने में भी शर्म आ रही है ... बेटा शहर जाकर चोरी-चमारी सीख गया है ... ऐसा सुना है कि वह 'गूगल बाबा' के अफ्रीका, आस्ट्रेलिया व अमेरिका स्थित घरों से ... कभी चम्मची चिड़िया, कभी नीली मगरमच्छ, कभी बाज, तो कभी कुछ और चोरी कर-कर के अपने 'फेसबुक वाल' पर पोस्ट कर झूठी वाह-वाही लूटने का प्रयास कर रहा है ... और तो और जब  उसका कोई मित्र या हमदर्द उसे 'आईना' दिखाने का प्रयास करता है तो वह उसके खिलाफ 'दुष्प्रचार व मिथ्या प्रचार' कर बदनाम करने में लग जाता है ... ( पंडित जी अपने सर पर दुखद मुद्रा में हाथ रखते हुए ) ।

सरपंच - इसका मतलब कि वह चोरी के साथ-साथ सीनाजोरी भी कर रहा है !
पंडित जी - बिलकुल सही कहा आपने ... वह 'चोरी और सीनाजोरी' कहावत को चरितार्थ कर रहा है !
~ श्याम कोरी 'उदय'
( कवि व लेखक )

Tuesday, March 15, 2016

भारत माँ की जय ...

भारत माँ की जय
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इसकी माँ की ... उसकी माँ की ... भारत माँ की ...
तुम जय मत बोलो,

गर ... जय बोलो तो
खुद की बोलो
पर ! खुद की जय-जयकार नहीं कोई सुनने वाला
तुम ! ये मत भूलो !!

तुम चमचे हो, या किसी के गमछे हो
कहाँ बैठे हो, कहाँ लटके हो
ज़रा खुद को देखो,

गंद-सड़ान जुबां पे लेकर
तंग गलियों से मन को लेकर
तुम कितनी दूर चलोगे बोलो
अरे ! कुछ तो बोलो !!

गर ! दिल-दिमाग गुलज़ार न हों
तब हम से बोलो
एक बार तुम दिल से
भारत माँ की जय तो बोलो !!

~ श्याम कोरी 'उदय'

Monday, March 14, 2016

जंगल राज ...

जंगल राज
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घोड़ा मारो - घोड़ा मारो
मारो घोड़ा, घोड़ा मारो, 

दम से मारो, जम के मारो, उठा के मारो, पटक के मारो
घोड़ा मारो - घोड़ा मारो,

जंगल अपनी , शेर भी अपना
घोड़ा मारो - घोड़ा मारो !!! 

~ श्याम कोरी 'उदय'