Monday, May 31, 2010

मैं एक लडकी हूं !

मैं जानती हूं
तेरी चाह्त
कि तू बगैर मेरे
जी नही सकता !

पर तेरी चाहत
दिल में ज्यादा है
या आंखों में
समझ नहीं पाती !

तेरी आंखें चुपके से
जब निहारती हैं
मेरे वक्षों को
तब वक्ष मेरे
खुद - व - खुद
उभर जाते हैं !

हां जानती हूं
जब विदा होती हूं
तब तेरी आंखें
कहां होती हैं
तेरी आंखों की मस्ती में
कमर मेरी
न चाह कर भी
हिरणी सी बलख जाती है !

हां सब जानती हूं
मैं एक लडकी हूं !!

( इस रचना में एक लडकी के मनोभाव को पढने की कोशिश की है ... पर शायद मुझे कुछ कमी सी लग रही है ... पर क्या ??? )

Sunday, May 30, 2010

ख्वाबों की बस्ती

नई राह, नये हौसले
नये जज्बे, नये कदम
चलो चलें हम
नई सुबह के साथ
उस ओर, जहां है
मेरे ख्वाबों की बस्ती
सच, आतुर हूं मैं
पहुंचने के लिये
अपनी नई मंजिल पर
ख्वाबों के साथ
ख्वाबों की बस्ती में !

Friday, May 28, 2010

फ़रिश्ते ...

आज पहली बार
नया चेहरा ...
साहब, मत पूछो -
मां बीमार, भाई थाने में
गरीब हूं, असहाय हूं !

मां मर जाये
भाई जेल में सड जाये
मैं अनाथ हो जाऊं
इसलिये यहां खडी हूं !

जब कुछ रहेगा ही नहीं
तब इस जिस्म का -
क्या अचार डालूंगी ?

बोलो साहब बोलो
क्या दे सकते हो
घंटे, दो घंटे, या पूरी रात
हजार, दो हजार, या दस हजार
पूरे दस हजार ! वाह साहब वाह !!

हाथ जोडती हूं
पहले मेरे साथ चलो
मेरा दर्द मिटा लूं
तब ही तो तुम्हे
खुशियां बांट पाऊंगी !

सीधा थाने, मुंशी से -
बाहर ला मेरे भाई को
ले पकड, दो की जगह ढाई हजार !

भाई बाहर ...
ले सात हजार
दवाई, राशन, घर ले जा !

छोटा भाई
उम्र पंद्रह साल
खडा था, जुंए के अड्डे पे
खैर छोडो ... !

चलो साहब ...
आप फ़रिश्ते हैं
सर-आंखें, लाजो-हया
तन-मन, रूह-जिगर
खिदमत में, हाजिर हैं !!

प्रेम-वासना

फ़ूल-खुशबू
रात-चांदनी
धरा-अंबर
हम-तुम

गीत -सुहाने
बातें-पुरानीं
नौंक - झौंक
हम-तुम

सर्द-हवाएं
गर्म-फ़िजाएं
तपता - बदन
हम-तुम

गर्म - सांसें
सर्द - बाहें
प्रेम-वासना
हम - तुम !

Thursday, May 27, 2010

... लगता है "किशोर अजवानी" श्रेष्ठ ब्लागर हैं !!!

अभी-अभी मैं "ब्लागदुनिया" का भ्रमण कर रहा था तो पहुंच गया "खामख्वाह" ब्लाग पर ... हां भाई अपने टी.व्ही. एंकर श्री किशोर अजवानी जी के ब्लाग पर ... जबरदस्त पोस्ट लगाई है ... "चलिये लिस्ट बनाएं"... वहां जाने की जरुरत नहीं है ये है उनकी पोस्ट :-

सैयदजी ने आइडिया दिया है तो चलिए लिस्ट बनाते हैं अजीब नामों की। उसके बाद रैंकिंग कर लेंगे वोट डाल के, क्यों? बताइए क्या है आप के शहर का मज़ेदार-सा अजीब नाम। दिल्ली का तो ख़ुशदीपजी ने 'गंदा नाला' बताया। नेक्सट?

... इस पोस्ट की तारीफ़ करने वाले एक-दो टिप्पणीकार नहीं वरन चौदह-पंद्रह हैं ... वाह वाह ... वाह वाह ...

... क्या गजब पोस्ट है और क्या गजब टिप्पणीकार हैं ....

... क्या ये वही ब्लागर तो नहीं जो "दिल्ली ब्लागर मिलन समारोह" में संभवत: अपरिहार्य कारणों से उपस्थित नहीं हो पाये रहे होंगे....

... आज की पोस्ट देखकर तो मुझसे तारीफ़ किये बिना नही रहा जा रहा ....

... सचमुच ... लगता है "किशोर अजवानी" श्रेष्ठ ब्लागर हैं !!!

ख़्वाब

कुछ ख़्वाब थे मुट्ठी में
रेत के कणों की तरह
शनै: शनै: कब बिखरे
सफ़र में एहसास हुआ
बस, कुछ बचा है
तो एक ख़्वाब जहन में
क्या जहन में बसा ख़्वाब
ले जायेगा मंजिल तक
अब वो पल हैं सामने
जो मुझे झकझोर रहे हैं
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
जहन में बसा ख़्वाब
भी तो आखिर ख़्वाब है !

Wednesday, May 26, 2010

शेर

टूटा था कभी, टूटेगा 'उदय'
सफ़र में फ़ासले हैं, गुजर ही जायेंगे

.......................................................................

देखना चाहते हैं हम भी, तेरी 'इबादत' का असर
कम से कम, इसी बहाने 'खुदा' के दीदार तो होंगे ।

.......................................................................

मेरी हस्ती का मत पूछो, कहां तक है मेरी हस्ती
जहां पे पस्त है दुनिया, शुरु होती मेरी हस्ती ।

कार्टूनिष्ट अजय सक्सेना "कुमार जलजला" की चपेट में !!!

.... लो भाई एक और घटना/दुर्घटना ... लोग मुझे कहते हैं "कुमार जलजला" का पीछा छोड दो ... मैं तो तैयार हूं ... पर कुमार जलजला को क्यों नहीं समझाते ???

.... ऎसा लगा कि वह "दिल्ली ब्लागर मिलन" के समय किसी ढाबा से "दाल-रोटी" खा कर निकल लिया ...पर वो निकला कहां ... फ़िर धमक आया है .... इस बार उसने निशाना बनाया है कार्टूनिष्ट अजय सक्सेना को ... उनके ब्लाग की पोस्ट फर्जी ब्लागरों का पुतला दहन...!... पर बे-वजह बिना ब्रेक की गाडी की तरह पिल पडा है वहां पर उसकी टिप्पणी ... लो खुद ही पढ लो भाई ....

Kumar Jaljala, May 25, 2010 10:49 AM

आपके ब्लाग में ऊपर कही दो भैंस शौक फरमा रही है। इन्ही भैंसों में से कोई एक आपकी अक्ल को चरने के लिए ले गई है। जनाब हमने तो सुना था कि पीएम का पुतला जलता है, डीएम का पुतला जलता है। पहली दफा देख रहे हैं कि लोग बेनामी लोगों का पुतला जला रहे हैं। यानी जिनका कोई नाम नहीं है उनका पुतला दहन... और वाह-वाह करने वाले हजरत भी आपको दाद दे रहे हैं... जरा अक्ल तो लगाइए.
आपको अभी पक्का और कायदे का कार्टूनिस्ट बनने में वक्त लगेगा. किसी उस्ताद से शागिर्दी लीजिए। ब्लाग पर तोते-मिट्ठू, कुत्ते-बिल्ली की फोटो चस्पा कर लेने से कोई कार्टूनिस्ट नहीं बन जाता है.

.... अब क्या कहें ... मुझे तो आप लोग चुप करा देते हो .... पर इस "कुमार जलजला" को क्यों नहीं समझाते ... उसकी आदत ही हो गई है "न्यूसेंस" फ़ैलाने की ... !!!!

Tuesday, May 25, 2010

चमचागिरी !

एक दिन अचानक ... कप्तान साहब गुस्से-गुस्से में ... सरप्राईस चेक हेतु एक थाने में गुस गये और "सरप्राईस चेकिंग" करने लगे, थानेदार भौंचक्का रह गया ... सोचने लगा आज तो नौकरी गई ... फ़ाईल-पे-फ़ाईल ... पेंडिग-पे-पेंडिग ... शिकायत-पे-शिकायत ... कप्तान साहब भडकने लगे ... किसने तुझे थानेदार बना दिया ? ... क्या हाल कर रक्खा है थाने का ! ... कुछ काम नहीं करता है .... स्टेनो को आदेश देते हुये इसका सस्पेंशन आर्डर कल सुबह ११ बजे मेरी टेबल पर होना चाहिये ... गुस्से में उठने लगे ... तभी थानेदार ने सीधे पैर पकड लिये ... माफ़ करो हुजूर आपका बच्चा हूं ... आईंदा से ऎसी गल्ती नहीं होगी ... पैर छोड ही नहीं रहा था ...तब कप्तान साहब गुस्से में दूसरे पैर से एक लात उसके पिछवाडे में जडते हुये चिल्लाये छोडो पैर को ... थानेदार उचट के गिर पडा ... थानेदार संभल कर खडा हुआ ... कप्तान साहब जाने लगे और गाडी में बैठ गये ... थानेदार ने सल्यूट मार कर विदा किया !

थानेदार वापस आकर अपने चैंबर में सिर पकड कर बैठ गया सोचने लगा ... आज तो नौकरी गई ... कल सुबह सस्पेंड हो जाऊंगा ... सारे स्टाफ़ को सामने बुला कर भडकने लगा तुम लोग कुछ काम-काज करते नहीं हो, तुम्हारी बजह से आज मेरी बैंड बज गई और कल सुबह सस्पेंड होना भी तय है ... मुंह लगा एक मुंशी बोला साहब - कल सुबह सीधे कप्तान साहब के बंगले पर पहुंच जाओ, पैर पकड लेना ... साहब और मैमसाहब दोनों के ... कुछ दुखडा-सुखडा सुना देना ... थानेदार रात भर करवट बदल-बदल कर उपाय सोचने लगा ... उपाय मिल गया !

दूसरे दिन सुबह साढे-नौ बजे कप्तान साहब के बंगले पर ... साहब के पैर पडे ... मैमसाहब के पैर पडे ... और मिठाई का डिब्बा भेंट करने लगा ... कप्तान साहब गुस्से में ... क्या है ? क्यों आया है ?? ... हुजूर माई-बाप आपका आशिर्वाद लेने आया हूं ... पिछले चार-पांच साल से कमर दर्द से परेशान था ... अच्छे-से-अच्छे डाक्टर को दिखाया ... कमर ठीक ही नहीं हो रही थी ... कल आपने जो लात मारी, उससे तो "चमत्कार" ही हो गया हुजूर ... कमर का दर्द रफ़ू-चक्कर हो गया ... आपने मुझे नया जीवन दिया है ... अब मैं सारा जीवन आपकी सेवा में गुजारना चाहता हूं ... चल-चल बहुत हो गया, इस बार तो तुझे माफ़ कर देता हूं ... जा अच्छे से काम करना ... जी माई-बाप !!

इम्तिहां

पता नहीं क्यूं जिंदगी
हर पल इम्तिहां लेती है
कभी अपने तो कभी गैर
झकझोर देते हैं जज्वातों को
मन की उमंगे-तरंगें
लहरों की तरह
कभी इधर तो कभी उधर
न जाने क्यूं कदम मेरे
साथ चलने में ठिठक जाते हैं !!!

Monday, May 24, 2010

बंधुवा मजदूर ( पार्ट-१ )

"बंधुवा मजदूर" समाज में व्याप्त एक समस्या है, समस्या इसलिये कि मजदूर अपनी मर्जी का मालिक नहीं रहता वह हालात व परिस्थितियों के भंवर जाल में फ़ंस कर "बंधुवा मजदूर" बन जाता है, होता ये है कि अक्सर गरीब इंसान खेती-किसानी के मौसम के बाद बेरोजगार हो जाता है तब उसके पास खाने-कमाने का कोई जरिया नजर नही आता तो वह कुछ "लेबर सरदारों" के चंगुल में फ़ंस कर मजदूरी करने के लिये प्रदेश से बाहर चला जाता है और वहां उसकी स्थिति "बंधुवा मजदूर" की हो जाती है ।

प्रदेश से बाहर कमाने-खाने जाने वाला मजदूर बंधुवा अर्थात बंधक मजदूर कैसे बन जाता है, होता ये है कि वह जिस "लेबर सरदार" की बातों में आकर बाहर कमाने-खाने जाता है वह "सरदार" उस मजदूर की मजदूरी के बदले में मालिक से छ: माह अथवा साल भर की मजदूरी रकम एडवांस में ले लेता है जिसका कुछ अंश वह मजदूर को दे देता है तथा शेष रकम को वह अपने पास रख लेता है, मजदूर वहां काम करने लगता है और "सरदार" वापस चला जाता है।

होता दर-असल ये है कि "मालिक और लेबर सरदार" के बीच क्या बात हुई तथा क्या लेन-देन हुआ इससे वह मजदूर अंजान रहता है तथा काम करते रहता है, जब वह तीन-चार माह काम करने के पश्चात घर-गांव वापस जाने को कहता है तो मालिक उसे जाने से मना कर देता है और कहता है "... तेरा छ: माह का मजदूरी दे चुका हूं तुझे छ: माह काम करना ही पडेगा ..." ... चूंकि मजदूर के पास वापस जाने के लिये रुपये नहीं होते हैं और उसे उसके तीन-चार माह के काम का मेहनताना नहीं मिला होता है तो वह मजबूर होकर काम जारी रखता है जब तक "लेबर सरदार" नहीं आ जाये तब तक वह "बंधुवा मजदूर" बनकर काम करते रहता है।

रास्ते

आज फ़िर रास्ते
दो-राहे से लगते हैं
इधर या उधर
तय करना कठिन
कदम उठें
तो किस ओर
ये उलझनें हैं मन में
हार भी सकता हूं
जीत भी सकता हूं
क्या सचमुच
यही जिंदगी है !!!

Sunday, May 23, 2010

क्या फ़र्क पडता है "शर्ट या टी-शर्ट" ..... लाल तो लाल है !!!

... मेरे धुरंधर "टिप्पणीकार" साथियों .... क्या फ़र्क पडता है शर्ट या टी-शर्ट ..... लाल तो लाल है !!!

... विगत कुछ दिनों से "ब्लागदुनिया" में जलजले की भांति आने वाला "टिप्पणीकार" Kumar Jaljala आखिर मौन क्यों है ????

... प्रश्न यहां राजीव तनेजा जी का नहीं है ... और न ही शर्ट / टी-शर्ट का है ... प्रश्न ये है कि आखिर "कुमार जलजला" कल ढाबे से "दाल-रोटी" खाकर किस अज्ञात वास में चला गया .... ????

... प्रिय साथी "कुमार जलजला" मैंने पिछली दो-तीन पोस्ट सिर्फ़ इसलिये लगाईं कि किसी भी तरह आप "मोटीवेट" होकर कल के ब्लागर मिलन समारोह में "रू-ब-रू" अपनी अपस्थिति दर्ज कराओ ... मेरा अंतर्मन कह रहा है कि न तो तुम फ़्राड हो और न ही फ़र्जी हो .... ब्लागवुड में तो ये सब चलते रहता है ... खैर छोडो ....

....
"कुमार जलजला" मैं तो आपका ब्लागवुड में स्वागत कर रहा हूं और आशा है कि अन्य साथी / ब्लागर / टिप्पणीकार भी ......!!!!!!!!

"लाल टी-शर्ट" ... कहीं जलजला तो नहीं ????

कुमार जलजला का स्टेटमेंट : - "......... मैं लाल रंग की टी शर्ट पहनकर आऊंगा....."!!

... लो भाई जी एक व्यक्तित्व "लाल टी-शर्ट" में दि्ल्ली हिन्दी ब्लागर मिलन समारोह में ....

... धुरंधर ब्लागर खामोश .... आयोजन समीति मौन ....

.... पर सूत्र व गुप्तचर सक्रिय .... परिणाम अपेक्षित ..... !!! ...... ???

ब्रेकिंग न्यूज .... दिल्ली ब्लागर मिलन समारोह में चार चांद लगे !!!

अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय "माद्दा" रखने वाले कुछ "धुरंधर ब्लागर" फ़िलहाल दिल्ली में चल रहे "ब्लागर मिलन समारोह" से नदारद हैं ... लेकिन कुछ उपस्थित "धुरंधर ब्लागरों" ने समारोह में चार चांद लगाने का प्रयास किया है गोपनीय तौर पर आयोजन समीति के सदस्यों से चर्चा पर नदारद ब्लागरों के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी ...

... वहां यह भी सुना जा रहा है कि कुछ धुरंधर ब्लागर जो अपने आप को धुरंधर समझते हैं पर जिनका जनाधार निरंतर घटते जा रहा है वे जान-बूझ कर इस आयोजन से दूरियां बना कर रखे हुये हैं और अपनी अनुपस्थिति के संबंध में यह खबर प्रचारित किये हुये हैं कि उनकी टीम "समर वैकेशन" मनाने बैंकाक दौरे पर है ...

... विश्वस्त सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य "ब्लागिंग" की एक नई "आचार-सहिंता" का निर्माण करना है जिससे बेनामी / अनामी / बुर्खाधारी / पसंदी-नापसंदी लाल जैसे टिप्पणीकारों की न्यूसेंस पैदा करनी वाली अव्यवहारिक कार्यवाहियों पर पूर्णत: अंकुश लगाया जा सके ...

... गुप्त सूत्र से मिल रही जानकारी के अनुसार "कुमार जलजला" नाम का तथाकथित टिप्पणीकार भी आयोजन स्थल के आस-पास उपस्थित रहकर गतिविधियों पर निगाह रखे हुये है पर उसका वहां उपस्थित रहने का स्पष्ट कारण परिलक्षित नहीं हो पा रहा है पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह "सरेंडर" भी कल सकता है ...

... अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय "माद्दा" रखने वाले कुछ धुरंधर ब्लागरों से संपर्क का प्रयास किया गया जिनका कहना है कि यह प्रथम प्रयास है जिसके आयोजन की जिम्मेदारी तीन-चार अंतर्राष्ट्रीय, आठ-दस राष्ट्रीय व शेष प्रदेश स्तरीय "माद्दा" रखने वाले ब्लागरों के जिम्मे सौंपी गई है ... आयोजन के दूसरे चरण में "ब्लागर मिलन समारोह" इंगलेंड अथवा कनाडा में आयोजन किये जाने पर विचार चल रहा है ...

... फ़िलहाल दिल्ली में बढती हुई आतंकी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुये विशेष सुरक्षा इंतजाम के बीच आयोजन सफ़लता पूर्वक जारी है ... ब्लागरों की बढती उपस्थिति ने आयोजन में चार चांद लगा दिये हैं .... बाहर कुछ मीडिया कर्मी भी सक्रिय हैं ... मिलते हैं ब्रेक के बाद .... कुछ नई जानकारियों के साथ ... !!!

... कहां हो शिल्पकार भाई !!!


... न फ़ोन पर ... न चैट पर ... न ब्लाग पर ... न टीका-टिप्पणी पर ... ... कहां हो शिल्पकार भाई !!!!!!

.... अपने "गुप्तचर" सूत्रों से संपर्क किया तो एक ई-मेल आ गया .... देखा तो एक फ़ोटो ....

.... लगता है दिल्ली पहुंच गये हो ... बधाई व शुभकामनाएं .....

..... दिल्ली में उपस्थित व पहुंच रहे सभी ब्लागर साथियों को ... बधाई व शुभकामनाएं ....

... ढोल बाजे ढोल कि डमडम बाजे ढोल ....

.... हो जायेगी बल्ले बल्ले ...

.... जय हो ..... जय हो ...... !!!!!!!!!!!!!

Saturday, May 22, 2010

.... कुमार जलजला डरपोंक है !!!

कुमार जलजला ने एक और "टिप्पणी" (जो पिछली पोस्ट पर दर्ज है) दिल्ली में आयोजित ब्लागर मिलन कार्यक्रम में शामिल हो रहे ब्लागर साथियों के नाम छोडी है जो "हू-व-हू" इस प्रकार है : -

Kumar Jaljala said...

आप लोग मेरी वजह से ब्लागर मीट में आने का कार्यक्रम न छोड़े. वह तो अविनाश वाचस्पति साहब ने ही अपनी पोस्ट में लिखा था कि जलजला मौजूद रहेगा इसलिए मैं दिल्ली पहुंच गया था. अब लौट रहा हूं. आप सभी लोग लाल-पीली-नीली जिस तरह की टीशर्ट संदूक से मिले वह पहनकर कार्यक्रम में पहुंच सकते हैं.
यह दुनिया बड़ी विचित्र है..... पहले तो कहते हैं कि सामने आओ... सामने आओ, और फिर जब कोई सामने आने के लिए तैयार हो जाता है तो कहते हैं हम नहीं आएंगे. जरा दिल से सोचिएगा कि मैंने अब तक किसी को क्या नुकसान पहुंचाया है. किसकी भैंस खोल दी है। आप लोग न अच्छा मजाक सह सकते हैं और न ही आप लोगों को सच अच्छा लगता है.जलजला ने अपनी किसी भी टिप्पणी में किसी की अवमानना करने का प्रयास कभी नहीं किया. मैं तो आप सब लोगों को जानता हूं लेकिन मुझे जाने बगैर आप लोगों ने मुझे फिरकापरस्त, पिलपिला, पानी का जला, बुलबुला और भी न जाने कितनी विचित्र किस्म की गालियां दी है. क्या मेरा अपराध सिर्फ यही है कि मैंने ज्ञानचंद विवाद से आप लोगों का ध्यान हटाने का प्रयास किया। क्या मेरा अपराध यही है कि मैंने सम्मान देने की बात कही. क्या मेरा यह प्रयास लोगों के दिलों में नफरत का बीज बोने का प्रयास है. क्या इतने कमजोर है आप लोग कि आप लोगों का मन भारी हो जाएगा. जलजला भी इसी देश का नागरिक है और बीमार तो कतई नहीं है कि उसे रांची भेजने की जरूरत पड़े. आप लोगों की एक बार फिर से शुभकामनाएं. मेरा यकीन मानिए मैं सम्मेलन को हर हाल में सफल होते हुए ही देखना चाहता हूं. आप सब यदि मुझे सम्मेलन में सबसे अंत में श्रद्धाजंलि देते हुए याद करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा. मैं लाल टीशर्ट पहनकर आया था और अपनी काली कार से वापस जा रहा हूं. मेरा लैपटाप मेरा साथ दे रहा है.

.... क्या कुमार जलजला डरपोंक है ... जो दिल्ली छोडकर भाग रहा है !!!

.... "कुमार जलजला" फ़्राड टिप्पणीकार है !!!

ब्लागदुनिया में विगत कुछ समय से Kumar Jaljala नाम का फ़्राड टिप्पणीकार सक्रिय है जो बे-वजह ही किसी भी ब्लाग पर टिप्पणी दर्ज कर "न्युसेंस" को जन्म दे रहा है और तो और कभी-कभी तो उसकी भाषा ही असभ्य रहती है ... साथ-ही-साथ अभी कुछ दिनों पहले ही उसने "महिला ब्लागर" की प्रतियोगिता कराने संबंधी टिप्पणी दर्ज कर एक नये विवाद को जन्म देने का भरसक प्रयास किया और बाद में क्षमा याचना करते भी घूमते दिखाई दिया ... और तो और विगत दिनों वह एक "धुरंधर ब्लागर" के स्वप्न में आकर भी परेशान करते देखा गया ।

.... अभी-अभी उसकी एक ताजा टिप्पणी दिख रही है जिसमें उसने फ़िर से सुर्खियों में बने रहने का प्रयास किया है उसकी "ताजा-तरीन" टिप्पणी के अंश (जो
दिल्ली के ब्लागर इंटरनेशनल मिलन समारोह के संबंध में हैं) इस प्रकार हैं : - " .... मैं कल के ब्लागर सम्मेलन में हर हाल में मौजूद रहूंगा लेकिन यह मेरा दावा है कि कोई मुझे पहचान नहीं पाएगा..... यह तय है कि मैं मौजूद रहूंगा. आपकी सुविधा के लिए बताना चाहता हूं कि मैं लाल रंग की टी शर्ट पहनकर आऊंगा....." ...... देख के ब्लागर साथियों कहीं धोखे-धडाके "लाल टी-शर्ट" पहन कर मत पहुंच जाना ... कहीं ऎसा न हो कि "लेने-के-देने" पड जायें .... !!!

अंतर्द्वंद

मन में चल रहा
अंतर्द्वंद

मुझे झकझोर रहा है
कभी हार, तो कभी जीत रहा है
ये द्वंद, सचमुच अंतर्द्वंद है
मन और मैं
हार उसकी या मेरी
जीत उसकी या मेरी ... !!!

Friday, May 21, 2010

वक्त

आज फ़िर, वक्त का ठहराव है
कहीं धूप तो कहीं छांव है
दिखते हैं रास्ते मंजिल की ओर
हैं तो मंजिलें, पर धुंध-सा छाया है

Thursday, May 20, 2010

खजाना

दो भिखारी जिसमे एक अंधा दूसरा लंगडा था दोनों दिन भर इधर-उधर घूम-घूम कर भीख मांग कर शाम को अपने मुकाम शिव मंदिर के पास पीपल के पेड के नीचे रात काटते थे यह सिलसिला पिछले सात-आठ सालों से चल रहा था इसलिये दोनों में गाडी मित्रता हो गई थी दोनों रात का खाना एक साथ मिल बांट कर ही खाते थे, दोनो ही सुख-दुख में एक-दूसरे के हमसफ़र थे।

एक दिन पास में ही माता के मंदिर के पास अंधा भीख मांग रहा था वहीं एक बीमार आदमी दर्द से कराह रहा था लगभग मरणासन अवस्था में था अंधा भिखारी उसके पास जाकर पानी पिलाने लगा और भीख में मिली खाने की बस्तुएं उसे खाने देने लगा ... दो बिस्किट खाते खाते उसकी सांस उखडने लगी ... मरते मरते उसने बताया कि वह "डाकू" था तथा उसने एक "खजाना" छिपाकर रखा है उसे निकाल लेना, खजाना का "राज" बताने के बाद वह मर गया ...

.... अंधा भिखारी सोच में पड गया .... शाम को उसने यह राज अपने मित्र लंगडे भिखारी को बताया ... दूसरे दिन सुबह दोनों उस मृतक के पास पंहुचे उसकी लाश वहीं पडी हुई थी दोनों ने मिलकर भीख में मिले पैसों से उसका कफ़न-दफ़न कराया और खजाने के राज पर विचार-विमर्श करने लगे ...

... पूरी रात दोनों खजाने के बारे में सोचते सोचते करवट बदलते रहे ... सुबह उठने पर दोनों आपस में बातचीत करते हुये ... यार जब हमको खजाने के बारे में सोच-सोच कर ही नींद नहीं रही है जब खजाना मिल जायेगा तब क्या होगा !!! .... बात तो सही है पर जब "खजाना" उस "डाकू" के किसी काम नहीं आया तो हमारे क्या काम आयेगा जबकि "डाकू" तो सबल था और हम दोनों असहाय हैं ...

... और फ़िर हमको दो जून की "रोटी" तो मिल ही रही है कहीं ऎसा हो कि खजाने के चक्कर में अपनी रातों की नींद तक हराम हो जाये ... वैसे भी मरते समय उस "डाकू" के काम खजाना नहीं आया, काम आये तो हम लोग .... चलो ठीक है "नींद" खराब करने से अच्छा ऎसे ही गुजर-बसर करते हैं जब कभी जरुरत पडेगी तो "खजाने" के बारे में सोचेंगे ...... !!!

( इस कहानी में जाने क्यूं मुझे खुद कुछ अधूरापन महसूस हो रहा है .... पर क्या समझ नहीं रहा ... कहानी की "थीम" या "क्लाइमैक्स" ....)

अर्जुन व कर्ण ... बलशाली कौन ???

चलो आज एक सुनी-सुनाई प्रस्तुत है : -

महाभारत काल में रणभूमि में कौरव व पाण्डवों के बीच युद्द चल रहा था .... आमने-सामने अर्जुन व कर्ण ... अर्जुन व कर्ण जब एक-दूसरे पर वाण चलाते तो वार तो कट जा रहा था ... पर अर्जुन के वार से कर्ण का रथ चार कदम पीछे चला जाता था और कर्ण के वार से अर्जुन का रथ दो कदम पीछे जाता था ... इसी बात पर विश्राम के समय में अर्जुन इठलाते हुये श्रीकृष्ण से कहते हैं कि देखिये आप कहते हैं कि कर्ण मुझसे भी ज्यादा बल शाली है, देखा आपने आज मेरे आक्रमण से कर्ण का रथ चार कदम पीछे और उसके आक्रमण पर अपना रथ मात्र दो कदम पीछे जा रहा था यह प्रमाणित हो रहा है कि मैं कर्ण से ज्यादा बलशाली हूं ... श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये कहते हैं ... हे वत्स अर्जुन ये तुम्हारा अहं बोल रहा है मैं अब भी कहता हूं कर्ण ज्यादा बलशाली है वो इसलिये जब तुम्हारे रथ पर हनुमान जी का ध्वजारूपी जो झंडा लगा है उस पर उनका आशिर्वाद है और साक्षात मैं तुम्हारा सारथी हूं फ़िर भी तुम्हारा रथ पीछे चला जा रहा है इससे अब तुम स्वयं अंदाजा लगा सकते हो कि कौन ज्यादा बलशाली है .... यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो ..... !!!!

Tuesday, May 18, 2010

यौन शिक्षा की पाठशाला (पार्ट-३)

यौन शोषण क्या है ?

यौन शोषण की एक बृहद परिभाषा है किंतु यहां पर बच्चों के यौन शोषण पर प्रकाश डालना आवश्यक है, सामान्य तौर पर लडके व लडकियों दोनो को ही यौन शोषण का सामान्य ज्ञान दिया जाना चाहिये क्योंकि इसके शिकार दोनों ही हो सकते हैं।

यौन शोषण से तात्पर्य बच्चों के गुप्तांगों से छेडछाड करना, बेवजह चिपकना,चूमना, गले लगा लेना, अश्लील बातें करना या फ़िर उन्हें अपने गुप्तांगों के संपर्क में लाना, इत्यादि।

लडकियों का यौन शोषण बडे उम्र के पुरुष या महिला द्वारा किया जा सकता है और लडकों का यौन शोषण सामान्यतौर पर बडे उम्र के पुरुषों द्वारा या न्यूली मैच्योर लडकी द्वारा किये जाने की संभावना रहती है।

यौन शोषण को विकृत मांसिकता का धोतक मान सकते हैं किंतु कभी कभी तत्कालीन उपजी सेक्सुल उत्तेजनाओं के कारण भी यौन शोषण की घटनाएं हो जाती हैं।

यौन शोषण एक दण्डनीय अपराध है बालिग व नाबालिग दोनों ही अपराध के लिये दोषी हो सकते है।

यौन विकास, यौन शोषण, यौन अपराध का सामान्य ज्ञान ग्रोईंग बच्चों को दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।

Monday, May 17, 2010

अजब तेरी लीला - अजब तेरे खेल

... हुआ ये कि कल सुबह सुबह गिरीश बिल्लोरे जी के अमरकंटक के जंगल में विकराल व औघड रूपधारी बाबा के रूप में देखे जाने की खबर पर ... उनकी पहचान के लिये एक टीम उनके इर्द-गिर्द लगाई गई थी .... कल शाम को बाबा जी के आश्रम में आशीर्वाद का सिलसिला जारी था लगभग पांच सौ भग्तों का तांता लगा था हमारी गुप्तचर टीम के पांच सदस्य वहीं मौजूद थे .... तभी अचानक गिरीश बिल्लोरे रूपी बाबा (पहचान नहीं हो पाई थी) ने सभी भग्तों को एकाग्रचित करते हुये कहा कि :-

"प्रिय पुत्रों, मुझे अभी अभी एक विशेष संदेश मिला है ... किसी ब्लागजगत रूपी संसार में कुछ बेनामी/अनामी/बुर्खाधारी/धूर्त/नालायक/विघ्नसंतोषी/दकियानूसी लोगों का आतंक व्याप्त हो गया है जिससे ब्लागजगत का माहौल अत्यंत दूषित हो रहा है ... वहां पहुंच कर मुझे व्याप्त अनियमितताओं को दूर कर एक खुशनुमा वातावरण बनाना है ... इसलिये मैं अब विदा ले रहा हूं ... परमपिता परमेश्वर श्री अघोरेश्वर महादेव की जय ... .... ... "

............. ...... ..... .... .... .... ..... बाबा जी सबकी आंखों के सामने से बैठे बैठे अद्रश्य हो गये ... सबकी आंखें फ़टी-की-फ़टी रह गईं ... एक घनघोर आश्चर्य .... ... यह खबर हम तक पहुंच ही रही थी तब तक दूसरी हाट लाईन पर यह संदेश मिला कि बिल्लोरे जी जबलपुर में दिखाई पडे .... वाह ... वाह .. अदभुत ... अजब तेरी लीला - अजब तेरे खेल .... जय जय श्री अघोरेश्वर महादेव की जय .... !!!!

फ़ूल-खुशबू !

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भीड में - तन्हाई में , तुम-हम मिलते रहेंगे
सफ़र है जिंदगी का, फ़ूल-खुशबू संग-संग चलते रहेंगे ।

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ब्रेकिंग न्यूज ... एक ब्लागर को केन्द्रीय मंत्रालय मिलने के आसार !!!

अभी-अभी विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि "ब्लागिरी" की बढती सक्रियता को देखते हुये कल दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में काफ़ी चर्चा रही ... देर रात आपात बैठक आयोजित हुई जिसमें लगभग दो घंटे तक विचार विमर्ष के बाद यह निर्णय हुआ कि किसी एक "धुरंधर ब्लागर" को राज्यसभा की सदस्यता देते हुये सीधा मंत्रिमंडल में शामिल किया जाये ... मंत्रालय की बात पर यह तय हुआ कि संचार के क्षेत्र में बढ रही अनियमितताओं को देखते हुये "संचार मंत्रालय" का स्वतंत्र प्रभार दिया जाना उचित होगा ...

... समस्या ये आ गई कि किस "ब्लागर" को ये जिम्मा सौंपा जाये ... इस सिलसिले में आज राजनैतिक सलाहकारों ने अपने अपने अभिमत व्यक्त किये ... तीन ब्लागरों के नाम सुझाये गये जिसमें दिल्ली, उत्तरप्रदेश व छत्तीसगढ के एक एक धुरंधर ब्लागर के नाम सामने आये .... आधे घंटे की गुप्त चर्चा के बाद छत्तीसगढ के एक धुरंधर ब्लागर का नाम तय हुआ ... नाम तय होते ही सीधा फ़ोन से संपर्क साध कर छत्तीसगढ के धुरंधर ब्लागर को दिल्ली आमंत्रित किया गया है ...

... इस सिलसिले में नामांकित ब्लागर से टोह लेने का प्रयास किया गया जो अनभिज्ञता जाहिर करते नजर आये ... पर सूत्रों से यह स्पष्ट हुआ कि दिल्ली जाने के लिये तत्काल कोटे से रिजरवेशन करा लिया गया है और दिल्ली जाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है ... हमारी तो शुभकामनाएं उनके साथ हैं और आशा करते हैं शीघ्र ही यह खुशखबरी हकीकत का रूप ले ... संपूर्ण ब्लागजगत के लिये यह हर्ष की बात है ... जय जय ब्लागजगत ... जय जय छत्तीसगढ !!!
(निर्मल हास्य)

Sunday, May 16, 2010

ब्रेकिंग न्यूज ...... गिरीश बिल्लोरे अमरकंटक में देखे गये !!!

विगत दिनों ब्लागजगत के धुरंधर ब्लागर भाई गिरीश बिल्लोरे जी अचानक गायब हो गये ... ऎसा लगा कि आस-पास ही कोई जरुरी काम निपटा रहे होंगे ... पर इसी बीच ताजा खबर "चर्चा पान की दुकान पर" मिली कि वो गुम गये हैं "गुमशुदगी" दर्ज की जाकर तलाश की जा रही है ... कुछ पल के लिये तो यकीन ही नही हुआ कि यह खबर सही है ... अक्सर होता है "सदमे" पहुंचाने वाली खबरें त्वरित हजम नहीं होती हैं ... पर तनिक सोच-विचार के बाद ही हमने भी अपने "गुप्तचर" पूरे देश में लगा दिये ... देश से बाहर जाने का तो सवाल ही नही उठता था क्योंकि वो अपना "पासपोर्ट" पिछली मीटिंग के समय ललित भाई के "गेस्ट हाऊस" पर ही छोड गये थे

... अभी अभी विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि गिरीश बिल्लोरे जी अमरकंटक की जंगल में एक "साधू" के भेष में देखे गये हैं ... पर हमारे गुप्तचर उनके पास जाने पहचान कर पाने में संकोच कर रहे हैं उनका कहना है कि बिल्लोरे जी "विकराल साधू" का रूप धारण किये हुये हैं और उनके पास सुबह चार बजे से ही भगतों की भीड लगी हुई है ... उनके भय का एक कारण यह भी बता रहे हैं कि साधू बहुत ही विकराल व औघड रूप धारी है अगर वो बिल्लोरे जी हुये तो क्रोध में भष्म भी कर सकते हैं ... गुप्तचरों को सावधानी पूर्वक उनके इर्द-गिर्द ही रह कर पल पल की जानकारी देने की हिदायत दी गई है .... साथ ही साथ एक विशेष दल जिसमें बिल्लोरे जी के बचपन का एक "लंगोटिया" यार भी शामिल है अमरकंटक रवाना किया गया है ताकि पहचान में कोई चूक हो ... चूक होने पर लेने-के-देने भी पड सकते हैं ...

... आप बने रहें ... "ब्रेकिंग न्यूज ...... गिरीश बिल्लोरे अमरकंटक में देखे गये !!!" .... इस विशेष बुलेटीन में पल पल की जानकारी के साथ हम पुन: हाजिर होते हैं .... एक छोटे से ब्रेक के वाद ...... !!!!!!

शेर

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एक जिद ही है, जो हमें जिंदा रखे है
पत्थरों पे हम, इबारत लिख रहे हैं ।

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Saturday, May 15, 2010

... ब्लागजगत "नौटंकी" से कम नहीं है !!!

लगता है ब्लागजगत "नौटंकी" से कम नहीं है ... आये दिन नये नये कारनामें ... वाद-विवाद... तना-तनी ... मैं श्रेष्ठ-तू श्रेष्ठ-वो श्रेष्ठ .... नंबर-वन ... नंबर-टू ... दौड-भाग ...रोज वही किच-किच ... आरोप-प्रत्यारोप ... छीछा-लेदर ... अलविदा ... रूठना-मनाना...

... हो भी क्यों न ... घर की खेती है ... जो मन में आये वही करना है .... रोज घंटे-दो घंटे का "शो" ... कहीं न कहीं "नौटंकी" दिख ही जाती है ... आखिर कब तक ये "नौटंकी" चलते रहेगी ... लगता है ये सब जानबूझ कर ही होता है ... लोग बे-वजह ही भडका देते हैं ... इस भडका-भडकी में ... रोज एक न एक "शटर डाऊन" हो जाता है ... अब "शटर डाऊन" तो मतलब ... एक तरफ़ शुभचिंतकों का मोर्चा ... दूसरी तरफ़ विरोधियों का मोर्चा ... और फ़िर शुरु बमबारी ...

... बमबारी भी ऎसी कि कोई मान-मर्यादा नहीं ... बस ठोकम-ठाक ... गाली-गुल्ली ... नामी-बेनामी ... टीका-टिप्पणी ... पोस्ट पर पोस्ट ... चारों तरफ़ ... अपनी-तुपनी ... रेलम-पेल ... बिलकुल "मेले" जैसा माहौल ... एक-दो नहीं .... आठ-दस "नौटंकी" के पंडाल ... फ़िर क्या ... भीड पर भीड ... एक शो से निकल कर ... दूसरे शो में ... तीसरा,चौथा,पांचवा, छठवा ..... सभी सो "हाऊसफ़ुल" ....

... अरे भाई कोई है जो इस "नौटंकी" ................................ !!!!!!!

शेर

किसी तूफ़ान से भी कम, नहीं मेरे इशारे हैं
समझ जाओ तो जन्नत है, समझे तो तूफ़ां है

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मेरी दुनिया है क्या, मत पूछो ये तुम मुझसे
कभी रोकर - कभी हंसकर, खिलौने बांट देता हूं

Friday, May 14, 2010

क्या "समीर-अनूप-ज्ञान" रूपी "बवंडर" इंद्रधनुषी ब्लागजगत को कलंकित कर के ही दम लेगा !!!

"ब्लाग-दुनिया" में मची धमाचौकडी को देख कर ऎसा लग रहा है कि यह "समीर-अनूप-ज्ञान" रूपी विवाद इतने जल्दी शांत होने वाला नहीं है ... चारों ओर "ढोल-नगाडों" की आवाजें गूंज रहीं हैं ... हर कोई अपनी अपनी अलग "धुन" निकाल रहा है ... पहले तो मैं सोचता रहा कि इस विवाद से दूर ही रहा जाये ... पर क्या करूं ... अब मुझसे ब्लागजगत में मचे "बवंडर/तूफ़ान" पर खामोश रहने का मन नहीं कर रहा है ... उसका एक मात्र कारण है कि अगर इस "बवंडर" को शांत करने का प्रयास नहीं किया गया तो निश्चिततौर पर इसके परिणाम नकारात्मक / घातक ही निकलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता ।

... यह विवाद जिस "पोस्ट" के कारण उपजा है ... वह पोस्ट ... पोस्ट की सार्थकता ... खैर छोडो ..... कौन बडा ... कौन छोटा ... यह भी बे-फ़िजूल ही लगता है ... बे-फ़िजूल इसलिये किसी भी "फ़ील्ड" में हर किसी का अपना-अपना महत्व होता है ... जिस तरह "शतरंज" के खेल में कभी-कभी "पैदल" भी "बजीर" की "चाल" रोक देती है और कभी-कभी यह भी अवसर आ जाता है कि "पैदल" भी आगे चलकर "बजीर" बन जाती है ... सीधा सा तात्पर्य ये है कि सब समय-समय की बातें हैं ... कोई छोटा या बडा नहीं है ।

...इस "छोटे-बडे" के विवाद पर मुझे "शोले" फ़िल्म की याद आ रही है ... इस फ़िल्म में अगर कोई "तीरंदाज" ये बोले कि उसके बगैर फ़िल्म "हिट" हो ही नहीं सकती थी तो आप सभी "हंस" पडेंगे, उसका कारण भी है कि इस फ़िल्म का एक-एक "किरदार" अदभुत है अपने-आप में "सुपर-डुपर" है ... गब्बर सिंह ... कालिया ... सांभा ... ठाकुर ... रामसिंह ... अंग्रेजों के जमाने के जेलर ... धन्नो ... बसंती ... रामगढ ... महबूबा-महबूबा ... किस चक्की का पिसा आटा ... कितने आदमी थे ... क्या खबर लाये हो कालिया ... जेल में सुरंग ... ये दोस्ती हम नहीं छोडेंगे ... जय - वीरू ... वगैरह वगैरह ...

... बिलकुल ठीक इसी तरह "ब्लागजगत" है जो "शोले" फ़िल्म की तरह "सुपर-डुपर" हिट है ... इसमें भी कोई किसी से कम नहीं है सब अपने आप में "सुपर स्टार" हैं हर किसी का अपना-अपना "स्टाईल" है ... सभी बलागर कलम के "जादूगर" हैं ... "बाजीगर" हैं ...

... इसलिये दोस्तो सुनहरे इंद्रधनुषी ब्लागजगत में उठे "बवंडर/तूफ़ान" को शांत करने के लिये आगे आयें ... जिस किसी से भी ... जहां कहीं भी ... भूल-चूक हुई है ... खेद व्यक्त करें तथा खुद-ब-खुद "बडे" बन जायें ।

.... इस अवसर के लिये मेरी एक पुरानी कविता की दो लाईनें प्रस्तुत हैं : -

... बन जाओ कुछ पल को "छोटा"
फ़िर तो "बडे" तुम ही हो
यही जीत का राज है यारो
इस पर कदम बढा लो ..."

Thursday, May 13, 2010

चिट्ठे-चर्चे !!

छीछा-लेदर
नौंक-झौंक
गाली-गुल्ली
नामी-बेनामी

लडो-भिडो
गिरो-पडो
पटका-पटकी
मत-करो

नींबू-मिर्ची
काला-टीका
आरती-पूजा
करो-करो

भूत-प्रेत
दीमक-घुन
भूखे-प्यासे
कूद-पडे

बचो-बचाओ
चिट्ठे-चर्चे
जान-बचाओ
चिट्ठे-चर्चे !!

Wednesday, May 12, 2010

ब्लाग-दुनिया !!

झूमा-झटकी
पटका-पटकी
गुत्थम-गुत्था
खेल-कबड्डी

मौज-मस्ती
ढोल-नगाडे
गिल्ली-डंडा
गली-मोहल्ले

चौके-छक्के
गुगली-यार्कर
टेस्ट-वन्डे
टवेंटी-टवेंटी

नौंक-झौंक
टीका-टिप्पणी
नामी-बेनामी
चिट्ठे-चर्चे

गीत-गजल
कविता-कहानी
हास्य-व्यंग्य
ब्लाग-दुनिया !!

Tuesday, May 11, 2010

शेर

"कुछ तो हुनर रहा होगा

यूं ही मुकाम नही मिलते।"

कहीं से, फ़िर किसी के टूटने की चरचराहट है

चलो अच्छा हुआ, हम पत्थर- नुमा निकले ।

मजहबी दीवारें खुद-ब-खुद हिल रही हैं

पर कुछ मजहबी उन्हें पकडे हुये हैं ।

Monday, May 10, 2010

यौन शिक्षा की पाठशाला (पार्ट - २)

यौन शिक्षा का मतलब समझना व समझा पाना उतना ही कठिन है जितना इस शिक्षा के अभाव के कारण जन्म लेने वाली समस्याओं से जूझना कठिन है ... मैं नहीं कहता कि यौन शिक्षा अत्यंत आवश्यक है पर इसे नजर-अंदाज करना भी बुद्धिमानी नहीं है !!

... यह संभव है कि यौन शिक्षा के कारण हमें आधुनिकता का शिकार होना पड सकता है जैसा कि पश्चिमी देशों में हो रहा है ... पर जो पश्चिमी देशों में हो रहा है वह जरुरी तो नहीं कि "यौन शिक्षा" के कारण ही हो रहा हो ... हम यह कैसे कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों में जो समस्याएं सामने परिलक्षित हो रही हैं उसका कारण "यौन शिक्षा" ही है ... यह भी तो संभव है कि इन समस्याओं की जडें वहां के पारिवारिक परिवेश के कारण जन्म ले रही हैं !!

... क्या कोई है जो यह कह सकता है कि वहां का पारिवारिक परिवेश ऎसा नहीं है कि "यौन शिक्षा" को भी विफ़ल कर रहा है ... क्या वहां पारिवारिक संस्कार ऎसे नही हैं कि "यौन शिक्षा" भी बच्चों को बिगडने से रोक सके ... जब परिवार कि महिलाएं व पुरुष खुले रूप से व्यावहारिक आधुनिक जीवन जी रहे हों तब क्या संभव है कि कोई भी "शिक्षा" वहां असर कारक हो सकती है ...

... फ़िर क्यॊं हम या वहां के बुद्धिजीवी लोग विकृतियों को "यौन शिक्षा" की कमजोरी मान सकते हैं ... क्या हम यह नहीं कह सकते कि जहां का पारिवारिक व सामाजिक वातारण ही ऎसा हो गया हो कि वहां कोई "शिक्षा" असर कारक हो ही नही सकती !! ... फ़िर हम किसी "यौन संबंधी अनहोनी" को "यौन शिक्षा" के कारण उपजी घटना कैसे मान सकते हैं !!

... जब वहां पति-पत्नी ... माता-पिता ... भाई-वहन ... दादा-दादी ... नाना-नानी जैसे रिश्तों को कोई तबज्जो नहीं दिया जा रहा हो तो बच्चों को स्वछंद रूप से जीने से कोई कैसे रोक सकता है ... जब स्वछंदता की कोई सीमा नही रहेगी तो "यौन संबंधी अपराधों" को जन्म लेने से कैसे रोका जा सकता है ... इन हालात में जब "यौन अपराध" होना तय है तो हम "यौन शिक्षा" को इसका दोषी कैसे मान सकते हैं ???

Sunday, May 9, 2010

यौन शिक्षा की पाठशाला (पार्ट - १)

"यौन शिक्षा" एक ऎसा विषय जिस पर अभी भी मतभेद जारी हैं, कुछ बुद्धिजीवी वर्ग इसके पक्षधर हैं तो कुछ निसंदेह इसके विरोधी भी हैं ... विरोध भी जायज है क्योंकि ये विषय ही ऎसा है कि कोई भी नहीं चाहेगा कि उसके बच्चों को अनावश्यक रूप से समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से अवगत कराया जाये ... वो इसलिये भी यदि उन्हें समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से शिक्षित करने का प्रयास किया जायेगा तो वे उसे प्रेक्टीकल तौर पर व्यवहारिक जीवन में अमल भी कर सकते हैं जिसके दुष्परिणामों से भी इंकार नहीं किया जा सकता ... यह भी स्वभाविक है कि यह विषय पढने और पढाने दोनों ही द्रष्टिकोण से असहजता को जन्म देता है।

सर्वप्रथम तो मैं यहां यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि "यौन शिक्षा" से तात्पर्य "शिक्षा" से है कि "कामक्रीडा" से ... इसलिये इसमे इतनी भयभीत होने वाली बात नहीं है ... यदि बच्चों को समय रहते शिक्षित नहीं किया जाता है तो भी नासमझी में उठे किसी प्रायोगिक कदम के कारण समस्याओं से जूझना पड सकता है जो अक्सर व्यवहारिक रूप में हमें सुनने मिल जाती हैं ... अक्सर ऎसा देखा सुना जाता है कि अज्ञानता के कारण भी बच्चे यौन संबंधी ऎसे प्रयोग कर बैठते हैं जिसके परिणाम अहितकार ही होते हैं

यहां पर "यौन शिक्षा" से मेरा सीधा-सीधा तात्पर्य सामान्य व्यवहारिक ज्ञान से है जो बच्चों के लिये बेहद जरूरी है जिसका ज्ञान उन्हें होना ही चाहिये ... यह ज्ञान सिर्फ़ लडकियों को वरन लडकों को भी होना चाहिये वो इसलिये कि "यौन संबंधी समस्याओं" का शिकार कोई भी हो सकता है ... यह ज्ञान "यौन शोषण" से बचाव के लिये ही जरुरी नहीं है वरन यौन संबंधी अपराध बोध के लिये भी आवश्यक है ... शिक्षा ज्ञान के परिणाम देर-सबेर हितकर ही होते हैं ... यहां पर यह भी स्पष्ट कर देना मैं आवश्यक समझता हूं कि "यौन शिक्षा" अर्थात यौन संबंधी सामान्य व्यवहारिक ज्ञान एक "चाकू" की तरह है जिसका सही इस्तमाल सब्जी काटने या आपरेशन के रूप में किया जाये तो हितकर है और प्रयोग के तौर पर किसी के हाथ या गला काटने में किया जाये तो अहितकर है

Saturday, May 8, 2010

मदर्स डे ( मां )

मां - ममता
प्यार - दुलार
लेना - देना
चाह - प्यार

अग्नि - तेज
दुख - पीडा
क्रोध - कष्ट
भष्म - भष्मम

मां - साया
छाया - शीतल
पूजा - प्रार्थना
रक्षा - कवच

शत्रु - राक्षस
कष्ट - निवारण
बुरी - नजर
काला - टीका

मां - शक्ति
कील - काजल
भूत - पिशाच
दूर - निवारण

अग्नि - पवन
रंग - चंदन
फ़ूल - खुशबू
धरा - अंबर

जन्म - जन्मांतर
दुर्गा - काली
लक्ष्मी - सरस्वती
मां - मां !

Friday, May 7, 2010

यौन शिक्षा की पाठशाला

यौन शिक्षा क्या है ? ... यौन शिक्षा क्यों आवश्यक है ? ... चलो इस विषय पर हम ही चर्चा शुरु कर देते हैं ... चर्चा शुरु करने का कारण भी बता देते हैं :-

... हुआ ये कि कल की हमारी समसामयिक पोस्ट पर लगे फ़ोटो को देखकर माननीय रचना जी व माननीय फ़िरदौस खान जी ने तीखी टिप्पणी व्यक्त की ... स्वागत है ... टिप्पणी पढने के बाद हम रचना जी के ब्लाग "नारी" पर पहुंचे ... वहां रचना जी ने "कुछ प्रश्न या मोनोलोग" पोस्ट प्रकाशित की है जो मात्र चार लाईन की है तथा यौन शिक्षा को लेकर है ... वहां पर मैंने एक टिप्पणी दर्ज की है जो इस प्रकार है :-

रचना जी
आप सही कह रही हैं कि शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक संबंध बनाना अपराध है !

यह भी सही कहा कि लडके नहीं जानते कि लडकी से शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार हो सकता है !

यह कहना भी सही है कि सेक्स की सही शिक्षा के खिलाफ़ समाज उठ खडा होता है !

... सेक्स की सही शिक्षा से आपका तात्पर्य क्या है विस्तार रूप से अभिव्यक्त क्यूं नहीं करतीं ?
... क्या ऊपर आपकी पोस्ट पर लिखीं चार लाईनें जो अपराध व बलात्कार को परिभाषित कर रहीं हैं आपकी नजर में यही सेक्स शिक्षा है ?

...यौन शोषण क्या है,बलात्कार क्या है,अपराध क्या है, ... क्या यही आपकी नजर में यौन शिक्षा है?

.... रचना जी यौन शिक्षा की बात तो कर रही हैं पर पोस्ट पर यौन शिक्षा के नाम पर कुछ नहीं है वहीं पर फ़िरदौस खान जी ने भी सहमती दर्ज की है ... मैं सोचता हूं कि जब दोनों मेरी समसामयिक पोस्ट पर व लगे फ़ोटो पर तीखी टिप्पणी दर्ज कर रही हैं तो क्या यौन शिक्षा के गूढ रहस्यों पर प्रकाश डाल पायेंगी ???

... चलो हम ही शुरु करते हैं यौन शिक्षा की पाठशाला .... आपकी टिप्पणी/अभिव्यक्ति के साथ .... ब्रेक के बाद ....!!!!

पार्ट -
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"यौन शिक्षा" एक ऎसा विषय जिस पर अभी भी मतभेद जारी हैं, कुछ बुद्धिजीवी वर्ग इसके पक्षधर हैं तो कुछ निसंदेह इसके विरोधी भी हैं ... विरोध भी जायज है क्योंकि ये विषय ही ऎसा है कि कोई भी नहीं चाहेगा कि उसके बच्चों को अनावश्यक रूप से समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से अवगत कराया जाये ... वो इसलिये भी यदि उन्हें समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से शिक्षित करने का प्रयास किया जायेगा तो वे उसे प्रेक्टीकल तौर पर व्यवहारिक जीवन में अमल भी कर सकते हैं जिसके दुष्परिणामों से भी इंकार नहीं किया जा सकता ... यह भी स्वभाविक है कि यह विषय पढने और पढाने दोनों ही द्रष्टिकोण से असहजता को जन्म देता है।

सर्वप्रथम तो मैं यहां यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि "यौन शिक्षा" से तात्पर्य "शिक्षा" से है कि "कामक्रीडा" से ... इसलिये इसमे इतनी भयभीत होने वाली बात नहीं है ... यदि बच्चों को समय रहते शिक्षित नहीं किया जाता है तो भी नासमझी में उठे किसी प्रायोगिक कदम के कारण समस्याओं से जूझना पड सकता है जो अक्सर व्यवहारिक रूप में हमें सुनने मिल जाती हैं ... अक्सर ऎसा देखा सुना जाता है कि अज्ञानता के कारण भी बच्चे यौन संबंधी ऎसे प्रयोग कर बैठते हैं जिसके परिणाम अहितकार ही होते हैं

यहां पर "यौन शिक्षा" से मेरा सीधा-सीधा तात्पर्य सामान्य व्यवहारिक ज्ञान से है जो बच्चों के लिये बेहद जरूरी है जिसका ज्ञान उन्हें होना ही चाहिये ... यह ज्ञान सिर्फ़ लडकियों को वरन लडकों को भी होना चाहिये वो इसलिये कि "यौन संबंधी समस्याओं" का शिकार कोई भी हो सकता है ... यह ज्ञान "यौन शोषण" से बचाव के लिये ही जरुरी नहीं है वरन यौन संबंधी अपराध बोध के लिये भी आवश्यक है ... शिक्षा ज्ञान के परिणाम देर-सबेर हितकर ही होते हैं ... यहां पर यह भी स्पष्ट कर देना मैं आवश्यक समझता हूं कि "यौन शिक्षा" अर्थात यौन संबंधी सामान्य व्यवहारिक ज्ञान एक "चाकू" की तरह है जिसका सही इस्तमाल सब्जी काटने या आपरेशन के रूप में किया जाये तो हितकर है और प्रयोग के तौर पर किसी के हाथ या गला काटने में किया जाये तो अहितकर है ।

पार्ट -
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यौन शिक्षा का मतलब समझना व समझा पाना उतना ही कठिन है जितना इस शिक्षा के अभाव के कारण जन्म लेने वाली समस्याओं से जूझना कठिन है ... मैं नहीं कहता कि यौन शिक्षा अत्यंत आवश्यक है पर इसे नजर-अंदाज करना भी बुद्धिमानी नहीं है !!

... यह संभव है कि यौन शिक्षा के कारण हमें आधुनिकता का शिकार होना पड सकता है जैसा कि पश्चिमी देशों में हो रहा है ... पर जो पश्चिमी देशों में हो रहा है वह जरुरी तो नहीं कि "यौन शिक्षा" के कारण ही हो रहा हो ... हम यह कैसे कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों में जो समस्याएं सामने परिलक्षित हो रही हैं उसका कारण "यौन शिक्षा" ही है ... यह भी तो संभव है कि इन समस्याओं की जडें वहां के पारिवारिक परिवेश के कारण जन्म ले रही हैं !!

... क्या कोई है जो यह कह सकता है कि वहां का पारिवारिक परिवेश ऎसा नहीं है कि "यौन शिक्षा" को भी विफ़ल कर रहा है ... क्या वहां पारिवारिक संस्कार ऎसे नही हैं कि "यौन शिक्षा" भी बच्चों को बिगडने से रोक सके ... जब परिवार कि महिलाएं व पुरुष खुले रूप से व्यावहारिक आधुनिक जीवन जी रहे हों तब क्या संभव है कि कोई भी "शिक्षा" वहां असर कारक हो सकती है ...

... फ़िर क्यॊं हम या वहां के बुद्धिजीवी लोग विकृतियों को "यौन शिक्षा" की कमजोरी मान सकते हैं ... क्या हम यह नहीं कह सकते कि जहां का पारिवारिक व सामाजिक वातारण ही ऎसा हो गया हो कि वहां कोई "शिक्षा" असर कारक हो ही नही सकती !! ... फ़िर हम किसी "यौन संबंधी अनहोनी" को "यौन शिक्षा" के कारण उपजी घटना कैसे मान सकते हैं !!

... जब वहां पति-पत्नी ... माता-पिता ... भाई-वहन ... दादा-दादी ... नाना-नानी जैसे रिश्तों को कोई तबज्जो नहीं दिया जा रहा हो तो बच्चों को स्वछंद रूप से जीने से कोई कैसे रोक सकता है ... जब स्वछंदता की कोई सीमा नही रहेगी तो "यौन संबंधी अपराधों" को जन्म लेने से कैसे रोका जा सकता है ... इन हालात में जब "यौन अपराध" होना तय है तो हम "यौन शिक्षा" को इसका दोषी कैसे मान सकते हैं ???

पार्ट -
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यौन शोषण क्या है ?

यौन शोषण की एक बृहद परिभाषा है किंतु यहां पर बच्चों के यौन शोषण पर प्रकाश डालना आवश्यक है, सामान्य तौर पर लडके व लडकियों दोनो को ही यौन शोषण का सामान्य ज्ञान दिया जाना चाहिये क्योंकि इसके शिकार दोनों ही हो सकते हैं।

यौन शोषण से तात्पर्य बच्चों के गुप्तांगों से छेडछाड करना, बेवजह चिपकना,चूमना, गले लगा लेना, अश्लील बातें करना या फ़िर उन्हें अपने गुप्तांगों के संपर्क में लाना, इत्यादि।

लडकियों का यौन शोषण बडे उम्र के पुरुष या महिला द्वारा किया जा सकता है और लडकों का यौन शोषण सामान्यतौर पर बडे उम्र के पुरुषों द्वारा या न्यूली मैच्योर लडकी द्वारा किये जाने की संभावना रहती है।

यौन शोषण को विकृत मांसिकता का धोतक मान सकते हैं किंतु कभी कभी तत्कालीन उपजी सेक्सुल उत्तेजनाओं के कारण भी यौन शोषण की घटनाएं हो जाती हैं।

यौन शोषण एक दण्डनीय अपराध है बालिग व नाबालिग दोनों ही अपराध के लिये दोषी हो सकते है।

यौन विकास, यौन शोषण, यौन अपराध का सामान्य ज्ञान ग्रोईंग बच्चों को दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।

............. जारी है ............

खुबसूरती को अश्लीलता की निगाह से क्यों देखते हैं हम !!

खुबसूरती तो खुबसूरती है ... फ़िर खुबसूरती को अश्लीलता की निगाह से क्यों देखते हैं हम ! हम यह क्यों नही स्वीकार करते कि जिसे हम अश्लीलता के रूप में अभिव्यक्त कर रहे हैं वह दर-असल खुबसूरती है, जिसे हम सब देखना चाहते हैं और पसंद भी करते हैं ... जो देखने में सुन्दर है वह अभिव्यक्त करते समय क्यों अश्लील हो जाती है ... क्यों, आखिर कब तक हम बे-वजह ही अश्लीलता का राग अलापते रहेंगे ...

... क्या स्वर्ग लोक में खुबसूरत अप्सराएं नहीं थी ... क्या राजा-महराजाओं के काल में नांच-गाने का चलन नहीं था ... क्या मूर्तिकार खुबसूरती का पुजारी नहीं था ... क्या चित्रकार की उंगलियां खुबसूरती के ईर्द-गिर्द केन्द्रित नहीं थीं ... क्या कवि की कल्पनाएं खुबसूरती की कायल नहीं थी ... जमीं से आसमां तक सब खुबसूरती के दीवाने रहे हैं फ़िर क्यों आज खुबसूरती को अश्लीलता का अमली-जामा पहना कर बेवजह ही ढोल-नगाडे की तरह पीटम-पीट में लगे हैं ... क्या हम भी उसी खुबसूरती के कायल नहीं हैं, अगर हैं तो फ़िर ये ढोंग-धतूरा क्यों, किसलिये !!!

... औरत हर युग, हर काल में खुबसूरती की देवी रही है और आगे भी रहेगी ... जब अप्सराएं नांचती-गाती हैं तो सभी मंत्रमुग्ध ... जब एक मूर्तिकार स्त्री के निर्वस्त्र रूप को साकार रूप देता है तो लाजवाब ... और जब एक चित्रकार स्त्री की निर्वस्त्र खुबसूरती को भिन्न-भिन्न कोण से अभिव्यक्त करता है तो वाह वाह ... फ़िर आज फ़िल्मी पर्दे पर या फ़िर रेंप-शो में खुबसूरती चार-चांद लगाती है तो वह अश्लील कैसे हो जाती है ... क्या हम बे-वजह ही अश्लीलता का राग अलाप रहे हैं ... क्या हम "मुंह में राम, बगल में छु्री" कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं ...

... क्या हम स्त्री की खुबसूरती के दीवाने नहीं हैं ... क्या हमें खुबसूरत यौवना मनभावन नहीं लगती ... अगर लगती है तो फ़िर क्यों हम बे-वजह ही उसे अश्लील कह देते हैं ... औरत कुदरत की सबसे अहम व खुबसूरत रचना है जिसके इर्द-गिर्द ही यह दुनिया केन्द्रित है और रहेगी !!

Thursday, May 6, 2010

प्रेम कहानी .... एक हिन्दुस्तानी लड़की !!!

एक लड़का और एक लड़की आस-पडौस में रहते थे कभी-कभी उनकी मुलाक़ात होते थी ... एक दिन लड़की एक छोटे से बच्चे को खिला रही थी लड़का उसी समय इत्तेफाक से पहुंच गया तथा बच्चे को हाथों में लेकर पप्पी लेने लगा, तभी अचानक लड़की ने लडके से धीमी आवाज में कहा क्यों मुझे पप्पी नहीं दोगे ... सुनकर लड़का अचंभित रह गया और लड़की को देखने लगा ... लड़की भी देख कर शरमाई ... कुछ पल दोनों खामोश होकर एक-दूसरे को देखते रहे ... फिर लडके ने लड़की के गाल को धीरे से चूमा ... और वहां से चला गया ... दो-तीन दिन के बाद फिर दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने ... कुछ संकोच - कुछ भय ... दोनों हिम्मत कर आगे बढे और गले लग गए ... फिर अक्सर मेल-मुलाक़ात होती रही दोनों का प्रेम बढ़ने लगा ...

... लड़की की पढ़ाई पूरी गई और वह परिवार वालों के आदेशानुसार गांव वापस जाने को मजबूर ... लड़का भी पढ़ाई पूरी कर चुका था और नौकरी के लिए तैयारी कर रहा था ... शाम को दोनों मिले ... लड़की ने अपनी स्थिति बताई ... लडके ने नौकरी की समस्या बयां की ... दोनों एक-दूसरे से शादी करने को उतावले थे पर खाने-कमाने की समस्या सर पर थी ... दोनों नौकरी मिलने तक इंतजार को तैयार हुए ... लड़की गांव चली गई ... लड़का नौकरी के लिए जी-तोड़ मेहनत करने लगा ... लगभग एक साल के अंदर ही लडके को एक प्रशासनिक नौकरी मिल गई ...

... इस एक साल के दौरान संयोग से दोनों एक-दो बार ही मिल पाए थे ... लडके ने नौकरी मिलने की खुशखबरी लड़की को भेजी और यह संदेश भी भेजा की अब हम शादी कर सकते हैं कब आऊं तुम्हें लेने ... लड़की ने जवाब दिया मै तैयार हूं कभी भी आ जाओ ... लड़का खुशी-खुशी लड़की के घर गांव पहुंचा .... पारिवारिक जान पहचान के नाते उसके घर पर ही रुका ... रात में खाना खाने के बाद लडके ने लड़की से कहा कल सुबह तैयार हो जाना चल कर मंदिर में शादी कर लेंगे ... अपने बीच जातिगत व आर्थिक असमानता है तुम्हारे माता-पिता शादी को तैयार नहीं होंगे ... इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है ... लड़की ने हां कहा ...

... लड़की अपने कमरे और लड़का गेस्ट रूम में ... रात कैसे गुज़री ... दोनों तरफ न जाने कैसी खामोशी थी ... कैसे सुबह हुई पता ही नहीं चला ... दूसरे दिन सुबह लड़की के चहरे पर जब लडके की नजर पडी ... लड़की की नजरें अस्थिर व चेहरा खामोश था ... समय गुजरने लगा ... लड़का भी खामोश रहकर लड़की के मनोभाव पढ़ने लगा ... उसने मौक़ा पाकर लड़की के सिर पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा ... डरो मत, खुद से मत लड़ो ... जब मन होगा साथ चलने का ... खबर भेज देना मैं बाद में जाऊंगा ...

... चाय-नाश्ता करने के बाद लड़का जाने को तैयार हुआ ... घर के बाहर परिवार के सभी सदस्य छोड़ने आये लड़की भी ... खामोशी के साथ-साथ लड़की की आँखे नम ... लडके ने लड़की के चेहरे पर उमड़ रहे मनोभावों को पढ़ लिया और समझ गया कि माता-पिता की मर्जी के बिना भागकर शादी करना ... एक हिन्दुस्तानी लड़की के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरने से कम नहीं है ... लडके ने सभी को अलविदा कहा और निकल पडा ... गली के मोड़ पर लडके ने मुड़कर देखा ... लड़की अकेली दरवाजे पर खामोश खडी थी लडके ने हाथ उठा कर बाय-बाय कहा ... और दोनों के बीच फासला बढ़ता गया ... !!!

Wednesday, May 5, 2010

मेरा "तरा-रम-पम" कुछ बोल-सुन नहीं सकता !!

ब्लागजगत में कूदे हुये मुझे जुम्मा-जुम्मा ही हुआ है ... ले-दे के लिख-पढ लेता हूं ... कुछ दिनों पहले ही "चैटिंग" सीखना शुरु किया ... "चैटिंग" के दौरान नमस्कार-चमत्कार का सिलसिला चल पडा ... अब हुया ये कि एक दिन एक दिल-अजीज ब्लागर मित्र ने चैटिंग के दौरान फ़ोन पर बात करनी चाही ... उधर से फ़ोन की घंटी चालू पर इधर मुझे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा ... चैट पर ही मैने कहा भाई जी अभी अभी सीख रहा हूं कुछ समय लगेगा ....

... दो-चार दिनों के बाद फ़िर अजब संयोग हुआ ... चैटिंग के दौरान वीडियो पर आमने-सामने वार्तालाप की बात उठ गई ... फ़िर मैने कहा भाई जी ... अभी मैं नौसिया हूं कुछ आता-जाता नहीं है ... बात आई-गई हो गई ...

... पर कल सुबह-सुबह भाई गिरीश बिल्लोरे जी (मेरी जन्मभूमि मध्यप्रदेश के धुरंधर ब्लागर) से गुडमार्निंग हो रही थी तो वो अचानक "पाडकास्ट" पर बात करने का कहने लगे ... मैं सोच में पड गया कि ये पाडकास्ट क्या बला है ... क्या कहूं ...

... इसी दौरान हमर छत्तीसगढ के धुरंधर ब्लागर भाई ललित शर्मा जी से भी "राम राम" हो रही थी ... मन में उठा प्रश्न मैने सीधा उन पर दाग दिया ... वो बोले, बिलकुल सटीक बोले ... अब ये मत पूछना कि वो क्या बोले!! ... चर्चा जारी ही थी और भाई गिरीश जी को भी जवाब देना था ... मैं सोचा झूठ भी नहीं बोल सकता ... मैंने लिख कर ठोक दिया ... मेरा "तरा-रम-पम" (कम्प्यूटर) कुछ बोल-सुन नहीं सकता !!

... जवाब पढकर गिरीश भाई ... हा हा हा ... कह कर हंस पडे ... इस चैटिंग में मध्यस्थता कर रहा मेरा "तरा-रम-पम" (कम्प्यूटर) भी मुस्कुरा दिया ... उसकी मुस्कुराहट देख कर मैं समझ गया कि वो कह रहा है कि अब दूसरा .... कम्प्यूटर ले आओ मैं बच्चों के साथ "गेम" खेलने में मस्त रहूंगा और तुम "कडुवा सच" को छोडकर वीडियो कांफ़्रेंसिंग / पाडकास्ट में मस्त हो जाना ... उसके मन की बातें सुनकर मुझे भी हंसी आ गई ... !!!

( यह पोस्ट कल सुबह चैटिंग के दौरान उपजी मस्ती के उपरांत मेरे मन में आई ... इसे कल शाम को लिखकर पोस्ट करने का मन था ... पर शाम को तत्कालीन उपजी परिस्थितियों के कारण इसे लिख नहीं पाया ... इसके स्थान पर पिछली (कल प्रकाशित) पोस्ट को लिख कर पोस्ट कर दिया था जो आज प्रस्तुत है )

Tuesday, May 4, 2010

... ब्लागवाणी के महानुभावो आखें खोल लो !!

ब्लागजगत के उज्जवल भविष्य के लिये अभी भी वक्त है ... ब्लागवाणी के महानुभावो आखें खोल लो !! ... ब्लागवाणी एक जंक्सन है जहां लगभग ब्लागों का केंद्रियकरण होता है ... हम यह भी कह सकते हैं कि यह एक संगम स्थल है ... कुंभ का मेला है जहां से हम ब्लागों तक पहुंचते हैं यहां पर मठाधीषों का जमावडा होता है ... हमें किस ब्लाग को पढना है कौनसा ब्लाग/पोस्ट प्रभावशाली व प्रसंशनीय हो सकती है इसका निर्धारण भी कमोवेश यहां से किया जाना संभव है ...

... यहां पर कुछ अनियमितताएं परिलक्षित हो रही हैं इस अनियमितता की जड है "पसंद/नापसंद का चटका" ... खैर इसमें कोई बुराई नहीं है यह व्यवस्था होनी चाहिये ... पर इसका सदुपयोग हो तो ठीक है ... अगर दुरुपयोग हो तो बहुत ही बुरा है ... हो ये रहा है कि कुछेक "दुर्लभ सज्जन" अपने हुनर का बखूबी इस्तमाल कर रहे हैं ... जिस पोस्ट को चाह रहे हैं उसे पसंद और जिसे नहीं चाह रहे उसे नापसंद से नवाज दे रहे हैं ...

... मैं यह नहीं कहता कि मैं बहुत अच्छा लिखता हूं ... हर किसी को पसंद ही आये ... ये बिलकुल संभव नहीं है ... बहुत सारे टिप्पणीकार हैं जो नपसंदगी संबंधी अपनी राय निसंकोच दर्ज कर देते हैं और मुझे सोचने के लिये मजबूर कर देते हैं ... उनका मैं आभार ही मानता हूं ...

... पर मुझे आज उन दो "दुर्लभ सज्जनों" का भी आभार व्यक्त करना पडा जिन्होंने मेरी पिछली पोस्ट कालाधन(पार्ट-३) पर ब्लागवाणी में "नापसंद का चटका" जड दिया ... पर अभी-अभी मैंने देखा कि एक साथी ब्लॉगर "विचार शून्य" की ताजातरीन पोस्ट कुछ नये नानवेज (अश्लील) चुटकुले पर बेहतरीन दो पसंद के चटके लगे हुये हैं ...

... मैं इन दो पोस्टों की आपस में तुलना नही कर रहा ... क्योंकि मुझे साथी ब्लागर "विचार शून्य" की पोस्ट बेहद दिलचस्प लगी ... थोडी देर के लिये तो सोचने पर मजबूर हो गया कि मैं इतना दिलचस्प क्यों नहीं लिख सकता ... शायद कोशिश करूं तो लिख भी सकता हूं ... किसी दिन जरूर कोशिश करूंगा ...

... किसी भी पोस्ट को नापसंद करके नीचे गिरा देना और किसी भी पोस्ट को पसंद करके ऊंचा उठा देना ... वास्तव में लाजवाब काम है ... और बखूबी हो रहा है ... मेरा मानना तो है कि यह लेखन के क्षेत्र का भ्रष्टाचार है इस पर भी अंकुश लगाना जरुरी है !! .... अगर इस पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो इससे ब्लागजगत का मटिया-पलीत होना तय है अगर यह सिलसिला चलता रहा तो ब्लागजगत मनोरंजन / टाईमपास / ऊल-जलूल का हिस्सा बनकर रह जायेगा ... ब्लागजगत के उज्जवल भविष्य के लिये अभी भी वक्त है ... ब्लागवाणी के महानुभावो आखें खोल लो !!!!

(इस पोस्ट को शाम ५ बजे तैयार कर रहा था लाईट चली गई ... आने पर पुन: स्टार्ट किया फ़िर दो-तीन बार व्यवधान आ गया ... बडी मुश्किल से तैयार कर पाया ... पता नहीं क्यों !! ... वैसे मेरा मन कुछ और ही लिखने का था पर अचानक ये हालात सामने आ गये ... !!)