Wednesday, August 31, 2016

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ... ?

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ..
यह एक कड़वी सच्चाई है

सिर्फ कोई मुहावरा ...
कहानी ...
या किस्सा नहीं है

कभी-कभी ... अक्सर ...
ऐसा होता है
जब इंसान बुरे दौर से गुजर रहा होता है
न चाहते हुए भी ...
वह ..
खजूर में अटक जाता है

ये अटकना
एक ऐसी पीड़ा की भाँती होता है
जिसका एहसास

उफ़ ..... क्या कहें ...
बस ..... अहसास होता है

खजूर ... एक पेड़ ..
कंटीली .... झाड़ियों-नुमा ...
जहाँ फंसा आदमी ... अपनी मर्जी से ..
न हिल सकता है .. न डुल सकता है
क्यों ? ..... क्योंकि ..
वह .. वहाँ ...
अटका होता है ... लटका होता है
फंसा होता है

अब .. इस सच्चाई से कौन अनभिज्ञ है
या होगा
कि -

उसकी .. उस आदमी की .. क्या बिसात
कि .....
वह अपनी मर्जी कर ले
वो भी .. कंटीली झाडी-नुमा .. पेड़ पे
खजूर पे ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, August 24, 2016

कृष्ण नहीं है .. जान रहा है ... ?

राधा राधा पुकार रहा है
भटक रहा है
गली-गली ..

होश पूरे गँवा चुका है
कुछ व्याकुल, कुछ तड़फ लिए
राधा-राधा ... गली-गली

रोता .. बिलखता .. आस लिए
उम्मीदों की टीस लिए ...
हर नुक्कड़ पे ..

निकल पड़ा है ..
पुकार रहा है ... राधा-राधा ...
गली-गली .. राधा-राधा .. शहर-शहर .. ?

कृष्ण नहीं है ..
जान रहा है ... मान रहा है
फिर भी .. राधा-राधा .. गली-गली .. ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Tuesday, August 9, 2016

22 साल बाद ... !

22 साल बाद ...
जब लौटो
अपने शहर में
तो वो अपना-सा नहीं लगता

गलियाँ ...
नुक्कड़ ...
बगीचे की शाम ...
चौके-छक्के ... दौड़-कूद ... गप्पें ...

कुछ भी तो अपने नहीं लगते
शहर बदल गया है ..
या फिर मैं ... ?
सोचता हूँ तो खुद को निरुत्तर पाता हूँ

अब वो ...
हंसी-मुस्कान ...
छिपी नज़रें ...
आहटें ...
कुछ भी तो .. अपनी .. नजर नहीं आतीं

सब बदल-सा गया है ... शायद ..
इन 22 सालों में ...
कहीं कोई ...
आहट-सी भी नजर नहीं आती
दीवानगी की ... दिल्लगी की ... ??

~ श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, August 6, 2016

जहां 'कृष्ण' है ... वहां 'सुदामा' है ... !

जहां 'गुड' है ... वहां 'मॉर्निंग' है
नहीं तो .. 'गड्डमड्ड' है

जहां 'कृष्ण' है ... वहां 'सुदामा' है
'दोस्ती' है .. 'भाईचारा' है

काजू है .. किशमिश है ..
'मलाईपुआ' है ... 'रबड़ी' है .. 'मिसरी' है

नहीं तो .. 'तीखा' है .. 'खटास' है
'गड्डमड्ड' है ... सब 'गड्डमड्ड' है

जहां .. 'कृष्ण' है ... 'सुदामा' है
वहां .. सब 'गुड' है ... 'गुड मॉर्निंग' है ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, August 5, 2016

'रब' जाने क्या मिला उन्हें....... रूठ के हमसे ?

कभी वक्त, कभी भाग्य, तो कभी हालात की रूसवाइयाँ थीं,
वर्ना ! आसमानों में.. कब के.. कइयों.. सुराख हो गए होते ?
... 
कभी रुके, कभी चले, कभी मचल से गए थे, 
सफ़र में... कभी पाँव... तो कभी ख़्वाब मेरे ? 
... 
सोच बदली, मिजाज बदले, फिर राहें बदल लीं 
'रब' जाने क्या मिला उन्हें....... रूठ के हमसे ? 
... 
उठा कट्टा......... ठोक दे साले को 
कल से, बेवजह फड़-फडा रहा है ?
... 
गर, दिल को, कुछ .. सुकूँ-औ-तसल्ली मिले 'उदय'
तो कुछ झूठे ... कुछ सच्चे ... ख्याल भी अच्छे हैं ?

~ श्याम कोरी 'उदय' 

Thursday, August 4, 2016

यकीनन .. यकीन मानिए जनाब ... !

दरअसल हमें ही
अपने मिजाज बदलने थे

थोड़े ख्याल बदलने थे
थोड़े-थोड़े सवालों के जवाब बदलने थे

यकीनन .. यकीन मानिए जनाब
हम ...

तमाम इम्तहानों में ...
न जाने .. कब के .. पास हो गए होते ?

~ श्याम कोरी 'उदय'