Tuesday, July 31, 2012

अनशन ...


पहले तुम -
अपना पेट ठूंस-ठूंस के भर लो !
हमें तो -
आदत है भूखे रहने की ?
अनशन की ... 
हम मरेंगे नहीं, आठ-दस दिनों में !!
पर हाँ, डर है कि - 
कहीं तुम 
भूखे रहने पर 
मर  जाओ, आठ-दस घंटों में ??
तुम्हारे मौन रहने से 
खामोश रहने से 
हम डरेंगे नहीं ... हारेंगे नहीं 
अभी हम - 
लड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं !!!

ऐ मूर्ख ...


ऐ मूर्ख ... तू खुद को ... बुद्धिमान समझता है !
कहता है !! ... मानता है !!!
क्या तुझे - 
कदम-कदम पे भृष्टाचार दिखता नहीं है ? 
या फिर - 
तेरा भी ... भ्रष्टाचारियों से कोई नाता है ?
या फिर, कहीं ऐंसा तो नहीं 
तू उनसे - 
नाता बनाने की ... किसी जुगत में है ?? 
या तू भी, उन -
निकम्मों, नालायकों, गद्दारों का वंशज है ??
जिन्होंने - 
देश से गद्दारी कर 
फिरंगियों का मान बढाया था ?? 
बता ? 
बोल ?? 
कुछ तो बोल ??? ................. ऐ मूर्ख !!!!!

भृष्टाचार ...

सवाल ...
सवाल हार-जीत का नहीं है !
सवाल है भृष्टाचार का !!
भृष्टाचार जीतना नहीं चाहिए !
भले चाहे, हम हार जाएं !!
क्या भृष्टाचार जीत जाएगा ? 
नहीं ... 
नहीं ... 
नहीं ... 
क्यों ?? 
क्योंकि - 
अभी ... 
हम लड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं !!!

Monday, July 30, 2012

एलर्जी ...

अनशन, आंदोलन, धरने-प्रदर्शन से, ये न मानेंगे 'उदय' 
इन्हें तो, ...... चुनावी दंगल में ही धूल चटाना होगा ? 
... 
शायद, संपादकों को खुली हवाओं से एलर्जी है 'उदय' 
तभी वे ................... चेम्बरों से बाहर नहीं आते ? 
... 
कौमें क्यूँ बर्बाद कर रहे हो मियाँ, धर्म की आड़ में 
जो जहाँ है, ............ उसे वहीं खुशहाल रहने दो ?
... 
कुछ तो शर्म करो, ............ खबरों के झुनझुनो 
क्या तुमसे भृष्टाचार विरोधी धुन बजती नहीं है ? 

Sunday, July 29, 2012

जय हिंद ...

जिस घड़ी वे अपने आँख के चश्मे पे पडी धूल पौंछ लेंगे 'उदय' 
फिर उन्हें, अनशन-आंदोलन में कोई देश-द्रोही नहीं दिखेंगे ?
... 
हौसला तू रख, हमारी जीत होगी 
अभी हम, लड़ रहे हैं - लड़ रहे हैं !
... 
इस बार, लड़ाई... आर-पार की है 
मारेंगे या मर जाएंगे, जय हिंद !! 

बोलो ... कब तक मौन रहूँ ?

मैं ... मौन रहूँ ... 
बोलो ... कब तक मौन रहूँ ? 

कब तक देखूँ ? मैं इन आँखों से -

कदम कदम पे भृष्टाचार !
और गली गली में अत्याचार !!

बोलो ... कब तक देखूँ ?
बोलो ... कब तक मौन रहूँ ??

कहीं किसी दिन फट न जाऊँ 
मैं खुद ही, विस्फोटों-सा ?

चिथड़े-चिथड़े हो जाऊँ ?
और चिथड़े-चिथड़े कर जाऊँ ??

Saturday, July 28, 2012

बूढ़े पे हंस रहे हैं ?


कुछ लोग खुश हैं, नाच-गा रहे हैं 
जीत के भ्रम में हैं ... जश्न मना रहे है !
'उदय' ये कैंसे लोग हैं, जो - 
बूढ़े पे हंस रहे हैं ?

यह कहकर, यह सोचकर 
कि - 
मर गया ... आंदोलन !

नहीं ... मरा नहीं है ... 
आंदोलन ... 
कभी ... मर भी नहीं सकता ... 
जब तक भृष्टाचार है, भ्रष्टाचारी हैं ?? 

Friday, July 27, 2012

कुक्रमत्ते ...


गर होती -
ये लड़ाई, विदेशी कुक्रमत्तों से 
तो शायद हम 
कब के जीत गए होते ?
पर है ये लड़ाई, देशी कुक्रमत्तों से 
जिन्हें हराने के लिए 
न जाने हमें 
कितनी बार हारना होगा ?? 

Thursday, July 26, 2012

जंतर-मंतर ...


टीम अन्ना ... एंड कंपनी ... सिर्फ -
३०० लोकसभा सीटों पे 
चुनाव लड़ने के लिए 
कमर कस ले !

फिर - 
भृष्टाचार 
जनलोकपाल  
कालाधन  
इत्यादि ... सभी समस्याएं ... 
खुद-ब-खुद 
हो जायेंगी "छू-मंतर" !

फिर नहीं पडेगा जाना 
कभी किसी को ... "जंतर-मंतर" 
या फिर - 
हो जाओगे खुद ही ... तुम ... 
तुम ... तुम ... "तितर-बितर" !!

Wednesday, July 25, 2012

सिलसिला ...


बहुत कठिन है जीते-जी खुद को मार पाना 'उदय' 
न जाने कैसे तुमने, .... ये करतब दिखाया है ??
... 
बस यूँ ही, मिलने-जुलने का सिलसिला बना रहे 
ये किसने कह दिया तुमसे, कि - ठहर जाओ ??
... 
वो मेरे जैसे नहीं हैं, और मैं उनके जैसा नहीं हूँ 
सिर्फ इत्ती-सी बात पे, लोग हैरान क्यूँ है ????

Tuesday, July 24, 2012

शह-मात ...


लिखते रहो ..... लिखते रहो ..... लिखते रहो
गर लोग मौन बने रहे, तो शब्द बोलने लगेंगे ?
... 
उसने पहले, दूर से ....... मुस्कुरा कर शह दी 
और फिर, पास आ के छू-कर मुझे मात दे दी !
... 
न जाने क्या हुआ ऐंसा, कि - वो याद आए हैं 
जिनसे, एक दिन हमीं ने .... जाँ छुड़ाई थी ? 

Monday, July 23, 2012

चाहतें ...

सच ! अब इसे जूनून कहें, या पागलपन 
आज हर हांथों में मशालों की जरुरत है ? 
... 
हम हैं आधे मिट्टी के, और हैं आधे पत्थरनुमा
और उनकी चाहतों में, सिर्फ हीरे-जवाहरात हैं ?

Saturday, July 21, 2012

सबब ...


सच ! मर्म को, तू मर्म अब रहने भी दे 
उन्हें देखे बिना, चैन अब मिलता नहीं ? 
... 
'उदय' ये आशिकी का कौन-सा सबब है
कि - वो रात में अपने, और दिन में किसी और के हैं ? 

Wednesday, July 18, 2012

बात ही बात ...

उन्हें पीएम बना दो, या पीडी 
हरकतों से बाज न आएंगे वो ? 
...
लो, आज मौक़ा मिला तो, वो बन गए हैं शेर
जिनकी कभी, दुम तक ... नजर आई नहीं ?
...
बात ही बात पर, हम चल पड़े थे 
क्या खबर थी वो यहाँ ले आएंगे ?

Monday, July 16, 2012

फैशन-शो ...

होंठों पे 
लाल-लाल चमकीली लिपस्टिक 
गालों पे खुशबूदार पावडर 
 
और बदन पे 
लाल-गुलाबी-आसमानी -
मिले-जुले रंगों की सलवार सूट है !
 
इन मोहतरमा को देखकर 
हमें 
यकीं नहीं होता 'उदय', कि - 
 
ये कवि सम्मलेन है ? 
या कोई 
मंच पे चल रहा फैशन-शो है ??

Saturday, July 14, 2012

सौदा ...

अभी अभी तो सन्नाटा था, और अभी अभी है हो-हुल्लड़ 
अरे, किसके बाप मर गए, औ किसको मिल गए हैं बाप ? 
... 
उफ़ ! कैसे भरें वो दम, अब ईमान का 
कल ही सौदा किया, जिन्ने ईमान का ?

Friday, July 13, 2012

ख्यालात ...

यकीनन जी तो करता है, मगर दिल थाम लेता हूँ 
सुना है जब से ये हमने, मुहब्बत ... इम्तिहानी है ? 
... 
सच ! किसी गूंगे से मत पूंछो ख्यालात उसके 
गर है कसक दिल में, महसूस कर लो ?

Sunday, July 8, 2012

मुहब्बत ...


उफ़ ! उन्ने सीखा भी तो सिर्फ दुम हिलाना सीखा 
कई हैं, जो तलुए चांटने के हुनर से शहंशाह हो गए ? 
... 
अब उन्हें कैसे समझाएं हम 'उदय', कि हमसे दूर रहें 
मुहब्बत की किताबें हमें पढ़नी नहीं आतीं ? 

Friday, July 6, 2012

जज्बात ...


सफ़र अपना 'उदय', दो-चार कदमों का नहीं है 
कोई समझाए उन्हें, गर आना जरुरी है तो कमर कस के आएँ ? 
... 
कदम कदम पे, उन्ने माथा टेका है 'उदय' 
अब हम कैसे मान लें, कि - वे भगवान हैं ? 
... 
उफ़ ! क्या खूब सजा दी है हमें उन्ने 'उदय' 
कि - पानी पे लिखे जज्बात ही क़ुबूल होंगे !

Thursday, July 5, 2012

पाठ ...


तुमको भी मियाँ, झूठ के बहाने नहीं आते 
मरघट मेरा मुकाम है, और तुम शहर में ढूँढते रहे ? 
... 
अगर तुम कह रहे हो तो चलो हम मान लेते हैं 
मगर सच्ची नहीं लगतीं, तेरी बातें हमें यारा ? 
... 
क्या खूब पाठ पढ़ाया है, आज उन्ने हमें 
हमारी वफ़ा का, देकर सिला बेवफाई से !

Wednesday, July 4, 2012

फर्ज ...


अब किसको कहें कि मान जा, है दुनिया बड़ी अजीब 
जब, खुद ही को मनाने में, हमने सदियाँ गुजार दीं ? 
... 
देर से पहुँच के, उसने अपना फर्ज, ..... बखूबी निभाया है 
वर्ना, हमारी मौत की खुशी में, वो मुस्कुरा भी नहीं पाता ? 

Tuesday, July 3, 2012

लूटमार ...


काश ! उस्तादी शक्ल में, हमें 'सांई' मिल गए होते 
तो दो-चार दांव में ही, हम सिकंदर हो गए होते !!!
... 
ये जुनून-ए-इश्क है यारा 
कभी पानी सा लगता है, कभी शोला सा लगता है !
... 
ज्यों ही सत्ता ने कहा, ये कतई लूटमार नहीं 
लोग यूँ उठ के चले, जैसे कुछ देखा ही नहीं !

Monday, July 2, 2012

दर्द ...


इस बस्ती में 'उदय', एक नहीं अनेकों घमंडी हैं 
चलो अच्छा ही है कि - वे एक-दूजे में मस्त हैं !
... 
जिन्हें फुर्सत नहीं है, आसमानी उड़ानों से 
उन्हें कैसे खबर हो, दर्द सूखी जमीनों का ? 

Sunday, July 1, 2012

बंदूकें ...


कौन जाने किस डगर, अब ये सफ़र ले जाएगा 
राह भी अपनी कहाँ, औ चाल भी अपनी कहाँ ? 
... 
कब तक बंदूकें झूठ बोलती रहेंगी 'उदय' 
और कब तलक हम सच छिपाते रहेंगे ? 

बारिशें ...


तुम यूँ ही कह दो, गुलामी क़ुबूल लेंगे हम, मगर
बार बार मंहगाई का फंडा, तुम्हें शोभा नहीं देता ? 
... 
आसमानी बारिशें तो बरसने को, कभी की बेताब हैं 'उदय' 
मगर, बीच में दलालों को कमीशन की दरकार है ?