Monday, February 28, 2011

बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ...

बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
कुछ छोटे बहुत बड़े, तो कुछ बड़े बेहद सहज दिखे !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
विजय बहादुर सिंह, जाने क्यों आँखों में बस गए !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
किसी से नहीं मिला, पर बहुतों से मुलाक़ात हो गई !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
एक सक्शियत से, मिलते मिलते, ठहर गया !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
बड़े बड़े मिजाज के लोग, छोटी छोटी यादें बिखेर गए !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के लिए, एक मील का पत्थर !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
विश्वरंजन, कहीं कुछ, नाम के अनुरूप नजर आए !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
मैं क्या था, क्यों था, कहाँ तक था पहुंचा, चर्चा जारी रखें !
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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
देख-सुन कर, मैंने भी, जाने क्या क्या सीख लिया !
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फिर फिर नागार्जुन, एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
संस्मरण : बाबा नागार्जुन, कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!
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( ... आयोजन को देखने-सुनने के बाद ... जाने क्यों ... ये पंक्तियाँ मेरे जहन में बिजली सी कौंध पडीं ... जिन्हें प्रस्तुत करने से यहाँ खुद को नहीं रोक पा रहा हूँ .... इसलिए प्रस्तुत हैं ... इन पंक्तियों में छिपे भावों पर फिर कभी प्रकाश डालने का प्रयास अवश्य करूंगा ....... !! )
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लिखना, बहुत कुछ, बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ
पर जब, जेब में हांथ डालता हूँ, निकाल नहीं पाता !!
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संस्मरण : बाबा नागार्जुन, कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!

जिन्होंने खुद को बेच, शिखर पाया है 'उदय'
उनसे वफ़ा की चाह, उफ़ ! मुश्किल लगे है !
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कब तक बात होती रहे तेरी-मेरी
चलो आज हम, हमारी बातें करें !
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मान, सम्मान, पहचान, स्वाभीमान
ये सब, क्या खूब, इंसानी फितरतें हैं !
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एक अर्से से कोई हमें खामोश बनकर चाहता रहा
उफ़ ! आज मेरे इजहार पर भी, वो खामोश रहा !
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नंगे, लुच्चे, चोर, उचक्के, आंडू, पांडू, हुए संघठित
फिर कैसे संभव हो, बन पाए शरीफों की सरकार !
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मीडिया के लोग बेहद चिंतित जान पड़ रहे हैं 'उदय'
सच ! कहीं ये लंगोटी बाबा दुकानदारी बंद करा दे !
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फिर फिर नागार्जुन, एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
संस्मरण : बाबा नागार्जुन, कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!

Sunday, February 27, 2011

भ्रष्टाचारियों के चेहरे ही, क्यों न काले करने पड़ जाएं !!

कब तक, हम गुजारिश-पे-गुजारिश करते रहें
वो घड़ी कब आयेगी, जब शुक्रिया अदा करें !
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आज देखी, पहली बार, इतनी दीवानगी हमने
जैसे लगा, कोई देख नहीं, खेल रहा हो क्रिकेट !
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हरे पत्ते जो झर गए हैं, सबको समेटा जाए
शायद, दौना-पत्तल बनाने के काम जाएं !
...
सच ! ताउम्र मैं डूबा रहा, तेरे ख्यालों में
जाने क्यों, आज अपना ख्याल आया !
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कोई उतना भी, मासूम नहीं लगता
जितना उसे, बस्ती के लोग कहते हैं !
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हारते हारते, जीतते जीतते, बच गए
एक-दो नहीं, सारे निकम्मे निकले !
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डरे, झडे, गिरे, मरे, पड़े, हरे, पत्ते
सब पत्ते, हरे हरे, पत्ते पत्ते, हरे हरे !
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दोस्ती, कुछ इस सलीखे से की जाए
खफा होने की भी गुंजाईश रखी जाए !
...
आज मन उदास है, चलो कहीं दूर चलें
सिर्फ तुम, तुम और मैं, पैदल पैदल !
...
कालाधन विदेशों से वापस आकर ही रहेगा, भले चाहे
भ्रष्टाचारियों के चेहरे ही, क्यों काले करने पड़ जाएं !!

उफ़ ! किसी मासूम की, कहीं जान न निकल जाए !!

हम तो दफ्न कर के गए थे, कल विवादों को
जाने किसने उन्हें कुरेद के, ज़िंदा फिर कर दिया !
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सरकार चिंतित नहीं, हम विदेश में हैं, जान आफत में है
उफ़ ! सरकार की तो छोडो, तुम्हें कब देश की चिंता रही !
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सरकार और जनता का, रोना-धोना बंद कराया जाए
दोनों फिकरमंद हैं, दोनों को पर्याप्त मौक़ा दिया जाए !
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लो अभी तक तो हमने कुछ किया नहीं, फरेबी बना दिया
जो वादे, दिल तोड़ के बैठे हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं कहता !
...
चलो अच्छा हुआ, तस्वीर की चाह में, आज बन गए बुत तुम
कल जब हम कहें, लिखना है गजल, तब तुम्हें आना पडेगा !
...
इंतज़ार पे इंतज़ार हम करते रहे, आज अफसोस हुआ
जब किसी ने कहा, ये तो तुम्हारी हमेशा की आदत है !
...
कोई कद, ही कोई काठी है मेरी
जाने क्यों, लोग मुझसे डरते हैं !
...
छलकने दो, छलकाने दो, क्या फर्क पड़ता है
जिस्म ही तो है, कौन-सा ख़त्म हो जाएगा !
...
कैटरीना अब तुम इतनी भी मत मटकाओ कमरिया
उफ़ ! किसी मासूम की, कहीं जान निकल जाए !!

Saturday, February 26, 2011

... कौन समझे मखमलों पे, नींद क्यूं आती नहीं !!

आज का दौर हो, या कल की बातें हम करें
सच ! साहित्य के कद्रदान कम ही मिलते हैं !
...
किसी ऊंची इमारत सा, खडा है पास में वो
मगर अफसोस, सारे झरौंखे बंद रक्खे है !
...
हमारा तो खुद पर से यकीं उठ चला है
उफ़ ! अब करें तो, गैरों पे यकीं कैसे करें !
...
तुम कहो तो हम यूं ही फना हो जाएं
पर दोस्ती में, शर्तें परोसी जाएं !
...
कोई बहुत खुश हुआ होगा, सता कर मुझे
गया ही था, तो फिर वापस आया क्यों है !
...
फूल खिले और महक उठे, तितली, भंवरे चहक उठे
तन-मन में यौवन जब आया, अंग अंग थिरक उठे !
...
कविता अमृत है, उसकी नहीं हुई, कहीं गुम है, रंग अलग हैं
वक्त, सुख मार देता, मुंदा रहता, बन गई एक छोटी कहानी !
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जिस्म के बाजार में मोल-भाव का कोई रंटा-टंटा नहीं होता
कोई ईमानदार खरीददार, और बेईमान बिकवाल होता !
...
जिस्म की आग से बढ़कर, कोई आग नहीं देखी हमने
सच ! जो जलाती भी है, और खुद भी जल जाती है कभी !
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धूल, मिट्टी, कंकडों से, मेरा वास्ता हरदम रहा
कौन समझे मखमलों पे, नींद क्यूं आती नहीं !!

Friday, February 25, 2011

सच ! शायद जिंदगी की जादूगरी अभी बांकी है !!

धूल, धुंआ, कूडा-करकट, दूषित हवाएं, पर्यावरण
उफ़ ! जीना दुश्वार हुआ, शहर में हरियाली के बिना !
...
जाने कब तक, भाषणों में भ्रष्टाचार मिटाते रहेंगे लोग
सत्ता हांथ में, फिर सख्त कदम उठाने से परहेज क्यूं है !
...
आना-जाना, भूलना-भुलाना, रूठना-मनाना
उफ़ ! अब ऐसी बातें करो, दिल की सुनो !!
...
शक आग की आंच से, कम नहीं है यारो
दूर रखो, झुलसते रहोगे, जल जाओगे !
...
आज हम भी देख आये उसे, क्या खुबसूरती है
उफ़ ! जिसे एक नजर देख ले, दीवाना कर दे !
...
हमेशा, हमेशा, तुम हरदम कहती रहीं, मतलब
आज हम समझे, हमेशा याद रखना तुम हमें !
...
तेरी सूरत उतनी हसीं, क्यूं नहीं लगती
जितने खूबसूरत, तेरे जज्बात लगे हैं !
...
'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
जाने क्यूं, मेरा महबूब नजर आता है !
...
मरे जा रहे हैं लोग धन-दौलत के लिए
उफ़ ! शऊर नहीं है, ठंडा कर खा लेते !
...
तकलीफों ने मारना चाहा, पर मर सके 'उदय'
सच ! शायद जिंदगी की जादूगरी अभी बांकी है !!

सच ! ये कुछ और नहीं, हमारी जमा पूंजी है !!

सेठ, साहूकार, अमीर, व्यापारी, नेता, अफसर
इनकी ही जय जयकार है, मेरा भारत महान !
...
प्यार, दर्द, जख्म, आंसू, यादें, गम, नफ़रत
माँगने की हदें मत तोड़ो, लो हम खुद गए !
...
मैं जब तक मैं रहा, कुछ भी रहा
आज मेरा मुझसे कोई वास्ता नहीं !
...
कुढ़ना
,चिढचिढाना,उखढ़ना,बौखलाना,पिनपिनाना
उफ़ ! क्या स्टाईल होता है, खूसट-लम्पट लोगों का !
...
हम जब तक तुम में रहे, अक्श बन कर रहे
जाने कब निकले, और कब हम हो गए !
...
लालिमा, चहचहाहट, हवाएं, क्या हंसी सब है
काश ! ये लम्हें, इन्हें हम कुछ देर रो पाते !
...
गए आवाज पर हम, जब कहो तब जायेंगे
कब कहा हम हैं अपने, और कभी कह पायेंगे !
...
उफ़ ! जिन्होंने खुद का जमीर बेच रक्खा है 'उदय'
आज उन्हें भी मौक़ा मिला है लांछन लगाने का !
...
जब किसी को किसी की सुनना-मानना नहीं
फिर बेवजह ही, चर्चा-वार्ता पर टाईम-खोटी !
...
कोई कुछ भी कहे, विनम्रता हम छोड़ेंगे
सच ! ये कुछ और नहीं, हमारी जमा पूंजी है !!

Thursday, February 24, 2011

उफ़ ! मेरी माशूक भी तनिक झूठी निकली !!

खेत, खदान, कुआ, स्कूल, दुकान, आते-जाते लोग
सबसे होती दुआ-सलाम, क्या खूब होती है गाँव की सब !
...
उफ़ ! एक लब्ज, 'मोहब्बत', जुबां से हटता नहीं
बहुत कोशिश की, कोई दूजा शब्द जंचता नहीं !
...
अब क्या कहें, खुद को संभाला नहीं जाता
उफ़ ! कहीं ऐसा हो, हमें भी प्यार हो जाए !
...
हुस्न, मासूम, मोहब्बत, नखरे, क़त्ल
उफ़ ! कोई बताये,कैसे संभाले खुद को !
...
चलो कुछ देर हवाओं में उड़ान भर लें
हौसलों से, कुछ फासला तय कर लें !
...
कोई
अजनबी सा मुझसे, तन्हाई में मिला
उसका मिजाज क्या था, मैं ये सोचता रहा !
...
मासूम बन के संगदिल क़त्ल करते रहे
हम नहीं हैं, मासूम हुस्न पे मरने वाले !
...
लात-घूंसों की पुरजोर ख्वाईश है उसे
काश ! कोई पकड़ के भुर्ता बना दे उसका !
...
खता
आँखों ने की, और कुसूरवार दिल को ठहरा दिए
कितने खुदगर्ज हो चले हैं हम, जो खता मानते नहीं !
...
आज दिल उदास हुआ, एक भ्रम जो टूट गया
उफ़ ! मेरी माशूक भी तनिक झूठी निकली !!

तुम जीतो, या हम, पर प्यार की जीत हो जाए !!

सुधर तो जायेंगे, पर सुधर के भी क्या करेंगे 'उदय'
उफ़ ! अब तो पाँव हमारे, घर, और शहर के रहे !
...
जब
से हुआ है इश्क, हमें तुम से, क्या कहें
उफ़ ! तुम्हारी बेरुखी भी हमें मीठी लगे हैं !
...
आज फिर नूर बिखर गया है जमीं पर 'उदय'
खुशनसीबी हमारी, दूर से सही, दीदार तो हुए !
...
पत्रकारिता की दुकां, ये अब मुझसे मत पूछो
कहीं झगड़ा हो जाए, शहर की दो दुकानों में !
...
कहाँ ढूंढूं मैं अब खुद को, खुदी की तस्वीर में यारा
जाने कितने रंग भर डाले, जमाने की फिजाओं ने !
...
सच ! ज़माना बदला है, बदल रहा है 'उदय'
कोई है, घर से बाहर निकल के देखता नहीं !
...
क्या
अजब, दुनिया के दस्तूर हो चले हैं
दिल में कुछ, जुबां पे कुछ बात होती हैं !
...
एक लंगोटी वाले बाबा ने, देश को आजाद कराया था
आज दूसरा बाबा देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराएगा !
...
एक अर्सा हो गया था, हमें मुस्कुराए हुए
सच ! तुम्हें देखते ही, हसीं निकल पडी !
...
चलो खेल खेल में, प्यार की एक बाजी हो जाए
तुम जीतो, या हम, पर प्यार की जीत हो जाए !!

Wednesday, February 23, 2011

उफ़ ! कई नेता-अफसर, सांप-सपेरे बन रहे हैं !!

जाने कब तक तुम, इन आँखों से सच बोलोगे
वो घड़ी कब आयेगी, तुम जब होंठों से हाँ बोलोगे !
...
जख्म जो तूने दिए थे, उन से लड़कर जी पडा हूँ
अब क़यामत से भी लड़ने का जुनूं गया है !
...
नाराज होकर, जहां में किसी को कुछ मिला
सच ! आज भी तन्हा हैं, हम तुमसे बिछड़ कर !
...
गरीबी, जिन्दगी, शोषण, और दम भरती सरकारें
उफ़ ! जी रहे हैं लोग, ये भी तो जिन्दगी का सच है !
...
सांस चल रही है, बस मरते नहीं हैं
उफ़ ! अब क्या कहें, ये जीवन है !
...
न जाने कब तक तुम, बातों में झूठी कहानी, रचते रहोगे
उफ़ ! आँखों में, कहीं कुछ, सच छिपा रक्खा है तुमने !

...
हम तो तुमको देख कर ही मर मिटे थे
सच ! गर चाहो तो आजमा लो खुद को !
...
सच ! बहुत हुआ, अब और शरमाना ठीक नहीं
वैसे भी, घड़ी-दो-घड़ी का साथ ही तो मिलता है !
...
बाबाजी के इरादों को कतई, कम आंके कोई
समय गया खुद के गिरेबां में झांके हर कोई !
...
सांप को दूध पिलाना, आस्तीन में सांप पालना
उफ़ ! कई नेता-अफसर, सांप-सपेरे बन रहे हैं !!

सरकारी लंगर, उफ़ ! ऐसे लगे, जैसे कोई खानदानी हो !

खुशी और गम का बसेरा है 'उदय', सुबह-शाम की तरह
आज गम का मंजर है, तो कल खुशी का सबेरा होगा !!
...
हंगामा क्यों है बरपा, लोकसभा-विधानसभाओं में
सच ! कहीं कुछ लोकतंत्र की चाल बिगाड़ी गई है !
...
बातों बातों में, हर रोज झूठी कहानी, जाने कब तक
उफ़ ! आँखों में, कहीं कुछ, सच छिपा रक्खा है तुमने !
...
कोई कुछ भी कहे, हंसी तेरी बेहिसाब है
चले आओ बाहर, मौसम लाजवाब है !
...
लहू बन पसीना टपकने लगा खेत में
खेती हरी-भरी रहे तो कितने देर रहे !
...
कोहरा, शीत, धुंध, सर्द, सरसराती हवाएं
सच ! चलो चलें, मौसम क्या कमाल है !
...
दस्तूर, मांगने या देने में फर्क, सब मिट गया यारो
क्या सीखना, क्या सिखाना, सब अमलीजामा है !
...
पारंगत तो हैं ही, अब परम्पराएं निभा रहे हैं
कोई जीते, कोई हारे, पैसे खूब कमा रहे हैं !
...
इल्जाम की उंगली उठाकर, सुकूं नहीं संभव
सच ! हमें भी देखना होगा, अपने गिरेबां को !
...
क्या शान-शौकत, चुस्ती-फुर्ती, खाना-पीना है 'उदय'
सरकारी लंगर, उफ़ ! ऐसे लगे, जैसे कोई खानदानी हो !

Tuesday, February 22, 2011

सच ! गर भ्रष्टाचार मिटाना है, तो गांधी बन कर टकराओ !!

बात आने, बुलाने की है, बात दो दिलों की है
ये रिश्ते, प्यार, तकरार, साथ साथ चलने के हैं !
...
खबर नहीं थी मुकाम की, खुद ही पहुँच गए होते
खुशनसीबी हमारी, आपने दिल में बसाया हमें !
...
सच ! बददुआओं से कोई कब तक बचेगा 'उदय'
सुना है, 'भगवन' के दर पे, देर है अंधेर नहीं है !
...
बहुत हुआ, बैठकर कुछ सैटलमेंट कर लो यारो
सच ! अब तो मेरा भी मन डगमगाने लगा है !
...
जब से देखा है तुम्हें, नींद है आती नहीं
कमबख्त दिल है कि मानता ही नहीं !
...
सागर, बूँद, प्यास, तड़फ, बेचैनी, सुकूं
गुजारिश, सिर्फ एक बार मुस्कुरा दो !
...
तुम, बातें, हंसी, रौशनी, रंग, राग, फूल, महक
सच ! साथ तेरा, जन्नतों से कम नहीं होता !!
...
सारा बदन लकड़ी की तरह धूप में सुखाया गया होगा
तब कहीं जाके, जुबां से निकले शब्द, तीर बने होंगे !
...
भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों के हाथों में, सत्ता की डोर है
उफ़ ! ईमानदार करे भी तो क्या करे, मजबूर है !
...
बाबाजी बहुत हो गया बाजा-गाजा, असली कर्तब दिखलाओ
सच ! गर भ्रष्टाचार मिटाना है, तो गांधी बन कर टकराओ !!

उफ़ ! अब वो दौर नहीं, लोग नेकी करें और दरिया में डाल दें !!

चलो, किसी को आजमाया जाए
ठहरे लम्हों को, चलाया जाए !
...
कोई कुछ भी कहे, कुछ बात तो है
सच ! नजरें ठहर-सी जाती हैं !
...
सहेज लो आँखों में, बाहर मत निकलने दो
सच ! फिर देखें, ख़्वाब कैसे पूरे नहीं होते !
...
सच ! अब हमें तुम पर एतबार रहा
कभी कुछ, कभी कुछ, क्या फलसफा है !
...
सच ! खुद पे एतबार, क्या खूब है
ज़रा ठहरो, हमें भी आजमाने दो !
...
ये माना, काम कठिन है ईमानदारी से जीना
सच ! क्यों दो घड़ी आजमा के देखा जाए !
...
उफ़ ! जालिम लोग ईमानदारी से जीने नहीं देते
हे 'भगवन' दया कर, कहीं ये बस्ती उजड़ जाए !
...
पैर फिसला, गिर पड़े, उठ गए
जुबां फिसली, गिरे, पड़े हुए हैं !
...
जमाने को तो किसी दिन देख लेंगे हम
सच ! चलो पहले खुद को संभालें हम !
...
एहसान की भाषाएं, परिभाषाएं, आशाएं, बदल गईं हैं 'उदय'
उफ़ ! अब वो दौर नहीं, लोग नेकी करें और दरिया में डाल दें !!

सच ! अब चाहें भी तो, कैसे हम संभालें खुद को !!

सादगी, ताजगी, संजीदगी, खुबसूरती, क्या नहीं है
सच ! कोई बताये हमें, क्यूं चाहें हम तुम्हें !
...
सारी दुपहरी चलते रहे, तपते रहे
क्या करते, जाना भी जरुरी था !
...
हर सक्श का अपना, एक अलग मिजाज है
पर अपने मिजाज सा, कोई दूजा नहीं दिखता !
...
खुशनुमा मौसम हुआ, संभालें खुद को
कहीं ऐसा हो, तेज बारिस हो, भीग जाएं हम !
...
अब, कहाँ, किसको, किसकी, किसलिए, चिंता हुई
उफ़ ! कौन जाने, कब, कहाँ, किसके, काम जाए !
...
कितना झूमेंगे पी पी के यारा
ज़रा सांस भी तो ले लेने दो !
...
आज किसी का पैगाम गया
सच ! मेरी सब सुहानी हो गई !
...
जंगल से चले, चलते चले, चाँद पर पहुंचे
मगर अफसोस, सब बड़े मतलबी निकले !
...
ज्यादा नहीं, तनिक दर्द को कुरेदना सीखो
सुना है, जख्म भी देते हैं सुकूं, कुरेदने पर !
...
कोई जाने कब, आँखों से दिल में उतर आया है
सच ! अब चाहें भी तो, कैसे हम संभालें खुद को !!

Monday, February 21, 2011

उफ़ ! हुक्मरानों को शर्म भी नहीं आती !!

सुनते हैं, ये मुल्क के लिए फिक्रमंद हुए हैं
अफसोस, इन्हें खुद का शहर नहीं दिखता !
...
भ्रष्टाचार की कश्ती में, अब छेद बढ़ने लगे हैं
सच ! इन्हें डूबने से, कोई बचा नहीं सकता !
...
किसको
कहें, किसकी सुनें, कोई समझाए हमें
हमें तो हर सक्श पागल, उफ़ ! दीवाना लगे है !
...
ख़्वाब टूट जाते हैं अक्सर, ऐसा सुना था हमने
इसलिए ख़्वाबों को कभी, सहेजा नहीं हमने !!
...
हसरतें, धड़कनें, सांसें, दीदार, महबूब
उफ़ ! ज़रा ठहरो, अब एतबार करो !
...
अब भला 'जी' की, क्या गुस्ताखी रही
बड़ी संजीदगी से, हटाने कह दिया !!
...
अब क्या कहें आज की सब हम तुम्हें
उफ़ ! ऐसा लगे नींद से जागे नहीं हो !
...
तेरी सौबत की चाह में, हम सरेआम हो गए
अब तुम चुप रहो, बहुत बदनाम हो गए !
...
ये एक नया दौर है 'उदय', वतन परस्ती जुबां पे है
उफ़ ! कर रहे सौदा वतन का, बन रहे सिरमौर हैं !
...
दरिन्दगी की हदें, रोज टूट रही हैं 'उदय'
उफ़ ! हुक्मरानों को शर्म भी नहीं आती !!

चादर हवाओं की ...

सर्द रातें
बढ़ रही थीं, शीत भी गिरने लगी थी
जर्द पत्तों को बिछा कर
हमने बिछौना कर लिया था !

बदन थक कर, चूर चूर
और आँखें भी निढाल थीं
आसमां में दूधिया चाँदनी
चहूँ ओर, मद्दम मद्दम, रौशनी बिखरी हुई थी !

एक दिव्य स्वप्न -
मेरे जहन में अंकुरित था
मुझे
उसके खिलने की लालसा, और बेसब्री थी !

धीरे धीरे, आँखें थकान में मुंदने लगीं
मैं जर्द पत्तों के बिछौने पर
निढाल हो पसर गया
और ओढ़ ली चादर, मैंने हवाओं की !

ख़्वाब था, या हकीकत, क्या कहें
हम तो सो रहे थे
सो गए थे
ओढ़ कर, चादर हवाओं की !!

Sunday, February 20, 2011

किसी भी कमर पे हाथ, किसी का तय नहीं होता !!

कुछ देर को हम मान भी लेते, तुम झूठे हो
सच ! अब तक तुमने हमसे कुछ कहा नहीं !
...
सुख, शान्ति, शान, आन, मान, पहचान
सच ! हिन्दी में मुझे दिखती है जन्नत !
...
जब
चल पड़े हों कदम तेरे-मेरे, सुहानी राहों पर
कोई कितना भी कहे, मंजिलें तो छूकर रहेंगे !
...
सच ! हमें यकीन था, कोई बेहद हसीं है
आज पर्दे की आड़ से, हमने उसे देखा है !
...
जुर्म हो या हो, आत्महत्या ! तौबा तौबा
बेहतर है, हसीनाओं के सितम सह लेंगे !!
...
कसम 'उदय' की हम तुम्हें चाहकर भी, कहने से डरते हैं
सच ! तुम पर नहीं, तुम्हारी कातिल अदाओं पे मरते हैं !
...
नींद, चैन, दिल, जज्बात, ख्याल, जिस्म, रूह
सच ! इबादत के लिए सब की जरुरत थी मुझको !
...
सच ! किसी दीवाने ने खूबसूरती समेटनी चाही है
मगर अफसोस, मेरी आँखों के पैमाने सबसे जुदा है !
...
क्रिकेट का महाकुंभ सज-धज गया है
देखते हैं कौन किसके छक्के छुड़ाता है !
...
ग्लैमर की महफ़िल में, कोई किसी का नहीं होता
किसी भी कमर पे हाथ, किसी का तय नहीं होता !!

Saturday, February 19, 2011

शीला की जवानी देखो, दोनों को बराबर मौक़ा दिया जाए !!

दीवानगी की कोई हदें, कोई सरहदें नहीं होतीं
सच ! हम तो चाहेंगे तुम्हें, फना होने तक !
...
प्यार
पाने के लिए, क्या क्या हमने ढोंग किये
उफ़ ! प्यार मिलते ही हम, ढोंगी से संत हो गए !
...
एक चेहरा हमें इतना भाया है 'उदय'
उफ़ ! हम तो बस चाहते फिरते हैं उसे !
...
तसल्ली, दिलासा, दुआ, इबादत, मोहब्बत
देख इत्मिनान से, हर जज्बे में बसर है मेरा !
...
अब क्या कहें, इस लिस्ट पे यकीं नहीं होता
जरुर कहीं आंकड़ों में, कुछ हेर-फेर हुई होगी !
...
आज तुम मिले, मुलाक़ात हुई, बात हुई
अनजाने में सही, आज बहुत खुशी हुई !
...
अकेले अकेले खा जाओगे, और हम चुप रहेंगे
नहीं, बिलकुल नहीं, आओ मिल बाँट के खाएं !
...
सच ! ये दोनों दल ही चोर चोर मौसेरे भाई हैं
काश कोई सौतेला भाई उभर कर जाए !
...
काश तुम सिर्फ 'हाट' होतीं, झुलस के मर जाते
उफ़ ! क्या 'कूल' हो, हमें ज़िंदा रखे हो !
...
मुन्नी बहुत बदनाम हो गई, और बदनाम किया जाए
शीला की जवानी देखो, दोनों को बराबर मौक़ा दिया जाए !!

Friday, February 18, 2011

मुन्नी की बदनामी पर अरबाज खूब मुस्कुरा रहे हैं ... !!

कोई कुछ भी कहे, कहता रहे, हम कैसे मान लें
सच ! मेरे महबूब सा कोई दूजा नहीं है !
...
आज शहर में भीड़ बहुत है, जाने क्या मंजर है
हे 'खुदा' रहम करना, मेरा महबूब निकला हो !
...
ये तुम्हारी संजीदगी भरी बातें
सच ! हमें चैन से जीने नहीं देतीं !
...
सच ! फना तो हम हो गए थे तभी
जब तूने दो घड़ी बैठ के बातें की थीं !
...
जाने क्या छिपा रक्खा है तूने हुश्न में अपने
तेरे जिस्म से अक्सर एक खुशबू महकती है !
...
खामोशी, तन्हाई, सुकूं, जुबां, दिल, टीस
उफ़ ! सब ने मिलकर एक कहानी बयां कर दी !
...
हम ने बहुत बसर कर ली, जिन्दगी तल्ख़ धूपों में
अब तो चाहूं जिन्दगी तेरी जुल्फों की घनी छाँव तले !
...
शर्म इतनी बढी कि खुद शर्मसार हो लिए
गर करते ऐसा, तो कोई और कर देता !
...
कुछ लोगों ने कुंठा इस कदर पाल रक्खी है
सच ! जैसे वर्षों की जमा पूंजी हो !
...
मुन्नी की बदनामी पर अरबाज खूब मुस्कुरा रहे हैं
उफ़ ! शौहरत के लिए बेगम को नचवा रहे हैं !!

कैटरीना की कमर ..... जवानी तार तार छलके है !!

जलने दो मुझे, जब तक जहन में शोले हैं
जाने कौन, कब, बुझा दे मुझे !
...
काश ! तेरे हुश्न की छलकती खुशबू, पंखुड़ी
कुछ पल के लिए, ठहर जाती आँखों में मेरे !
...
क्या अजब दोराहा है, ईमान-बेईमान का
चला भी नहीं जाता, ठहरा भी नहीं जाता !
...
तमगे बटोरने की चाहत नहीं रही
यादें बिखेर के चला जा रहा हूँ मैं !
...
इंतज़ार करते रहें, कब तक करें, कुछ कह दो
सच ! अब तड़फ तेरी, हमसे देखी नहीं जाती !
...
उफ़ ! सारी रात, हम चहल कदमी करते रहे
तब ही तो आज की सब अलसाई सी लगे है !
...
तेरे दर पे टूटा-बिखरा पडा है दिल मेरा
सच ! अब उसे सहेजा भी नहीं जाता !
...
सच ! कोई कहे तो ठीक, कहे तो ठीक
हमें तो अब खामोशी भी अच्छी लगे है !
...
जब तक हम बेवफाई का सबब सीख पाते
उफ़ ! कोई हमें, चूना लगा के चला गया !!
...
कैटरीना की कमर, हाय ! क्या लचके है
सच ! जवानी तार तार छलके है !!

Thursday, February 17, 2011

आज पुराने दिन ..... ऐश्वर्या आँखों में रहती थी !!

सच ! शर्मसार होने का एक अलग ही लुत्फ़ है
अब कोई इसे लाचारी समझे तो हम क्या कहें !
...
सोच रहा हूँ, मौसम दिलकश हुआ है
क्यूं बैठकर, एक एक कुल्फी खा लें !
...
मुंबई में बैठी है महबूबा मेरी
उफ़ ! इतने दूर चला नहीं जाता !
...
कल किसी ने मजबूरियों की आड़ में सब कह दिया
उफ़ ! चुपचाप, सब के सब खामोश बन सुनते रहे !
...
सच ! नाक में दम कर रक्खा है, इस चंडाल चौकड़ी ने
क्या करें, सब लंगोटिया यार हैं, छोड़ा भी नहीं जाता !
...
कल किसी ने कह दिया, सीना ठोक कर मजबूर हैं
गर दम है किसी में, उखाड़ ले, जो उखाड़ना चाहे !
...
कोई कह रहा था सभी भ्रष्टाचारी निष्फिक्र हैं
जेल, सरकारी गेस्ट हाऊस से कम नहीं हैं !
...
सारे दिन आमने - सामने बैठे रहे
उफ़ ! कुछ बोले, गुमसुम से रहे !
...
जाने किस उम्मीद से तोड़ा था दिल मेरा
उफ़ ! अब बड़ी गुमसुम सी बैठी है !
...
आज पुराने दिन याद गए
सच ! ऐश्वर्या आँखों में रहती थी !!

ऐसा लगे, कोई ख़्वाब अधूरा रह गया हो !!

तन, मन, ह्रदय, आकर्षण, समर्पण
सच ! सब मिल कर खिले है प्रेम-पुष्प !
...
लाख समझाने पर भी कोई मानता कहाँ है
तेज भागे, सड़क पर यमदूत से जा भिड़े !
...
क्या खूब इम्तिहां लिया है किसी ने प्यार का
आंसू झड़ते रहे, उम्मीद रही ! थम गए, उफ़ !!
...
बड़ी बेरहमी से मुस्कुरा के क़त्ल कर दिया
बड़े जालिम हैं लोग, दो घड़ी आंसू बहा लेते !
...
तुम्हें देखें या चमकते ताज को
कहीं कुछ भ्रम सा पैदा हुआ है !
...
कोई भी कहता, तब भी हम फना हो जाते
सच ! गर तुमने मुड़कर मुस्कुराया होता !
...
अब दुनिया को जो समझना है समझे
हमें तो हो गया है प्यार, बेइंतेहा तुमसे !
...
सारा शहर गुनहगार साबित करने में लगा है
कोई समझाये उन्हें, मैं इस शहर का नहीं हूँ !
...
जब प्रेम का दरिया, या आक्रोश का सैलाव
जहन में उमड़ने लगे, तो समझो 'कविता' !
...
उफ़ ! सारी रात बदन तप तप तपता रहा
ऐसा लगे, कोई ख़्वाब अधूरा रह गया हो !!

उफ़ ! लगे तो खूब है, पर तनिक ज्यादा लगे है !!

दिल से निकली दिल की बात
उफ़ ! पहुँच पाई दिल तक !
...
कब तक आँखों से, काम चलाएं अब हम
सच ! लव खोलो, कह दो - आई लव यू !
...
अब क्या कहें, मेरी महबूबा, हवा का झोंका हुई है
उफ़ ! चले तो ठीक है, पर लगे जैसे लहराई हुई है !
...
मेरे शहर के लोग, मुझे जानते नहीं
सारे जहां में चर्चा, सरेआम है मेरी !
...
गुजरा हुआ कल, कोई बेचने को तैयार नहीं है
नहीं तो क्या, खरीददारों की लाइन लगी होती !
...
डाक्टर्स और डाक्टरी पेशा
सब के सब व्यापारी हुए हैं !
...
प्रेम, शब्द, छोटा, कठिन, उच्चारण
दिल की बातें हैं, दिल ही जाने है !!
...
उफ़ ! आप तो बस फैन निकले, काश 'सी' होते
चलो कोई बात नहीं, अभी उतनी गर्मी नहीं है !!
...
सोचता हूँ, दिल का क्या कुसूर रहा होगा
उफ़ ! तोड़ने वालों ने बेरहमी से तोड़ दिया !
...
कल प्रियंका को देख के, दिल भावुक हुआ है
उफ़ ! लगे तो खूब है, पर तनिक ज्यादा लगे है !!

Wednesday, February 16, 2011

तो बेहतर होगा, मजबूरी न सुनाएं, सरपंची छोड़ दें !!

काश ! आँखों से देख पाते, खुशबू गुलाब की
फिर प्यार, बाजार, गुलाब, सच ! क्या कहने !!
...
उफ़ ! सितम--इंकार करना ही था
तो पलट के मुस्कुराई ही क्यों थी !!
...
कोई आता नहीं अब, ख्यालों में मेरे
सच ! मुझे तो बस, तेरा ख्याल है !
...
अब क्या कहें, इन आँखों का कसूर है
उफ़ ! इन्हें सजा बाजार नहीं दिखता !
...
सच ! बूढ़े ठूंठ भी इस जुगाड़ में हैं
मिल जाए गुलाब इंतज़ार में हैं !!
...
आओ गठबंधन के नाम पे रो लेते हैं
दो-चार घोटाले और, घोंट के पी लेते हैं !
...
सच ! सवालों को सुन, गला नहीं सूखा था 'उदय'
वो तो सुकूं का मंजर देख, हमने पानी पिया था !
...
सच ! किसी ने अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार ली
या यूं कहें, उठा के पैर ही कुल्हाड़ी पे, दे मारा !!
...
कोई समझाये हमें, गर देश में लोकतंत्र है
जनता के लिए है, या भ्रष्टाचारियों के लिए !
...
गर हमारे गाँव के सरपंच, भ्रष्टाचार नहीं रो सकते
तो बेहतर होगा, मजबूरी सुनाएं, सरपंची छोड़ दें !!

गठबंधन का मतलब ...... मजबूरियों का ताना-बाना !!

मजबूरी, नसीब, गुलाब, खुशबू, तुम, हम
सच ! चलो छोडो, आओ बैठ के बातें कर लें !
...
अब क्या कहें, कैसे कहें, मजबूर हुए थे
बस्ती में कोई दूजा सुर्ख गुलाब नहीं था !
...
मजलूम की आहों से संभल जाएं भ्रष्टाचारी
कहीं ऐसा हो, सात पुस्तें निपट जाएं !!
...
सिर्फ एक ख्वाहिश ने, खुशियाँ बिखेर दी जहां में
सच ! हंसते रहे, और जो मिला उसे भी हंसाते रहे !
...
कोई खामोश बन, चुपचाप मुझे निहारता
कुछ कहता नहीं, है कैसा सन्नाटा छाया !
...
सुन रहे हैं बहुत दिलफेंक लोग वेलेंटाइन डे मना रहे हैं
दो-चार हमसे भी टकरा जाते, सच ! काश ऐसा होता !
...
जब जब तुम करती हो, बातें मीठी मीठी
सच ! उस दिन ख़्वाब सुहाने मिलते हैं !
...
कब्र में पैर लटके होने और वेलेंटाइन डे का नाता
उफ़ ! अब क्या कहें, माशुकी इम्तिहान लेती है !
...
हम और हमारे लोग निकम्मे नहीं है 'उदय'
सच ! विदेशी बैंकों में हमारे खाते हैं !
...
सच ! सवालों को सुन, गला नहीं सूखा था 'उदय'
वो तो सुकूं का मंजर देख, हमने पानी पिया था !
...
गाँव के कुछ गिने-चुने, बड़े लोगों की चर्चा सुनी
लगा जैसे आपस में बैठ टाईमपास कर रहे हों !
...
चमचागिरी सचमुच क्या हुनर है 'उदय'
उफ़ ! उनके लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं है !
...
सच ! अति की हदें नजर नहीं रही हैं 'उदय'
भ्रष्टाचारी सैलाब से, वतन भ्रष्टमग्न हुआ है !
...
गठबंधन का मतलब, भ्रष्टाचार चलता रहे
गर कोई पूछे तो मजबूरियों का ताना-बाना !!

Tuesday, February 15, 2011

उफ़ ! कहीं अपना वतन, मुर्दाघर न बन जाए !!

मिटाना है तो मिटा डालो, भ्रष्टाचारी मंसूबों को
गर टूटें, तो कर दो सन्नाटा सारे वतन में !
...
अपने देश में, कुत्तों सा हुनर बहुतों में है
बस वफादारी की दुम कहीं दिखती नहीं !
...
अरे, ये क्या बात हुई, गुगली या बाऊंसर
उफ़ ! कोई खेलता रहे, और हम हार जाएं !
...
तुम, हम, रोज, दिन, रात, जिन राहों पे चलते रहे
उफ़ ! आज, अजीब सा कुछ हुआ, हम फंस गए !!
...
कोई हमें चाहता बहुत है,पर डर डर के मिलता है
उफ़ ! क्या ज़माना है, प्यार करना मुश्किल है !!
...
सारे भ्रष्टाचारी, विदेशी बैंकों में जमा कालाधन
शर्मिंदगी में, खुद--खुद सौंप दें, काश ऐसा होता !
...
क्यूं एक नया, ऐसा सिस्टम बनाया जाए
सच ! केंद्र राज्यों का झगड़ा मिटाया जाए !
...
सिर से पाँव तक, सारा का सारा देश पथभ्रष्ट है
हे 'भगवन' ! अब तुम ही कोई नई राह दिखाओ !
...
इतिहास के पन्नों में, स्वर्णअक्षरों में नाम
उफ़ ! लालसा में लोग छींटाकशी पे उतारू हैं !
...
अभी भी वक्त है, भ्रष्टाचारी इरादे भांप लो यारो
उफ़ ! कहीं अपना वतन, मुर्दाघर बन जाए !!

क्यों न किसी नालायक को लायक माना जाए !!

उफ़ ! अब इसे विडंबना कहें या शौक, मौजे ही मौजे हैं
दिखाने को तो देश, पर खेल तो खुद के लिए, ही रहे हैं !
...
ज़िंदा तो है वो, तेरे प्यार के साए में
जीते भी वही हैं, जो प्यार कर रहे हैं !
...
गुस्ताखी हो गई, माफ़ करना हुजूर
पहचान नहीं पाया, मैं नशे में था !
...
सच ! जिन ताजों पे, तानाशाहों की हुकूमत है
वे तानाशाह उन ताजों के कद्रदान नहीं लगते !
...
याद है मुझे, मैं सिहर सा गया था, जब तुमने
चुपके से, मेरे कान में, आई लव यू कहा था !!
...
अबे तू अकेला नहीं है, जिसका विदेश में खाता है
डर मत, कोई हल निकल जाएगा, तू रोता क्यों है !
...
अब क्या सुनाएं दास्तां अपनी, खुद की ज़ुबानी
सच ! सुना है लोग, अपनी ही, चर्चा में लगे हैं !
...
सच ! जल्द कालेधन का, कुछ उपाय कर लो यारो
जनता भड़क रही है, अब बच पाना मुश्किल लगे है !
...
हम
तो बैठे थे, सिर्फ सुनने तुमको
जाने क्यों, तुम ही खामोश रहे !
...
उफ़ ! काबिल लोग, इस देश के लायक नहीं हैं
क्यों किसी नालायक को लायक माना जाए !!

Monday, February 14, 2011

दिल तो दिल है 'उदय', संभाले कहां संभलता है ... !!

कुछ यादें, रश्में, जज्बे, वादे, सहेज लें हम
सफ़र लंबा है, थकेंगे, थकान दूर कर लेंगे !
...
कोई बात नहीं, पीठ अपनी है तो क्या हुआ
ठोक देते हैं, हक़ तो बनता है ठोकने का !
...
हमने सुना था, बहुत बड़ा आदमी है, आज सुबह
वह राम राम का जवाब, राम-राम से नहीं दे पाया !
...
कहीं छटपटाहट, कहीं मौज है
क्या लोकतंत्र की यही रीत है !
...
अब
तो हमें, अपनी ही खबर नहीं रहती
क्या कहें, कोई पूछे जब, मिजाज कैसे हैं !
...
जहर के जाम, और बेवफाई की तौमत, अफसोस नहीं
गुमनाम सही, मेरे नाम से तेरी महफ़िल रौशन तो है !
...
ये आठवां नहीं, पहला अजूबा है 'उदय'
जो चाहता है, उसी के काम आता है !!
...
सच ! कोई जलाता रहा, कोई बुझाता रहा
सारे दिन सुलगता रहा चिराग प्यार का !
...
प्रेम तक तो ठीक है, पर ये भाईचारा
सच ! बना रहे, आखिर बुराई क्या है !
...
दिल तो दिल है 'उदय', संभाले कहां संभलता है
सच ! जितना रोकोगे, उतना ही मचलता है !!

सच ! तो खुद को ऐश्वर्या, कैटरीना, करीना, कैसे कह पाएंगी !!

बहुत दिनों से ब्लोग विश्लेषण का दौर चल रहा था
आज पता चला, खोदा पहाड और निकली चुहिईया !
...

तुम्हारी यादों के बंधन, हमेशा साथ होते हैं
सफ़र कैसे गुजरता है, हमें मालुम नहीं पड़ता !
...
चिट्ठे नुमा बच्चे सहेज के रखे जाएँ
आज के साथ साथ, कल भी सुकूं देंगे !
...
ऊंचीं इमारते सूनी पडी हैं, वहां है डर का बसेरा
खंडहर हुईं, कोई जाता नहीं, दीवारें चीखती हैं !
...
उफ़ ! क्या करे मजबूर है, शौहरत के नशे में चूर है
पिटने-पिटाने से बच रहा है, फिर भी छाया सुरूर है !
...
कोई है जो सपनों में भी, आ आ कर सता रहा है
पर खता क्या है हमारी, पूछने पर शर्मा रहा है !
...
चलो देखें, कौन हंसता है, बेबसी पे
बेबस हुए तो हुए, पर लाचार नहीं हैं !
...
अब क्या कहें, रोज तो रोज है, खुशबू के क्या कहने
रोज मिले न मिले, खुशबू सही, पर रोज मिलती रहे !
...
सुना है, तुसी ग्रेट हो ! ब्लॉग बुखार तो ठीक है
कोई इसका सीरप, गोली, इंजेक्शन तो सुजाओ !
...
कतरा कतरा आंसू तिरे जब तक गिरते रहे
सच ! ऐसा लगा जैसे सैलाब उमड़ रहा हो !
...
क्या करें मजबूर हैं, गर पति को न समझें सलमान-शाहरुख
सच ! तो खुद को ऐश्वर्या, कैटरीना, करीना, कैसे कह पाएंगी !
!

अब हो गई है मोहब्बत, उम्र के ताने न झौंके जाएं !!

सच ! अब किसी को क्या कहें, कह भी नहीं सकते
अपनी डफ़ली अपना राग है, वाह वाह, वाह वाह !!
...
सदियां गुजर गईं, तेरी मजार पे बैठे बैठे
चलो माफ़ कर दो, जो भी
खता रही हो !
...
ये भी खूब रही, खुद तो निभाते नहीं वादे अपने
उफ़ ! हमसे कहते हैं, किसी और से वादा न करो !
...
प्यार का जिक्र हुआ है तो,चलो एक समझौता कर लें
लड तो लेंगे ही, क्यूं न दो घडी बैठकर बातें कर लें !!

...

हे 'भगवन' ! कल जो हुआ सो हुआ, अफ़सोस नहीं
मुश्किल बडी है, आज निकला हूं तुझे ही साथ लेकर !

...
काश ! तुम भ्रष्टाचारियों पर भी एक नजर डाल देते
दुआएं भी मिल जातीं और भ्रष्टाचारी भी सटक जाते !
...
हांथ तब तक, तुम थामे रहना मेरा
जब तक, तुम तुम न रहो और मैं मैं न रहूं !
...
कल देर रात तक, काम कर लिया था हमनें
अभी सात ही बजे हैं,चलो कुछ देर और सो लें !
...
विदेशी बैंकों में जमा काला धन, सवाल पे सवाल
कोई जवाब नहीं, वापस आयेगा तो आखिर कब !
...
मोहब्बत तो मोहब्बत है, मेरे जज्बात न आंके जाएं
अब हो गई है मोहब्बत, उम्र के ताने न झौंके जाएं !!

Sunday, February 13, 2011

कब्र में लटके हैं पैर, वेलेंटाईन डे का मन बना रहे हैं !!

बहुत हो गया, आज, कल, परसों, नरसों
तंग आ गये, अब देख लेंगे, अगले साल !
...
दौलत तो समेट ली बहुत, पर शर्मसार हो गए
हे 'खुदा' ! मेरे गुनाह, मुझे माफ़ कर देना ! !

...
डरता हूँ कुछ कहने से, कहीं जनता न भड़क जाए
इसलिए कहने से पहले, कुछ सुनाना चाहता हूँ ! !

...
दालचीनी, आटादाल, आलूप्याज, नौंनमिर्ची
उफ़ ! मंहगाई ने सातवें आसमां पे बिठा दिया !

...
बहुत हो गया झंझट, अभी करो, आज करो
फुर्सत नहीं, रहने दो, जाने दो, कल देख लेंगे !!

...
गुनाहगारों पे रहमत, अब इतनी भी मत बख्श मेरे 'खुदा'
उफ़ ! कि वे बादशाहत भूल के, खुद को समझ बैठें 'खुदा' !
...
सच ! खबर बन गई थी, खरीददार बेखबर था 'उदय'
वो तो कोई जिज्ञासु बिकवाल, खुद को बेच आया !!
...
कुछ तो गुंजाईश रखो, इल्जाम लगाने वालो
सच ! स्कूल, कालेज, फितरती नहीं होते ! !
...

कोई कह रहा था, कुछ ब्लोग, जो लम्बे समय से कोमा में हैं
वे ब्लोग भी शेयर बाजार के सेंसेक्स की तरह उछाल पर हैं !!
...
मियां मकबूल फ़िदा हुसैन भी बेवजह फ़डफ़डा रहे हैं
कब्र में लटके हैं पैर, वेलेंटाईन डे का मन बना रहे हैं !!

Saturday, February 12, 2011

उफ़ ! माधुरी, अनुष्का, और अब विद्या के नशे में चूर हैं !!

चाहते तो हम सभी हैं, बदल जाएं हालात देश के
पर ऐसा सुनते है, हुक्मरानों की चाहत अलग है !
...
धूप-छाँव, उतार-चढ़ाव, सुख-दुख
कुछ ऐसा ही मिला-जुला है जीवन !
...
कोई है जो सपनों में भी, कर सता रहा है
पर खता क्या है हमारी, पूछने पर शर्मा रहा है !
...
लोग कितना भी कर लें जतन
जाने क्यूं, वो हमें ही चाहते हैं !
...
नहीं ऐसा नहीं है, विचार तो होता है
अफसोस, कोई सहमत नहीं होता !
...
यह रात कुछ यूं गुजरे, लम्हें ठहरे रहें
तुम सामने रहो, और हम देखते रहें !
...
चलो देखें, कौन हंसता है, बेबसी पे
बेबस हुए तो हुए, पर लाचार नहीं हैं !
...
चलो चलते रहें, कुछ तलक और आगे
सच ! हमें तुमसे, बहुत करनी हैं बातें !
...
अब क्या कहें, रोज तो रोज है, खुशबू के क्या कहने
रोज मिले मिले, खुशबू सही, पर रोज मिलती रहे !
...
मकबूल साहब आदत से मजबूर हैं, छाया फिर से सुरूर है
उफ़ ! माधुरी, अनुष्का, और अब विद्या के नशे में चूर हैं !!

उफ़ ! भाई लोग, नौ दो ग्यारह हो गए !!

काश, इतनी रौशनी हमें भी दे देता 'भगवान'
कुछ पल को सही, सारे अंधेरे दूर कर देते !
...
चलो आज उसकी सजाएं, आजमा लें हम
सच ! ये हमारे हौसले हैं, जो कम नहीं होंगे !
...
आज
जब मैंने तुम्हें देखा, लाल साड़ी में, अद्भुत
सच ! ऐसा लगा तुम मेरे आँगन का पलाश हो !
...
तुम खामोश थीं, फिर भी ऐसा लगा
सच ! जैसे तुमने मुझसे कुछ कहा है !
...
आज बहुत, जमीर बेचने को उतारू हैं
दौलत शौहरत के नशे में चूर हुए हैं !
...
कोई चापलूस कहता है, बुरा नहीं लगता
सच ! अब तो आदत सी हो गई है !
...
रात-दिन पैसा कमाने, छिपाने की धुन ने
सच ! बहुतों को दिल का मरीज बना दिया !
...
पैसा कमाने के चक्कर में
उफ़ ! बन गए घनचक्कर !
...
ये स्टाइल है अपुन का, कहो - है ख़ास
तब ही तो लोग, देखकर मायूस रहते हैं !
...
क्या ज़माना है, हमारे आने की खबर सुनकर
उफ़ ! भाई लोग, नौ दो ग्यारह हो गए !!

Friday, February 11, 2011

सच ! हम जिस स्कूल में पढ़े, वहां ये विषय नहीं थे !!

धूप के थपेड़े सताना छोड़ देंगे
पसीना पौंछ लो, चलते चलो !
...
चलो बहुत हुआ, अब दिमाग को धो-पौंछ के रख दें
लोग परेशान बहुत हैं, कल किसी के काम आयेगा !
...
भेड़
, बंदर, हिरन, भालू, लोमड़ी, लकड़बग्घा
सच ! अब इनके गुण इंसानी फितरत बने हैं !
...
भ्रष्ट ! हद , मर्यादा, मान, स्वाभीमान, होता क्या है
सच ! हम जिस स्कूल में पढ़े, वहां ये विषय नहीं थे !
...
कुछ दिन से, कुछ सूना सूना सा था
सच ! आज मौसम खुशनुमा लगे है !
...
सच ! माया तो माया है, चाहे कुछ भी कहो
जिसको चाहेगी, उसे ठग के चली जायेगी !
...
तेरी चाहत, या नफ़रत ही सही, कोई बात नहीं
सच ! दोनों ही जज्बों में, मैं तेरे जहन में हूँ !
...
सारे जहां के गम समेट के, दुकां सजाई थी हमने
दुकां खुली छोड़ दी, अफसोस,कोई चोर आया !
...
शराब
बंदी, मुख्य मार्ग, सिर्फ एक घंटा धरना
तफरी का इरादा, उफ़ ! सरकार ने रोक दिया !
...
उफ़
! क्या कहें, खून अपना हो या पराया हो
गर खून का रिश्ता है, मानना तो पडेगा ही !
...
सच ! कोई बेहद हुनरमंद जान पड़ता है 'उदय'
जूते उठाने, या पोंछने में संकोच नहीं करता !